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शुक्रवार, 27 सितंबर 2024
डालमिया बाग कांड के खिलाफ NGT में दो याचिकाएं दायर, सख्त कार्रवाई सहित CBI जांच की मांग... सुनवाई 30 को
मथुरा। छटीकरा रोड (वृंदावन) स्थित डालमिया बगीचे के 300 से अधिक हरे पेड़ रातों-रात काट डालने का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) पहुंच गया है, और अब इसे लेकर आगामी सोमवार को सुनवाई होनी है। गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी नामक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट खड़ा करने के उद्देश्य से डालमिया बगीचे के वृक्षों को काटने वालों के खिलाफ NGT में दो याचिकाएं दायर की गई हैं और इन दोनों पर सुनवाई सोमवार 30 सितंबर को होनी है।
पहली याचिका नंबर 1191/2024 है जिसे सुप्रीम कोर्ट के वकील नरेन्द्र कुमार गोस्वामी ने दायर किया है जबकि दूसरी याचिका मधुमंगल शरण दास शुक्ल निवासी बाग बुंदेला वृंदावन ने दायर की है।
एडवोकेट नरेन्द्र कुमार गोस्वामी ने अपनी याचिका में NGT के सामने 6 प्रमुख मांगें प्रस्तुत की हैं जो निम्न प्रकार हैं-
1. ताज ट्रेपेजियम ज़ोन (TTZ) में, विशेषकर वृन्दावन के संवेदनशील क्षेत्र में अवैध वृक्ष कटाई का संज्ञान लेते हुए पर्यावरणीय संतुलन बहाल करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करें।
2. अवैध वृक्ष कटाई और अधिकारियों की बिल्डरों और भूमि माफियाओं के साथ मिलीभगत की तत्काल जांच एक स्वतंत्र एजेंसी जैसे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा कराने का निर्देश दें।
3. जितने पेड़ काटे गए हैं, उनकी दोगुनी संख्या में पुनः वृक्षारोपण का आदेश दें, जिसकी लगातार निगरानी वन विभाग और नागरिक समाज संगठनों द्वारा की जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि नए लगाए गए पेड़ पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाएं।
4. अवैध रूप से साफ की गई भूमि पर सभी व्यावसायिक गतिविधियों को निलंबित करें और डालमिया फार्म क्षेत्र में किसी भी नए निर्माण या भूमि उपयोग परिवर्तन पर तब तक रोक लगाएं, जब तक कि उचित पर्यावरणीय मंजूरी और अनुमतियाँ प्राप्त न हो जाएं।
5. इस अवैध कार्य में शामिल व्यक्तियों, बिल्डरों और अधिकारियों पर भारतीय वन अधिनियम 1927, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और अन्य प्रासंगिक कानूनों के तहत भारी जुर्माना और आपराधिक कार्रवाई लागू करें।
6. ताज ट्रेपेजियम ज़ोन (TTZ) विनियमों और इस माननीय न्यायालय द्वारा निर्धारित पर्यावरणीय दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए एम. सी. मेहता के आदेशों के तहत दंडात्मक कार्रवाई जारी करें।
अधिवक्ता नरेन्द्र कुमार गोस्वामी ने अपनी याचिका में कहा है कि अनेक कानूनों और संवैधानिक उल्लंघनों के अलावा भी उपरोक्त प्रकरण ने विश्वभर के सनातनियों के हृदय में गंभीर घाव कर दिया है। पीपल,बरगद, नीम, कदंब आदि प्रजाति वाले वृक्षों को भी नहीं बक्शा गया जबकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपियाँ और ऋषि मुनि वृन्दावन के वृक्षों का रूप धारण कर इस पावन भूमि पर तपस्या में रत हैं।
भूमाफिया ने निजी स्वार्थ के लिए तपस्या में रत राधे-राधे बोलते हजारों वृक्ष रुपी साधु संतों और गोपियों का सामूहिक वध करके वृन्दावन की समस्त स्प्रिचुअल इकोलॉजी को भी खंडित किया है।
याचिकाकर्ता एडवोकेट ने इस बात का भी स्पष्ट उल्लेख किया है कि मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मथुरा वृन्दावन विकास प्राधिकरण, नगर निगम तथा वन विभाग के लोगों की बिना मिलीभगत के ये कार्य असंभव है।
दूसरी याचिका संख्या 1192/2024 है जो मधुमंगल शरण दास शुक्ल की ओर से दायर की गई है, उसमें NGT से 11 मांगें की गई हैं जिनमें प्रमुख हैं-
1. वृंदावन एवं संपूर्ण ब्रजभूमि की वन संपदा को और क्षति न पहुंचे इसके लिए अंतरिम आदेश दिए जाएं जिससे अवैध वृक्ष कटान को तुरंत रोका जा सके।
2. मथुरा के जिलाधिकारी, एसएसपी, डीएफओ समेत बाकी संबंधित अधिकारियों को आदेशित किया जाए कि वो डालमिया बगीचे में सैकड़ों हरे वृक्ष कटवाने में संलिप्त भूमाफिया तथा उनके सहयोगियों को उनकी अवैध गतिविधियों से तत्काल रोकें ताकि वृंदावन की वन संपदा को और क्षति न पहुंचे।
