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बुधवार, 1 दिसंबर 2021
मथुरा की मशहूर यूनिवर्सिटी के कैंपस में HOD ने किया छात्र के साथ दुष्कर्म, कई घंटे हंगामे के बाद दर्ज हुई FIR
मथुरा में नेशनल हाईवे नंबर- 2 पर स्थित उत्तर प्रदेश की नामचीन यूनिवर्सिटी के एक HOD ने अपने ही छात्र से कैंपस के अंदर न केवल दुष्कर्म किया बल्कि जान से मारने की धमकी भी दी।इस सनसनीखेज वारदात की सूचना मिलने के बाद यूनिवर्सिटी पहुंचे पीड़ित के परिजनों ने कई घंटे जमकर हंगामा काटा, तब कहीं जाकर इलाका पुलिस द्वारा देर रात HOD के खिलाफ FIR दर्ज की गई। वो भी इस शर्त पर कि FIR में यूनिवर्सिटी के नाम का उल्लेख नहीं किया जाएगा।
बताया जाता है कि FIR दर्ज होने पर HOD को पुलिस ने तत्काल हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी थी।
थाना कोतवाली वृंदावन में दर्ज कराई गई FIR के अनुसार करीब 15 दिन पहले ही जिला हाथरस की तहसील सादाबाद के निवासी करीब 18 वर्षीय छात्र ने यहां B-Tech Civil में एडमिशन लिया था।
कल दिनांक 30 नवंबर की शाम लगभग 5.30 बजे इस छात्र को HOD अभितांसू पटनायक ने यूनिवर्सिटी कैंपस स्थित अपने आवास पर किसी टॉपिक के डाउट क्लीयर करने के बहाने बुलाया और फिर कमरे का दरवाजा बंद कर दुष्कर्म किया जबकि छात्र यथासंभव विरोध करता रहा। छात्र द्वारा विरोध किए जाने पर HOD ने उससे कहा कि तुझे पास होना है या नहीं।
तहरीर के मुताबिक अपने साथ किए गए इस घृणित कृत्य की जानकारी छात्र ने अपने एक साथी और मामा को दी, जिसके बाद छात्र के परिजनों को पता लगा।
चूंकि मथुरा स्थित यूनिवर्सिटी से हाथरस जनपद की तहसील सादाबाद बहुत अधिक दूर नहीं है इसलिए पीड़ित छात्र के परिजन कुछ ही देर में यूनिवर्सिटी जा पहुंचे और उन्होंने यूनिवर्सिटी प्रशासन से जवाब तलब करना शुरू कर दिया।
पीड़ित पक्ष के अनुसार उनके पहुंचने तक यूनिवर्सिटी के प्रबंधतंत्र ने आरोपी HOD के खिलाफ अपनी ओर से कोई कार्रवाई नहीं की थी लिहाजा परिजनों सहित छात्रों में भी रोष व्याप्त होना स्वभाविक था।
बताया जाता है कि कई घंटों तक यूनिवर्सिटी कैंपस में हंगामा होने के बाद देर रात एक बजे थाना कोतवाली वृंदावन में HOD अभितांसू पटनायक के खिलाफ आईपीसी की धारा 377 तथा 506 के तहत FIR दर्ज की गई, लेकिन वो भी इस शर्त पर कि पीड़ित परिवार तहरीर में यूनिवर्सिटी के नाम का उल्लेख नहीं करेगा।
पीड़ित परिवार का कहना है कि पुलिस ने देर रात आरोपी HOD अभितांसू पटनायक को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी थी।
जो भी हो, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से एक बात जरूर साफ होती है कि तमाम सुविधाओं और छात्र सुरक्षा का ढोल पीटने तथा ऊंची रैंक हासिल कर लेने वाले बड़े-बड़े विश्वविद्यालय वास्तव में छात्रों को सुविधा व सुरक्षा दोनों ही देने में असमर्थ हैं।
यही नहीं, जब कभी कोई बात छात्रों और स्टाफ के बीच आती है तो यूनिवर्सिटी का प्रबंधतंत्र हरसंभव प्रयास स्टाफ को बचाने का ही करता है और अंत तक सारा दोष छात्र या उसके परिजनों के सिर मढ़ने की कोशिश में लगा रहता है।
बहरहाल, पीड़ित परिवार का कहना है कि वो इस मामले में यूनिवर्सिटी के प्रबंधतंत्र से कोई समझौता नहीं करेंगे और चूंकि छात्र के साथ दुष्कर्म यूनिवर्सिटी के कैंपस में हुआ है इसलिए जांच के दौरान यूनिवर्सिटी के नाम का खुलासा करवाकर रहेंगे अन्यथा इसके लिए जिस स्तर तक जाना होगा जाएंगे, ताकि फिर कभी कोई शिक्षक इस तरह का दुस्साहस न कर सके तथा गुरू-शिष्य के रिश्ता कलंकित न हो।
-Legend News
मंगलवार, 23 नवंबर 2021
हिंदू और हिंदुत्व: एक नेता ने कही… दूसरे नेता ने मानी… दोनों हैं ज्ञानी…बस इतनी ही है कहानी…बाकी सब बेमानी
पिछले दिनों अपनी पार्टी के ‘एक नेता’ की ‘किताब’ के समर्थन में ‘दूसरे नेता’ ने जुबानी जमा खर्च करते हुए ‘कुतर्क’ पेश किया कि हिंदू और हिंदुत्व यदि एक ही हैं तो इनके नाम अलग-अलग क्यों हैं।
पहली नजर के प्यार की तरह समझें तो इन ‘दूसरे नेताजी’ की बात विद्योत्तमा और कालीदास के बीच हुए कथित शास्त्रार्थ से उपजे ज्ञान सरीखी लगती है किंतु गहराई में झांकें तो साफ-साफ दिखाई देता है कि ये भी आलू से सोना निकालने की तकनीक सा कोई ऐसा कारनामा था जिसे स्क्रिप्ट राइटर की शह पर पार्टी के राष्ट्रीय ट्रेनिंग कैंप में कार्यकर्ताओं के समक्ष परोस दिया गया ताकि बात निकले तो दूर तक जाए और उसे कार्यकर्ता भी इसी ‘ज्ञानमार्ग’ पर आगे बढ़ा सकें क्योंकि एक ने कही… दूसरे ने मानी… दोनों ज्ञानी।लेकिन परेशानी तब खड़ी हो गई जब कार्यकर्ताओं के इस कैंप में किसी नौसिखिए चाटुकार ने मंच की ओर कुछ गंभीर प्रश्न उछाल दिए।
प्रश्न कुछ यूं थे कि सर… हिंदू व हिंदुत्व की तरह यदि गांधी, नेहरू एवं वाड्रा भी अलग-अलग हैं तो फिर ये एक क्यों हैं? फिरोजी पीछे कैसे छूट गए, और क्या कोई फिरोजी अब तक शेष है?
नेहरू, गांधी कैसे हो गए…और वाड्रा अब तक गांधी कैसे बने हुए हैं?
बहुत कन्फ्यूजन है सर… कुछ स्पष्ट कीजिए…हिंदू और हिंदुत्व की तरह कुछ इन पर भी प्रकाश डालिए।
ये भी बताइए कि नेहरू कब विलुप्तप्राय हुए और देखते-देखते विलुप्त कैसे हो गए, उन्हें बचाने का कोई प्रयास किसी स्तर पर क्यों नहीं किया गया?
क्या इस देश में अब भी कोई नेहरू शेष है, और है तो वो कहां पाया जाता है?
भविष्य में वाड्रा बचेंगे या नहीं, और उन्हें संरक्षित करने का गांधियों द्वारा क्या कोई उपाय किया जा रहा है?
साथ ही सर ये भी बताइए कि पप्पू और मूर्ख अगर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं तो इनके नाम अलग-अलग क्यों हैं, यदि ये अलग-अलग शब्द हैं तो इन्हें कब से तथा क्यों एक ही मान लिया गया?
गधे को वैशाखनंदन क्यों कहा जाता है और उसका ‘वैशाख’ से क्या ताल्लुक है?
चाटुकार की चपलता भांप नेताजी ने तत्काल प्रभाव से पाला बदला और कहने लगे, मैंने उपनिषद् भी पढ़े हैं इसलिए मुझसे तर्क मत कीजिए। यहां आप तर्क करने नहीं ‘कुतर्क’ सुनने के लिए लाए गए हैं।
चूंकि कार्यकर्ता नया-नया था और चाटुकारिता में पूरी तरह दक्ष नहीं हो सका था अत: उसकी जिज्ञासा इतने से शांत नहीं हुई।
उसने पिछले प्रश्नों का उत्तर न मिलने की झुंझलाहट में एक और प्रश्न दाग दिया। पूछ लिया- सर… सर… आपने तो उपनिषद् पढ़े ही हैं, तो इतना ही बता दीजिए कि क्या वो सिर्फ पढ़ने से समझ में आ जाते हैं?
क्या कोई भी किताब जिसे हम पढ़ते हों, वो समझ में आ जाती है, और आ जाती है तो बहुत से लोगों को पांच दशक तक पढ़ने के बावजूद ‘पॉलिटिकल साइंस’ समझ में क्यों नहीं आई?
नेता जी अब तक समझ चुके थे कि उनकी समझदानी में इतने सारे सवाल एकसाथ नहीं समा सकते। वो हिंदू और हिंदुत्व की किसी स्क्रिप्ट राइटर द्वारा मनगढ़ंत व्याख्या तो उछाल सकते हैं लेकिन उससे उपजे प्रश्नों को नहीं झेल सकते इसलिए उन्होंने डाइस पर साथ बैठे पूर्ण दक्ष चाटुकार के कान में कोई मंत्र फूंका।
फिर धीरे से शर्ट के ऊपर पहना हुआ जनेऊ ठीक किया और उठ खड़े हुए किसी ऐसे नए मुद्दे को हथियाने जिससे पार्टी के पेड़ की उस साख पर आरी चलाई जा सके जिससे अब तक लटक कर काम चला पा रहे हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
शनिवार, 13 नवंबर 2021
चुनाव से पहले चुभता सवाल: क्या “राम नगरी” और “कृष्ण नगरी” में भेदभाव बरत रही है योगी सरकार?
भगवान विष्णु के आठवें पूर्ण अवतार महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली मथुरा को लेकर गरुण पुराण में कहा गया है- “अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन), पुरी, द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका”।
गर्ग संहिता में कहा गया है कि पुरियों की रानी कृष्णापुरी ‘मथुरा’ बृजेश्वरी है, तीर्थेश्वरी है, यज्ञ तपोनिधियों की ईश्वरी है, यह मोक्ष प्रदायिनी धर्मपुरी मथुरा नमस्कार योग्य है।
पद्म पुराण के अनुसार- काश्यात्यो यद्यपि सन्ति पुर्यस्तासां हु मध्ये मथुरैव धन्या। तां पुरी प्राप्त मथुरांमदीयां सुर दुर्लभाम्।।
ऋग्वेद की एक ऋचा में ब्रज के बाबत इन्द्र कहते हैं “अहो मधुपुरी धन्या, वैकुण्ठाच्च गरीयसी। बिना कृष्ण प्रसादेन, क्षणमेकं न तिष्ठति।।’”
अर्थात् मधुपुरी (मथुरा) धन्य और वैकुण्ठ से भी श्रेष्ठ है, वैकुण्ठ में तो मनुष्य अपने पुरुषार्थ से पहुंच सकता है पर यहां श्रीकृष्ण की आज्ञा के बिना कोई एक क्षण भी ठहर नहीं सकता।’
सोलह कला अवतार भगवान श्रीकृष्ण की जिस जन्मभूमि मथुरा की महिमा और महत्ता से हमारे तमाम धर्मग्रन्थ भरे पड़े हैं, उस पवित्र ब्रज भूमि के वासी आज यह प्रश्न पूछने को क्यों मजबूर हैं कि क्या योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ”राम नगरी” और कृष्ण नगरी” में भेदभाव बरत रही है?
दरअसल, योगी सरकार ने पिछले दिनों कृष्ण की इस नगरी के कुल 72 वार्डों में से मात्र 22 वार्डों को तीर्थस्थल घोषित किया है जबकि मथुरा का तो कण-कण आज भी श्रीकृष्ण की उपस्थिति का अहसास कराता है।
ब्रज रज की महिमा का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि “मुक्ति कहे गोपाल से, मेरी मुक्ति बताय, ब्रज रज उड़ मस्तक लगे तो मुक्ति मुक्त है जाय”।
यानी बारबार जन्म और मरण के बंधन को तोड़ने वाली ‘मुक्ति’ को भी ब्रज की रज ही मुक्ति प्रदान कर सकती है।
सौभाग्य से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एक योगी हैं और वो गोरखनाथ पीठ के महंत भी हैं लिहाजा धर्म के बारे में उनके ज्ञान पर उंगली नहीं उठाई जा सकती, किंतु ऐसा लगता है कि मथुरा को लेकर राजनैतिक कारणों से उन्हें भ्रमित किया जा रहा है।
योगी जी को यह समझना होगा कि ब्रज ‘चौरासी कोस’ में फैला है और इस संपूर्ण चौरासी कोस की यात्रा का केन्द्रबिंदु ‘मथुरा’ है, जहां से ‘अंतग्रही’ करके ब्रजयात्रा का शुभारंभ किया जाता है। प्रतिवर्ष इसके लिए लाखों लोग देशभर से आते हैं।
भौगोलिक दृष्टि से बेशक आज इस यात्रा के बहुत से पड़ाव पड़ोसी राज्य राजस्थान की सीमा में आते हैं किंतु जो हिस्से यूपी की सीमा में हैं, वो निर्विवाद हैं इसलिए उन्हें टुकड़ों में बांटकर तीर्थस्थल घोषित करना समझ से परे है।
हालांकि योगी आदित्यनाथ की सरकार से पहले भी राजनीतिक जगत में मथुरा उपेक्षित ही थी लेकिन पहले केंद्र में मोदी सरकार और फिर राज्य में योगी सरकार बन जाने के बाद ब्रजवासियों को उम्मीद थी कि अब शायद कृष्ण नगरी का विकास उसकी प्रतिष्ठा व गरिमा के अनुरूप होगा, परन्तु ऐसा होते दिखाई नहीं दे रहा।
बाहरी कलाकारों पर लाखों रुपया खर्च करके कभी ‘होली उत्सव’ तो कभी ‘ब्रज रज उत्सव’ मना लेने से मथुरा का विकास नहीं हो सकता। मथुरा का संपूर्ण विकास तभी संभव है जब किसी सरकार के मन में राजनीति से परे इसके विकास की ईमानदार इच्छा हो और वो इसके लिए वो ऐसे लोगों को जोड़े जो ब्रजभूमि की समस्याओं से भलीभांति परिचित हों तथा निस्वार्थ भाव रखते हुए सरकार का मार्गदर्शन कर सकें अन्यथा ”तमाशे” चाहे जितने ही क्यों न कर लिए जाएं, मूर्धन्यों का मखौल इसी प्रकार उड़ता रहेगा।
2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मथुरा में अपनी चुनावी सभा के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने साबरमती की भांति यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने वादा किया था किंतु 7 साल बाद भी कृष्ण की पटरानी कहलाने वाली कालिंदी (यमुना) प्रदूषण से मुक्ति का इंतजार कर रही है। वो भी तब जबकि यमुनोत्री के उद्गम स्थल के बाद मथुरा ही यमुना का एकमात्र प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।
यहां विश्राम घाट पर यम और यमुना (भाई-बहिन) के मंदिर हैं और ऐसी मान्यता है कि यमद्वितिया (भैया दौज) के दिन यदि भाई-बहिन हाथ पकड़कर यमुना स्नान करते हैं तो उन्हें यम के फांस से मुक्ति मिलती है। इसीलिए इस पर्व पर यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।
मथुरा जनपद के कोसी क्षेत्र अंतर्गत कोकिलावन में शनिदेव का कृष्णकालीन मंदिर है और यहां भी प्रति शनिवार और मंगलवार दूर-दूर से यात्रा करके बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। कृष्ण की आल्हादिनी शक्ति राधा ने भी इसी मथुरा के रावल में जन्म लिया था। बरसाना भी राधा (लाड़िली जू) का भव्य मंदिर है जहां प्रतिवर्ष राधाअष्टमी घूमधाम से मनाई जाती है।
ये तो उदाहरण मात्र हैं अन्यथा मथुरा का चप्पा-चप्पा तीर्थस्थल है, फिर उसे हिस्सों में बांटकर तीर्थस्थल घोषित करने की कोशिश सिवाय राजनीतिक प्रपंच के और कुछ नहीं हो सकता।
कहने के लिए बॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी यहां से लगातार दूसरी बार लोकसभा पहुंची हैं और स्थानीय विधायक श्रीकांत शर्मा तथा लक्ष्मीनारायण चौधरी योगी सरकार में कबीना मंत्री हैं।
मथुरा के मेयर का पद भी भाजपा के पास है और जिले की पंचायत पर भी भाजपा का कब्जा है, बावजूद इसके यमुना में प्रदूषण कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा है।
यमुना को प्रदूषण मुक्त और मथुरा का उसकी गरिमा के अनुरूप विकास कराने के केंद्र तथा राज्य सरकार के दावे उतने ही खोखले साबित हो रहे हैं, जितने कि पूर्ववर्ती सरकारों में साबित हुए थे।
आश्चर्य इस बात पर है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त किए जाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले राज्य हरियाणा में भी भाजपा की सरकार है लेकिन पता नहीं क्यों यमुना की दयनीय दशा में कोई सुधार न हुआ है और न होता दिखाई दे रहा है।
एकबार फिर उत्तर प्रदेश में चुनाव होने जा रहे हैं और योगी सरकार धर्म की ध्वजा के बूते दोबारा सत्ता पर काबिज होने का सपना संजोए बैठी है। श्रीराम भी भगवान विष्णु के अवतार थे और श्रीकृष्ण भी… फिर दोनों की जन्मस्थलियों में इतना भेदभाव क्यों, यह पूछने का अधिकार तो कृष्ण जन्मभूमि के वासियों का बनता ही है।
चूंकि चुनाव लगभग सिर पर आ चुके हैं और आचार संहिता लागू होने में थोड़ा ही समय बचा है तो यह प्रश्न और भी प्रासांगिक हो जाता है। बस जरूरत है तो इस बात की कि राजनीति से अधिक धर्म को समझने वाले योगी आदित्यनाथ ब्रजवासियों की भावना को भी समझें और समय रहते उसके अनुरूप निर्णय लें तो बेहतर होगा। उनके लिए भी और उनकी पार्टी के लिए भी, अन्यथा चुनाव हर पांच साल बाद होने ही हैं।
बेशक तीर्थस्थल के रूप में संपूर्ण मथुरा किसी नई पहचान की मोहताज नहीं है और टुकड़ों में बांटकर की जा रही घोषणाओं से उसकी महत्ता कम नहीं होगी परंतु इतना जरूर होगा कि राजनीति व नेकनीयती का फर्क सामने आ जाएगा।
हो सकता है कि यह फर्क इस बार नहीं तो अगली बार अपना असर दिखाए, क्योंकि बात निकली है तो दूर तक जाएगी ही।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
312.50 करोड़ के फ्रॉड केस में “नयति” की चेयरपर्सन नीरा राडिया से EOW ने की 4 घंटे तक पूछताछ
