सोमवार, 29 अप्रैल 2024

यूनिवर्सिटीज से लेकर कॉलेज और स्‍कूली छात्र तक ड्रग स्मगलर्स की गिरफ्त में, धार्मिक स्थल भी अछूते नहीं


 बंदरगाह, एयरपोर्ट, रेलवे स्‍टेशन तथा बस अड्डों से देशभर में आए दिन पकड़ी जाने वाली ड्रग्‍स की अच्‍छी-खासी तादाद इस बात की पुष्टि करती है कि भारत हर किस्‍म के नशीले पदार्थों की खपत का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है, किंतु सवाल यह खड़ा होता है कि जो ड्रग्‍स पकड़ी नहीं जाती वह कहां जाती है। साथ ही यह भी कि जो पकड़ में नहीं आती, उस ड्रग्‍स की तादाद कितनी है और उसे ड्रग स्मगलर्स कहां तथा कैसे खपाते हैं। 

ड्रग्‍स स्‍मगलर्स की गिरफ्त में हैं हर आयु वर्ग के छात्र-छात्राएं 
अब यह कोई दबी-ढकी बात नहीं रह गई कि ड्रग स्‍मगलर्स का सबसे आसान शिकार बनते हैं विभिन्न आयु वर्ग के छात्र-छात्राएं, क्‍योंकि पढ़ाई के अलावा करियर बनाने का दबाव आज के छात्रों पर इतना अधिक होता है कि उन्हें भटकते देर नहीं लगती। फिर घर-परिवार से दूरी उनके भटकाव में अहम भूमिका निभाती है। 
धर्म और शिक्षा का मिश्रण बनाता है गंभीर हालात 
वैसे तो देश का हर धार्मिक स्थल ड्रग स्‍मगलर्स के लिए मुफीद रहता है, लेकिन यदि कोई स्‍थान धर्म के साथ-साथ पर्यटन का केंद्र और शिक्षा का हब भी हो तो नशे के कारोबार में वह चार-चांद लगाने का काम करता है।  
धर्म की आड़ करती है सोने पर सुहागे का काम 
कृष्‍ण का जन्मस्थान मथुरा चूंकि देश का एक बड़ा धार्मिक स्‍थल है, इसलिए यहां आने-जाने वाले लोगों की संख्‍या भी काफी है। मथुरा की भौगोलिक स्‍थिति ऐसी है कि इसकी एक सीमा राजस्थान से तो दूसरी हरियाणा से लगती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्‍ली भी यहां से मात्र 150 किलोमीटर की दूरी पर है।  
कुछ वर्षों पहले तक मथुरा और उसके आस-पास के धार्मिक स्‍थलों पर मात्र उन यात्रियों का आना-जाना रहता था जो अपने मन में भक्तिभाव रखते थे तथा श्रद्धावश यहां खिंचे चले आते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जब से देश में धार्मिक पर्यटन का शौक पैदा हुआ है और इसका एक नया वर्ग बना है तब से यह विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल, पर्यटक स्थल में तब्दील हो चुका है। मथुरा जनपद में कुछ समय से भीड़ का दबाव इतना अधिक है कि प्रशासन के भी हाथ-पांव फूले रहते हैं। 
जाहिर है कि धार्मिक पर्यटक के रूप में आने वाला हर व्‍यक्‍ति न तो धार्मिक होता है और न श्रद्धालु, वह एक ऐसा बहरूपिया होता है जो मौका देखकर सुविधा अनुरूप अपना रूप बदलता रहता है। इसमें एक रूप ड्रग स्‍मगलर का, तो दूसरा ड्रग पेडलर का भी हो सकता है।
एजुकेशन हब के रूप में भी है मथुरा की पहचान 
चूंकि मथुरा की पहचान अब एजुकेशन हब के रूप में भी स्थापित हो चुकी है तो यहां शिक्षा ग्रहण करने न सिर्फ देश, बल्‍कि विदेशों तक से छात्र आते हैं इसलिए ड्रग स्‍मगलर्स के लिए यह धार्मिक जनपद काफी लाभदायी साबित हो रहा है। ड्रग स्‍मगलर्स ने यहां अपने पेडलर का बड़ा जाल बुन लिया है जो यूनिवर्सिटीज से लेकर कॉलेज तथा स्‍कूलों के छात्र-छात्राओं तक अपनी पहुंच रखते हैं। हॉस्‍टल और बोर्डिंग स्‍कूल विशेष तौर पर ड्रग पेडलर के निशाने पर होते हैं क्योंकि घर-परिवार से दूर रहने वाले छात्र उनके शिकंजे में आसानी से फंस जाते हैं। बाद में यही छात्र उनकी 'चेन' बनाने के काम आते हैं। 
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार मोक्ष नगरी मथुरा में आज ड्रग सप्‍लायर और ड्रग पेडलर इस कदर सक्रिय हैं कि शायद ही किसी शिक्षण संस्‍था के छात्र-छात्राएं उनकी पहुंच से दूर हों। ड्रग स्‍मगलर ने इस काम में शहर के उन बेरोजगार तथा महत्‍वाकांछी युवाओं को लगा रखा है जो कम समय के अंदर अपने सारे सपने पूरे करना चाहते हैं। ये युवा सुबह से शाम तक शिक्षण संस्‍थाओं के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं जिसकी पूरी जानकारी इलाका पुलिस को भी होती है और वो इन्‍हें पूरा संरक्षण देती है। 
शिक्षण संस्‍थाएं भी नहीं हैं अनभिज्ञ 
ऐसा नहीं है कि छात्र-छात्राओं में ड्रग्स के एडिक्‍शन और उसको पूरा करने के लिए ड्रग पेडलर की सक्रियता से शिक्षा व्‍यवसायी अनभिज्ञ हों, वह सब-कुछ जानते हैं लेकिन चुप रहने में अपनी भलाई समझते हैं। 
इस बारे में बात करने पर वो साफ कहते हैं कि प्रथम तो संस्‍थान के बाहर होने वाली  किसी गतिविधि से उनका कोई लेना-देना नहीं है। दूसरे इससे संस्‍थान की बदनामी होती है और संस्थान का प्रबंध तंत्र अपने चारों ओर दुश्‍मन खड़े पाता है। 
बात चाहे पुलिस-प्रशासन की हो या अभिवावकों की, हर कोई संस्‍थान पर दोषारोपण करने में जुट जाता है जबकि ड्रग पेडलर पुलिस से मिल रहे संरक्षण तथा छात्र-छात्राओं की मनोदशा का ही लाभ उठाते हैं। 
स्‍थानीय निजी हॉस्‍पिटल और नर्सिंग होम्स उठाते हैं जमकर आर्थिक लाभ 
मथुरा में यूं तो कोई नामचीन हॉस्पिटल नहीं है, लेकिन निजी नर्सिंग होम्स तथा हॉस्पिटल की कमी भी नहीं हैं। 
बताया जाता है नशे की ओवरडोज होने से तबीयत बिगड़ने पर बाहरी छात्र-छात्राएं अक्सर निजी हॉस्‍पिटल अथवा किसी नर्सिंग होम पहुंचते हैं, लेकिन इनके संचालक इसकी सूचना सही जगह देने के बजाय उनका आर्थिक शोषण करते हैं। 
सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार नेशनल हाईवे पर बने कई हॉस्‍पिटल तथा नर्सिंग होम्स इसका भरपूर आर्थिक लाभ उठा रहे हैं जिसकी जानकारी पुलिस को भी है, किंतु न पुलिस उनके खिलाफ कोई एक्शन लेती है और न वो पुलिस से ड्रग पेडलर को मिल रहे संरक्षण पर अपना मुंह खोलते हैं। 
यही कारण है कि मथुरा नगरी एक ओर जहां ड्रग स्‍मगलर्स के लिए तो दूसरी ओर पुलिस प्रशासन के लिए माल कमाने का सुरक्षित ठिकाना बन चुकी है। पिछले दिनों हुई एक भीषण सड़क दुर्घटना के तार भी कहीं न कहीं नशे के काले कारोबार से जुड़ रहे हैं लेकिन कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। कारण वही है कि इस 'हमाम' में शिकार और शिकारी दोनों की स्‍थिति एक जैसी है। किसी एक ने जुबान खोल दी तो तमाम सफेदपोश लोग मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। 
- सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी 

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