गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

ब्रज के तीन अभागे संत !

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली, ब्रजभूमि तथा ब्रजवासियों के लिए कार्ष्‍णि गुरू शरणानंद, साध्‍वी ऋतंभरा और कृपालु महाराज जैसे धर्मगुरू क्‍या अब एक बोझ बन गये हैं ?
इन साधुवेशधारी तथाकथित धर्मगुरूओं द्वारा बड़े-बड़े मठ, मंदिर एवं आश्रमों के जरिये ब्रजभूमि में वास करके क्‍या सिर्फ और सिर्फ अपनी दुकानें चलाई जा रही हैं ?
कृष्‍ण की पटरानी कहलाने वाली यमुना के अस्‍तित्‍व पर ही ब्रजमण्‍डल में गहरा प्रश्‍नचिन्‍ह अंकित हो जाने के बावजूद यमुना को लेकर शुरू किये गये आंदोलन से गुरू शरणानंद, ऋतंभरा और कृपालु की उदासीनता क्‍या यही दर्शाती है ?
दरअसल अलग-अलग किस्‍म के इन तीनों मठाधीशों पर सवालिया निशान लगने की वजह यमुना रक्षक दल के बैनर तले 01 मार्च से शुरू हो रहा वह आंदोलन है जिसका शंखनाद मानमंदिर बरसाना के संत रमेश बाबा के शिष्‍य संत जयकृष्‍णदास द्वारा किया गया था और जिसमें शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग मथुरा आ चुके हैं पर मथुरा के ये मठाधीश चुप्‍पी साधे बैठे हैं।
गुरू शरणानंद, ऋतंभरा और कृपालु की यमुना के मामले में उदासीनता पर यमुना रक्षक दल के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष संत जयकृष्‍ण दास एवं उपाध्‍यक्ष एडवोकेट राकेश यादव का कहना है कि हर तरह का सामर्थ्‍य रखने वाले इन मठाधीशों ने अपने आचरण से हर वर्ग के लोगों को दुख पहुंचाया है।
उन्‍होंने कहा कि इन तीनों के अलावा भी ब्रज में वास करने वाले तमाम साधु-साध्‍वी, संत-महंत, धर्माचार्य- भागवताचार्य और कृष्‍ण व यमुना के नाम का खाने-कमाने वालों ने यमुना आंदोलन से जुड़े लोगों तथा ब्रजवासियों को निराश किया है।
संत जयकृष्‍ण दास और राकेश यादव ने बताया कि मोरारी बापू, आसाराम बापू तथा कुमार स्‍वामी जैसे उन नामी संतों ने तो यमुना आंदोलन में अपने अनुयायियों की सहभागिता सुनिश्‍चित की है जिनका मथुरा से कोई सीधा संबंध नहीं है लेकिन जिनकी पहचान मथुरा से ही है, उनका इस आंदोलन से जुड़ना आश्‍चर्य प्रकट कराता है।
राकेश यादव ने बताया कि इन मठाधीशों के विपरीत जयगुरूदेव के उत्‍तराधिकारी पंकज बाबा द्वारा यमुना मुक्‍ति के लिए शुरू किये गये इस आंदोलन में हर प्रकार का सहयोग किया जा रहा है।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि गुरू शरणानंद, ऋतंभरा, कृपालु महाराज और पंकज बाबा से मथुरा तथा ब्रजभूमि का क्‍या ताल्‍लुक है और क्‍यों लोग यमुना आंदोलन को लेकर इनकी गतिविधियों पर गौर कर रहे हैं।
कार्ष्‍णि गुरूशरणानंद उदासीन संप्रदाय की उस गद्दी के उत्‍तराधिकारी हैं जिसका विशाल आश्रम रमणरेती (महावन) में यमुना के किनारे ही स्‍थित है। कृष्‍ण के ही एक रूप 'ठाकुर रमण बिहारी' के उपासक गुरूशरणानंद का कृष्‍ण की पटरानी यमुना की दुर्दशा के खिलाफ खड़े किये गये इस आंदोलन से न जुड़ना एक बड़ी बात तो है ही, साथ ही अफसोस जनक भी है।
इसी प्रकार साध्‍वी ऋतंभरा का मथुरा-वृंदावन मार्ग पर वात्‍सल्‍य ग्राम के नाम से लगभग 40 एकड़ में धार्मिक साम्राज्‍य फैला है और उद्यान विभाग की यह बेशकीमती जमीन उन्‍होंने प्रदेश की तत्‍कालीन भाजपा सरकार से मात्र कुछ रुपयों में 99 साला सालाना पट्टे पर ले रखी है।
मूल रूप से एक पंजाबी किसान परिवार की साध्‍वी ऋतंभरा रामजन्‍मभूमि आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं और अयोध्‍या के विवादास्‍पद ढांचे को ध्‍वस्‍त करने की आरोपी हैं।
वात्‍सल्‍य ग्राम में तमाम धार्मिक व सामाजिक क्रिया-कलापों के संचालन का दावा करने वाली साध्‍वी ऋतंभरा यूं तो देश के कोने-कोने में भागवत कथा के माध्‍यम से श्रीकृष्‍ण का गुणगान करती हैं लेकिन कृष्‍ण की पटरानी यमुना के अस्‍तित्‍व को ब्रज में बचाये रखने के लिए उन्‍होंने आज तक किसी मंच से कभी कुछ नहीं बोला और ना यमुना की मुक्‍ति के लिए शुरू किये गये आंदोलन से कोई वास्‍ता रखा।
इनके अलावा जिला प्रतापगढ़ अंतर्गत कस्‍वा मनगढ़ के मूल निवासी स्‍वयंभू पांचवें जगद्गुरू शंकराचार्य और 'द यूनीवर्सल सोसायटी ऑफ स्‍प्रिचुअल लव' तथा 'द इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ डिवाइन लव' जैसी संस्‍थाओं के संचालक रामकृपालु त्रिपाठी उर्फ कृपालु जी महाराज का मथुरा के वृंदावन एवं बरसाना में बड़ा साम्राज्‍य है।
वृंदावन में हजारों लोगों को एकसाथ बैठाने के लिए पूर्व में बनाया गया प्रेम मंदिर तथा बरसाना में रंगीली महल नामक पांच सितारा सुविधाओं वाले विशाल मंदिर और आश्रम हैं जबकि हाल ही में वृंदावन के छटीकरा मार्ग पर बनवाया गया वह मंदिर है जिसकी लागत करीब 200 करोड़ रुपये बताई जाती है।
वृंदावन के ही छटीकरा मार्ग पर इनके शिष्‍य स्‍वामी प्रकाशानंद के नाम से बनवाया गया विशाल व आलीशान जगद्गुरूधाम है। देशी-विदेशी कीमती संगेमरमर से बने ये मंदिर व आश्रम कृपालु महाराज की अकूत संपत्‍ति तथा विलासितापूर्ण जीवन शैली के गवाह हैं।
उल्‍लेखनीय है कि कभी अपने निकटस्‍थ शिष्‍यों में शुमार और दाहिने हाथ प्रकाशानंद से आज कृपालु महाराज कोई रिश्‍ता स्‍वीकारने को तैयार नहीं क्‍योंकि प्रकाशानंद को टेक्सास (अमेरिका) की एक अदालत (हेज काउन्टी ज्यूरी) ने मार्च 2011 में यौन उत्‍पीड़न का दोषी पाये जाने पर14 साल की सजा सुनाई थी। प्रकाशानंद किसी तरह वहां से भाग निकलने में सफल रहा और आज अमेरिका को उसकी तलाश है। 
यह बात अलग है कि प्रकाशानंद के गुरू कृपालु महाराज इस मामले में भी उसके गुरू हैं और देश-विदेशों में यौन उत्‍पीड़न के आरोप उन पर भी लगातार लगते रहे हैं।
'जयगुरूदेव नाम परमात्‍मा का और सतयुग आयेगा' जैसे जुमलों से मथुरा में ही राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर-2 पर अपना विशाल धार्मिक साम्राज्‍य एवं अपने करोड़ों अनुयायियों के बल पर आधिपत्‍य स्‍थापित करने वाले बाबा जयगुरूदेव के उत्‍तराधिकारी पंकज बाबा ने हालांकि निजी स्‍वार्थों की पूर्ति के लिए यमुना मुक्‍ति आंदोलन से जोड़ा है परंतु ब्रजवासी उनके सहयोग की प्रसंशा कर रहे हैं।
गौरतलब है कि जयगुरूदेव द्वारा विरासत में छोड़ी गई करीब 12 हजार करोड़ रुपयों की संपत्‍ति तथा उसके उत्‍तराधिकार को लेकर पंकज बाबा व दूसरे अनुयायियों का विवाद चल रहा है। पंकज बाबा पूर्व में जयगुरुदेव के ड्राइवर की हैसियत रखते थे। ऐसा माना जाता है कि जयगुरुदेव के उत्‍तराधिकार पर विवाद में उनका यमुना मुक्‍ति आंदोलन से जुड़ना महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उधर एक अन्‍य विवादास्‍पद धर्मगुरू कुमार स्‍वामी ने भी काफी समय पहले ही यमुना मुक्‍ति आंदोलन को न सिर्फ अपना पूर्ण समर्थन घोषित कर दिया था बल्‍कि उसके लिए 1 करोड़ रुपये देने की भी बात कही थी। वो पैसा उन्‍होंने दिया या नहीं, इसकी पुष्‍टि करने वाला कोई नहीं है। अलबत्‍ता अपनी साइट पर तत्‍काल उन्‍होंने इसके लिए आर्थिक सहायता करने की अपील जरूर कर दी थी।
आसाराम बापू का भी यूं तो विवादों से पुराना नाता रहा है लेकिन यमुना मुक्‍ति आंदोलन को सहयोग करके उन्‍होंने ब्रजवासियों के दिल में जगह बनाई है।
साधु-संतों और मठाधीश व धर्माचार्यों की यमुना मुक्‍ति आंदोलन में सक्रियता व निष्‍क्रियता पर यमुना रक्षक दल के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष संत जयकृष्‍ण दास का कहना है कि कोई कितना ही विवादास्‍पद हो, लेकिन यदि वह यमुना की मुक्‍ति के इस यज्ञ में अपनी सहभागिता करता है तो मैं उसे सिर-माथे पर बैठाने को तैयार हूं।
उनका यह भी कहना है कि जिन्‍होंने ब्रज से, ब्रजवासियों से, श्रीकृष्‍ण से तथा  यमुना से अब तक केवल लिया ही लिया है और दिया कुछ भी नहीं, जिनका संपूर्ण धार्मिक साम्राज्‍य कृष्‍ण और यमुना की कृपा एवं ब्रजवासियों के सहयोग से स्‍थापित हुआ है, वही कृष्‍ण की पटरानी यमुना की दुर्दशा पर चुप्‍पी साधे बैठे हैं तो दुख होना स्‍वाभाविक है।
संत जयकृष्‍ण दास ने कहा कि उनके इस कृत्‍य के लिए उन्‍हें ना तो इतिहास माफ करेगा और ना ब्रज व ब्रजवासी।
और रही बात यमुना को हथिनी कुंड से मुक्‍त कराकर ब्रजमंडल तक लाने की, तो उसके लिए अब लाखों लोग उठ खड़े हुए हैं। यमुना तो ब्रज में अपने पुराने स्‍वरूप को पाकर रहेगी। वो अभागे होंगे जो इसका श्रेय पाने से वंचित रहेंगे।

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