312.50 करोड़ रुपए के कर्ज का गबन करने के मामले में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने गत 27 अक्टूबर को नयति हेल्थकेयर की चेयरपर्सन और प्रमोटर नीरा राडिया से करीब 4 घंटे कड़ी पूछताछ की है।दरअसल, नयति हेल्थकेयर के दो निदेशकों यतीश वहाल और सतीश कुमार नरुला को गत दिनों इस मामले में एक अन्य व्यक्ति राहुल सिंह के साथ गिरफ्तार किए जाने के बाद पुलिस ने राडिया को जांच में शामिल होने के लिए तलब किया था।
पिछले साल 4 नवंबर को पुलिस ने आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. राजीव कुमार शर्मा की शिकायत पर नारायणी इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड, नीरा राडिया, उनकी बहन करुणा मेनन, सतीश नरुला और यतीश वहल पर धोखाधड़ी, अमानत में खयानत, खातों में हेराफेरी, फ्रॉड, धन के गबन समेत अन्य आरोपों के तहत एक FIR दर्ज की थी।
हालांकि नयति हेल्थकेयर के एक प्रवक्ता ने राडिया के खिलाफ आरोपों से इंकार करते हुए दावा किया था कि प्राथमिकी “निराधार” है और कंपनी बोर्ड हेराफेरी के आरोपों की जांच कर रहा है।
FIR के अनुसार आरोपियों ने दो अस्पतालों गुड़गांव में नयति मेडिसिटी और दिल्ली में विमहंस के लिए कर्ज लिया था, जहां डॉ. शर्मा “प्रमुख पदों” पर थे। शर्मा ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने नारायणी इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से इन दो परियोजनाओं का धोखाधड़ी पूर्वक एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया, जिसे बाद में नयति हेल्थकेयर एनसीआर नाम दिया गया।
शर्मा ने आरोप लगाया कि आरोपी ने अस्पताल को विकसित करने के लिए 312.50 करोड़ रुपये का कर्ज लिया और फिर निजी इस्तेमाल के लिए कर्ज का पैसा ट्रांसफर करने को ‘फर्जी खाते’ बनाए।
EOW के अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर आर के सिंह के अनुसार “यस बैंक से 312.50 करोड़ रुपये का ऋण प्राप्त करने के बाद अहलूवालिया कंस्ट्रक्शन के नाम से 208 करोड़ रुपये एक बैंक खाते में स्थानांतरित किए गए। जांच करने पर पता चला कि यह खाता अहलूवालिया कंस्ट्रक्शन के प्रमोटर राहुल सिंह यादव ने खोला था। खातों को वहाल और नरुला द्वारा अधिकृत किया गया था।”
पुलिस के अनुसार नीरा राडिया से उसने लगभग 50 प्रश्न पूछे। राडिया ने सभी सवालों के जवाब दिए लेकिन 312.50 करोड़ रुपये के कर्ज पर संतोषजनक जवाब नहीं दिया। पुलिस ने बताया कि आने वाले दिनों में नीरा राडिया को फिर तलब किया जाएगा।
गौरतलब है कि मथुरा में नीरा राडिया ने दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर- 2 पर नयति मल्टी सुपर स्पेशलिटी के नाम से एक हॉस्पिटल खोला था, जो पिछले करीब ढाई महीने से बंद पड़ा है। नीरा राडिया के इस हॉस्पिटल में प्रसिद्ध चार्टर्ड एकाउंटेंट दीनानाथ चतुर्वेदी के पुत्र राजेश चतुर्वेदी का नाम भी बतौर प्रमोटर्स शामिल है। हॉस्पिटल बंद होने के बाद से नयति के कर्मचारी अपने वेतन तक को तरस गए हैं जबकि हॉस्पिटल के प्रबंधतंत्र का कहना है कि मेंटिनेंस के चलते हॉस्पिटल को कुछ समय के लिए बंद किया गया है।
बहरहाल, ”2G स्पैक्ट्रम” घोटाला हो या “पनामा लीक्स” और पेंडोरा लीक मामला, नीरा राडिया का नाम हर एक से जुड़ा है जिससे इतना तो साफ होता है कि नयति के मालिकों में शुमार इस महिला की न तो नीयत ठीक है और न नेकी से इसका दूर-दूर तक कोई संबंध है।
यही कारण है कि आने वाला समय नीरा राडिया के लिए और मुश्किल भरा हो सकता है, साथ ही नीरा राडिया के नयति की नीयति भी यही समय तय करने वाला है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
मिशन यूपी: एक-तिहाई मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है BJP
यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर BJP की ठोस रणनीति तैयार करने के लिए अब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह खुद एक्टिव होने जा रहे हैं। वह 29 अक्टूबर को लखनऊ पहुंचेंगे और मिशन यूपी को अंजाम देने के लिए पार्टी के दिग्गजों सहित संगठन के दूसरे नेताओं से भी मीटिंग करेंगे। अमित शाह के इस दौरे से यूपी बीजेपी में खलबली मच गई है। दरअसल, इस खलबली की बड़ी वजह यह है कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपने एक-तिहाई मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है। बताया जाता है कि इस बारे में पार्टी ने अपना मन पूरी तरह बना लिया है।किन नेताओं पर गिरेगी गाज?
जाहिर है कि ऐसे में यह चर्चा शुरू हो गई है कि टिकट गंवाने वालों की लिस्ट में कौन-कौन से नेता का नाम हो सकता है। इन नेताओं की तादाद 100 तक जा सकती है। वैसे बीजेपी सूत्रों का कहना है कि इनमें प्रमुख रूप से वो बीजेपी विधायक शामिल हैं जो 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दूसरे दलों से बीजेपी में आए थे, लेकिन फिर आलाकमान की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके। इनमें कुछ ऐसा पार्टी नेता भी शामिल हो सकते हैं जिनका कामकाज संतोषजनक नहीं रहा और वे सीएम योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इस फैसले से बीजेपी को कितना नुकसान?
वैसे बीजेपी के अंदर इसकी चर्चा भी हो रही है कि कहीं इतनी तादाद में विधायकों के टिकट काटने से चुनाव में पार्टी को नुकसान ना हो। इसका उल्टा असर भी हो सकता है। हालांकि जो लोग मोदी-शाह की चुनावी शैली को जानते हैं, उनका कहना है कि ऐसे खतरे लेने से दोनों दिग्गज बिल्कुल नहीं हिचकते हैं।
बीजेपी की कुछ ऐसी रणनीति
2017 के चुनाव में बीजेपी की झोली में 312 सीटें आई थीं और 39.67 फीसदी वोट मिले थे। एक बार फिर से बीजेपी उससे बढ़कर जबर्दस्त प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने 1.5 करोड़ नए मेंबर्स जोड़ने का लक्ष्य रखा है। अभी बीजेपी के पास 2.3 करोड़ मेंबर्स हैं और इसकी संख्या बढ़ाने पर पार्टी का पूरा फोकस है।
संभावित नुकसान के लिए यह प्लान
2014 लोकसभा चुनाव में शाह को खुद पीएम मोदी ने ‘मैन ऑफ द सीरीज’ घोषित किया था और शाह ने इसे साबित भी किया था। सवर्ण और गैर यादव-ओबीसी वोटों को एकजुट कर बीजेपी ने करिश्माई प्रदर्शन किया था और यूपी में बीजेपी को नई जिंदगी मिली थी। एक बार फिर से शाह कुछ ऐसी ही रणनीति बनाने में जुटे हैं। बीजेपी मेंबर्स की संख्या बढ़ाना बीजेपी की प्रमुख रणनीतियों में एक है।
इन नेताओं का टिकट क्यों काट रही बीजेपी?
