भगवान विष्णु के आठवें पूर्ण अवतार महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली मथुरा को लेकर गरुण पुराण में कहा गया है- “अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन), पुरी, द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका”।
गर्ग संहिता में कहा गया है कि पुरियों की रानी कृष्णापुरी ‘मथुरा’ बृजेश्वरी है, तीर्थेश्वरी है, यज्ञ तपोनिधियों की ईश्वरी है, यह मोक्ष प्रदायिनी धर्मपुरी मथुरा नमस्कार योग्य है।
पद्म पुराण के अनुसार- काश्यात्यो यद्यपि सन्ति पुर्यस्तासां हु मध्ये मथुरैव धन्या। तां पुरी प्राप्त मथुरांमदीयां सुर दुर्लभाम्।।
ऋग्वेद की एक ऋचा में ब्रज के बाबत इन्द्र कहते हैं “अहो मधुपुरी धन्या, वैकुण्ठाच्च गरीयसी। बिना कृष्ण प्रसादेन, क्षणमेकं न तिष्ठति।।’”
अर्थात् मधुपुरी (मथुरा) धन्य और वैकुण्ठ से भी श्रेष्ठ है, वैकुण्ठ में तो मनुष्य अपने पुरुषार्थ से पहुंच सकता है पर यहां श्रीकृष्ण की आज्ञा के बिना कोई एक क्षण भी ठहर नहीं सकता।’
सोलह कला अवतार भगवान श्रीकृष्ण की जिस जन्मभूमि मथुरा की महिमा और महत्ता से हमारे तमाम धर्मग्रन्थ भरे पड़े हैं, उस पवित्र ब्रज भूमि के वासी आज यह प्रश्न पूछने को क्यों मजबूर हैं कि क्या योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ”राम नगरी” और कृष्ण नगरी” में भेदभाव बरत रही है?
दरअसल, योगी सरकार ने पिछले दिनों कृष्ण की इस नगरी के कुल 72 वार्डों में से मात्र 22 वार्डों को तीर्थस्थल घोषित किया है जबकि मथुरा का तो कण-कण आज भी श्रीकृष्ण की उपस्थिति का अहसास कराता है।
ब्रज रज की महिमा का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि “मुक्ति कहे गोपाल से, मेरी मुक्ति बताय, ब्रज रज उड़ मस्तक लगे तो मुक्ति मुक्त है जाय”।
यानी बारबार जन्म और मरण के बंधन को तोड़ने वाली ‘मुक्ति’ को भी ब्रज की रज ही मुक्ति प्रदान कर सकती है।
सौभाग्य से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एक योगी हैं और वो गोरखनाथ पीठ के महंत भी हैं लिहाजा धर्म के बारे में उनके ज्ञान पर उंगली नहीं उठाई जा सकती, किंतु ऐसा लगता है कि मथुरा को लेकर राजनैतिक कारणों से उन्हें भ्रमित किया जा रहा है।
योगी जी को यह समझना होगा कि ब्रज ‘चौरासी कोस’ में फैला है और इस संपूर्ण चौरासी कोस की यात्रा का केन्द्रबिंदु ‘मथुरा’ है, जहां से ‘अंतग्रही’ करके ब्रजयात्रा का शुभारंभ किया जाता है। प्रतिवर्ष इसके लिए लाखों लोग देशभर से आते हैं।
भौगोलिक दृष्टि से बेशक आज इस यात्रा के बहुत से पड़ाव पड़ोसी राज्य राजस्थान की सीमा में आते हैं किंतु जो हिस्से यूपी की सीमा में हैं, वो निर्विवाद हैं इसलिए उन्हें टुकड़ों में बांटकर तीर्थस्थल घोषित करना समझ से परे है।
हालांकि योगी आदित्यनाथ की सरकार से पहले भी राजनीतिक जगत में मथुरा उपेक्षित ही थी लेकिन पहले केंद्र में मोदी सरकार और फिर राज्य में योगी सरकार बन जाने के बाद ब्रजवासियों को उम्मीद थी कि अब शायद कृष्ण नगरी का विकास उसकी प्रतिष्ठा व गरिमा के अनुरूप होगा, परन्तु ऐसा होते दिखाई नहीं दे रहा।
बाहरी कलाकारों पर लाखों रुपया खर्च करके कभी ‘होली उत्सव’ तो कभी ‘ब्रज रज उत्सव’ मना लेने से मथुरा का विकास नहीं हो सकता। मथुरा का संपूर्ण विकास तभी संभव है जब किसी सरकार के मन में राजनीति से परे इसके विकास की ईमानदार इच्छा हो और वो इसके लिए वो ऐसे लोगों को जोड़े जो ब्रजभूमि की समस्याओं से भलीभांति परिचित हों तथा निस्वार्थ भाव रखते हुए सरकार का मार्गदर्शन कर सकें अन्यथा ”तमाशे” चाहे जितने ही क्यों न कर लिए जाएं, मूर्धन्यों का मखौल इसी प्रकार उड़ता रहेगा।
2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मथुरा में अपनी चुनावी सभा के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने साबरमती की भांति यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने वादा किया था किंतु 7 साल बाद भी कृष्ण की पटरानी कहलाने वाली कालिंदी (यमुना) प्रदूषण से मुक्ति का इंतजार कर रही है। वो भी तब जबकि यमुनोत्री के उद्गम स्थल के बाद मथुरा ही यमुना का एकमात्र प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।
यहां विश्राम घाट पर यम और यमुना (भाई-बहिन) के मंदिर हैं और ऐसी मान्यता है कि यमद्वितिया (भैया दौज) के दिन यदि भाई-बहिन हाथ पकड़कर यमुना स्नान करते हैं तो उन्हें यम के फांस से मुक्ति मिलती है। इसीलिए इस पर्व पर यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।
मथुरा जनपद के कोसी क्षेत्र अंतर्गत कोकिलावन में शनिदेव का कृष्णकालीन मंदिर है और यहां भी प्रति शनिवार और मंगलवार दूर-दूर से यात्रा करके बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। कृष्ण की आल्हादिनी शक्ति राधा ने भी इसी मथुरा के रावल में जन्म लिया था। बरसाना भी राधा (लाड़िली जू) का भव्य मंदिर है जहां प्रतिवर्ष राधाअष्टमी घूमधाम से मनाई जाती है।
ये तो उदाहरण मात्र हैं अन्यथा मथुरा का चप्पा-चप्पा तीर्थस्थल है, फिर उसे हिस्सों में बांटकर तीर्थस्थल घोषित करने की कोशिश सिवाय राजनीतिक प्रपंच के और कुछ नहीं हो सकता।
कहने के लिए बॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी यहां से लगातार दूसरी बार लोकसभा पहुंची हैं और स्थानीय विधायक श्रीकांत शर्मा तथा लक्ष्मीनारायण चौधरी योगी सरकार में कबीना मंत्री हैं।
मथुरा के मेयर का पद भी भाजपा के पास है और जिले की पंचायत पर भी भाजपा का कब्जा है, बावजूद इसके यमुना में प्रदूषण कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा है।
यमुना को प्रदूषण मुक्त और मथुरा का उसकी गरिमा के अनुरूप विकास कराने के केंद्र तथा राज्य सरकार के दावे उतने ही खोखले साबित हो रहे हैं, जितने कि पूर्ववर्ती सरकारों में साबित हुए थे।
आश्चर्य इस बात पर है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त किए जाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले राज्य हरियाणा में भी भाजपा की सरकार है लेकिन पता नहीं क्यों यमुना की दयनीय दशा में कोई सुधार न हुआ है और न होता दिखाई दे रहा है।
एकबार फिर उत्तर प्रदेश में चुनाव होने जा रहे हैं और योगी सरकार धर्म की ध्वजा के बूते दोबारा सत्ता पर काबिज होने का सपना संजोए बैठी है। श्रीराम भी भगवान विष्णु के अवतार थे और श्रीकृष्ण भी… फिर दोनों की जन्मस्थलियों में इतना भेदभाव क्यों, यह पूछने का अधिकार तो कृष्ण जन्मभूमि के वासियों का बनता ही है।
चूंकि चुनाव लगभग सिर पर आ चुके हैं और आचार संहिता लागू होने में थोड़ा ही समय बचा है तो यह प्रश्न और भी प्रासांगिक हो जाता है। बस जरूरत है तो इस बात की कि राजनीति से अधिक धर्म को समझने वाले योगी आदित्यनाथ ब्रजवासियों की भावना को भी समझें और समय रहते उसके अनुरूप निर्णय लें तो बेहतर होगा। उनके लिए भी और उनकी पार्टी के लिए भी, अन्यथा चुनाव हर पांच साल बाद होने ही हैं।
बेशक तीर्थस्थल के रूप में संपूर्ण मथुरा किसी नई पहचान की मोहताज नहीं है और टुकड़ों में बांटकर की जा रही घोषणाओं से उसकी महत्ता कम नहीं होगी परंतु इतना जरूर होगा कि राजनीति व नेकनीयती का फर्क सामने आ जाएगा।
हो सकता है कि यह फर्क इस बार नहीं तो अगली बार अपना असर दिखाए, क्योंकि बात निकली है तो दूर तक जाएगी ही।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी