शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

रेलवे ने तो कब्जा मुक्त करा ली अपनी भूमि, लेकिन अमरनाथ विद्या आश्रम वाजपेयी बंधुओं के कब्जे से कब होगा मुक्त?

 


 शहर ही नहीं, प्रदेश की नामचीन आवासीय शिक्षण संस्‍था 'अमरनाथ विद्या आश्रम' के एक हिस्‍से से कल रेलवे ने तो अवैध निर्माण ध्वस्‍त कर अपनी जमीन उनके कब्जे से मुक्त करा ली किंतु बड़ा सवाल यह है कि ये शिक्षण संस्थान वाजपेयी बंधुओं के कब्जे से कब तक मुक्त हो सकेगा, और हो सकेगा भी या नहीं। 

दरअसल, भूतेश्वर रेलवे स्टेशन से मथुरा जंक्शन तक इन दिनों रेलवे अपनी चौथी लाइन बिछाने का कार्य कर रहा है लेकिन इस कार्य में कैलाश नगर तथा अमरनाथ विद्या आश्रम द्वारा किया गया अतिक्रमण बाधा बन रहा था। 
रेलवे अधिकारियों ने इस अतिक्रमण को हटाने के लिए कई बार नोटिस जारी किए, और अमरनाथ विद्या आश्रम को तो अंतिम नोटिस इसी महीने की 17 तारीख को दिया गया किंतु अमरनाथ विद्या आश्रम के प्रबंधतंत्र ने रेलवे के नोटिस का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझा। रेलवे ने अपनी जमीन पर अवैध रूप से बनी अमरनाथ विद्या आश्रम की चारदीवारी तथा गेट को ध्‍वस्‍त करने के लिए पहले उनका चिन्हांकन भी किया लेकिन अमरनाथ विद्या आश्रम का प्रबंधतंत्र न कुछ देखने को तैयार था और न सुनने को। आखिर रेलवे ने कल सुरक्षाबलों के सहयोग से अमरनाथ विद्या आश्रम का अवैध निर्माण ध्‍वस्‍त कर दिया, जिस पर प्रबंधतंत्र ने जमकर हंगामा किया। 
क्‍या कहता है अमरनाथ विद्या आश्रम का प्रबंधतंत्र 
इस संबध में पूछे जाने पर अमरनाथ विद्या आश्रम के प्रधानाचार्य अरुण वाजपेयी ने अपने लिखित जवाब में बताया कि बिना किसी पूर्व सूचना के रेलवे प्रशासन की टीम ने बुल्डोजर लेकर शिक्षण संस्था के मुख्य मार्ग की बाउंड्रीवाल को ध्वस्त करना शुरु कर दिया। अरुण वाजपेयी के अनुसार, विद्यालय प्रबंधन ने रेलवे के अधिकारियों से वार्ता करनी चाही तो उन्होंने किसी भी तरह की वार्ता से इंकार कर दिया। यह अनाधिकृत कार्रवाई उस समय की गई, जब अमरनाथ विद्या आश्रम में प्ले ग्रुप से लेकर 12वीं तक के विद्यार्थी शिक्षण कार्य कर रहे थे, जबकि अमरनाथ डिग्री कालेज में छात्राएं विश्वविद्यालय की परीक्षाएं दे रही थीं। 
रेल प्रशासन ने बाउंड्रीवाल को ध्वस्त करने की कोई भी सूचना नहीं दी। यही नहीं, अचानक शिक्षण संस्थान की विद्युत आपूर्ति बाधित कर दी गयी जिससे परीक्षा दे रहीं छात्राओं के कक्ष में अंधेरा छा गया। विद्यालय प्रबंधन ने रेल अधिकारियों से कहा कि रेलवे पथ के निर्माण में वो रेल प्रशासन के साथ हैं। बच्चों की परीक्षाएं सम्पन्न हो जाने दीजिए, लेकिन इसके बावजूद रेलवे प्रशासन ने बाउंड्रीवाल को ध्वस्त करने के साथ-साथ तमाम लगे वृक्षों को उजाड़ दिया गया। नगर निगम की स्ट्रीट लाइटें भी तोड़ दी गयीं। मना करने पर रेलवे निर्माण विभाग के सहायक अधिशासी अभियंता राघवेन्द्र गुप्ता और उनके साथ आए अधिकारी कर्मचारियों ने हाथापाई और मारपीट कर दी। 
अमरनाथ विद्या आश्रम ने दावा किया कि इससे पूर्व विद्यालय प्रबंधन ने जिलाधिकारी चन्द्र प्रकाश सिंह के समक्ष पूरा प्रकरण रखते हुए कहा था कि रेल प्रशासन के कार्य में विद्यालय की बाउंड्री से कोई भी अवरोध उत्पन्न नहीं हो रहा है, लेकिन रेलवे के अधिकारी रेल लाइन का काम न करके जबरन बाउंड्रीवाल को तोड़ने पर आमादा थे। सिटी मजिस्ट्रेट राकेश कुमार ने भी रेल अधिकारियों से बाउंड्रीवाल को फिलहाल छोड़कर अपना काम करने के लिए फोन किया, लेकिन रेलवे के अधिकारियों ने उनकी भी नहीं सुनीं। बाउंड्रीवाल तोड़ दिए जाने से बाहरी तत्वों का विद्यालय में प्रवेश प्रारंभ हो गया है। विद्यालय प्रशासन व बच्चों के साथ कभी भी कोई बड़ी घटना घट सकती है। विद्यालय में अत्यंत दहशत का वातावरण है। 
प्रधानाचार्य अरुण वाजपेयी को जब रेलवे के नोटिस की प्रति भेजकर उसके संदर्भ में जानकारी मांगी गई तो उन्‍होंने कोई जवाब नहीं दिया जबकि अमरनाथ विद्या आश्रम कह रहा है कि उन्‍हें कोई नोटिस दिए बिना रेलवे ने ध्‍वस्‍तीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी। 
मथुरा-वृंदावन रेलवे लाइन पर भी बना रखा है गेट 
अमरनाथ विद्या आश्रम ने अपना एक गेट मथुरा-वृंदावन रेलवे लाइन की ओर भी बना रखा है। चूंकि यह रेलवे ट्रैक फिलहाल बंद पड़ा है इसलिए संभवत: इसके बारे में अभी कोई बात नहीं हो रही। इस गेट के संबंध में भी फोटो भेजकर अरुण वाजपेयी से जानकारी मांगी गई लेकिन समाचार लिखे जाने तक उनका कोई जवाब नहीं आया। 
ट्रस्‍ट के साथ भी 3 दशक से चल रहा है अमरनाथ विद्या आश्रम का विवाद 
सच तो यह है कि अमरनाथ विद्या आश्रम का सिर्फ रेलवे से ही नहीं संस्‍थान के मूल ट्रस्‍टियों से भी विवाद चल रहा है जो आज तक एसडीएम (सदर) की कोर्ट में लंबित है। 
हालांकि इसकी शुरूआत तीन दशक पहले तब हुई थी जब इस विद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य आनंद मोहन वाजपेयी ने एक नए ट्रस्‍ट का गठन कर विद्यालय पर अपना आधिपत्‍य स्‍थापित कर लिया। संस्‍थान के मूल ट्रस्‍टियों में से एक धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव का कहना है कि वाजपेयी परिवार ने विद्यालय पर अपना कब्‍जा दिखाने के उद्देश्‍य से एक ओर जहां तमाम दानदाताओं की ओर से कराए गए निर्माण कार्य के सबूत मिटा दिए वहीं दूसरी ओर विद्यालय में गेट के ठीक सामने पार्क में लगी उन स्‍वर्गीय 'द्वारिकानाथ भार्गव' की मूर्ति भी नष्‍ट कर दी जिन्‍होंने विद्यालय की स्‍थापना की थी। 
ट्रस्‍टी धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव द्वारा दी गई लिखित जानकारी के अनुसार अमरनाथ विद्या आश्रम को लेकर एक लम्बे समय से वाजपेयी बंधुओं द्वारा भ्रामक और गलत जानकारियाँ देकर जनता को गुमराह किया जा रहा है जबकि सच्चाई यह है कि अमरनाथ विद्या आश्रम की स्थापना सन् 1961 में स्वतंत्रता सेनानी और अधिवक्ता श्री द्वारिका नाथ भार्गव ने स्वर्गीय अमरनाथ भार्गव की स्मृति में एक ट्रस्ट के जरिए की थी। 
आनन्द मोहन वाजपेयी को तब इस शिक्षण संस्था में बतौर प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया था। सन् 1990 तक आनन्द मोहन वाजपेयी इस शिक्षण संस्था के प्रधानाध्यापक रहे। उसके बाद ट्रस्‍ट ने उन्‍हें स्कूल का निदेशक घोषित कर दिया लेकिन उन्होंने संस्था के ट्रस्टियों का भरोसा तोड़कर एक नया फर्जी ट्रस्ट रजिस्टर्ड करवा लिया और पूरी संस्था पर अपने भाई-भतीजों सहित काबिज हो गए।
आनन्द मोहन वाजपेयी ने खुद को अमरनाथ विद्या आश्रम का आजीवन ट्रस्टी दर्शाते हुए सन् 1995 में ट्रस्ट का नवीनीकरण करा लिया। जब इस बात की जानकारी मूल ट्रस्‍टियों को हुई तो उन्‍होंने उपनिबंधक फर्म, सोसायटी एवं चिट्स आगरा के यहाँ उनके इस कृत्य को चुनौती दी। जिसके उपरांत उपनिबंधक ने माना कि आनन्द मोहन वाजपेयी न तो ट्रस्ट के लिए गठित कार्यकारिणी के चुनाव सम्बन्धी कोई रजिस्टर प्रस्तुत कर सके और न ही ट्रस्ट की वैधता साबित कर सके। 
उपनिबंधक आगरा द्वारा 2 जून 1995 को दिए गए अपने आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि आनन्द मोहन वाजपेयी की ओर से प्रस्तुत 30 अक्टूबर 1993 को दर्शाये गए कार्यकारिणी के चुनावों की वैधता संदिग्ध है और 1988 में हुआ चुनाव ही अंतिम चुनाव था। धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव के अनुसार अमरनाथ विद्या आश्रम पर मूल रूप से श्री द्वारिका नाथ भार्गव द्वारा गठित ट्रस्ट का ही अधिकार है और वही इसके संचालन का हकदार है। 
ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि रेलवे ने तो अमरनाथ विद्या आश्रम का अवैध निर्माण ध्वस्‍त कर अपनी जमीन उसके कब्जे से मुक्त करा ली किंतु क्या स्वतंत्रता सेनानी और अधिवक्ता द्वारिका नाथ भार्गव द्वारा स्‍थापित यह शिक्षण संस्‍थान कभी वाजपेयी बंधुओं के कब्जे से मुक्त हो पाएगा क्योंकि संस्‍थान पर काबिज वाजपेयी बंधु एक ओर जहां पुलिस-प्रशासन में ऊंची पहुंच होने का दम भरते आए हैं वहीं दूसरी ओर सत्ता के गलियारों में भी गहरी पैठ होने का दावा करते हैं। 
उनके इस दावे में दम इसलिए नजर आता है कि रेलवे जैसे विभाग को उनसे अपनी जमीन कब्जा मुक्त कराने में वर्षों एड़ियां रगड़नी पड़ गईं, और यदि अब भी रेलवे की चौथी लाइन नहीं पड़ रही होती तो ये काम संभव नहीं होता। 
रहा सवाल  शिक्षण संस्‍थान के मूल ट्रस्‍टियों का तो वो आज तक वाजपेयी बंधुओं के बिछाए कानूनी जाल में फंसे हुए हैं और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पर मजबूर हैं। 
-Legend News

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

अब कभी पूरा नहीं होगा डालमिया बाग में हाउसिंग प्रोजेक्ट खड़ा करने का ख्‍वाब, लेकिन भ्रम फैलाकर फिर फ्रॉड करने की तैयारी कर रही है शंकर सेठ एंड कंपनी


 वृंदावन के छटीकरा रोड पर स्‍थित डालमिया बाग में हाउसिंग प्रोजेक्ट खड़ा करने का ख्‍वाब अब कभी पूरा नहीं हो सकता, लेकिन शंकर सेठ एंड कंपनी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर भ्रम फैला रही है। ऐसा करने के पीछे भूमाफिया की टोली का एक मकसद तो यह है कि हाउसिंग प्रोजेक्ट 'गुरू कृपा तपोवन' के नाम पर पूर्व में हड़पे गए हजारों करोड़ रुपए को जायज ठहराया जा सके, और दूसरा इसकी आड़ में फिर फ्रॉड करने का रास्ता साफ हो जाए। 

सच तो यह है कि डालमिया बाग से 454 हरे दरख्त काटने के बाद जब शंकर सेठ पर कानूनी शिकंजा कसा गया तो उसने नित-नई कहानियां गढ़नी शुरू कर दीं। पहले कहा कि मेरा तो इस प्रोजेक्ट से कोई लेना-देना ही नहीं है। फिर वह और उसकी टोली कहने लगी कि जिला प्रशासन से सारी 'सेटिंग' हो गई है और मामला इसी स्तर पर समाप्त हो जाएगा। लेकिन जब बात एनजीटी, इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची और एनजीटी ने बाकायदा एक जांच कमेटी गठित कर दी तो इन्होंने जांच कमेटी से सब रफा-दफा करा लेने का 'शिगूफा' छोड़ दिया। 
अब जबकि उसी जांच कमेटी की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ओर जहां प्रति पेड़ एक लाख रुपए का जुर्माना ठोक दिया और नौ हजार से अधिक नए पेड़ लगाने का आदेश दे दिया तो अब शंकर सेठ एंड कंपनी नया भ्रम फैलाने में जुट गई है। 
सुप्रीम कोर्ट का आदेश कहता है कि ये नौ हजार से अधिक पेड़ डालमिया बाग के निकट एक किलोमीटर के दायरे में नई जमीन खरीद कर लगाने होंगे। यही नहीं, आदेश का अनुपालन होने तक हाउसिंग प्रोजेक्ट पर रोक रहेगी। यदि नक्शा पास करा भी लिया गया तो उसे सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत करना होगा। 
यहां यह समझना जरूरी है कि अब तक किसी के नाम डालमिया बाग की कोई रजिस्‍ट्री ही नहीं हुई है। जो हुआ है, वो मात्र एमओयू था जिसके आधार पर न तो नक्शा पास कराया जा सकता है और न निर्माण संबंधी कोई गतिविधि शुरू की जा सकती है। 
जहां तक सवाल नौ हजार से अधिक नए पेड़ लगाने के आदेश का है तो उसका अनुपालन करने के लिए शंकर सेठ एंड कंपनी को 20 एकड़ से अधिक जमीन खरीदनी होगी। 
वन विभाग से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार ताज ट्रैपेजियम जोन यानी TTZ क्षेत्र में एक हेक्‍टेयर जमीन पर एक हजार पेड़ लगाने का नियम है। एक हेक्‍टेयर जमीन में 2.47 एकड़ जमीन होती है। इस हिसाब से करीब 9 हेक्टेयर जमीन की दरकार होगी। डालमिया बाग से एक किलोमीटर के दायरे में ये जमीन किस मूल्य पर मिलेगी, इसके बारे में सोचकर ही शंकर सेठ एंड कंपनी को पसीना आ गया होगा।    
गौरतलब है कि एनजीटी की जांच कमेटी ने डालमिया बाग को ग्रीन बेल्ट घोषित करने की भी सिफारिश की है, जिस पर निर्णय आना अभी बाकी है। संभावना यही है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी की सभी सिफारिशें पूरी तरह मान ली हैं तो आगे ग्रीन बेल्ट घोषित करने की मांग भी मान ली जाएगी।
इसके अलावा बाग में 'गुरूकृपा तपोवन' नामक हाउसिंग प्रोजेक्ट बनाने की आड़ में कच्‍ची पर्चियों पर हड़पे गए हजारों करोड़ रुपए को लेकर भी एक वो याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, जिसमें शंकर सेठ आदि के खिलाफ सीबीआई और ईडी से जांच कराने की मांग की गई है। 
अब क्या भ्रम फैला रही है शंकर सेठ एंड कंपनी? 
यूं तो शंकर सेठ एंड कंपनी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सच्‍चाई और उसके अनुपालन में आने वाली कठिनाइयों से भली-भांति परिचित होगी। और अगर उसे समझने में कोई दिक्कत पेश आ रही होगी तो पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी जैसे विद्वान समझा ही देंगे जिन्‍हें इन्‍होंने मोटी फीस देकर अपने पक्ष में दलीलें पेश करने को खड़ा किया था, बावजूद इसके यह टोली भरपूर भ्रम फैला रही है। 
माफिया की टोली और इसके गुर्गे निवेशकों से कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट से फैसला हमारे मन मुताबिक आया है। कोर्ट ने नक्शा पास कराने पर कोई रोक नहीं लगाई है। जल्द ही हम नक्शा पास कराकर काम शुरू कर देंगे जबकि सच्‍चाई यह है कि जिस जमीन की रजिस्‍ट्री ही नहीं हुई, उसका नक्शा पास कैसे हो सकता है। 
भ्रम फैलाने के पीछे माफिया की टोली का मकसद क्या है? 
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर भ्रम फैलाने के पीछे माफिया की टोली का बड़ा मकसद यह है कि जिन लोगों की आंखों में धूल झोंक कर ये हजारों करोड़ रुपया ठग चुकी है, उन्‍हें गुमराह किया जा सके। साथ ही जिन लोगों की पूरी रकम नहीं आई है, उनसे बाकी रकम वसूली जा सके। 
चूंकि शंकर सेठ और डालिमया बाग कांड में संलिप्‍त अन्य लोगों से निवेशकों का भरोसा इस दौरान पूरी तरह उठ चुका है, इसलिए भ्रम फैलाने के पीछे एक मकसद यह भी है कि फिर से यह भरोसा पैदा हो जाए जिससे इनके दूसरे रियल एस्टेट प्रोजेक्‍ट पर अब उसका दुष्‍प्रभाव बाकी न रहे। 
ऐसा न होता तो जो शंकर सेठ शुरू में यह कह रहा था कि उसका डालमिया बाग कांड में कोई हाथ नहीं है, उसने फिर अचानक पेड़ काटने की सारी जिम्‍मेदारी अपने ऊपर कैसे ले ली। ये जानते व समझते हुए कि सुप्रीम कोर्ट में अपराध स्‍वीकार कर लेने के बाद वन विभाग के लिए उसे अब स्‍थानीय अदालत में दोषी साबित करना बहुत आसान होगा। यानी जो सजा उस अपराध के लिए मुकर्रर है, वह तो होगी ही। 
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है शंकर सेठ एंड कंपनी अपनी फितरत से बाज नहीं आ रही। अब इसे उसकी मजबूरी कहें या आदतन अपराध की प्रवृत्ति, लेकिन इतना तय है कि डालमिया बाग पर गुरू कृपा तपोवन बनाने का सपना अब कभी पूरा नहीं होगा। 
देखना बस यह है कि निवेशकों से किया गया इनका वायदा कब और किस सूरत में पूरा होता है, अथवा पूरा होता है भी या नहीं। उनसे हड़पी गई रकम उन्‍हें वापस मिलती है या इसी प्रकार भ्रम फैलाकर और गुमराह करके लगातार मूर्ख बनाया जाता है। 
देखना यह भी है अब तक शंकर सेठ एंड कंपनी पर आंख बंद करके भरोसा करने वाले क्या इनके नए हथकंडे पर भरोसा करेंगे, और करेंगे तो कब तक? और जूतों में दाल बंटने की जो नौबत अभी अंदर ही अंदर पनप रही है, वह कब और कैसे सामने आएगी। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी 

सोमवार, 24 मार्च 2025

कौन कहता है कानून सबके लिए समान है, क्या हाई कोर्ट जज के खिलाफ कानूनी कार्रवाई संभव है?


 दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा पर आरोप लगे हैं कि नई दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास से भारी मात्रा में कैश मिला है. 14 मार्च को उनके आवास के एक स्टोर रूम में आग लगी थी, जहाँ पर कथित तौर पर उनके घर से बड़ी मात्रा में कैश मिला था.

अभी यशवंत वर्मा के खिलाफ 'इन-हाउस' जांच प्रक्रिया जारी है. इसके लिए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन जजों की कमेटी बनाई है.
इस बारे में 22 मार्च की रात सुप्रीम कोर्ट ने एक रिपोर्ट सार्वजनिक की थी. उसमें दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की इस घटना पर रिपोर्ट और यशवंत वर्मा का बचाव है.
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने ये फैसला लिया है कि जस्टिस यशवंत वर्मा को कुछ समय तक कोई न्यायिक जिम्मेदारी न सौंपी जाए. 
इन सब के बीच जानते हैं कि हाई कोर्ट के जज के खिलाफ क्या और कैसे कार्रवाई हो सकती है और ऐसे मामलों में पहले अब तक क्या हुआ है? 
क्या हाई कोर्ट जजों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई संभव है 
हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने के लिए संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है लेकिन महाभियोग की यह प्रक्रिया लंबी होती है. अगर लोक सभा के सौ सांसद या राज्य सभा के पचास सांसद जज को हटाने का प्रस्ताव दें तो फिर सदन के अध्यक्ष या सभापति उसको स्वीकार कर सकते हैं.
इस प्रस्ताव के स्वीकार होने के बाद तीन सदस्यों की समिति इस मामले की तहकीकात करती है और एक रिपोर्ट सदन को सौंपती है.
अगर समिति ये पाती है कि जज के खिलाफ आरोप बेबुनियाद हैं तो मामला वहीं खत्म हो जाता. अगर समिति जज को दोषी पाती है तो फिर इसकी चर्चा दोनों सदनों में होती है और इस पर वोटिंग होती है.
अगर संसद के दोनों सदन में विशेष बहुमत से जज को हटाने के प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए तो ये प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास जाता है, जो जज को हटाने का आदेश देते हैं.
आज तक भारत में किसी भी जज को इस प्रकार से हटाया नहीं गया है, हालांकि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कम से कम छह जजों को इंपीच करने की कोशिश की गई है.
इंपीचमेंट के अलावा उच्च न्यायालय के जज के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही भी हो सकती है. हालांकि, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का पालन करना होगा. आज तक किसी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को भ्रष्टाचार के लिए दोषी नहीं पाया गया है. 
क्या जजों पर कार्रवाई हो सकती है 
उच्च न्यायालय के जजों के खिलाफ 'प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट' के तहत कार्रवाई हो सकती है. पर, पुलिस खुद से किसी जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती.
राष्ट्रपति को भारत के चीफ़ जस्टिस की सलाह लेनी होगी और उसके बाद तय करना होगा कि एफआईआर दर्ज हो सकती है या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा अपने साल 1991 के फैसले में कहा था, जब मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस के वीरास्वामी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज हुई थी.
फिर साल 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने एक 'इन-हाउस' प्रक्रिया का गठन किया, जिससे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ कार्यवाही हो सके. इसमें कहा गया है कि अगर किसी जज के खिलाफ शिकायत आती है तो पहले हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस या भारत के चीफ जस्टिस शिकायत की जांच करे.
अगर वो पाते है कि शिकायत बेबुनियाद है तो मामला वहीं खत्म हो जाता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो जिस जज के खिलाफ शिकायत आई है उससे जवाब मांगा जाता है. अगर जवाब से चीफ जस्टिस को लगे कि आगे किसी कार्रवाई की ज़रूरत नहीं है तो मामला खत्म हो जाता है. 
अगर ये लगे कि मामले की और गहरी जाँच होनी चाहिए तो भारत के चीफ जस्टिस एक कमेटी का गठन कर सकते हैं. इस कमेटी में 3 जज होते हैं.
अपनी कार्रवाई के बाद कमेटी या तो जज को बेकसूर पा सकती है या जज को इस्तीफा देने के लिए कह सकती है. इस्तीफा देने से अगर जज ने मना कर दिया तो समिति उनके इंपीचमेंट के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सूचना दे सकती है.
ऐसे भी कुछ मामले हुए हैं जिसमें इन हाउस कमेटी के फैसले के बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को हाई कोर्ट जज के खिलाफ कार्यवाही करने को कहा है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज एसएन शुक्ला के खिलाफ 2018 में इन-हाउस कमिटी की प्रक्रिया चली थी. उसके बाद उन्होंने इस्तीफ़ा देने से मना कर दिया. साल 2021 में सीबीआई ने उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों पर एक चार्जशीट दर्ज की.
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की पूर्व जज निर्मल यादव के खिलाफ भी सीबीआई ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. उनके खिलाफ मुक़दमा अभी लंबित है.
मार्च 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज शमित मुखर्जी को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. 
हाई कोर्ट के जज को क्या सुविधाएं देती है सरकार? 
भारत में हाई कोर्ट जज एक संवैधानिक पद है. इनकी नियुक्ति की भी लंबी प्रक्रिया होती है. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज और सरकार की सहमति के बाद इन्हें नियुक्त किया जाता है.
सातवें वेतन आयोग के तहत उनकी मासिक सैलरी 2.25 लाख रुपए होती है, और ऑफिस के काम-काज के लिए 27 हज़ार रुपए मासिक भत्ता भी मिलता है. ऐसे जजों को रहने के लिए एक सरकारी आवास दिया जाता है. और अगर वे सरकारी घर ना लें, तो किराए के लिए अलग से पैसे मिलते हैं.
इस घर के रखरखाव के पैसे सरकार देती है. इन घरों को एक सीमा तक बिजली और पानी मुफ्त मिलता है. और फर्नीचर के लिए 6 लाख तक की रकम मिलती है.
साथ ही उन्हें एक गाड़ी दी जाती है और हर महीने दो सौ लीटर पेट्रोल लेने की अनुमति होती है. इसके अलावा चिकित्सा की सुविधा, ड्राइवर और नौकरों के लिए भत्ते का भी प्रावधान है.
भ्रष्टाचार से बचने और न्यायालय की स्वतंत्रता के लिए ये ज़रूरी है कि जजों का वेतन पर्याप्त हो.
जज अपना काम निडरता से कर सके इसलिए संविधान में उन्हें कुछ सुरक्षाएँ दी गई है. उच्च न्यायपालिका यानी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को सिर्फ़ महाभियोग (इंपीचमेंट) की प्रक्रिया के ज़रिए ही हटाया जा सकता है. 
-Legend News
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