कहते हैं कि हर चोर तब तक साहूकार है, जब तक कि वह चोरी करते हुए पकड़ा ना जाए। हमारा कानून इस सामाजिक मान्यता से और एक कदम ऊपर की बात करता है। कानून कहता है कि जब तक किसी आरोपी पर दोष सिद्ध न हो, तब तक वह गुनाहगार नहीं माना जा सकता। वह भी तब, जब अपील के रास्ते भी न बचे हों।
समाज की ऐसी मान्यता और लचर कानून व्यवस्था का ही परिणाम है कि आज देश में एक अदद ईमानदार नागरिक तलाशना भूसे के ढेर से सुई तलाशने जैसा दुरूह कार्य है।
मजे की बात यह है कि ईमानदारों का यह टोटा किसी एक क्षेत्र में नहीं है, बल्िक हर क्षेत्र में है। आज देश का कोई क्षेत्र, कोई व्यवस्था ऐसी शेष नहीं है जो भ्रष्टाचार और अनैतिक आचरण से अछूती हो। फिर चाहे वह सरकारी हो या निजी। यहां तक कि धर्म का क्षेत्र भी। वो धर्म जो भारत की मूल भावना है और जिसके कारण तमाम विसंगतियों के बावजूद आज तक यह देश अस्तित्व में है।
इस देश के पुराने धार्मिक व सामाजिक ढांचे में कुछ विशेष गुण थे। अगर ये गुण न होते तो यह देश अब तक कायम न होता। इन गुणों में भारतीय संस्कृति का दार्शनिक आदर्श छिपा था, इंसानी एकता का ताना-बाना भी इसी में विद्यमान था। इसमें धन-दौलत हासिल करने पर नहीं, बल्िक भलाई व सच्चाई पर जोर दिया गया था।
दुर्भाग्य से आज यह सामाजिक व धार्मिक ढांचा बड़ी तेजी के साथ छिन्न-भिन्न हो रहा है। सारी योग्यताओं का मापदण्ड पैसा बन चुका है। यह पैसा किसी भी तरीके से क्यों न कमाया गया हो। धर्म, शिक्षा और संस्कृति का व्यापार किया जा रहा है। अनैतिक व्यापार।
यही कारण है कि भारत के जिन गुणों ने उसे हजारों साल तक कायम रखा, वही गुण आज तथाकथित तरक्की की अंधी दौड़ में गुम हो चुके हैं।
किसी भी किस्म के पापकर्म के लिए धर्म की आड़ हमेशा सबसे बड़ी आड़ रही है क्योंकि धर्म लोगों को विश्वास से भी एक पायदान ऊपर श्रद्धा करना सिखाता है। धर्म की आस्था किसी को भी तर्कशून्य कर देती है। धर्म का संभवत: यही सबसे बड़ा गुण है और यही सबसे बड़ा अवगुण भी।
वृंदावन के तथाकथित भागवताचार्य राजेन्द्र शर्मा द्वारा धर्म की आड़ में अधर्म का जो खेल खेला जा रहा था, उसकी जितनी निंदा की जाए वह कम है लेकिन उनके कुकृत्य ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं।
इन सवालों में सबसे अहम् सवाल तो यह है कि राजेन्द्र शर्मा एक लम्बे समय से इस घिनौने खेल को अंजाम दे रहा था परन्तु इसकी भनक तक किसी को नहीं लगी। आखिर क्यों इसका पता लोगों को तभी लगा जब वह खुद एक चूक कर बैठा ?
वैसे उसे निकट से जानने वालों का कहना है कि वह भागवताचार्य है ही नहीं। उसकी आज तक कहीं कोई भागवत कथा नहीं हुई अलबत्ता गाहेबगाहे उसके विदेश दौरे जरूर हुआ करते थे।
इन लोगों के मुताबिक राजेन्द्र शर्मा सन् 2006 से ब्ल्यू फिल्में बनाने और लड़कियों की सप्लाई करने का काम कर रहा था। राजेन्द्र शर्मा के इस कारनामे से बहुत से लोग वाकिफ भी थे और उन्होंने अपने स्तर से इसकी शिकायतें भी कीं लेकिन किसी ने इन शिकायतों पर गौर नहीं किया।
एक अध्यापक की पुत्री से प्रेम विवाह करने वाले राजेन्द्र शर्मा ने आखिर कैसे वृंदावन जैसी धार्मिक नगरी में सेक्स का इतना बड़ा रैकेट बना लिया और न केवल अपनी पत्नी बल्िक पुत्री व अन्य परिजनों को कैसे इसमें संलिप्त कर लिया। दूसरा अहम् सवाल यही है।
राजेन्द्र शर्मा के इस कुकृत्य की वीडियो क्लिपिंग व फोटोग्राफ्स जिन लोगों ने देखे हैं उनका कहना है कि वह इतने वीभत्स और अप्राकृतिक हैं जिन्हें देखकर घिन आती है।
आश्चर्य की बात यह है कि उन क्िलपिंग्स को देखकर ऐसा लगता है जैसे उसमें लिप्त कोई भी महिला कहीं से न तो शर्मिंदा है और ना किसी दबाव में है। उन्होंने किसी प्रोफेशनल की तरह फोटो खिंचवाये हैं, वीजुअल्स बनवाये हैं।
वृंदावन व मथुरा के अनेक लोगों के पास उपलब्ध इन फोटोग्राफ्स व वीजुअल्स को देखें तो पता लगता है कि राजेन्द्र शर्मा व उसके परिवार ने किस बेशर्मी से एक ओर जहां धर्म व धर्म नगरी वृंदावन को कलंकित किया है वहीं दूसरी ओर देश की संस्कृति पर कुठाराघात किया है।
दरअसल इन फोटोग्राफ्स व वीजुअल्स में जो औरतें हैं और जिन्हें राजेन्द्र की पत्नी, बेटी तथा अन्य परिजन बताया जा रहा है, उन्होंने अपने माथे पर चंदन लगा रखा है। हाथ-पैरों में मेंहदी लगाई हुई है और शरीर के दूसरे भागों पर टैटू गुदवाये हुए हैं।
इन वीजुअल्स व फोटोग्राफ्स को कुछ इस तरह तैयार किया गया है जैसे अपने धंधे में कोई एक्सपर्ट व्यापारी अपने प्रोडक्ट का सेंपल पूरे पेशेवर अंदाज में पेश करता है।
राजेन्द्र शर्मा का तौर-तरीका यह स्पष्ट जाहिर कराता है कि उसके इस गोरखधंधे में कई अन्य सफेदपोश अवश्य शामिल हैं और उनकी पहुंच विदेशों तक है।
राजेन्द्र शर्मा का ताल्लुक मथुरा में भी एक ऐसे परिवार से है जो कई दशकों से धर्म की दुकान चला रहा है। धर्म के इन दुकानदारों की गतिविधियां भी संदिग्ध हैं और उन पर कई बार उंगलियां उठी हैं लेकिन पैसे की चमक तथा धर्म की आड़ ने हर बार उन्हें साफ बच निकलने का रास्ता मुहैया करा दिया है।
पुलिस की इस पूरे प्रकरण में अब तक जो भूमिका रही है वह वैसी ही है जिसके लिए पुलिस और विशेषकर मथुरा पुलिस पहचानी जाती है। नवागत एसएसपी भानु भास्कर से लोगों को बेशक बहुत उम्मीदें हैं और उनकी छवि भी आम आईपीएस
कथित भागवताचार्य राजेन्द्र शर्मा के खिलाफ क्या कानूनी कार्यवाही अमल में लायी जाती है और इस पूरे प्रकरण में लिप्त मेल व फीमेल को किस तरह कठघरे में खड़ा किया जाता है, इस सबसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि धर्म की आड़ में विभिन्न स्तरों पर चल रहे ऐसे तमाम धंधों व उन्हें अंजाम देने वाले सफेदपोशों का पता लगाया जाता है या नहीं।
यह निश्चित है कि मथुरा-वृंदावन और जिले के अन्य धार्मिक स्थानों में राजेन्द्र शर्मा अकेला ऐसा कथित धार्मिक व्यक्ित नहीं है जो इस तरह के घृणित कृत्य में संलिप्त है। कड़वा सच यह है कि कृष्ण की जन्मस्थली व क्रीड़ा स्थली का गौरव प्राप्त और राधा-कृष्ण की पावन लीलाओं का गवाह यह ब्रज आज ऐसे बहुत से पाखंडियों से भरा पड़ा है जो ब्रज, ब्रजभूमि, धर्म, संस्कृति तथा देश को अपने कुकृत्यों से कलंकित कर रहे हैं। राजेन्द्र शर्मा की एक चूक ने मौका दिया है कि पुलिस ही नहीं समाज भी ऐसे तत्वों को चिन्हित कर उन्हें बेनकाब करे ताकि फिर किसी राजेन्द्र शर्मा की इतनी हिमाकत न हो।
राजेन्द्र शर्मा के कुकृत्य तो काफी हद तक सामने आ चुके हैं लेकिन अभी कई ऐसे तत्व मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन व बरसाना आदि में मान-सम्मान, पद व पैसा प्राप्त करके बैठे हैं जो ठीक इसी प्रकार अपने घर की बहू-बेटियों को निजी स्वार्थों की पूर्ति का माध्यम बनाये हुए हैं। लोग इन्हें भी जानते हैं और इनके कारनामों को जानते हैं परन्तु उनकी ऊंची राजनीतिक व प्रशासनिक पहुंच को देखकर चुप रहने पर मजबूर हैं।
राजेन्द्र शर्मा को भी अगर और थोड़ा समय मिल जाता तो वह कुछ समय बाद संभवत: उसी श्रेणी में खड़ा होता जिस श्रेणी में आज उसके 'आदर्श' पहुंच चुके हैं।
अगर राजेन्द्र शर्मा जैसे धर्म के धंधेबाजों को रोकना है एवं कृष्ण की पावन जन्मस्थली-क्रीड़ा स्थली सहित देश के धर्म व संस्कृति को पूरी तरह नष्ट व भ्रष्ट होने से बचाना है तो धर्म के ऐसे सभी धंधेबाजों को चिन्हित कर उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्यवाही करनी होगी अन्यथा कोई न कोई राजेन्द्र शर्मा कभी न कभी सामने आता रहेगा और इसी प्रकार हम समाज व कानून की प्रचलित मान्यताओं को दोहराते रहेंगे कि जब तक कोई चोर पकड़ा न जाए, वह साहूकार है तथा जब तक किसी पर आरोप सिद्ध न हो जाए, वह निर्दोष है।
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