''मुन्नी के बदनाम होने'' या ''शीला के जवान होने'' की चिंता तो बहुतों को सता रही है लेकिन मीडिया जगत के कामशास्त्र बनते जाने की फिक्र किसी को नहीं।
भारत की सुंदर देसी लड़कियों से गरमा-गरम दोस्ती और मजेदार बातें करने के लिए फोन करें- 0096097***** , 004179977****. ( 24 घण्टे ) फ्री मैम्बरशिप। Sobana फ्रेंडशिप नेटवर्क ( रजि.) स्थानीय हाई सोसायटी स्मार्ट यंग स्त्री/पुरुष संग मनचाही मित्रता पाएं केवल 30 मिनट में (ऑल इण्िडया सर्विस)। लाइव चैट 24 घण्टे कॉल नॉउ ******************सच एण्ड सच नम्बर्स। चुलबुली बातें लाइव चैट 24 घण्टे कॉल नॉउ ******************सच एण्ड सच नम्बर्स।
ये उन क्लासीफाइड विज्ञापनों का मजमून है जो देश के अधिकांश मशहूर दैनिक अखबारों में आये दिन छपता रहता है।
रिफ्रेश होगी सेक्स लाइफ, कामसूत्र का पाठ, तस्वीरों में: वाइल्ड सेक्स के तरीके, तस्वीरों में टॉप 10 सेक्स गेम्स, तस्वीरों में सेक्स के 10 फायदे, महिलाओं को कैसे करें आकर्षित, बनायें सेक्स को रोचक और आनंदमय, 20, 30 और 40 की उम्र का सेक्स, यौन शक्ित कैसे बढ़ायें, पुरुषों को नापसंद हैं सात बातें यौन विस्तर में, नये रिश्ते में सेक्स सम्बन्ध के लिए सही समय।
ये कुछ प्रमुख नेट अखबारों के आर्टीकल्स की हेडिंग्स हैं। इनमें वो अखबार भी शामिल हैं जिनकी हार्ड कॉपीज यानी अखबार भी बड़े पैमाने पर छपते हैं। खुद को देश के शीर्ष अखबारों में शुमार करने वाले इन अखबारों के मालिकान व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के चलते तथा अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता के नाम पर अभी और कितना नीचे गिरेंगे, यह बता पाना तो फिलहाल मुश्िकल है लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है समाचार पत्रों को इन्होंने जैसे ''कामशास्त्र'' बनाकर रख दिया है।
आश्चर्य की बात यह है कि कोई सरकारी या गैर सरकारी संस्था इनके इस आचरण पर उंगली नहीं उठा रही जबकि ''मुन्नी के बदनाम होने'' या ''शीला के जवान होने'' की चिंता बहुतों को सता रही है।
नि:संदेह एक दौर था जब अखबारों ने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गयी लड़ाई में अहम् भमिका निभाई और क्रांतिकारियों का सहयोग किया लेकिन आज लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ अपनी बुद्धि, अपने विवेक को व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लिए गिरबी रख चुका है। यह भी कह सकते हैं कि लोकतंत्र जिन चार स्तंभों के बल पर मजबूती से टिका रहता है, उनमें से एक यह गैर सरकारी स्तंभ स्वयं विकलांग हो गया है। भ्रष्टाचार के कारण पहले से जर्जर हो चुके बाकी तीन स्तंभों के बाद पत्रकारिता की इस विकलांगता का यदि समय रहते कारगर इलाज नहीं किया गया तो देश को रसातल में जाने से कोई नहीं रोक पायेगा।
अब सवाल यह पैदा होता है कि यह इलाज करेगा कौन ? जिस तरह नमक से रोटी तो खायी जा सकती है लेकिन नमक से नमक खा पाना नामुमकिन है, उसी तरह आज जबकि सारे तंत्र से सड़ांध फूट रही हो, पूरा सिस्टम बीमार हो तो इलाज होगा भी कैसे। कौन किसका इलाज करेगा और क्यों करेगा।
यहां तो हाल यह है कि सब एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप का अनवरत सिलसिला जारी है। जब कोई यह मानने के लिए ही तैयार नहीं है कि उसकी अपनी व्यवस्था में कोई खामी है तो कौन उन्हें दूर करेगा और कौन करवायेगा।
विधायिका हो या न्यायपालिका, कार्यपालिका हो या पत्रकारिता, सब के सब अनैतिक कार्यों में एक-दूसरे को पीछे छोड़ने पर आमादा हैं।
पत्रकारिता के अनैतिक क्रिया-कलाप बाकी औरों की अपेक्षा इसलिए अहमियत रखते हैं क्योंकि उसे सब पर उंगली उठाने का विशेषाधिकार प्राप्त है। अब अगर यह विशेषाधिकार ही अनैतिक हो जायेगा तो न लोक बचेगा और ना तंत्र।
यूं कहने को ये दौर ही अश्लीलता के नाम लिखा जा सकता है। सिनेमा से लेकर टीवी तक और बेसिक फोन से लेकर मोबाइल फोन तक सभी पर अश्लील चित्रण, अश्लील विज्ञापन तथा अश्लील मैसेज भरे पड़े हैं लेकिन मीडिया जगत की अपनी एक अलग गरिमा है। यह गरिमा ही उसे शेष सारे माध्यमों से इतर विशिष्ट बनाती है लेकिन आज यही गरिमा बड़ी तेजी के साथ गिर रही है। तार-तार हो रही है। वह दिन शायद बहुत दूर नहीं जब अभिभावकों को अपने बच्चों की इस बात के लिए निगरानी करनी पड़े कि कहीं वह अखबार या नेट पेपर तो नहीं पढ़ रहा।
पहले से ही पेड न्यूज़ व स्पेक्ट्रम घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए आम लोगों की नजरों में संदिग्ध बन चुका मीडिया अगर सेक्स के इस गोरखधंधे से खुद को शीघ्र मुक्त नहीं करता तो निश्चित ही यह उसके पतन का मार्ग प्रश्ास्त करेगा। तब न मीडिया हाउसेस की कोई बखत रह जायेगी और ना उनके लिए काम करने वाले पत्रकारों की।
माना कि पत्रकारिता आज एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है और मीडिया हाउसेस के अपने व्यावसायिक हित या कहें कि स्वार्थ उससे जुड़े हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अखबारों तथा नेट अखबारों को समाचार पत्रों की जगह कोकशास्त्र (कामशास्त्र) बना दिया जाए।
भारत की सुंदर देसी लड़कियों से गरमा-गरम दोस्ती और मजेदार बातें करने के लिए फोन करें- 0096097***** , 004179977****. ( 24 घण्टे ) फ्री मैम्बरशिप। Sobana फ्रेंडशिप नेटवर्क ( रजि.) स्थानीय हाई सोसायटी स्मार्ट यंग स्त्री/पुरुष संग मनचाही मित्रता पाएं केवल 30 मिनट में (ऑल इण्िडया सर्विस)। लाइव चैट 24 घण्टे कॉल नॉउ ******************सच एण्ड सच नम्बर्स। चुलबुली बातें लाइव चैट 24 घण्टे कॉल नॉउ ******************सच एण्ड सच नम्बर्स।
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रिफ्रेश होगी सेक्स लाइफ, कामसूत्र का पाठ, तस्वीरों में: वाइल्ड सेक्स के तरीके, तस्वीरों में टॉप 10 सेक्स गेम्स, तस्वीरों में सेक्स के 10 फायदे, महिलाओं को कैसे करें आकर्षित, बनायें सेक्स को रोचक और आनंदमय, 20, 30 और 40 की उम्र का सेक्स, यौन शक्ित कैसे बढ़ायें, पुरुषों को नापसंद हैं सात बातें यौन विस्तर में, नये रिश्ते में सेक्स सम्बन्ध के लिए सही समय।
ये कुछ प्रमुख नेट अखबारों के आर्टीकल्स की हेडिंग्स हैं। इनमें वो अखबार भी शामिल हैं जिनकी हार्ड कॉपीज यानी अखबार भी बड़े पैमाने पर छपते हैं। खुद को देश के शीर्ष अखबारों में शुमार करने वाले इन अखबारों के मालिकान व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के चलते तथा अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता के नाम पर अभी और कितना नीचे गिरेंगे, यह बता पाना तो फिलहाल मुश्िकल है लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है समाचार पत्रों को इन्होंने जैसे ''कामशास्त्र'' बनाकर रख दिया है।
आश्चर्य की बात यह है कि कोई सरकारी या गैर सरकारी संस्था इनके इस आचरण पर उंगली नहीं उठा रही जबकि ''मुन्नी के बदनाम होने'' या ''शीला के जवान होने'' की चिंता बहुतों को सता रही है।
नि:संदेह एक दौर था जब अखबारों ने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गयी लड़ाई में अहम् भमिका निभाई और क्रांतिकारियों का सहयोग किया लेकिन आज लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ अपनी बुद्धि, अपने विवेक को व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लिए गिरबी रख चुका है। यह भी कह सकते हैं कि लोकतंत्र जिन चार स्तंभों के बल पर मजबूती से टिका रहता है, उनमें से एक यह गैर सरकारी स्तंभ स्वयं विकलांग हो गया है। भ्रष्टाचार के कारण पहले से जर्जर हो चुके बाकी तीन स्तंभों के बाद पत्रकारिता की इस विकलांगता का यदि समय रहते कारगर इलाज नहीं किया गया तो देश को रसातल में जाने से कोई नहीं रोक पायेगा।
अब सवाल यह पैदा होता है कि यह इलाज करेगा कौन ? जिस तरह नमक से रोटी तो खायी जा सकती है लेकिन नमक से नमक खा पाना नामुमकिन है, उसी तरह आज जबकि सारे तंत्र से सड़ांध फूट रही हो, पूरा सिस्टम बीमार हो तो इलाज होगा भी कैसे। कौन किसका इलाज करेगा और क्यों करेगा।
यहां तो हाल यह है कि सब एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप का अनवरत सिलसिला जारी है। जब कोई यह मानने के लिए ही तैयार नहीं है कि उसकी अपनी व्यवस्था में कोई खामी है तो कौन उन्हें दूर करेगा और कौन करवायेगा।
विधायिका हो या न्यायपालिका, कार्यपालिका हो या पत्रकारिता, सब के सब अनैतिक कार्यों में एक-दूसरे को पीछे छोड़ने पर आमादा हैं।
पत्रकारिता के अनैतिक क्रिया-कलाप बाकी औरों की अपेक्षा इसलिए अहमियत रखते हैं क्योंकि उसे सब पर उंगली उठाने का विशेषाधिकार प्राप्त है। अब अगर यह विशेषाधिकार ही अनैतिक हो जायेगा तो न लोक बचेगा और ना तंत्र।
यूं कहने को ये दौर ही अश्लीलता के नाम लिखा जा सकता है। सिनेमा से लेकर टीवी तक और बेसिक फोन से लेकर मोबाइल फोन तक सभी पर अश्लील चित्रण, अश्लील विज्ञापन तथा अश्लील मैसेज भरे पड़े हैं लेकिन मीडिया जगत की अपनी एक अलग गरिमा है। यह गरिमा ही उसे शेष सारे माध्यमों से इतर विशिष्ट बनाती है लेकिन आज यही गरिमा बड़ी तेजी के साथ गिर रही है। तार-तार हो रही है। वह दिन शायद बहुत दूर नहीं जब अभिभावकों को अपने बच्चों की इस बात के लिए निगरानी करनी पड़े कि कहीं वह अखबार या नेट पेपर तो नहीं पढ़ रहा।
पहले से ही पेड न्यूज़ व स्पेक्ट्रम घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए आम लोगों की नजरों में संदिग्ध बन चुका मीडिया अगर सेक्स के इस गोरखधंधे से खुद को शीघ्र मुक्त नहीं करता तो निश्चित ही यह उसके पतन का मार्ग प्रश्ास्त करेगा। तब न मीडिया हाउसेस की कोई बखत रह जायेगी और ना उनके लिए काम करने वाले पत्रकारों की।
माना कि पत्रकारिता आज एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है और मीडिया हाउसेस के अपने व्यावसायिक हित या कहें कि स्वार्थ उससे जुड़े हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अखबारों तथा नेट अखबारों को समाचार पत्रों की जगह कोकशास्त्र (कामशास्त्र) बना दिया जाए।
इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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