पार्टी सूत्रों का कहना है कि सीनियर नेता मौजूदा विधायकों के कामकाज का भी आंकलन कर रहे हैं। इसमें विधानसभा क्षेत्र में विधायक की छवि, कामकाज और आम लोगों की राय भी ली जा रही है। इसी आधार पर इन नेताओं के टिकट बरकरार या काटने पर फैसले लिए जाएंगे। यूपी बीजेपी का कहना है कि अभी जो इसको लेकर भी अड़चन या संशय है, शाह के आने से वह दूर हो जाएगी।
-Legend News
राडिया की नीयत में खोट का ही नतीजा है ‘नयति’ का इस “नियति” को प्राप्त होना, 5 वर्ष पहले जता दी थी आशंका
28 फरवरी 2016 को देश के प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा के हाथों जब “2G स्पैक्ट्रम” घोटाला फेम और “पनामा लीक्स” चर्चित महिला लाइजनर “नीरा राडिया” ने योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की नगरी में ‘नयति’ के नाम से सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का उद्घाटन कराया था तो ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने ब्रजवासियों की बात सुन ली क्योंकि मथुरा जनपद तब स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में काफी पिछड़ा हुआ था।
लेकिन कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया द्वारा समाजसेवा की आड़ लेकर कृष्ण नगरी में खोला गया ‘नयति’ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बहुत जल्द नित-नए विवादों का केंद्र बन गया लिहाजा Legend News ने 23 जून 2016 को “नीरा राडिया के नयति की नीयत में ही खोट लगता है” शीर्षक से एक खबर प्रकाशित की।
इस खबर से बौखलाकर ‘नयति’ की ओर से उसकी लॉ फर्म ARCINDO Law Advotactes & Solicitors द्वारा लीगल नोटिस भी भेजा गया किंतु Legend News की और से जब इस लॉ फर्म को तथ्यों सहित जवाब दिया गया और किसी भी सूरत में कोई खंडन न छापने तथा केस लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार रहने को कहा गया तो ‘नयति’ के प्रबंधतंत्र को सांप सूंघ गया।
आखिर ‘नयति’ ने भविष्य में शिकायतें ठीक करने का आश्वासन देकर जैसे-तैसे अपनी साख बचाने में ही भलाई समझी।
बहरहाल, 5 साल पहले अपनी खबर के माध्यम से “लीजेण्ड न्यूज़” द्वारा लिखी गईं वो लाइनें अब सच साबित होती दिखाई दे रही हैं जिनमें आशंका जताई गई थी कि यही हाल रहा तो ‘नयति’ बहुत जल्द बंद हो जाएगा क्योंकि नयति के मालिकानों का मथुरा जैसे विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थान पर अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त हॉस्पिटल खोलने का मकसद चाहे जो भी हो, कम से कम जनसेवा तो नहीं लगता।
23 जून 2016 को लिखी गई इस पूरी खबर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-
https://bhrashtindia.blogspot.com/2016/06/blog-post_23.html
अब नई खबर यह है कि “नयति हॉस्पिटल” में फिलहाल ताला डाल दिया गया है क्योंकि उस पर एक ओर जहां बिजली विभाग का 01 करोड़ 33 लाख रुपयों का भारी-भरकम बिल बकाया है वहीं दूसरी ओर स्टाफ को भी कई माह से वेतन नहीं दिया गया है। हालांकि हॉस्पिटल में ताला लगने का कारण ‘नियति’ का प्रबंधतंत्र कुछ और बता रहा है। उसका कहना है कि हॉस्पिटल में मरम्मत आदि का काम कराए जाने की वजह से उसे 3 महीने के लिए बंद किया गया है किंतु इस कथन में सच्चाई कम प्रतीत होती है क्योंकि नयति द्वारा बताए गए 3 माह के समय में से पूरे दो माह का समय बीत चुका है और हॉस्पिटल में ऐसी कोई गतिविधि नजर नहीं आ रही जिससे उसके दोबारा खुलने की संभावना महसूस होती हो।
जो भी हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘नियति’ आज जिस दशा को प्राप्त है उसके पीछे तमाम लोगों की बद्दुआओं के साथ-साथ मालिकानों की ‘बदनीयती’ एक बड़ा कारण है अन्यथा ऐसा न होता कि अनेक शिकायतों के बावजूद ‘नयति’ के प्रबंधतंत्र पर किसी पीड़ित के आंसुओं का कोई प्रभाव न पड़ता और वो वर्षों तक मनमानी करते हुए हॉस्पिटल को सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने का जरिया बनाए रखते।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
रविवार, 17 अक्टूबर 2021
मथुरा-वृंदावन सीट पर इस बार वैश्य समाज भी करेगा बड़ी दावेदारी, कई लोग लाइन में
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की विधिवत घोषणा भले ही अभी नहीं हुई है किंतु राजनीति की बिसात पर मोहरे बिछाने का खेल पूरी तरह शुरू हो चुका है।
महाभारत नायक योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली होने के कारण धार्मिक दृष्टि से मथुरा जिले का विश्वभर में अपना एक विशिष्ट स्थान तो है ही, लेकिन राजनीति के क्षेत्र में भी यह जिला कम महत्व नहीं रखता।
यही कारण है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी को मथुरा से चुनाव लड़वाया क्योंकि किसी भी कीमत पर वह इस सीट को खोना नहीं चाहती थी।
इसी प्रकार 2017 में अखिलेश यादव को यूपी की सत्ता से बेदखल करने के लिए भाजपा ने बहुत सोच-समझकर उम्मीदवारों का चयन किया।
अगर बात करें मथुरा जनपद की तो यहां की सर्वाधिक प्रतिष्ठित और भाजपा को पिछले कई चुनावों से लगातार हार का मुंह दिखाने वाली मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट पर पार्टी प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा को उतारा गया।
भाजपा का यह दांव सफल भी रहा और अपराजेय समझे जाने वाले कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप माथुर पहली बार चुनाव हार गए, जबकि प्रदीप माथुर ने कांग्रेस के बुरे दिनों में भी इस सीट पर जीत का परचम लहराया था।
श्रीकांत शर्मा शहरी सीट पर चुनाव जीते तो उन्हें उनके कद के मुताबिक योगी सरकार ने ऊर्जा जैसे अहम विभाग का मंत्री बनाया। ऊर्जा मंत्री के तौर पर श्रीकांत शर्मा ने अपने क्षेत्र की जनता को बेशक निराश नहीं किया और बिजली की बदहाल व्यवस्था को न सिर्फ पटरी पर लाए बल्कि भविष्य के लिए भी कई योजनाओं की नींव रखी।
