रविवार, 1 सितंबर 2024

दुनियाभर के आतंकवादियो, उग्रवादियो, चरमपंथियो और उपद्रवियो... भारत में आपका स्वागत है!


 पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जिस दिन से शेख हसीना सरकार का तख्‍तापलट हुआउस दिन से भारत में कुछ तत्व अति उत्साहित हैं। उन्‍हें बांग्लादेश की आपदा में अपने लिए एक बड़ा अवसर दिखाई दे रहा है।

वर्ष 2014 में जब पहली बार देश की सत्ता पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार काबिज हुईतब उस सत्ता और कुर्सी को खुद के लिए आरक्षित समझने वाले इन तत्वों ने सोचा भी नहीं होगा कि मोदी अपनी सरकार की हैट्रिक लगा देंगे।

2024 के लोकसभा चुनावों में तो इन्‍हें पूरी उम्मीद थी कि मोदी सरकार की वापसी अब नहीं होनी क्योंकि उन्‍होंने यह पूरा चुनाव एक खास नैरेटिव गढ़कर लड़ा था। इस नैरेटिव को सेट करने के लिए इन धुर विरोधी तत्वों ने अपनी-अपनी आइडियोलॉजी तक को ताक पर रख दिया और मात्र एक मकसद बनाया कि किसी भी तरह इस बार मोदी को सत्ता से बाहर करना है।

बहरहालअपनी पार्टी के बूते न सही किंतु एनडीए को मिले बहुमत से नरेंद्र मोदी तीसरी बार पीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए जिससे इन तत्वों को गहरा आघात लगा। इनकी स्थिति ऐसी हो गई कि न तो इनसे हंसा जा रहा था और न रो पा रहे थे।

बांग्लादेश की आपदा में देखा अवसर

अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार को 2 महीने ही हुए थे कि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से तख्तापलट होने की खबर मिली। आरक्षण की आड़ में देशी-विदेशी शक्तियों ने शेख हसीना को सरकार से बेदखल कर उन्‍हें देश निकाला दे दिया। हसीना तब से भारत में हैं।

बांग्लादेश में हुए हिंसक तख्‍तापलट को चंद घंटे ही हुए थे कि कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद कहने लगे- ''बांग्लादेश जैसे हिंसक विरोध प्रदर्शन भारत में भी हो सकते हैं। भले ही ऊपरी तौर पर सब-कुछ सामान्य दिखाई दे रहा हो लेकिन यहां भी तख्‍तापलट संभव है।''  

सलमान खुर्शीद की कांग्रेस में क्या हैसियत रही है और क्या हैइससे पूरा राजनीतिक जगत अच्‍छी तरह परिचित है। उन्होंने जो कुछ कहायूं ही नहीं कहा। इसके गहरे अर्थ तो हैं हीसाथ ही स्पष्ट संदेश भी है कि सत्ता की खातिर कांग्रेस किस हद तक जा सकती है।

कौन नहीं जानता कि सलमान खुर्शीद से बहुत पहले कांग्रेस के युवराज ने विदेशी धरती से कहा था कि भारत में लोकतंत्र नहीं बचा। अल्पसंख्‍यकों को प्रताड़ित किया जा रहा है और मोदी सरकार मुसलमानों की दुश्‍मन है। यहां तक कि उन्‍होंने पश्‍चिमी देशों से भारत में दखल देने का आह्वान किया था। अभी कुछ दिन पहले उन्‍होंने संसद में कहा कि हिंदू हिंसक है। विवाद होने पर वह कहने लगे कि मेरा मतलब भाजपा और संघ के हिंदुत्व से था। सलमान खुर्शीद या उनके जैसे दूसरे कांग्रेसी नेता राहुल गांधी से ऊर्जा पाकर अनर्गल प्रलाप करते हैं।         

छात्र आंदोलन नहीं था बांग्लादेश का हिंसक घटनाक्रम

शेख हसीना से सत्ता छीनने के बाद पूरे घटनाक्रम और दुनियाभर के मीडिया एवं सीक्रेट एजेंसियों ने साफ कर दिया है कि बांग्‍लादेश में जो कुछ हुआ तथा जो अब भी हो रहा हैउसके पीछे पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से लेकर अमेरिका तक की साजिश है।

बांग्लादेश में नई सरकार बन जाने के बावजूद हिंसा के न रुकने तथा प्रदर्शन जारी रहने से इस बात की पुष्‍टि होती है कि विदेशी ताकतों ने आरक्षण को हथियार बनाकर और छात्र आंदोलन के बहाने सारा खेल खेलानतीजतन अच्‍छी-खासी तरक्की कर रहा बांग्लादेश आज कई दशकों पीछे जा चुका है। अल्पसंख्‍यकों, विशेषकर हिंदू अल्पसंख्‍यकों पर अमानवीय अत्याचार बताते हैं कि बांग्लादेश कितनी गहरे षड्यंत्र का शिकार हुआ है।   

सूप के साथ छलनी भी बोली

कभी सामान्य पुलिसकर्मी रहे राकेश टिकैत तो कांग्रेस नेताओं के बेहूदे बयानों से भी कई कदम आगे निकल कर कहने लगे कि 2021 में हमसे गलती हो गई। गणतंत्र दिवस के दिन तब किसान अगर लालकिले की बजाय संसद पर चढ़ाई कर देते तो बांग्लादेश जैसा तख्‍तापलट भारत में तभी हो जाता।

किसान नेता का लबादा ओढ़कर देश विरोधी क्रिया-कलापों में बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लेने वाले राकेश टिकैत यहीं नहीं रुके। उन्‍होंने तो यहां कह दिया कि अब तैयारी है जनता की। जनता इसके लिए तैयार बैठी है। हम भी तैयार हैं। बस इस सरकार को फिर से कुछ गड़बड़ करने दो। इस बार हम कोई चूक नहीं करेंगे। वह तो हमसे उस दौरान चूक हो गई कि संसद की ओर ट्रैक्टरों को नहीं घुमाया। कोई बात नहींआगे भी बहुत से ऐसे मौके आएंगे जब यहां बांग्लादेश जैसे हालात देखे जा सकते हैं। अराजक तत्वों और देश विरोधी ताकतों को इससे ज्यादा साफ संकेत और कोई दे भी क्या सकता है।

हालांकि विवाद होने पर टिकैत ने सफाई पेश करते हुए एक घाघ नेता की तरह रटे-रटाए अंदाज में सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ दिया और कहा कि उनके बयान को गलत ढंग से तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।

आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर बवाल

एससी-एसटी आरक्षण का लाभ लगातार क्रीमी लेयर को मिलते रहने पर टिप्‍पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों अपना एक विचार इस मकसद से सामने रखा जिससे कि हाशिए पर खड़े उसी वर्ग के दूसरे लोग उससे लाभान्वित हो सकें किंतु उसे भी समूचे विपक्ष ने एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रचारित किया वहीं दूसरी ओर यह दुष्‍प्रचार भी किया कि क्रीमी लेयर की आड़ लेकर मोदी सरकार आरक्षण को समाप्‍त करना चाहती है।

विपक्ष के इस दुष्‍प्रचार का नतीजा एक दिवसीय भारत बंद के रूप में सामने आया। वो भी तब जबकि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के तत्काल बाद यह साफ कर दिया कि आरक्षण की पुरानी व्‍यवस्‍था जारी रहेगी और उसमें किसी प्रकार के फेर-बदल का सरकार का कोई इरादा नहीं है।

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने भी कहा कि एससी-एसटी के आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश या निर्देश नहीं दिया है, यह उसका ऑब्जर्वेशन है और आदेश-निर्देश एवं ऑब्जर्वेशन में बहुत फर्क होता है। लेकिन विपक्ष इस समय हर मुद्दे पर खास नैरेटिव गढ़ने में लगा रहता है इसलिए उसने वही किया। ये बात अलग है कि उनका ये नैरेटिव बहुत काम नहीं आया लिहाजा भारत बंद सफल नहीं हुआ।

पश्‍चिम बंगाल में ट्रेनी महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या को भी बनाया हथियार

अराजक तत्वों को उकसाने का कोई भी मौका विपक्ष अपने हाथ से फिसलने नहीं देता। इसका ताजा उदाहरण पश्‍चिम बंगाल में ट्रेनी महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या से मिलता है। वहां ममता सरकार ने इस जघन्य और पाशविक कृत्य पर पहले तो किस तरह पर्दा डालने की कोशिश की, यह सबको पता है। कथित इंडी गठबंधन की जुबान एक नृशंस अपराध पर किस तरह तालू से चिपक गई, ये भी सबने देखा और जब मामले ने तूल पकड़ा तो उसका रहा-सहा बेशर्म रवैया भी सामने आ गया।

पश्‍चिम बंगाल सरकार की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे पूर्व कांग्रेस नेता और वर्तमान में समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्‍य वकील कपिल सिब्बल ने तो ट्रेनी डॉक्‍टर के रेप और वीभत्स हत्या को देश में होने वाली रेप की तमाम वारदातों से तुलना करके सामान्य बताने की भी कोशिश की।

मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड

उधर विपक्ष की हौसला अफजाई से पश्‍चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने अमानवीय आचरण के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। रेप के बाद हत्या को आत्महत्या बताने से लेकर आरजी कर कॉलेज के घटना स्‍थल से सबूत मिटाने और फिर हजारों लोगों को कॉलेज में प्रवेश करने से रोकने में असफल रहने के बाद भी वह खुद को क्लीनचिट देती रहीं। इतने से भी काम चलता दिखाई नहीं दिया तो अपनी ही उस सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर गईं जिसका गृह मंत्रालय व स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय उन्‍हीं के पास है तथा जिसकी पूरी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ उन्‍हीं की बनती है।

देश के दूसरे राज्यों में खून बहा देने की चेतावनी

ममता बनर्जी की निरंकुशता का अंदाज इस बात से अच्‍छी तरह लगाया जा सकता है कि छात्रों के प्रदर्शन को रोकने में असफल रहने पर उन्‍होंने सार्वजनिक रूप से केंद्र सरकार को चेतावनी दे डाली कि यदि मेरे राज्य में खून बहा तो देश के दूसरे भाजपा शासित राज्यों में भी खून बहेगा। एक मुख्‍यमंत्री और पार्टी की मुखिया का इस कथन ने उसके समर्थकों तथा अराजक तत्वों को क्या संदेश दिया होगाइसे समझने के लिए बहुत ज्‍यादा बुद्धि इस्‍तेमाल करने की जरूरत नहीं है। वह देश को दंगों की आग में झोंक देने को  कितनी उतावली हैंइसे सामान्य विवेक वाला व्‍यक्ति भी समझ सकता है।  

उधरछात्रों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर लाठीचार्ज व आंसू गैस के गोले तथा वाटर कैनन का उपयोग भी जब कारगर नहीं हुआ तो ममता बनर्जी ने एफआईआर का डर दिखाकर प्रदर्शनकारी डॉक्‍टर्स को मंच से खुली धमकी दी और कहा कि यदि वो जिद पर अड़े रहे तो उनका करियर चौपट हो जाएगा।

इस दौरान ममता बनर्जी की बॉडी लैंग्वेज तथा हाव-भाव साफ बताता रहा है कि वह एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही हैं और उनकी जन्म कुंडली में लिखे राजयोग का समय अब समाप्‍त हो चुका है। जो भी होफिलहाल वह चूंकि चीफ मिनिस्‍टर हैं और विपक्षी गठबंधन की महत्वपूर्ण गांठ भीतो सब चल रहा है।