3. 19 सितंबर 2024 की रात डालमिया बगीचे से सैकड़ों हरे वृक्षों की भारी मशीनरी द्वारा अवैध कटाई की विस्तृत जांच के आदेश दिए जाएं क्योंकि भूमाफिया का यह कृत्य इलाहाबाद हाईकोर्ट की जनहित याचिका संख्या 36311/2010 के तहत दिए गए आदेश-निर्देशों का घोर उल्लंघन है।
4. NGT चाहे तो वह इस पूरे प्रकरण की CBI अथवा SIT के द्वारा एक स्वतंत्र जांच कराए और इसमें लिप्त भूमाफिया, पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों समेत राजनेताओं की भूमिका को भी शामिल किया जाए।
5. NGT चाहे तो इसके लिए एक एक्सपर्ट कमेटी गठित कर सकती है जिसमें पर्यावरणविद, वनस्पति विज्ञानी, वन विभाग के उच्च अधिकारी तथा ताज ट्रेपेजियम जोन अथॉरिटी, पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी जांच करके डालमिया बगीचे में हुए वृक्षों के कटान की विस्तृत रिपोर्ट पेश कर सकें।
6. इस कृत्य में शामिल लोगों को क्षतिपूर्ति के लिए मुआवजा अदा करने के लिए आदेशित किया जाए।
7. डालमिया बगीचे के वृक्षों की हत्या करने वालों को कम से कम तीन गुना वन संपदा के जीर्णोद्धार का आदेश दिया जाए।
8. इसके अलावा वन जीव संरक्षण क्षेत्र विकसित करने का तत्काल आदेश दिया जाए जिससे वन्य जीवों की रक्षा संभव हो सके।
9. डालमिया बगीचे को नष्ट करने वालों के खिलाफ वन संरक्षण अधिनियम 1980, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 में दिए गए आदेशों के तहत आपराधिक केस दर्ज हो।
10. वृंदावन के लिए एक दीर्घकालिक पारिस्थितिक संरक्षण योजना बनाई जाए और वृंदावन पारिस्थितिक धरोहर बोर्ड स्थापित किया जाए।
11. इस अवैध कृत्य में शामिल सभी पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ न्यायालय की अवमानना के तहत कार्रवाई की जाए, साथ ही ताज ट्रेपेजियम जोन के अंतर्गत एक सर्विलांस तथा मॉनिटरिंग सिस्टम बनाया जाए ताकि वृंदावन जैसे इकोलॉजिकल संवेदनशील क्षेत्रों के पर्यावरण को और क्षति न पहुंचे।
NGT से यह भी मांग की गई है कि यदि वो चाहे तो मिट्टी के अवैध खनन तथा वन संपदा की निगरानी के लिए ड्रोन या रिमोट मॉनिटरिंग तकनीक का इस्तेमाल करने के आदेश दे सकती है।
याचिकाकर्ताओं ने सभी सनातनियों, पर्यावरण प्रेमियों, मीडिया तथा अधिवक्ता समाज से भी निवेदन किया है कि वह इस धर्मयुद्ध में अपने-अपने स्तर से सहयोग करें जिससे धर्मनगरी में अधर्म करने वालों को उनके कर्मों का फल समय रहते मिल सके और ब्रजभूमि अपनी पहचान खोने से बच जाए।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
गुरुवार, 26 सितंबर 2024
वृंदावन का डालमिया बगीचा कांड: पहली बार अपने ही बुने जाल में फंसता नजर आ रहा है मथुरा का माफिया
संभवत: पहली बार भगवान कृष्ण की पावन जन्मस्थली और क्रीड़ा स्थली मथुरा-वृंदावन का माफिया डालमिया बगीचे पर जल्द से जल्द काबिज होने के चक्कर में सैकड़ों हरे पेड़ों को काटकर अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंसता दिखाई दे रहा है। हालांकि अभी तक माफिया के हौसले पूरी तरह बुलंद हैं, इसलिए वो इस आशय का दावा भी कर रहा है कि जब तक मीडिया शोर मचा रहा है तब तक की परेशानी है। उसके बाद थोड़ा और पैसा फेंककर सारा मामला रफा-दफा करा लिया जाएगा। किंतु इस बार उसका यह जुमला उसी के ऊपर भारी पड़ सकता है, जिसके कुछ ठोस कारण हैं।
सबसे पहले बात आरोपी शंकर सेठ को मिली अंतरिम जमानत पर
दरअसल, डालमिया बगीचे के सैकड़ों हरे पेड़ों को रातों-रात काटने पर जब हंगामा खड़ा हुआ तो वन विभाग, विकास प्राधिकरण और बिजली विभाग ने अपने-अपने बचाव या कहें कि पेशबंदी में तीन अलग-अलग FIR बड़ी चालाकी एवं शातिराना तरीके से दर्ज करवा दीं।
चूंकि सैकड़ों हरे पेड़ों के कत्ल की प्रथम दृष्टया और बड़ी जिम्मदारी वन विभाग की होती है इसलिए मथुरा (जैत रेंज) के क्षेत्रीय वन अधिकारी अतुल तिवारी ने 19 सितंबर की रात करीब साढ़े नौ बजे भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 29, 33, 41, 42 तथा 51 के तहत एक FIR दर्ज कराई जिसमें 300 पेड़ों को काटे जाने का जिक्र करते हुए मैसर्स डालमिया एंड संस निवासी 10/04 लाला लाजपतराय सरानी कोलकाता, नारायण प्रसाद डालमिया पुत्र रघुनंदन प्रसाद डालिमया निवासी उपरोक्त, श्रीचंद धानुका पुत्र शंकर लाल धानुका निवासी 14 लोडन स्ट्रीट कोलकाता, श्रीमती अरुणा धानुका निवासी उपरोक्त तथा मृगांक धानुका निवासी उपरोक्त का नाम तो दिया लेकिन पेड़ कटवाने वाले किसी स्थानीय व्यक्ति का नाम नहीं लिखा।