इस सब के बावजूद श्रीकांत शर्मा एक ओर जहां मथुरा-वृंदावन की जनता से सामंजस्य बैठाने में असफल रहे वहीं दूसरी ओर पार्टीजनों के बीच भी अपनी छवि बरकरार नहीं रख सके लिहाजा धीरे-धीरे पार्टी कार्यकर्ता उनसे दूर होते गए।
स्थिति यहां तक जा पहुंची कि इसी साल जनवरी माह में 4 दिवसीय प्रवास पर वृंदावन आए संघ प्रमुख मोहन भागवत को मथुरा की 3 सीटों पर प्रत्याशी बदलने की सलाह देनी पड़ी।
बताया जाता है कि इन 3 सीटों में मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र की सीट भी शामिल है क्योंकि संघ प्रमुख को अपने सूत्रों से ऐसा ही फीडबैक मिला था। संघ को मिले फीडबैक के मुताबिक पार्टी को स्थानीय स्तर पर कई-कई गुटों में बांट देने का काम भी श्रीकांत शर्मा ने बखूबी पूरा किया है। ऐसे में यदि इन्हें एक मौका और दिया गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा की मथुरा इकाई 2022 के चुनाव में हाथ झटक कर खड़ी हो जाए।
संघ प्रमुख की सलाह और स्थिति-परिस्थितियों के मद्देनजर 2022 के लिए मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट पर वैश्य समाज बड़ी दावेदारी जताने का मन बना चुका है।
पार्टी के ही सूत्र बताते हैं कि इस समाज के कई प्रभावशाली लोगों ने इसके लिए अपनी-अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है और उन लोगों तक बात पहुंचाई जाने लगी है जिनकी टिकट वितरण में बड़ी भूमिका होगी।
सूत्रों की मानें तो वैश्य समुदाय के लोगों ने पार्टी हाईकमान तक इस आशय का भी संदेश भेजा है कि मथुरा जिले की 5 विधानसभा सीटों में से अनारक्षित 4 सीटों पर किसी वैश्य प्रत्याशी की दावेदारी नहीं है, किंतु इस समुदाय का उम्मीदवार मथुरा-वृंदावन सीट निकालने का माद्दा रखता है इसलिए इसे लेकर विचार किया जाए।
इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि मथुरा-वृंदावन सीट पर एकबार फिर डॉ. अशोक अग्रवाल अपना भाग्य आजमाने जा रहे हैं इसलिए उनकी काट के लिए किसी वैश्य को मैदान में उतारना मुफीद होगा।
गौरतलब है कि 2022 के चुनावों में चूंकि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं इसलिए डॉ. अशोक अग्रवाल इस गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी हो सकते हैं।
वैश्य समुदाय के सूत्र बताते हैं कि मथुरा-वृंदावन सीट पर टिकट की दावेदारी के लिए समाज की ओर से चार लोग प्रयासरत हैं और उनमें से दो लोग आरएसएस के माध्यम से अपना नाम आगे बढ़ा रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि क्या भाजपा हाईकमान इस सीट को लेकर मिली संघ की सलाह को अहमियत देगा, और क्या वाकई श्रीकांत शर्मा के प्रति नाराजगी का फीडबैक काम करेगा, क्योंकि भाजपा भी अब अपने पत्ते फेंटने में इतनी माहिर हो चुकी है कि आसानी से उसे ऐसी हर बात हजम नहीं होती।
जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि श्रीकांत शर्मा को 2022 का चुनाव लड़ने से पहले पार्टी के अंदर ही उन लोगों से लड़ना होगा जो उनकी स्वाभाविक दावेदारी को खुली चुनौती देने की पूरी तैयारी कर चुके हैं और इसके लिए तुरुप का इक्का इस्तेमाल करने से चूकना नहीं चाहते।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सोमवार, 4 अक्टूबर 2021
लखीमपुर खीरी कांड: सूखे में बारिश का मजा, बिन बादल बरसात… यूपी चुनाव के लिए मौका ही मौका…
पहले बात कांग्रेस की
अंदरूनी कलह में उलझी कांग्रेस पार्टी ने लखीमपुर-खीरी कांड के बाद थोड़ी राहत की सांस ले रही होगी। पहले मीडिया का पूरा फोकस पंजाब और छत्तीसगढ़ पर था, जहां से पार्टी के लिए टेंशन देने वाली खबरें ही आ रही थीं। पंजाब में भी अगले साल चुनाव है, वहां कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर कांग्रेस ने दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया। पहले लगा कि यह सिद्धू की सियासी विजय है, पर कुछ ही दिन में ऐसा टकराव बढ़ा कि उन्होंने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। कहा गया कि पंजाब में सब कुछ राहुल-प्रियंका गांधी के निर्देश पर हो रहा है। ऐसे में उनकी नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठने लगे। G-23 के नेता भी खुलकर केंद्रीय नेतृत्व के विरोध में बोलने लगे थे। अब ऐसे में लखीमपुर-खीरी कांड हो गया। यूपी चुनाव से पहले मौका देख महासचिव प्रियंका गांधी ने सुबह का इंतजार किए बगैर रात में ही लखीमपुर जाने का प्लान बना लिया। सुबह जब तक लोगों की नींद खुलती उनके रौद्र रूप वाला वीडियो वायरल हो चुका था।
वीडियो में वह पुलिस अफसर से वह कहती सुनी जा सकती हैं, ‘तुम मेरा अपहरण करोगे… ये है लीगल स्टेटस तुम्हारा। मत समझो कि मैं नहीं समझती। अरेस्ट करो… हम खुशी से जाएंगे तुम्हारे साथ। तुम जो जबरदस्ती ढकेल रहे हो न, इसमें आप फिजिकल असॉल्ट, किडनैप और छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहे हो…. समझती हूं मैं सब कुछ। छूकर देखो मुझे…जाकर अपने अफसरों से और मंत्रियों से जाकर वारंट लाओ।’ ऐसा लगता है कि इस अंदाज से प्रियंका हताश और निराश कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ताकत देने की कोशिश कर रही हैं।
इससे पहले जब 2019 में सोनभद्र हत्याकांड हुआ था तो प्रियंका गांधी पीड़ितों से मिलने पर अड़ गई थीं। उस समय उनके इस कदम को दादी इंदिरा गांधी से जोड़कर देखा गया था। ‘बेलछी नरसंहार’ की घटना से जोड़कर तुलना की जा रही थी। समझा जाता है कि आपातकाल के बाद जनता का विश्वास खो चुकी इंदिरा गांधी जब 1977 का चुनावी हारीं तो बेलछी की घटना के बाद उनका वहां जाना एक बार फिर से उनके राजनीतिक कद को बढ़ाने वाला साबित हुआ। सोनभद्र कांड के बाद अब लखीमपुर कांड के लिए भी जिस तरह से प्रियंका गांधी ने तेवर दिखाए हैं, उससे कांग्रेस के लोग काफी जोश में आ गए हैं।
कुछ समय पहले पंजाब में सीएम पद के दावेदार माने जा रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सुनील जाखड़ ने 3 अक्टूबर 2021 को प्रियंका गांधी को हिरासत में लेने के मामले की तुलना 3 अक्टूबर 1977 के घटनाक्रम से कर डाली। दरअसल, तब जनता पार्टी की सरकार में 3 अक्टूबर के दिन इंदिरा गांधी को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि बाद में सबूतों के अभाव में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। जाखड़ ने लिखा, ‘अगर श्रीमती इंदिरा गांधी की 3 अक्टूबर 1977 को गिरफ्तारी से जनता पार्टी सरकार की विदाई का मार्ग प्रशस्त हुआ तो 3 अक्टूबर 2021 को प्रियंका गांधी को हिरासत में लेना बीजेपी सरकार के सफाये की शुरुआत बनेगी।’ यह साफ-साफ बताता है कि इतिहास दोहराने का सपना पालकर किसान आंदोलन के मुद्दे को पूरी तरह भुनाना चाहती है।
यही वजह है कि यूपी के प्रभारी बनाए गए छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को फौरन रायपुर से और पंजाब के उप मुख्यमंत्री रंधावा को चंडीगढ़ से लखनऊ के लिए उड़ने को कहा गया। यह बात अलग है कि किसी भी नेता के प्लेन को लखनऊ में लैंड करने की इजाजत नहीं मिली। कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि जनता और मीडिया का पूरा फोकस लखीमपुर और किसानों के मुद्दों पर केंद्रित रखा जा सके जिससे बीजेपी को घेरने का उसे मौका मिल सके। वैसे भी उसे आंतरिक संकट से नुकसान ही हो रहा था।
…और सपा के लिए एक सुनहरी मौका
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव योगी सरकार पर लगातार हमले करते रहे हैं। लखीमपुर जाने के उनके प्लान की आहट मिलते ही पुलिस प्रशासन ने उन्हें और दूसरे सपा नेताओं को नजरबंद कर लिया। अखिलेश नहीं माने और सड़क पर आकर कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर बैठ गए। उधर, उनके घर के बाहर पुलिस की एक जीप में आग लगा दी गई। तड़के से प्रियंका लाइमलाइट में थीं, लेकिन 10 बजते-बजते मीडिया के सारे कैमरे अखिलेश पर फोकस कर चुके थे। अखिलेश यादव ने मांग थी कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को इस्तीफा देना चाहिए और पीड़ितों के परिजनों को 2 करोड़ रुपये की मदद दी जानी चाहिए। इतना ही नहीं, लखनऊ में आवास से जब पुलिस ने अखिलेश को हिरासत में लिया तो सैकड़ों की संख्या जमे समर्थकों ने पुलिस की गाड़ी को घर लिया। सपा के झंडे और टोपी के साथ पहुंचे लोगों ने एक तरफ जिंदाबाद के नारे लगाए तो दूसरी तरफ मीडिया के सामने झंडे भी लहराते दिखे जिससे टीवी के सामने बैठी करोड़ों जनता को यह संदेश जाए कि सपा के लोग सड़क पर उतरकर किसानों का समर्थन कर रहे हैं।
लखीमपुर खीरी जिले के तिकोनिया क्षेत्र में रविवार को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पैतृक गांव जाने के दौरान हुए संघर्ष में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हुई है।
सच तो यह है कि चुनाव में काफी कुछ अब नैरेटिव पर सेट होने लगा है। ऐसे में सभी पार्टियां जनता का परसेप्शन अपने प्रति पॉजिटिव रखना चाहती हैं। 2012-17 के कार्यकाल के दौरान युवाओं को लैपटॉप, गोमती रिवर फ्रंट, एक्सप्रेसवे जैसे कई मुद्दों पर चर्चा बटोरने वाली सपा की ओर से ये आरोप लगाया जाता रहा है कि यूपी में योगी सरकार ने उसके ही शुरू किए गए कामों को अपना नाम दे दिया है। अखिलेश के सामने इस चुनाव में चुनौती बढ़ने वाली है क्योंकि उसका कोर वोट बैंक समझे जाने वाले मुस्लिम और यादव वोटों में भी सेंध लगाने की बीजेपी और ओवैसी की पार्टी कोशिश कर रही हैं। ऐसे में सपा किसान आंदोलन के सहारे अपने पक्ष में माहौल बनाने की तैयारी में है।
यूपी के मैदान में इस बार AAP भी हैं…
यूपी में इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ रही है। 24 घंटे आपूर्ति के साथ घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा किया गया है। AAP के नेता दिल्ली के मॉडल को यूपी में लागू करने की बात कर रहे हैं। दिल्ली जैसी फ्री बिजली, बेहतर शिक्षा और फ्री इलाज की बात कर केजरीवाल-सिसोदिया की टीम चुनाव में करिश्मा करने का दावा कर रही है। ऐसे में उनके नेताओं के लिए लखीमपुर कांड में खुद को जनता के करीब ले जाने का बेहतर मौका दूसरा नहीं हो सकता था। केजरीवाल से लेकर सिसोदिया और संजय सिंह सभी नेता एक्टिव हो गए और ट्विटर पर वीडियो लाकर योगी सरकार पर बरसने लगे।
यूपी के सुल्तानपुर से ताल्लुक रखने वाले संजय सिंह रात में ही लखीमपुर के लिए निकल चुके थे। उन्हें विसवां चुंगी सीतापुर के पास 2.30 बजे गिरफ्तार कर लिया गया। संजय सिंह ने इस जानकारी को ट्वीट भी किया। रात में पुलिस से नोकझोंक का उनका वीडियो भी ट्विटर पर छा गया। आप के नेता और कार्यकर्ता रीट्वीट करने लगे। AAP के ट्विटर हैंडल से सीधे बीजेपी पर हमला करते हुए कहा गया, ‘किसानों के परिवार के ये आंसू भारी पड़ेंगे BJP वालो!’।
AAP की कोशिश है कि अगले चुनाव में दिल्ली मॉडल, किसान आंदोलन के सहारे ज्यादा से ज्यादा सीटें अपनी झोली में लाई जा सकें क्योंकि पार्टी को पता है कि जातिगत समीकरण साधने में सभी पार्टियां लगी हैं और वह तरीके उनके काम नहीं आएगा। वैसे भी दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के हित में व्यवस्था कर आप ने आंदोलन के पहले दिन से समर्थन दे रखा है। उसे यूपी के साथ-साथ पंजाब भी देखना है।
बसपा के मिश्रा जी भी आक्रामक
बीएसपी ने भी ट्वीट कर बीजेपी सरकार को घेरा। बसपा सुप्रीमो मायावती ने सिलसिलेवार ट्वीट कर सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने की मांग की। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद एससी मिश्र को रविवार देर रात लखनऊ में उनके निवास पर नजरबंद कर दिया गया। यूपी में अनुसूचित जाति और जनजाति के इर्द-गिर्द घूमती बसपा की राजनीति इस बार अपने पुराने समीकरण पर लौटती दिख रही है। ब्राह्मणों को साधने के लिए बसपा ने प्रबुद्ध सम्मेलन शुरू किया है। बसपा को 2014 लोकसभा चुनाव के बाद 2017 विधानसभा और फिर 2019 लोकसभा चुनाव की तरह 2022 में जातिगत समीकरण के फेल होने का डर सता रहा है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद जातीय ऐंगल फेल रहे हैं। ऐसे में मायावती की कोशिश है कि वह खुद को किसानों के समर्थन में खड़ा दिखाएं और अगले चुनाव में पार्टी के लिए जीत की राह प्रशस्त हो सके।
