मथुरा। भारतीय जनता पार्टी ने 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी पूरी शिद्दत के साथ अपनी पहचान के मुताबिक शुरू कर दी है।चूंकि ये चुनाव अगले साल के प्रथम चरण में ही प्रस्तावित हैं इसलिए भाजपा की पहल को जल्दबाजी नहीं माना जा सकता। हालांकि दूसरी पार्टियां फिलहाल मात्र गुणा-भाग लगाने तक सीमित हैं।
योगी आदित्यनाथ के पास यूपी की सत्ता बरकरार रखने के लिए एक ओर जहां भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) भी उसमें सक्रिय भूमिका निभाने उतर चुका है।
बताया जाता है कि पिछले दिनों 4 दिवसीय प्रवास पर वृंदावन आए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मथुरा की सभी 5 विधानसभा सीटों का ‘फीडबैक’ लेने के बाद 3 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी बदलने की संस्तुति की है।
कौन-कौन सी सीट पर हैं कमजोर कड़ी
संघ से जुड़े सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिन 3 सीटों पर भाजपा से प्रत्याशी बदलने को कहा गया है उनमें से दो भाजपा के मूल प्रत्याशी हैं और एक आयातित भाजपायी हैं।
पार्टी सूत्रों ने इस संस्तुति की पुष्टि करते हुए बताया कि आयातित भाजपायी के बारे में संघ प्रमुख को काफी गंभीर शिकायतें मिली हैं जिनमें ‘भ्रष्टाचार’ तथा ‘चौथ वसूली’ जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं।
संघ को प्राप्त सूचना के अनुसार बड़े पैमाने पर निजी स्वार्थों की पूर्ति में लिप्त ये ‘माननीय’ अपने क्षेत्र की जनता के बीच सक्रिय नहीं रहते और अधिकांशत: शहर में पाए जाते हैं लिहाजा जनता इनसे आजिज़ आ चुकी है।
कॉकटेल कल्चर के आदी इन महानुभाव ने मौका देखकर भाजपा का दामन भले ही थाम लिया किंतु पुरानी आदतें नहीं छोड़ पा रहे और हर वक्त धनोपार्जन की जुगाड़ में लगे रहते हैं। इनकी इसी फितरत को पिछले कुछ समय में अच्छी-खासी शौहरत प्राप्त हुई है जो आगामी चुनाव में पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है।
संघ की लिस्ट में दूसरे नकारा प्रत्याशी वो बताए गए हैं जो हैं तो मूल रूप से भाजपा के किंतु मतदाताओं के मन में उनके प्रति वर्ष-दर-वर्ष रोष बढ़ता जा रहा है। हो सकता है चुनाव का बिगुल बजते-बजते यह रोष विस्फोटक रूप धारण कर ले इसलिए संघ चाहता है कि समय रहते इनका विकल्प तलाश लिया जाए।
बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे इस प्रत्याशी को लेकर जनाक्रोश का अंदाज संघ को इस बात से भी लगा कि यह पार्टीजनों के बीच भी अपनी कोई साख बनाने में नाकाम रहे हैं और मात्र कुछ खास लोगों से घिरे रहते हैं।
जाहिर है कि पार्टी कार्यकर्ताओं को खुद से दूर रखने के कारण यह आम जनता से भी दूर हो चुके हैं, जिस कारण इन पर फिर से दांव लगाना भाजपा को भारी पड़ सकता है।
पहले ही स्थानीय भाजपाइयों पर थोपे गए इन ‘माननीय’ को नापसंद करने वालों की संख्या अब इतनी बढ़ गई है कि बड़े पद के बावजूद यह यहां बौने नजर आते हैं।
संघ को मिले फीडबैक के मुताबिक पार्टी को स्थानीय स्तर पर कई-कई गुटों में बांट देने का काम इन्होंने बखूबी पूरा किया है। ऐसे में यदि इन्हें एक मौका और दिया गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि पार्टी की मथुरा की इकाई इस बार हाथ झटक कर खड़ी हो जाए।
भाई-भतीजे और भांजों से घिरे रहने वाले इन महाशय से पार्टी कार्यकर्ता अपने कामों के लिए भी मुलाकात करने को तरस जाते हैं, फिर आम आदमी की तो हैसियत ही क्या है जो इनसे मिल सके।
इसी प्रकार संघ ने एक तीसरे प्रत्याशी पर भी रिस्क न लेने की सलाह दी है। मूल रूप भाजपायी इन महाशय की ‘छवि’ पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए संघ का मानना है कि इनकी जगह जमीन से जुड़े किसी क्षेत्रीय युवा प्रत्याशी को इस मर्तबा मौका दिया जाए ताकि पार्टी की वर्षों पुरानी मुराद पूरी हो सके।
दरअसल, संघ ने अपनी संस्तुति में इस बात का भी खास ख्याल रखा है कि 2022 में प्रस्तावित चुनावों पर कृषि कानूनों से उपजी नाराजगी का कोई असर न हो।
संघ की सोच इस मायने में इसलिए अहम हो सकती है कि यूपी विधानसभा के चुनावों तक विपक्षी पार्टियां कृषि कानूनों को लेकर किसानों के मध्य फैलाए जा रहे भ्रम को बरकरार रखने की पूरी कोशिश करेंगी।
इन हालातों में भाजपा के वही प्रत्याशी उनकी काट हो सकते हैं जिनका न सिर्फ जनाधार मजबूत हो बल्कि वो ग्रामीण परिवेश से जुड़े हों और ग्रामीण मतदाता को अपनेपन का अहसास कराते हों।
संघ ने जिन 3 प्रत्याशियों को बदलने की संस्तुति की है, वो तीनों इस कसौटी पर खरे उतरते दिखाई नहीं देते। हो सकता है उनकी पृष्ठभूमि कभी ग्रामीण रही हो किंतु आज वह खेत, किसान, खलिहान या ग्रामीण जीवन से बहुत दूर दिखाई देते हैं।
- surendra chaturvedi
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