इसी प्रकार न तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने और न बिजली विभाग ने अपनी-अपनी प्राथमिकी में मौके पर किसी की मौजूदगी दिखाई तथा न गंभीर धाराओं में FIR दर्ज कराई।
ऐसे में बिना जांच किए शंकर सेठ की गिरफ्तारी का कोई औचित्य बनता ही नहीं था और इसीलिए उसे चंद घंटों के अंदर कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई। कोर्ट में शंकर सेठ के वकीलों ने यही दलील दी कि उसका कहीं कोई न नाम है, न भूमिका इसलिए उसे दबाव में अरेस्ट किया गया है।
यूं भी शंकर सेठ को जमानत मिल ही जानी थी क्योंकि प्रस्तावित गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के अब तक अदृश्य हिस्सेदारों में शहर के वो लोग शामिल बताए जाते हैं जो संगीन से संगीन अपराधों में खड़े-खड़े जमानत दिलाने का माद्दा रखते हैं।
मथुरा जनपद की बात छोड़िए प्रदेश में वो तमाम न्यायाधीशों पर अच्छी पकड़ रखने तथा न्यापालिका में ऊपर तक लाइजनिंग के लिए पहचाने जाते हैं।
बस यहीं फंसेंगे शंकर सेठ और डालिमया बगीचे के कथित हिस्सेदार
पूरी सांठगांठ और प्लानिंग के साथ डालमिया बगीचे पर काबिज होने के लिए सैकड़ों पेड़ काटने के इस खेल में शामिल माफिया ये भूल रहे हैं कि वन विभाग की तहरीर एवं प्रस्तावित गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी का कथित नक्शा अब कई सवाल खड़े कर रहा है।
जैसे, आज नहीं तो कल या जब कभी वन विभाग द्वारा नामजद कराए गए डालमिया परिवार के सदस्य अपनी जमानत कराने कोर्ट जाएंगे तो उन्हें यह बताना होगा कि उन्होंने अपने बगीचे का सौदा किससे किया?
बगीचे पर काबिज होने की इजाजत किसे दी तथा क्यों दी गई, और गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी का नक्शा क्या उनकी सहमति से बनवाया गया। सहमति दी गई तो उसका आधार क्या है?
अपने बचाव में इन प्रश्नों के जवाब डालमिया परिवार ने दे दिए तो तय है कि कई ऐसे सफेदपोश माफिया एक्सपोज हो जाएंगे जिन्होंने अपने चेहरों पर कई-कई मास्क लगा रखे हैं और जो आड़ के लिए दूसरे उद्योग-धंधों एवं कारोबारों में उतर कर अपनी अलग-अलग पहचान बना चुके हैं। नई पीढ़ी तो आज उनकी इसी पहचान की कायल है।
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि जिस प्रस्तावित गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के नक्शे का हवाला वन विभाग ने अपनी तहरीर में दिया है, उसे लेकर प्रमोटर यह प्रचारित करते रहे हैं कि उन्होंने उसे पास कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, नक्शा पास करने का आवेदन किया जा चुका है। लेकिन विकास प्राधिकरण इससे पूरी तरह पल्ला झाड़ रहा है। विकास प्राधिकरण की मानें तो उसे अभी गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के नाम से किसी नक्शे को पास कराने का कोई आवेदन नहीं मिला। ऑनलाइन भी इसके लिए आवेदन नहीं किया गया।
अगर विकास प्राधिकरण के दावे में दम है तो सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि क्या फिर ये सारी साजिश अपने ही साथियों को ठगने, निवेशकों को गुमराह करके उनसे पैसा ऐंठने तथा अधिक से अधिक रकम डकारने के लिए की गई?
बताया जाता है कि मथुरा-वृंदावन का माफिया, डालमिया परिवार से जितने पैसे में बगीचे का सौदा करके लाया है उससे तीन गुना रकम उसने अब तक अपने इन्हीं हथकंडों से हथिया भी ली है।
एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है ये मामला
दरअसल, इस खेल में शामिल माफिया को इस बात का अंदाज नहीं था कि पेड़ काटने का यह मामला उनके पूरे खेल को बिगाड़ देगा और बात एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाएगी।
देर-सवेर जब इसकी सुनवाई होगी तो पूरी संभावना है कि कोई बड़ा निर्णय आ जाए। जाहिर है कि उस स्थिति में पूरा प्रोजेक्ट तो खटाई में पड़ेगा ही, साथ ही निवेशकों एवं साइलेंट साझेदारों का पैसे की वापसी के लिए दबाव भी बढ़ेगा।
हो सकता है कि कुछ समय तक साइलेंट पार्टनर और निवेशक सब काम पैसों के बल से करा लेने के उनके दावे पर भरोसा भी कर लें किंतु समय बीतने के साथ रिश्ते तो बिगडेंगे ही, रंजिश भी पनपेगी।
भविष्य में इसका अंजाम आशंका से अधिक घातक हो सकता है क्योंकि जिनके लिए पैसा ही माई-बाप हो, उनका किसी भी हद तक चले जाना आश्चर्यजनक नहीं होगा।
एक सवाल इस रिश्ते पर भी...
नेता नगरी में जब किसी को लेकर इस तरह के सवाल उछलते हैं तो बड़ी आसानी से कह दिया जाता है कि सार्वजनिक जीवन में कितने ही लोग साथ फोटो खिंचवा लेते हैं। ये बात और है कि यहां शंकर सेठ बाकायदा केंद्रीय राज्य मंत्री बीएल वर्मा को तस्वीर भेंट कर रहे हैं और उनके साथ भाजपा महानगर मथुरा के अध्यक्ष घनश्याम लोधी एवं भाजपा नेता प्रदीप गोस्वामी भी खड़े हैं।
स्पष्ट है कि ये मामला यूं ही आकर 'किसी के द्वारा' तस्वीर खिंचवा लेने तक सीमित नहीं है। हो सकता है कि केंद्रीय मंत्री इसके पीछे छिपी मंशा से अवगत न हों किंतु स्थानीय भाजपा नेता यह नहीं कह सकते।
डीएम, एसएसपी और नगर आयुक्त को भेंट के मायने?
कौन नहीं जानता कि जिले के इन आला अधिकारियों से एक अदद मुलाकात की आस में हर रोज जाने कितने लोग इनकी चौखट पर दस्तक देते हैं, लेकिन बहुत कम ऐसे भाग्यशाली होते हैं जिनकी इनसे मुलाकात होती है। अनेक लोग तो चक्कर लगा-लगाकर हार जाते हैं।
ऐसा न होता तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 'जनता दर्शन' के नाम पर फरियादियों की भीड़ से हर बार सामना क्यों करना पड़ता।
बहरहाल... जिले के आला अधिकारी विशेष परिस्थितियों में सम्मानित होने के हकदार हैं, लेकिन उनके लिए यह देखना जरूरी है कि सम्मानित करने वाले की सामाजिक छवि और मंशा क्या है।
जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि बात निकली है तो दूर तक जाएगी ही। अभी बहुत सी परतें खुलनी बाकी हैं और बहुत से राज सामने आने हैं।
डालमिया बाग पर कब्जे के लिए काटे गए सैकड़ों हरे वृक्षों का पर्यावरणीय महत्व तो है ही, आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व भी है इसलिए जिन्होंने भी यह पाप कर्म किया है और जितने लोगों की इसमें मौन स्वीकृति रही है, उन्हें इसके दुष्परिणाम जरूर भुगतने होंगे। वो चाहे किसी स्तर से भुगतने पड़ें।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
रविवार, 22 सितंबर 2024
योगी जी, एकबार देखिये तो सही कि भूमाफिया और अधिकारियों का गिरोह धार्मिक नगरी में आपके आदेश-निर्देशों की कैसे धज्जियां उड़ा रहा है...
अभी दो दिन पहले फायरब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने गोरखपुर प्रवास के दौरान अधिकारियों को निर्देशित किया था कि यूपी में भूमाफिया और दबंग बख्शे न जाएं। उनके खिलाफ कठोर से कठोर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। गोरखनाथ मंदिर में जनसमस्याओं को सुनते हुए सीएम योगी ने अधिकारियों को दो टूक यह हिदायत दी कि भूमाफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना सरकार का संकल्प है इसलिए पेशेवर भूमाफियाओं को चिन्हित करके ऐसी कार्रवाई करें कि वो एक नजीर बन जाए।
उधर योगी अपने मठ से प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी को अपनी सरकार का संकल्प एवं अधिकारियों को उनका कर्तव्य याद दिला रहे थे और इधर गोरखुपर से करीब पौने सात सौ किलोमीटर दूर कृष्ण की क्रीड़ा स्थली वृंदावन में भूमाफिया एवं ब्यूरोक्रेसी का संगठित गिरोह उनके आदेश-निर्देशों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहा था।
इस गिरोह ने सुनियोजित तरीके से वृंदावन की बेशकीमती जमीन पर खड़े लगभग 300 हरे पेड़ों को रातों-रात काट डाला और इसके मार्ग में बाधक विकास प्राधिकरण की रेलिंग भी उखाड़ दी।
हालांकि इन दोनों ही मामलों में एक ओर वन विभाग तो दूसरी ओर मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने अपनी-अपनी तरफ से शिकायत दर्ज कराने की औपचारिकता पूरी कर दी है किंतु इसमें भी यह ध्यान रखा गया है उनके कॉकस का कोई साथी न फंसने पाए।
बहरहाल, ये तो मात्र वो सतही जानकारी है जिसे स्थानीय मीडिया सामने लाने पर मजबूर हो गया अन्यथा सच्चाई इससे कहीं बहुत अधिक कड़वी है।
जनसामान्य के होश उड़ा देने वाली है सच्चाई
दरअसल, जनसामान्य के होश उड़ा देने वाली इस सच्ची कहानी का प्रारंभ वहां से होता है जहां से एक बड़े भूमाफिया की नजर इस बेशकीमती भूखंड पर पड़ती है। सैकड़ों एकड़ का यह भूखंड राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से मथुरा और आगरा को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे के किनारे वृंदावन में छटीकरा रोड पर स्थित है।
डालमिया फॉर्म अथवा डालमिया बगीचे के नाम से मशहूर यह भूखंड चूंकि अपनी लोकेशन और वृंदावन जैसे पावन धाम में होने के कारण बहुत कीमती है इसलिए जिस भूमाफिया की नजर सबसे पहले इस पर पड़ी, उसने अपने दूसरे साथियों से इसका जिक्र किया।
बताया जाता है कि पूरी तरह मन बना लेने तथा पर्याप्त पैसों का इंतजाम करने के बाद इन माफियाओं ने डालमिया परिवार से संपर्क साधा और करीब 300 करोड़ रुपए में समूचे भूखंड का सौदा कर डालमिया परिवार को टोकन के रूप में अच्छी-खासी रकम भी दे दी।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वृंदावन की सर्वाधिक प्राइम लोकेशन पर स्थित डालमिया के बगीचे का सौदा तय हो जाने की भनक लगते ही दूसरे माफिया भी सक्रिय हो गए और उन्होंने इसमें अपनी घुसपैठ बनाने के प्रयास शुरू कर दिए।
भूमाफियाओं से ही जुड़े लोगों की मानें तो अंतत: लगभग आठ लोग इस सौदे का हिस्सा बनकर डालमिया के बगीचे पर एक आलीशान रियल एस्टेट प्रोजेक्ट खड़ा करने के लिए सहमत हो गए।
इसके लिए सबसे पहले बाकी लोगों से उनके हिस्से की रकम एकत्र कर डालमिया परिवार को सौंपी गई जिससे बगीचे पर आधिपत्य स्थापित किया जा सके। और हुआ भी ऐसा ही।
अब बात शुरू हुई ब्यूरोक्रेट्स से सेटिंग और वृंदावन मानइर को कब्जाने की
बगीचे पर काबिज होने के बाद स्थानीय प्रशासन की मदद जरूरी थी इसलिए उस पर फोकस किया गया। बहुत कम लोगों की जानकारी में है कि डालमिया फॉर्म से सटी हुई एक वृंदावन माइनर हुआ करती थी। एक अनुमान के अनुसार 20 फुट चौड़ी इस माइनर को माफिया ने सर्वप्रथम समाप्त किया।
आज की तारीख में माइनर की जगह बमुश्किल दो फुट की पट्टी देखी जा सकती है। जमीन का कारोबार करने वाले और स्थानीय लोग समझ सकते हैं कि वृंदावन माइनर पर कब्जा कर लेने के क्या मायने हैं और उससे किसी प्रोजेक्ट की कीमत में कितना इजाफा हो सकता है।
सफेदपोश भूमाफियाओं ने इसकी आड़ में जुटाए सैकड़ों करोड़ रुपए
इतना सब-कुछ कर लेने के बाद असली खेल शुरू हुआ, यानी डालमिया फॉर्म पर प्रोजेक्ट खड़ा करने की रूपरेखा तैयार की गई जिसके लिए प्रशासन अर्थात संबंधित विभागों के उच्च अधिकारियों का सहयोग चाहिए था।
मथुरा जनपद ही नहीं, इसके बाहर भी लोग जानते हैं कि डालमिया के बगीचे को रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के तौर पर डेवलप करने की कोशिश में लगे सफेदपोश भूमाफिया कोई मामूली आदमी नहीं हैं। इनमें से सबकी अपनी विशिष्ट पहचान तो है ही, साथ ही सबका अपना बड़ा रसूख है।
कोई सत्ता के शीर्ष तक पहुंच रखने का दावा करता है तो कोई संघ में अपनी तगड़ी पैठ बताता है। इसमें शाायद ही किसी को शक हो कि इस रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में शामिल दूसरे कथित उद्योगपति एवं व्यापारी, ब्यूरोक्रेसी के अच्छे लाइजनर हैं और सचिवालय तक से काम कराकर लाने की क्षमता रखते हैं। कुछ तो न्यायपालिका तक में दखल रखने का दम भरते हैं।
मथुरा के एक चर्चित हत्याकांड से भी जुड़ती है कड़ी
बताते हैं कि पिछले साल मथुरा की एक पॉश कॉलोनी में हुए चर्चित हत्याकांड की कड़ियां भी कहीं न कहीं इस भूखंड के सौदे से जुड़ती हैं, बस जरूरत है तो उसकी तह तक पहुंचने की जो शायद ही संभव हो क्योंकि उसका बड़े तरीके से पटाक्षेप करके लीपापोती की जा चुकी है। यूं भी न तो अब किसी को पूरा सच जानने में रुचि है और न हिम्मत, चाहे सवाल बीसियों करोड़ का ही हो। यहां तो सैकड़ों करोड़ का खेल चल रहा है, फिर दस-बीस करोड़ की क्या अहमियत।
वन विभाग के साथ-साथ विकास प्राधिकरण और बिजली विभाग की भूमिका भी संदिग्ध
अगर गौर करें कि एक रात में 300 से अधिक हरे पेड़ कट कैसे गए तो तमाम सवाल खड़े होते हैं। इन सवालों के दायरे में वन विभाग के अलावा विकास प्राधिकरण तथा बिजली विभाग की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध दिखाई देती है।
सूत्र बताते हैं कि जिस रात डालिमया फॉर्म हाउस के सैकड़ों पेड़ काटे गए, उस रात दर्जनों उपकरणों को विकास प्राधिकरण की रेलिंग तोड़कर अंदर ले जाया गया। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि इस दौरान बिजली भी कई घंटे बाधित रही जिस कारण पेड़ों का कटान आसान हो गया।
डेवलेपमेंट अथॉरिटी और रियल एस्टेट कारोबारियों के बीच का रिश्ता कितना प्रगाड़ होता है, यह किसी को बताने की शायद जरूरत भी नहीं है। और मथुरा के वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की गूंज आगरा मंडल ही नहीं, लखनऊ तक सुनी जा सकती है किंतु योगी सरकार इस मामले में आज भी कुछ नहीं कर पा रही।
शेष रहा बिजली विभाग तो उसके कर्मचारी चंद हरे नोटों में पेड़ों का कटान होने तक बत्ती गुल करने को तैयार हो गए होंगे। उन्हें करना ही क्या था, बस किसी बहाने शट डाउन लेना था।
जब वन विभाग आंखों देखी मक्खी निगल सकता है, मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ''एक पेड़ मां के नाम'' जैसे अभियान को पलीता लगाकर सैकड़ों हरे पेड़ एक रात में कटवा सकता है तो बिजली विभाग क्या कुछ घंटों के लिए बत्ती गुल नहीं कर सकता।