ओवैसी और दूसरे दल भी मैदान में
मुसलमानों के बड़ी भूमिका में आने की बात करते हुए ओवैसी की पार्टी AIMIM भी यूपी चुनाव में कूद चुकी है। अयोध्या से चुनावी दौरे का आगाज हो या मुसलमानों का हितैषी बनने की कोशिश, ओवैसी यूपी की सियासत में एक मजबूत किरदार बनना चाहते हैं। ऐसे में उन्होंने लखीमपुर घटना पर फौरन ट्वीट कर न्यायिक जांच की मांग कर डाली। उन्होंने कहा कि जान गंवाने वाले 8 लोगों के परिवारों को मुआवज़ा दिया जाए। इसके साथ ही उन्होंने तीनों कृषि कानून को जल्द से जल्द वापस लेने की मांग की है।
मुश्किल में बीजेपी
किसान आंदोलन के बीच लखीमपुर में किसानों की हत्या पर राजनीतिक दल बड़े हों या छोटे, इस समय सबके निशाने पर बीजेपी है। विपक्षी ही नहीं, कुछ अपने भी योगी सरकार के लिए मुश्किल बढ़ाने वाले साबित हो रहे हैं। इनमें से एक हैं बीजेपी सांसद वरुण गांधी। उन्होंने एक लंबा लेटर लिखकर योगी सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने लेटर में साफ लिखा कि एक दिन पहले अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की जयंती मनाई गई और दूसरे दिन लखीमपुर खीरी में जिस तरह से ”हमारे अन्नदाताओं” की हत्या की गई, वह सभ्य समाज में अक्षम्य है। इससे बीजेपी पर प्रेशर बढ़ रहा है। वह इस मुद्दे को ज्यादा खींचना नहीं चाहती।
ऐसे में हो सकता है किसानों से जुड़ा मामला होने के कारण पार्टी और केंद्रीय नेतृत्व निष्पक्ष जांच का हवाला देते हुए आरोपी मोनू मिश्रा के पिता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का इस्तीफा भी ले ले। हालांकि बड़ा सवाल फिर भी यही है कि क्या किसान आंदोलन से बीजेपी विरोध की भड़की आग चुनाव तक शांत हो पाएगी?
शुक्रवार, 24 सितंबर 2021
मुफ़्त के माल पर कई विभाग कर रहे हैं हाथ साफ, 4 की जगह 14 यूनिट… फर्जी राशन कार्ड… रबर के अंगूठे और डिजिटल हेराफेरी
महामारी के दौर में सरकार द्वारा गरीबों की भलाई के लिए शुरू की गई मुफ़्त राशन बांटने की योजना न केवल राशन माफिया के लिए वरदान साबित हो रही है बल्कि इससे कई विभागों की तो जैसे लॉटरी निकल पड़ी है और इन विभागों में बेठे भ्रष्टाचारियों के वारे-न्यारे हो चुके हैं।यही कारण है कि आए दिन मुफ़्त के इस माल का बीच सड़क पर बंटरबांट होने के बावजूद किसी के कानों पर जूं नहीं रेंग रही और सब-कुछ बड़े इत्मीनान से चल रहा है।
यूं तो सरकारी राशन में घपला और घोटाला किया जाना कोई नई बात नहीं है किंतु कोरोना काल में जब से सरकार ने मुफ़्त राशन बांटने की योजना शुरू की है, तब से राशन माफिया की चांदी ही चांदी हो रही है।
मुफ़्त के इस सरकारी माल पर हाथ साफ करने का कारनामा जाहिर है कि जिला आपूर्ति विभाग की मिलीभगत के बिना संभव नहीं हो सकता इसलिए राशन माफिया सर्वाधिक सक्रिय यहीं रहता है।
फर्जी राशन कार्ड से प्रारंभ होने वाला यह खेल यूनिट बढ़ाने तथा रबर के अंगूठे इस्तेमाल करने के कारनामे से होता हुआ डिजिटल हेराफेरी पर जाकर भ्रष्टाचार की ऐसी ठोस बुनियाद बनाता है जिसके जरिए पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में का मुहावरा चरितार्थ होते देर नहीं लगती।
विभागीय सूत्र बताते हैं 4 यूनिट के राशन पर 14 यूनिट का माल हड़पने के लिए एक ओर जहां रबर के अगूंठों का इस्तेमाल किया जाता है वहीं दूसरी ओर कंप्यूटर के डेटा में भी हेराफेरी की जाती है।
इस पूरे खेल की तह में जाने पर मिली जानकारियां इतनी चौंकाने वाली हैं कि किसी को भी आसानी से भरोसा नहीं हो सकता।
चूंकि राशन हड़पने की सारी प्रक्रिया जिला आपूर्ति विभाग से शुरू होकर यहीं खत्म होती है इसलिए बात चाहे ‘मुखबिरी’ की हो या बंटवारे की, इस विभाग की संलिप्तता के बिना संभव नहीं।
जिला आपूर्ति कार्यालय से सर्वप्रथम कुछ खास तत्वों को ये सूचना लीक की जाती है कि किस गोदाम से कितना फर्जी राशन किस जिले पहुंचाया जा रहा है। फिर वो तत्व पुलिस के सहयोग से बीच सड़क पर घेराबंदी करके माल ले जाने वाले से सौदेबाजी करते हैं।
बताया जाता है कि हर महीने इस तरह लाखों रुपए की अतिरिक्त कमाई की जाती है और सारे ”मौसेरे भाई” अपना-अपना किरदार बड़ी चालाकी से निभाते हुए सरकार को बेखौफ होकर चूना लगा रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक इस पूरे भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा हिस्सा जिला आपूर्ति कार्यालय हड़पता है। उसके बाद नंबर आता है माल की घेराबंदी करने वालों का और इलाका पुलिस का। कहीं-कहीं इस बंदरबांट में उच्च पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल होते हैं क्योंकि पकड़े जाने पर लीपापोती करने में उनकी भूमिका अहम साबित होती है।
विभागीय सूत्र ही बताते हैं कि मुफ़्त के राशन में हो रहे भारी भ्रष्टाचार का आलम यह है कि इसे पकड़ने के लिए किसी ‘रॉकेट साइंस’ की जरूरत नहीं है। सरकार चाहे तो सिर्फ किसी भी राशन डीलर के क्षेत्र से कुल यूनिट्स और जिला आपूर्ति कार्यालय में दर्ज उसके टोटल यूनिट्स का मिलान करा ले।
सूत्रों का दावा है कि मात्र इतने भर से राशन माफिया का पूरा काला चिठ्ठा जांच एजेंसी के सामने होगा, और सामने होंगे वो सभी सफेदपोश अधिकारी जो यदा-कदा इसकी अवैध बिक्री में लिप्त प्यादों को पकड़कर वजीर को बचाने का काम करते हैं ताकि मुफ़्त के माल पर हाथ साफ करने की प्रक्रिया अनवरत जारी रहे।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी