यम द्वितिया पर लीजेण्ड न्यूज़ विशेष
आज यमद्वितिया है। यम के फंदे से मुक्ति का दिन। कहते हैं कि आज के दिन मथुरा में विश्राम घाट पर जो भाई-बहिन हाथ पकड़कर यमुना में स्नान करते हैं, उन्हें यम के फंदे से मुक्ति मिल जाती है। इसी मान्यता के चलते भाई दूज यानि यमद्वितिया पर लाखों लोग मथुरा में यमुना स्नान करने आते हैं। मथुरा में यमुनाजी और धर्मराज का एकसाथ संभवत: अकेला मंदिर भी है।
यूं भी देश की पतित पावनी नदियों में यमुना का भी नाम शुमार किया जाता है। कृष्ण की पटरानी कहलाने वाली यमुना अब तक कितने पतितों को पावन कर चुकी होगी, इसका तो पता नहीं, पर इतना जरूर पता है कि आज पतितों ने यमुना को इस कदर मैला कर दिया है कि हजारों करोड़ रुपये खर्च किये जाने के बावजूद वह पावन नहीं हो पायी। सच तो यह है कि अब वह एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है।
दरअसल यमुना एक्शन प्लान के नाम पर खर्च किये गये हजारों करोड़ रुपये उन पतितों की तिजोरियों में जा पहुंचे जिन्हें यमुना को पावन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
यमुना व गंगा जैसी तमाम नदियां न सिर्फ देश की संस्कृति बल्कि लोगों के जीवन तथा प्रकृति के संतुलन के लिए अत्यंत जरूरी हैं परंतु दुर्भाग्य से जीवन दायिनी नदियों को वही लोग समाप्त करने पर आमादा हैं जिनका अपना जीवन भी नदियों के बिना बच पाना संभव नहीं।
आज जबकि यमुना बेहद प्रदूषित हो चुकी है, तब भी उससे कुछ पाने की चाह में लाखों लोग समय-समय पर मथुरा आते रहते हैं लेकिन हजारों क्या सैंकड़ों भी उसे प्रदूषण मुक्त कराने की बात तक नहीं सोचते।
यही कारण है कि पतित पावनी यमुना, जीवन दायिनी यमुना आज अपने पावन होने और अपने अस्तित्व को बचाये रखने को तरस रही है। उसका अपना जीवन पूरी तरह संकट में है।
दुर्भाग्य से इन हालातों के बाद भी लोग उसे प्रदूषण मुक्त कराने या उसका अस्तित्व बचाये रखने के वो प्रयास करते दिखाई नहीं दे रहे जिनकी अत्यंत आवश्यकता है।
यही कारण है कि यम के फांस से लोगों को मुक्ति दिलाने वाली यमुना खुद अपने भाई यम के फांस में फंसी हुई है।
यदि वास्तव में यमुना के प्रति हमारे मन में कोई श्रद्धा है, यदि सही मायनों में हम धार्मिक हैं तो यमुना स्नान के साथ एक संकल्प इस आशय का भी लें कि अगले साल यमद्वितिया तक यदि हम यमुना को प्रदूषण से मुक्ति नहीं दिला पाये तो इसमें अपने तन व मन की गंदगी धोने नहीं आयेंगे और यम की फांस से मुक्ति पाने की चाहत भी नहीं रखेंगे।
आज यमद्वितिया है। यम के फंदे से मुक्ति का दिन। कहते हैं कि आज के दिन मथुरा में विश्राम घाट पर जो भाई-बहिन हाथ पकड़कर यमुना में स्नान करते हैं, उन्हें यम के फंदे से मुक्ति मिल जाती है। इसी मान्यता के चलते भाई दूज यानि यमद्वितिया पर लाखों लोग मथुरा में यमुना स्नान करने आते हैं। मथुरा में यमुनाजी और धर्मराज का एकसाथ संभवत: अकेला मंदिर भी है।
यूं भी देश की पतित पावनी नदियों में यमुना का भी नाम शुमार किया जाता है। कृष्ण की पटरानी कहलाने वाली यमुना अब तक कितने पतितों को पावन कर चुकी होगी, इसका तो पता नहीं, पर इतना जरूर पता है कि आज पतितों ने यमुना को इस कदर मैला कर दिया है कि हजारों करोड़ रुपये खर्च किये जाने के बावजूद वह पावन नहीं हो पायी। सच तो यह है कि अब वह एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है।
दरअसल यमुना एक्शन प्लान के नाम पर खर्च किये गये हजारों करोड़ रुपये उन पतितों की तिजोरियों में जा पहुंचे जिन्हें यमुना को पावन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
यमुना व गंगा जैसी तमाम नदियां न सिर्फ देश की संस्कृति बल्कि लोगों के जीवन तथा प्रकृति के संतुलन के लिए अत्यंत जरूरी हैं परंतु दुर्भाग्य से जीवन दायिनी नदियों को वही लोग समाप्त करने पर आमादा हैं जिनका अपना जीवन भी नदियों के बिना बच पाना संभव नहीं।
आज जबकि यमुना बेहद प्रदूषित हो चुकी है, तब भी उससे कुछ पाने की चाह में लाखों लोग समय-समय पर मथुरा आते रहते हैं लेकिन हजारों क्या सैंकड़ों भी उसे प्रदूषण मुक्त कराने की बात तक नहीं सोचते।
यही कारण है कि पतित पावनी यमुना, जीवन दायिनी यमुना आज अपने पावन होने और अपने अस्तित्व को बचाये रखने को तरस रही है। उसका अपना जीवन पूरी तरह संकट में है।
दुर्भाग्य से इन हालातों के बाद भी लोग उसे प्रदूषण मुक्त कराने या उसका अस्तित्व बचाये रखने के वो प्रयास करते दिखाई नहीं दे रहे जिनकी अत्यंत आवश्यकता है।
यही कारण है कि यम के फांस से लोगों को मुक्ति दिलाने वाली यमुना खुद अपने भाई यम के फांस में फंसी हुई है।
यदि वास्तव में यमुना के प्रति हमारे मन में कोई श्रद्धा है, यदि सही मायनों में हम धार्मिक हैं तो यमुना स्नान के साथ एक संकल्प इस आशय का भी लें कि अगले साल यमद्वितिया तक यदि हम यमुना को प्रदूषण से मुक्ति नहीं दिला पाये तो इसमें अपने तन व मन की गंदगी धोने नहीं आयेंगे और यम की फांस से मुक्ति पाने की चाहत भी नहीं रखेंगे।
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