भ्रष्टाचार को लेकर योगी जी चलते रहें जीरो टॉलरेंस की नीति पर, मोदी जी चलाते रहें एक पेड़ मां के नाम का अभियान लेकिन सफेदपोश भूमाफिया और सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारियों का गिरोह आज भी अपनी मनमानी से रत्तीभर नहीं चूक रहा। उसके मन में न योगी का कौई खौफ है न मोदी का।
2027 में 2022 जैसी परफॉरमेंस दोहराने की चिंता योगी जी को हो तो हो, मोदी जी उससे प्रभावित हों तो हों, लेकिन इस माफिया और अफसरों के गठजोड़ को इससे कोई लेना-देना नहीं है। सारे आदेश-निर्देश ताक पर, क्योंकि इतना कुछ हो जाने के बावजूद मथुरा-वृंदावन के लोग यही कहते सुने जा सकते हैं कि इस गठजोड़ का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
अब देखना केवल यह है कि इस बार भी किसी के कानों पर जूं रेंगती है या फिर जनता के मन में घर कर चुकी धारणा फिर सच साबित होती है।
-Legend News
रविवार, 1 सितंबर 2024
दुनियाभर के आतंकवादियो, उग्रवादियो, चरमपंथियो और उपद्रवियो... भारत में आपका स्वागत है!
पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जिस दिन से शेख हसीना सरकार का तख्तापलट हुआ, उस दिन से भारत में कुछ तत्व अति उत्साहित हैं। उन्हें बांग्लादेश की आपदा में अपने लिए एक बड़ा अवसर दिखाई दे रहा है।
वर्ष 2014 में जब पहली बार देश की सत्ता पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार काबिज हुई, तब उस सत्ता और कुर्सी को खुद के लिए आरक्षित समझने वाले इन तत्वों ने सोचा भी नहीं होगा कि मोदी अपनी सरकार की हैट्रिक लगा देंगे।
2024 के लोकसभा चुनावों में तो इन्हें पूरी उम्मीद थी कि मोदी सरकार की वापसी अब नहीं होनी क्योंकि उन्होंने यह पूरा चुनाव एक खास नैरेटिव गढ़कर लड़ा था। इस नैरेटिव को सेट करने के लिए इन धुर विरोधी तत्वों ने अपनी-अपनी आइडियोलॉजी तक को ताक पर रख दिया और मात्र एक मकसद बनाया कि किसी भी तरह इस बार मोदी को सत्ता से बाहर करना है।
बहरहाल, अपनी पार्टी के बूते न सही किंतु एनडीए को मिले बहुमत से नरेंद्र मोदी तीसरी बार पीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए जिससे इन तत्वों को गहरा आघात लगा। इनकी स्थिति ऐसी हो गई कि न तो इनसे हंसा जा रहा था और न रो पा रहे थे।
बांग्लादेश की आपदा में देखा अवसर
अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार को 2 महीने ही हुए थे कि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से तख्तापलट होने की खबर मिली। आरक्षण की आड़ में देशी-विदेशी शक्तियों ने शेख हसीना को सरकार से बेदखल कर उन्हें देश निकाला दे दिया। हसीना तब से भारत में हैं।
बांग्लादेश में हुए हिंसक तख्तापलट को चंद घंटे ही हुए थे कि कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद कहने लगे- ''बांग्लादेश जैसे हिंसक विरोध प्रदर्शन भारत में भी हो सकते हैं। भले ही ऊपरी तौर पर सब-कुछ सामान्य दिखाई दे रहा हो लेकिन यहां भी तख्तापलट संभव है।''
सलमान खुर्शीद की कांग्रेस में क्या हैसियत रही है और क्या है, इससे पूरा राजनीतिक जगत अच्छी तरह परिचित है। उन्होंने जो कुछ कहा, यूं ही नहीं कहा। इसके गहरे अर्थ तो हैं ही, साथ ही स्पष्ट संदेश भी है कि सत्ता की खातिर कांग्रेस किस हद तक जा सकती है।
कौन नहीं जानता कि सलमान खुर्शीद से बहुत पहले कांग्रेस के युवराज ने विदेशी धरती से कहा था कि भारत में लोकतंत्र नहीं बचा। अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जा रहा है और मोदी सरकार मुसलमानों की दुश्मन है। यहां तक कि उन्होंने पश्चिमी देशों से भारत में दखल देने का आह्वान किया था। अभी कुछ दिन पहले उन्होंने संसद में कहा कि हिंदू हिंसक है। विवाद होने पर वह कहने लगे कि मेरा मतलब भाजपा और संघ के हिंदुत्व से था। सलमान खुर्शीद या उनके जैसे दूसरे कांग्रेसी नेता राहुल गांधी से ऊर्जा पाकर अनर्गल प्रलाप करते हैं।
छात्र आंदोलन नहीं था बांग्लादेश का हिंसक घटनाक्रम
शेख हसीना से सत्ता छीनने के बाद पूरे घटनाक्रम और दुनियाभर के मीडिया एवं सीक्रेट एजेंसियों ने साफ कर दिया है कि बांग्लादेश में जो कुछ हुआ तथा जो अब भी हो रहा है, उसके पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से लेकर अमेरिका तक की साजिश है।
बांग्लादेश में नई सरकार बन जाने के बावजूद हिंसा के न रुकने तथा प्रदर्शन जारी रहने से इस बात की पुष्टि होती है कि विदेशी ताकतों ने आरक्षण को हथियार बनाकर और छात्र आंदोलन के बहाने सारा खेल खेला, नतीजतन अच्छी-खासी तरक्की कर रहा बांग्लादेश आज कई दशकों पीछे जा चुका है। अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदू अल्पसंख्यकों पर अमानवीय अत्याचार बताते हैं कि बांग्लादेश कितनी गहरे षड्यंत्र का शिकार हुआ है।
