रविवार, 9 सितंबर 2012

वाह री कांग्रेसी सोच....फिर तो पति मालिक और पत्‍नी नौकरानी

पत्नी को हर माह पति के वेतन में से एक हिस्सा देने के प्रस्तावित कानून के खिलाफ पुरुष संगठन सामने आ गए हैं। 'सेव फैमिली फाउंडेशन' ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ को पत्र लिखकर नए प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की है। विभिन्न राज्यों के लगभग 40 पुरुष संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले फाउंडेशन ने इस प्रस्ताव को एकतरफा करार दिया है।
संगठन ने इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी हस्तक्षेप करने की अपील की है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार बहुत जल्द एक ऐसा कानून लाने पर विचार कर रही है जिसके लागू होने के बाद हर पति के लिए अपनी पत्नी को प्रतिमाह एक तय वेतन देना अनिवार्य होगा।
प्रस्ताव का विरोध करते हुए फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य स्वरूप सरकार ने कहा, 'सरकार को जेंडर न्यूट्रल कानूनों को तरजीह देना चाहिए। ऐसा कोई कानून नहीं बनाना चाहिए जिससे समाज में विरोध पैदा हो।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय सिर्फ महिलाओं के हित की बात करते हुए प्रतिमाह वेतन की वकालत कर रहा है। लेकिन सरकार में कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि पुरुष अपनी पूरी तनख्वाह पत्नी को ही देता है।' स्वरूप सरकार ने आगे बताया कि उनके संगठन ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ को पत्र लिखकर नए प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की है।
..तो बर्खास्त करने का भी हो अधिकार
बेंगलुरू स्थित कॉन्फीडर रिसर्च में जेंडर स्टडीज विभाग के प्रमुख वीराज धूलिया का कहना है कि अगर केंद्र सरकार, पत्नियों को मासिक वेतन देने का कानून बनाती है तो फिर घर में ऑफिस की सभी शर्तें भी लागू होनी चाहिए। मसलन, पति घर में होने वाले सभी घरेलू काम की समीक्षा भी करे। अच्छे और बुरे काम के हिसाब से तनख्वाह में कटौती करे और अगर पत्नी सही काम नहीं करे तो उसे बर्खास्त भी कर सके। इसके अलावा मसौदे में यह जिक्र भी किया जाए कि पति अपनी पत्नी को कपड़े, घूमने-फिरने और सौंदर्य-प्रसाधन जैसे अन्य खर्च के लिए राशि देने को बाध्य नहीं होगा। 
महिलाएं भी चाहती हैं बदलाव
महिला अधिकारों पर काम करने वाली सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील बृंदा ग्रोवर का कहना है कि केंद्र सरकार को नए प्रस्ताव में पत्नी को वेतन की बजाए संपत्ति पर बराबर का अधिकार दिलवाने का कानून बनाना चाहिए। तनख्वाह दिलवाने का प्रस्ताव बेहतर सुनाई दे रहा है, लेकिन इससे पति के मालिक और पत्नी के नौकरानी होने जैसा भी अहसास होता है। महिला सशक्तीकरण पर काम करने वाली लेखिका सादिया देहलवी का कहना है कि सरकार पति को पत्नी के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट या पॉलिसी जैसे तरीकों से भी हिस्सेदारी दे तो महिलाओं को ज्यादा सामाजिक सुरक्षा मिल पाएगी।

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