getverma ट्विटर पर लिखते हैं- भारत
रत्न के लिए क्लोज़ डोर डील। कोई और नॉमिनेटेड कैंडिडेट सोनिया गांधी से
नहीं मिला। क्यों सचिन? raghavalakhotia थोड़ा नर्म अंदाज में लिखते हैं,
'सचिन सर, पॉलिटिक्स ज्वाइन मत कीजिये। कम से कम इस सरकार के साथ तो नहीं
ही। ऐसा होगा तो लोगों को UnfollowSachin नहीं करना पड़ेगा।
SaurabhJain2x मजाकिया अंदाज में लिखते हैं, 'क्या सचिन टॉइलेट स्कैम के साथ ट्रेंड कर रहे हैं? अगर वह अपने माथे पर करप्शन का सिंबल चाहते ही हैं, वह यह काम क्रिकेट में रह कर भी कर सकते हैं।'
amartyasarkar ने कहा, 'बैड चॉइस लिटिल मास्टर! वे तुम्हें भारत रत्न देने पर बहस कर रहे थे और पॉप्युलिस्ट रीजन से तुम्हें एमपी बना रहे हैं।'
SwarupKS का कहना है, 'सचिन को एक बात साफ कर देनी चाहिए कि वह करप्ट कांग्रेस का साथ देंगे या अन्ना का? वह जनलोकपाल के पक्ष में वोट करेंगे या विपक्ष में?'
SwapniLMalhotrA कहते हैं, सचिन के राजनीति में आने की बात बहुत से लोगों को पसंद नहीं आई। इसका सबूत UnfollowSachin ट्रेंड है। क्रिकेट बेहतर खेल है तेंड्या।
इसी बात को थोड़ा अलग अंदाज में रोहन सिंह ने लिखा है- देखते हैं भगवान का भी क्या हाल होता है, अगर वह कांग्रेस से जुड़ते हैं।
raja__saheb ने ट्वीट किया है- 'सचिन ने गर्मियों से पहले सेंचुरी क्यों बनाई...? ताकि वह इसे कोकाकोला को बेच सकें।'
pinkyp18 ने लिखा है- 'सचिन ने उन सॉफ्ट ड्रिंक्स कंपनियों से अपने कॉन्ट्रैक्ट खत्म नहीं किए, जो किसानों और गांव वालों का पानी चुराती हैं।'
मनोज श्रीवास्तव ने अपने ब्लॉग में लिखा है- अब देश में योग्य लोगों का अकाल तो पड़ नहीं गया, कि तुरत-फुरत से सचिन को राज्य सभा का सदस्य बनाये बगैर काम नहीं चलता, अरे भई उनके सन्यास लेने तक की प्रतीक्षा भी कर सकते थे, और यदि 100 शतक व्यक्ति को इतनी ही अधिक राजनीतिक योग्यता प्रदान करता है, तो फिर उनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाना चाहिए था, मुझे यकीन है कि इस मसले पर आम-सहमति बनाने में राजनीतिक दलों को तनिक भी माथापच्ची नहीं करनी पड़ती।
एक अन्य ब्लॉगर शिवराम गोपाल वैद्य ने लिखा है- सचिन ने एक भ्रष्ट "पंजे" की एक जख्मी उंगली पकड़कर राजनीति में कदम रखा है।
सचिन ने कॉंग्रेस जैसी भ्रष्ट पार्टी का सपोर्ट लेकर राजनीती में कदम रखा है। राजनीति की कांग्रेसी दलदल में सचिन का यह पैर उसे बहुत चीजें सिखा जायेगा! आने वाला वक्त ही बताएगा की सचिन का फैसला कितना गलत है, उसने अपना करिअर दांव पर लगा दिया है भ्रष्ट कांग्रेसियों का साथ देकर, उससे यह उम्मीद कभी नहीं थी !! सचिन, ये क्या किया तुमने?
एक फ्रीलांसर प्रकाश चन्द्र गुप्ता का कहना है- सचिन के लिए राज्यसभा सांसद नॉमिनेशन होना और उनका उसे स्वीकार कर लेना काफ़ी चौंका देने वाला मामला था हमारी नज़र में. सचिन से हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी क्योंकि एक वास्तविक खिलाड़ी के लिए ये कोई गरिमापूर्ण व स्वस्थ सम्मान नहीं हो सकता.
इससे बड़े सम्मान उन्हें मिल चुके थे और बहुत कुछ हो सकता था. भारत रत्न सम्मान कहीं ज़्यादा उपयुक्त होता.. हो सकता है कुछ तकनीकी कारणों से भारत रत्न सम्मान संभव ना हो पा रहा हो और क्रिकेट से सन्यास लेने से पहले एक सरकारी ओहदा अथवा मुकाम हासिल करना मजबूरी बन गया हो. उन्होंने अपने फेन्स से भी तो सलाह ली होगी. सचिन सभी बड़े से बड़े सम्मान के हकदार हैं परंतु राजनैतिक सम्मान के हरगिज़ नहीं. सचिन को दोबारा गौर करना चाहिए.
केन्द्र सरकार के मंत्री चाहे सोशल नेटवर्क के बारे में जो भी राय रखते हों और सरकार बेशक वेब मीडिया को घेरने के उपायों पर माथापच्ची कर रही हो लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह माध्यम जितने सशक्त हो चुके हैं, उतने दूसरे नहीं रहे। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया काफी हद तक बिकाऊ हो चुका है लिहाजा उसकी राय पूरी तरह ईमानदारीपूर्ण नहीं होती। सरकार और सरकारी नुमाइंदे तक इस सच्चाई को जान चुके हैं और इसीलिए उनके अंदर सोशल नेटवर्किंग साइट्स व वेब मीडिया को लेकर एक किस्म का भय व्याप्त है। ताजा उदाहरण अभिषेक मनु सिंघवी के सेक्स वीडियो का है जिसे लेकर कोर्ट द्वारा दिये गये आदेश भी बेमानी साबित हुए।
दरअसल सोशल नेटवर्किंग साइट्स और वेब मीडिया की सबसे बड़ी शक्ित यह है कि वह विश्वप्यापी हैं। इन्हें कोई एक देश अपने यहां के नियम-कानून में बांध नहीं सकता। यही कारण है कि कोर्ट द्वारा सिंघवी की सेक्स सीडी के प्रकाशन व प्रसारण पर रोक लगाये जाने के बावजूद उस पर रोक नहीं लग पाई।
यूं भी शासन की व्यवस्था चाहे जो हो पर जनभावनाओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता और जनभावनाओं के लिए अभिव्यक्ित का सर्वाधिक सशक्त माध्यम कोई यदि है तो वह सोशल नेटवर्किंग ही है। अन्ना हजारे के आंदोलन को पहले दौर में मिली सफलता इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
सचिन तेंदुलकर को भगवान का दर्जा देने वाले लोग आज अगर उनके राज्यसभा सदस्य बनने या यूं कहें कि कांग्रेस से ''ऑब्लाइज'' होने की बेताबी पर नाराज हो रहें हैं तो उनकी नाराजगी को खारिज करना आत्मघाती साबित हो सकता है।
रहा सवाल राष्ट्रपति द्वारा तुरंत सचिन के नाम पर अनुमोदन की मोहर लगा देने का तो उसके लिए भी ''थ्री इडियेट्स'' फेम चेतन भगत का ट्वीट गौरतलब है।
23 अप्रैल के अपने ट्वीट में चेतन भगत ने लिखा है- प्रेजिडेंट के बदले अगर आप एक खिलौना भी बैठा दें तो वास्तविकता में इससे देश को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बल्कि हम इससे कुछ खर्चे ही बचाएंगे।
यही है तल्ख सच्चाई क्योंकि जिस राष्ट्रपति की विदेश यात्राओं पर 200 करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च की जाती है, वह वास्तव में केन्द्र सरकार की रबर स्टाम्प से अधिक कुछ नहीं है। केन्द्र सरकार के न चाहने की वजह से महामहिम के यहां कुख्यात आतंकियों की फांसी का मामला वर्ष दर वर्ष पेंडिंग पड़ा रहता है और उसके एक इशारे पर चंद घण्टों में सचिन व रेखा को राज्यसभा के लिए मनोनीत करने की स्वीकृति दे दी जाती है। क्या है यह ?
जनता सब जानती है और इसीलिए क्रिकेट के भगवान की भी लालची प्रवृत्ति पर कटाक्ष करने से नहीं चूकती। जनता यह भी जानती है कि कल तक बाबा रामदेव को योगासन की जगह राजनीति न सिखाने, अन्ना हजारे को चुनाव लड़ने की चुनौती देने व श्रीश्री रविशंकर को अपना काम ही करने की नसीहत देने वाली कांग्रेस ने अचानक सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी को राजनीति का मोहरा क्यों व किस मकसद से बनाया है।
जनता की भावना को बहुत दिनों तक ''नक्कारखाने में तूती की आवाज'' बनाकर दबाया नहीं जा सकता। सचिन हों या सरकार, जितनी जल्दी इस बात को समझ लें अच्छा है अन्यथा अंजाम तो भुगतना ही होगा।
SaurabhJain2x मजाकिया अंदाज में लिखते हैं, 'क्या सचिन टॉइलेट स्कैम के साथ ट्रेंड कर रहे हैं? अगर वह अपने माथे पर करप्शन का सिंबल चाहते ही हैं, वह यह काम क्रिकेट में रह कर भी कर सकते हैं।'
amartyasarkar ने कहा, 'बैड चॉइस लिटिल मास्टर! वे तुम्हें भारत रत्न देने पर बहस कर रहे थे और पॉप्युलिस्ट रीजन से तुम्हें एमपी बना रहे हैं।'
SwarupKS का कहना है, 'सचिन को एक बात साफ कर देनी चाहिए कि वह करप्ट कांग्रेस का साथ देंगे या अन्ना का? वह जनलोकपाल के पक्ष में वोट करेंगे या विपक्ष में?'
SwapniLMalhotrA कहते हैं, सचिन के राजनीति में आने की बात बहुत से लोगों को पसंद नहीं आई। इसका सबूत UnfollowSachin ट्रेंड है। क्रिकेट बेहतर खेल है तेंड्या।
इसी बात को थोड़ा अलग अंदाज में रोहन सिंह ने लिखा है- देखते हैं भगवान का भी क्या हाल होता है, अगर वह कांग्रेस से जुड़ते हैं।
raja__saheb ने ट्वीट किया है- 'सचिन ने गर्मियों से पहले सेंचुरी क्यों बनाई...? ताकि वह इसे कोकाकोला को बेच सकें।'
pinkyp18 ने लिखा है- 'सचिन ने उन सॉफ्ट ड्रिंक्स कंपनियों से अपने कॉन्ट्रैक्ट खत्म नहीं किए, जो किसानों और गांव वालों का पानी चुराती हैं।'
मनोज श्रीवास्तव ने अपने ब्लॉग में लिखा है- अब देश में योग्य लोगों का अकाल तो पड़ नहीं गया, कि तुरत-फुरत से सचिन को राज्य सभा का सदस्य बनाये बगैर काम नहीं चलता, अरे भई उनके सन्यास लेने तक की प्रतीक्षा भी कर सकते थे, और यदि 100 शतक व्यक्ति को इतनी ही अधिक राजनीतिक योग्यता प्रदान करता है, तो फिर उनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाना चाहिए था, मुझे यकीन है कि इस मसले पर आम-सहमति बनाने में राजनीतिक दलों को तनिक भी माथापच्ची नहीं करनी पड़ती।
एक अन्य ब्लॉगर शिवराम गोपाल वैद्य ने लिखा है- सचिन ने एक भ्रष्ट "पंजे" की एक जख्मी उंगली पकड़कर राजनीति में कदम रखा है।
सचिन ने कॉंग्रेस जैसी भ्रष्ट पार्टी का सपोर्ट लेकर राजनीती में कदम रखा है। राजनीति की कांग्रेसी दलदल में सचिन का यह पैर उसे बहुत चीजें सिखा जायेगा! आने वाला वक्त ही बताएगा की सचिन का फैसला कितना गलत है, उसने अपना करिअर दांव पर लगा दिया है भ्रष्ट कांग्रेसियों का साथ देकर, उससे यह उम्मीद कभी नहीं थी !! सचिन, ये क्या किया तुमने?
एक फ्रीलांसर प्रकाश चन्द्र गुप्ता का कहना है- सचिन के लिए राज्यसभा सांसद नॉमिनेशन होना और उनका उसे स्वीकार कर लेना काफ़ी चौंका देने वाला मामला था हमारी नज़र में. सचिन से हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी क्योंकि एक वास्तविक खिलाड़ी के लिए ये कोई गरिमापूर्ण व स्वस्थ सम्मान नहीं हो सकता.
इससे बड़े सम्मान उन्हें मिल चुके थे और बहुत कुछ हो सकता था. भारत रत्न सम्मान कहीं ज़्यादा उपयुक्त होता.. हो सकता है कुछ तकनीकी कारणों से भारत रत्न सम्मान संभव ना हो पा रहा हो और क्रिकेट से सन्यास लेने से पहले एक सरकारी ओहदा अथवा मुकाम हासिल करना मजबूरी बन गया हो. उन्होंने अपने फेन्स से भी तो सलाह ली होगी. सचिन सभी बड़े से बड़े सम्मान के हकदार हैं परंतु राजनैतिक सम्मान के हरगिज़ नहीं. सचिन को दोबारा गौर करना चाहिए.
केन्द्र सरकार के मंत्री चाहे सोशल नेटवर्क के बारे में जो भी राय रखते हों और सरकार बेशक वेब मीडिया को घेरने के उपायों पर माथापच्ची कर रही हो लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह माध्यम जितने सशक्त हो चुके हैं, उतने दूसरे नहीं रहे। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया काफी हद तक बिकाऊ हो चुका है लिहाजा उसकी राय पूरी तरह ईमानदारीपूर्ण नहीं होती। सरकार और सरकारी नुमाइंदे तक इस सच्चाई को जान चुके हैं और इसीलिए उनके अंदर सोशल नेटवर्किंग साइट्स व वेब मीडिया को लेकर एक किस्म का भय व्याप्त है। ताजा उदाहरण अभिषेक मनु सिंघवी के सेक्स वीडियो का है जिसे लेकर कोर्ट द्वारा दिये गये आदेश भी बेमानी साबित हुए।
दरअसल सोशल नेटवर्किंग साइट्स और वेब मीडिया की सबसे बड़ी शक्ित यह है कि वह विश्वप्यापी हैं। इन्हें कोई एक देश अपने यहां के नियम-कानून में बांध नहीं सकता। यही कारण है कि कोर्ट द्वारा सिंघवी की सेक्स सीडी के प्रकाशन व प्रसारण पर रोक लगाये जाने के बावजूद उस पर रोक नहीं लग पाई।
यूं भी शासन की व्यवस्था चाहे जो हो पर जनभावनाओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता और जनभावनाओं के लिए अभिव्यक्ित का सर्वाधिक सशक्त माध्यम कोई यदि है तो वह सोशल नेटवर्किंग ही है। अन्ना हजारे के आंदोलन को पहले दौर में मिली सफलता इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
सचिन तेंदुलकर को भगवान का दर्जा देने वाले लोग आज अगर उनके राज्यसभा सदस्य बनने या यूं कहें कि कांग्रेस से ''ऑब्लाइज'' होने की बेताबी पर नाराज हो रहें हैं तो उनकी नाराजगी को खारिज करना आत्मघाती साबित हो सकता है।
रहा सवाल राष्ट्रपति द्वारा तुरंत सचिन के नाम पर अनुमोदन की मोहर लगा देने का तो उसके लिए भी ''थ्री इडियेट्स'' फेम चेतन भगत का ट्वीट गौरतलब है।
23 अप्रैल के अपने ट्वीट में चेतन भगत ने लिखा है- प्रेजिडेंट के बदले अगर आप एक खिलौना भी बैठा दें तो वास्तविकता में इससे देश को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बल्कि हम इससे कुछ खर्चे ही बचाएंगे।
यही है तल्ख सच्चाई क्योंकि जिस राष्ट्रपति की विदेश यात्राओं पर 200 करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च की जाती है, वह वास्तव में केन्द्र सरकार की रबर स्टाम्प से अधिक कुछ नहीं है। केन्द्र सरकार के न चाहने की वजह से महामहिम के यहां कुख्यात आतंकियों की फांसी का मामला वर्ष दर वर्ष पेंडिंग पड़ा रहता है और उसके एक इशारे पर चंद घण्टों में सचिन व रेखा को राज्यसभा के लिए मनोनीत करने की स्वीकृति दे दी जाती है। क्या है यह ?
जनता सब जानती है और इसीलिए क्रिकेट के भगवान की भी लालची प्रवृत्ति पर कटाक्ष करने से नहीं चूकती। जनता यह भी जानती है कि कल तक बाबा रामदेव को योगासन की जगह राजनीति न सिखाने, अन्ना हजारे को चुनाव लड़ने की चुनौती देने व श्रीश्री रविशंकर को अपना काम ही करने की नसीहत देने वाली कांग्रेस ने अचानक सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी को राजनीति का मोहरा क्यों व किस मकसद से बनाया है।
जनता की भावना को बहुत दिनों तक ''नक्कारखाने में तूती की आवाज'' बनाकर दबाया नहीं जा सकता। सचिन हों या सरकार, जितनी जल्दी इस बात को समझ लें अच्छा है अन्यथा अंजाम तो भुगतना ही होगा।
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