सूप के साथ छलनी भी बोली
कभी सामान्य पुलिसकर्मी रहे राकेश टिकैत तो कांग्रेस नेताओं के बेहूदे बयानों से भी कई कदम आगे निकल कर कहने लगे कि 2021 में हमसे गलती हो गई। गणतंत्र दिवस के दिन तब किसान अगर लालकिले की बजाय संसद पर चढ़ाई कर देते तो बांग्लादेश जैसा तख्तापलट भारत में तभी हो जाता।
किसान नेता का लबादा ओढ़कर देश विरोधी क्रिया-कलापों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले राकेश टिकैत यहीं नहीं रुके। उन्होंने तो यहां कह दिया कि अब तैयारी है जनता की। जनता इसके लिए तैयार बैठी है। हम भी तैयार हैं। बस इस सरकार को फिर से कुछ गड़बड़ करने दो। इस बार हम कोई चूक नहीं करेंगे। वह तो हमसे उस दौरान चूक हो गई कि संसद की ओर ट्रैक्टरों को नहीं घुमाया। कोई बात नहीं, आगे भी बहुत से ऐसे मौके आएंगे जब यहां बांग्लादेश जैसे हालात देखे जा सकते हैं। अराजक तत्वों और देश विरोधी ताकतों को इससे ज्यादा साफ संकेत और कोई दे भी क्या सकता है।
हालांकि विवाद होने पर टिकैत ने सफाई पेश करते हुए एक घाघ नेता की तरह रटे-रटाए अंदाज में सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ दिया और कहा कि उनके बयान को गलत ढंग से तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।
आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर बवाल
एससी-एसटी आरक्षण का लाभ लगातार क्रीमी लेयर को मिलते रहने पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों अपना एक विचार इस मकसद से सामने रखा जिससे कि हाशिए पर खड़े उसी वर्ग के दूसरे लोग उससे लाभान्वित हो सकें किंतु उसे भी समूचे विपक्ष ने एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रचारित किया वहीं दूसरी ओर यह दुष्प्रचार भी किया कि क्रीमी लेयर की आड़ लेकर मोदी सरकार आरक्षण को समाप्त करना चाहती है।
विपक्ष के इस दुष्प्रचार का नतीजा एक दिवसीय भारत बंद के रूप में सामने आया। वो भी तब जबकि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के तत्काल बाद यह साफ कर दिया कि आरक्षण की पुरानी व्यवस्था जारी रहेगी और उसमें किसी प्रकार के फेर-बदल का सरकार का कोई इरादा नहीं है।
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने भी कहा कि एससी-एसटी के आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश या निर्देश नहीं दिया है, यह उसका ऑब्जर्वेशन है और आदेश-निर्देश एवं ऑब्जर्वेशन में बहुत फर्क होता है। लेकिन विपक्ष इस समय हर मुद्दे पर खास नैरेटिव गढ़ने में लगा रहता है इसलिए उसने वही किया। ये बात अलग है कि उनका ये नैरेटिव बहुत काम नहीं आया लिहाजा भारत बंद सफल नहीं हुआ।
पश्चिम बंगाल में ट्रेनी महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या को भी बनाया हथियार
अराजक तत्वों को उकसाने का कोई भी मौका विपक्ष अपने हाथ से फिसलने नहीं देता। इसका ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल में ट्रेनी महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या से मिलता है। वहां ममता सरकार ने इस जघन्य और पाशविक कृत्य पर पहले तो किस तरह पर्दा डालने की कोशिश की, यह सबको पता है। कथित इंडी गठबंधन की जुबान एक नृशंस अपराध पर किस तरह तालू से चिपक गई, ये भी सबने देखा और जब मामले ने तूल पकड़ा तो उसका रहा-सहा बेशर्म रवैया भी सामने आ गया।
पश्चिम बंगाल सरकार की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे पूर्व कांग्रेस नेता और वर्तमान में समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य वकील कपिल सिब्बल ने तो ट्रेनी डॉक्टर के रेप और वीभत्स हत्या को देश में होने वाली रेप की तमाम वारदातों से तुलना करके सामान्य बताने की भी कोशिश की।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड
उधर विपक्ष की हौसला अफजाई से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अमानवीय आचरण के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। रेप के बाद हत्या को आत्महत्या बताने से लेकर आरजी कर कॉलेज के घटना स्थल से सबूत मिटाने और फिर हजारों लोगों को कॉलेज में प्रवेश करने से रोकने में असफल रहने के बाद भी वह खुद को क्लीनचिट देती रहीं। इतने से भी काम चलता दिखाई नहीं दिया तो अपनी ही उस सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर गईं जिसका गृह मंत्रालय व स्वास्थ्य मंत्रालय उन्हीं के पास है तथा जिसकी पूरी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ उन्हीं की बनती है।
देश के दूसरे राज्यों में खून बहा देने की चेतावनी
ममता बनर्जी की निरंकुशता का अंदाज इस बात से अच्छी तरह लगाया जा सकता है कि छात्रों के प्रदर्शन को रोकने में असफल रहने पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से केंद्र सरकार को चेतावनी दे डाली कि यदि मेरे राज्य में खून बहा तो देश के दूसरे भाजपा शासित राज्यों में भी खून बहेगा। एक मुख्यमंत्री और पार्टी की मुखिया का इस कथन ने उसके समर्थकों तथा अराजक तत्वों को क्या संदेश दिया होगा, इसे समझने के लिए बहुत ज्यादा बुद्धि इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है। वह देश को दंगों की आग में झोंक देने को कितनी उतावली हैं, इसे सामान्य विवेक वाला व्यक्ति भी समझ सकता है।
उधर, छात्रों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर लाठीचार्ज व आंसू गैस के गोले तथा वाटर कैनन का उपयोग भी जब कारगर नहीं हुआ तो ममता बनर्जी ने एफआईआर का डर दिखाकर प्रदर्शनकारी डॉक्टर्स को मंच से खुली धमकी दी और कहा कि यदि वो जिद पर अड़े रहे तो उनका करियर चौपट हो जाएगा।
इस दौरान ममता बनर्जी की बॉडी लैंग्वेज तथा हाव-भाव साफ बताता रहा है कि वह एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही हैं और उनकी जन्म कुंडली में लिखे राजयोग का समय अब समाप्त हो चुका है। जो भी हो, फिलहाल वह चूंकि चीफ मिनिस्टर हैं और विपक्षी गठबंधन की महत्वपूर्ण गांठ भी, तो सब चल रहा है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की आड़ में
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। तारीखें तय हैं और कांग्रेस तथा नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच तो गठबंधन के साथ सीटों का बंटवारा भी हो गया है। अनुच्छेद 370 की विदाई के बाद से अलगाववाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है, और यही कांग्रेस तथा नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ-साथ समूचे विपक्ष की तकलीफ है।
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में विपक्ष ने अनुच्छेद 370 की बहाली को बाकायदा अपने लिए न केवल एक चुनावी मुद्दा, बल्कि जीत का हथियार बनाया है। कांग्रेस के कई प्रमुख नेता और नेशनल कॉन्फ्रेंस पहले से ही जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान एवं अलगाववादियों से बातचीत के पक्षधर रहे हैं। उन्हें जम्मू-कश्मीर में शांति से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें लेना-देना है अपने उन पुराने दिनों की किसी तरह वापसी से जब वो इस पहाड़ी राज्य को निजी जागीर समझते थे और भारत को अपना दुश्मन। वह इसी मानसिकता से वहां अब तक शासन करते रहे। अलगाववादियों का वह एक ऐसा स्वर्णिम काल था जब आम कश्मीरी के हाथ में पत्थर थे और अलगाववादियों के बच्चों के पास विदेशी डिग्रियां तथा अच्छी सरकारी नौकरियां हुआ करती थीं। अब वह अपने उसी स्वर्णिम काल की वापसी को छटपटा रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों से जम्मू-कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद की घटनाएं ऐसे तत्वों की छटपटाहट का जीता-जागता प्रमाण है।
कुल मिलाकर विपक्ष इन दिनों दुनियाभर के आतंकवादियों, उग्रवादियों, चरमपंथियों, अलगाववादियों और उपद्रवियों का बहाने-बहाने से आह्वान करने में लगा है और बता रहा है कि वह भारत में उनका स्वागत करने को आतुर हैं। वह भारत में किसी भी तरह श्रीलंका और बांग्लादेश जैसी हिंसक अराजकता देखना चाहते हैं जिससे दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र कलंकित हो सके तथा आंखों की किरकिरी बनी हुई मोदी सरकार अपना शेष कार्यकाल पूरा न कर पाए।
विपक्ष संभवत: यह जान और समझ चुका है कि 2024 में बेशक वह झूठ के सहारे भाजपा को बहुमत से दूर करने में सफल रहा किंतु 2029 तक उनके बहुत से झूठ सामने आ चुके होंगे। झूठ, अफवाह तथा दुष्प्रचार के माध्यम से गढ़ा गया नैरेटिव भी तब तक नहीं चल पाएगा इसलिए जितनी जल्दी हो सके देश को अराजकता की आग में झोंक दिया जाए और मोदी को कुर्सी से बेदखल कर अपनी ''राजशाही'' कायम कर ली जाए।
विपक्ष को इस बात का भी अहसास है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ाई जा सकती इसलिए कहीं ऐसा न हो कि सत्ता के सपने हमेशा-हमेशा के लिए चकनाचूर होकर रह जाएं और पहले से चले आ रहे अनेक घपले-घोटाले उनके गले का फंदा बनकर बाकी जीवन जेल की सलाखों में बिताने पर बाध्य कर दें।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी