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शुक्रवार, 28 मार्च 2025
अब कभी पूरा नहीं होगा डालमिया बाग में हाउसिंग प्रोजेक्ट खड़ा करने का ख्वाब, लेकिन भ्रम फैलाकर फिर फ्रॉड करने की तैयारी कर रही है शंकर सेठ एंड कंपनी
वृंदावन के छटीकरा रोड पर स्थित डालमिया बाग में हाउसिंग प्रोजेक्ट खड़ा करने का ख्वाब अब कभी पूरा नहीं हो सकता, लेकिन शंकर सेठ एंड कंपनी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर भ्रम फैला रही है। ऐसा करने के पीछे भूमाफिया की टोली का एक मकसद तो यह है कि हाउसिंग प्रोजेक्ट 'गुरू कृपा तपोवन' के नाम पर पूर्व में हड़पे गए हजारों करोड़ रुपए को जायज ठहराया जा सके, और दूसरा इसकी आड़ में फिर फ्रॉड करने का रास्ता साफ हो जाए। सच तो यह है कि डालमिया बाग से 454 हरे दरख्त काटने के बाद जब शंकर सेठ पर कानूनी शिकंजा कसा गया तो उसने नित-नई कहानियां गढ़नी शुरू कर दीं। पहले कहा कि मेरा तो इस प्रोजेक्ट से कोई लेना-देना ही नहीं है। फिर वह और उसकी टोली कहने लगी कि जिला प्रशासन से सारी 'सेटिंग' हो गई है और मामला इसी स्तर पर समाप्त हो जाएगा। लेकिन जब बात एनजीटी, इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची और एनजीटी ने बाकायदा एक जांच कमेटी गठित कर दी तो इन्होंने जांच कमेटी से सब रफा-दफा करा लेने का 'शिगूफा' छोड़ दिया।
अब जबकि उसी जांच कमेटी की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ओर जहां प्रति पेड़ एक लाख रुपए का जुर्माना ठोक दिया और नौ हजार से अधिक नए पेड़ लगाने का आदेश दे दिया तो अब शंकर सेठ एंड कंपनी नया भ्रम फैलाने में जुट गई है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश कहता है कि ये नौ हजार से अधिक पेड़ डालमिया बाग के निकट एक किलोमीटर के दायरे में नई जमीन खरीद कर लगाने होंगे। यही नहीं, आदेश का अनुपालन होने तक हाउसिंग प्रोजेक्ट पर रोक रहेगी। यदि नक्शा पास करा भी लिया गया तो उसे सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत करना होगा।
यहां यह समझना जरूरी है कि अब तक किसी के नाम डालमिया बाग की कोई रजिस्ट्री ही नहीं हुई है। जो हुआ है, वो मात्र एमओयू था जिसके आधार पर न तो नक्शा पास कराया जा सकता है और न निर्माण संबंधी कोई गतिविधि शुरू की जा सकती है।
जहां तक सवाल नौ हजार से अधिक नए पेड़ लगाने के आदेश का है तो उसका अनुपालन करने के लिए शंकर सेठ एंड कंपनी को 20 एकड़ से अधिक जमीन खरीदनी होगी।
वन विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार ताज ट्रैपेजियम जोन यानी TTZ क्षेत्र में एक हेक्टेयर जमीन पर एक हजार पेड़ लगाने का नियम है। एक हेक्टेयर जमीन में 2.47 एकड़ जमीन होती है। इस हिसाब से करीब 9 हेक्टेयर जमीन की दरकार होगी। डालमिया बाग से एक किलोमीटर के दायरे में ये जमीन किस मूल्य पर मिलेगी, इसके बारे में सोचकर ही शंकर सेठ एंड कंपनी को पसीना आ गया होगा।
गौरतलब है कि एनजीटी की जांच कमेटी ने डालमिया बाग को ग्रीन बेल्ट घोषित करने की भी सिफारिश की है, जिस पर निर्णय आना अभी बाकी है। संभावना यही है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी की सभी सिफारिशें पूरी तरह मान ली हैं तो आगे ग्रीन बेल्ट घोषित करने की मांग भी मान ली जाएगी।
इसके अलावा बाग में 'गुरूकृपा तपोवन' नामक हाउसिंग प्रोजेक्ट बनाने की आड़ में कच्ची पर्चियों पर हड़पे गए हजारों करोड़ रुपए को लेकर भी एक वो याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, जिसमें शंकर सेठ आदि के खिलाफ सीबीआई और ईडी से जांच कराने की मांग की गई है।
अब क्या भ्रम फैला रही है शंकर सेठ एंड कंपनी?
यूं तो शंकर सेठ एंड कंपनी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सच्चाई और उसके अनुपालन में आने वाली कठिनाइयों से भली-भांति परिचित होगी। और अगर उसे समझने में कोई दिक्कत पेश आ रही होगी तो पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी जैसे विद्वान समझा ही देंगे जिन्हें इन्होंने मोटी फीस देकर अपने पक्ष में दलीलें पेश करने को खड़ा किया था, बावजूद इसके यह टोली भरपूर भ्रम फैला रही है।
माफिया की टोली और इसके गुर्गे निवेशकों से कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट से फैसला हमारे मन मुताबिक आया है। कोर्ट ने नक्शा पास कराने पर कोई रोक नहीं लगाई है। जल्द ही हम नक्शा पास कराकर काम शुरू कर देंगे जबकि सच्चाई यह है कि जिस जमीन की रजिस्ट्री ही नहीं हुई, उसका नक्शा पास कैसे हो सकता है।
भ्रम फैलाने के पीछे माफिया की टोली का मकसद क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर भ्रम फैलाने के पीछे माफिया की टोली का बड़ा मकसद यह है कि जिन लोगों की आंखों में धूल झोंक कर ये हजारों करोड़ रुपया ठग चुकी है, उन्हें गुमराह किया जा सके। साथ ही जिन लोगों की पूरी रकम नहीं आई है, उनसे बाकी रकम वसूली जा सके।
चूंकि शंकर सेठ और डालिमया बाग कांड में संलिप्त अन्य लोगों से निवेशकों का भरोसा इस दौरान पूरी तरह उठ चुका है, इसलिए भ्रम फैलाने के पीछे एक मकसद यह भी है कि फिर से यह भरोसा पैदा हो जाए जिससे इनके दूसरे रियल एस्टेट प्रोजेक्ट पर अब उसका दुष्प्रभाव बाकी न रहे।
ऐसा न होता तो जो शंकर सेठ शुरू में यह कह रहा था कि उसका डालमिया बाग कांड में कोई हाथ नहीं है, उसने फिर अचानक पेड़ काटने की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर कैसे ले ली। ये जानते व समझते हुए कि सुप्रीम कोर्ट में अपराध स्वीकार कर लेने के बाद वन विभाग के लिए उसे अब स्थानीय अदालत में दोषी साबित करना बहुत आसान होगा। यानी जो सजा उस अपराध के लिए मुकर्रर है, वह तो होगी ही।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है शंकर सेठ एंड कंपनी अपनी फितरत से बाज नहीं आ रही। अब इसे उसकी मजबूरी कहें या आदतन अपराध की प्रवृत्ति, लेकिन इतना तय है कि डालमिया बाग पर गुरू कृपा तपोवन बनाने का सपना अब कभी पूरा नहीं होगा।
देखना बस यह है कि निवेशकों से किया गया इनका वायदा कब और किस सूरत में पूरा होता है, अथवा पूरा होता है भी या नहीं। उनसे हड़पी गई रकम उन्हें वापस मिलती है या इसी प्रकार भ्रम फैलाकर और गुमराह करके लगातार मूर्ख बनाया जाता है।
देखना यह भी है अब तक शंकर सेठ एंड कंपनी पर आंख बंद करके भरोसा करने वाले क्या इनके नए हथकंडे पर भरोसा करेंगे, और करेंगे तो कब तक? और जूतों में दाल बंटने की जो नौबत अभी अंदर ही अंदर पनप रही है, वह कब और कैसे सामने आएगी।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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