जम्मू-कश्‍मीर विधानसभा चुनाव की आड़ में

जम्मू-कश्‍मीर में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। तारीखें तय हैं और कांग्रेस तथा नेशनल कॉन्‍फ्रेंस के बीच तो गठबंधन के साथ सीटों का बंटवारा भी हो गया है। अनुच्‍छेद 370 की विदाई के बाद से अलगाववाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा हैऔर यही कांग्रेस तथा नेशनल कॉन्‍फ्रेंस के साथ-साथ समूचे विपक्ष की तकलीफ है।

जम्मू-कश्‍मीर के विधानसभा चुनावों में विपक्ष ने अनुच्‍छेद 370 की बहाली को बाकायदा अपने लिए न केवल एक चुनावी मुद्दाबल्‍कि जीत का हथियार बनाया है। कांग्रेस के कई प्रमुख नेता और नेशनल कॉन्‍फ्रेंस पहले से ही जम्मू-कश्‍मीर पर पाकिस्तान एवं अलगाववादियों से बातचीत के पक्षधर रहे हैं। उन्‍हें जम्मू-कश्‍मीर में शांति से कोई लेना-देना नहीं है। उन्‍हें लेना-देना है अपने उन पुराने दिनों की किसी तरह वापसी से जब वो इस पहाड़ी राज्य को निजी जागीर समझते थे और भारत को अपना दुश्‍मन। वह इसी मानसिकता से वहां अब तक शासन करते रहे। अलगाववादियों का वह एक ऐसा स्‍वर्णिम काल था जब आम कश्‍मीरी के हाथ में पत्थर थे और अलगाववादियों के बच्‍चों के पास विदेशी डिग्रियां तथा अच्‍छी सरकारी नौकरियां हुआ करती थीं। अब वह अपने उसी स्‍वर्णिम काल की वापसी को छटपटा रहे हैं।

पिछले कुछ दिनों से जम्मू-कश्‍मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद की घटनाएं ऐसे तत्वों की छटपटाहट का जीता-जागता प्रमाण है।

कुल मिलाकर विपक्ष इन दिनों दुनियाभर के आतंकवादियोंउग्रवादियोंचरमपंथियों,  अलगाववादियों और उपद्रवियों का बहाने-बहाने से आह्वान करने में लगा है और बता रहा है कि वह भारत में उनका स्वागत करने को आतुर हैं। वह भारत में किसी भी तरह श्रीलंका और बांग्लादेश जैसी हिंसक अराजकता देखना चाहते हैं जिससे दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र कलंकित हो सके तथा आंखों की किरकिरी बनी हुई मोदी सरकार अपना शेष कार्यकाल पूरा न कर पाए।

विपक्ष संभवत: यह जान और समझ चुका है कि 2024 में बेशक वह झूठ के सहारे भाजपा को बहुमत से दूर करने में सफल रहा किंतु 2029 तक उनके बहुत से झूठ सामने आ चुके होंगे। झूठ, अफवाह तथा दुष्‍प्रचार के माध्‍यम से गढ़ा गया नैरेटिव भी तब तक नहीं चल पाएगा इसलिए जितनी जल्‍दी हो सके देश को अराजकता की आग में झोंक दिया जाए और मोदी को कुर्सी से बेदखल कर अपनी ''राजशाही'' कायम कर  ली जाए।

विपक्ष को इस बात का भी अहसास है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ाई जा सकती इसलिए कहीं ऐसा न हो कि सत्ता के सपने हमेशा-हमेशा के लिए चकनाचूर होकर रह जाएं और पहले से चले आ रहे अनेक घपले-घोटाले उनके गले का फंदा बनकर बाकी जीवन जेल की सलाखों में बिताने पर बाध्‍य कर दें।

-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

 

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