बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

ढोंग या सच्चाई ?

लगभग तीस महिलाएँ, पुरुष और बच्चे हाथ हिला-हिलाकर, झूम झूमकर नाच रहे हैं. स्टेज पर एक नौजवान गिटार बजा रहा है और कई लड़के लड़कियाँ एक साथ गा रही हैं.
ये किसी पार्टी का दृश्य नहीं है.

मुंबई के पास अम्बरनाथ में ये एक चर्च का दृश्य है, जहाँ हर महीने के पहले हफ़्ते में अलग- अलग धर्मों के लोग लाइलाज बीमारियों से मुक्ति पाने या ‘चंगाई’ हासिल करने के लिए इकट्ठा होते हैं.
इसके बाद उनमें से ज़्यादातर ईसाई धर्म को अपना लेते हैं.
चर्च के अधिकारियों का फिर भी कहना है कि ये धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि ‘मन परिवर्तन है’.
सभा के बीच में कुछ महिलाएँ और पुरुष स्टेज पर आकर अपने अनुभव बताते हैं और कहते हैं कि चर्च आने के बाद कैसे उन्हें बीमारियों से छुटकारा मिल गया.
वहाँ मौजूद सब लोग इन विवरणों को सुनकर तालियाँ बजाते हैं.
ढोंग या सच्चाई?
गिरजाघर के मुख्य प्रचारक जॉनसन अल्मेडा कहते हैं, "अगर आपने ईसा मसीह पर विश्वास नहीं किया तो बीमारी से मुक्ति प्राप्त नहीं होगी."
धर्म या मन परिवर्तन के बाद आपको इस चर्च का हिस्सा बनना पड़ता है और इसाई दीक्षा के समारोह में भाग लेना पड़ता है.
लेकिन वैज्ञानिक सोच रखने वाले इस पूरी प्रक्रिया को ढोंग मानते हैं. उनके मुताबिक़ बीमारी दूर करने का दावा भी ढोंग है.
इसी सभा में गुजरात के 63 वर्षीय वसंत पटेल भी शामिल हैं. वो कहते हैं कि पिछले साल अहमदाबाद के एक अस्पताल में उनके कैंसर का इलाज चल रहा था.
डाक्टरों ने जवाब दे दिया था, पर मरने से पहले वो अपने परिवार से मिलने अम्बरनाथ आना चाहते थे जहाँ उनकी पत्नी और जवान बेटे और बेटी उनसे कई सालों से अलग रह रहे थे.
वसंत पटेल की पत्नी ने उन्हें अम्बरनाथ के गिरजाघर जाने की सलाह दी और वसंत पटेल मानते हैं कि पहली सभा में ही 'कैंसर जैसा घातक रोग दूर हो गया’.
वसंत पटेल ने हिंदू धर्म छोड़कर इसाई धर्म की शिक्षा ले ली. वो कहते हैं, "जब मैं हीलिंग प्रार्थना सभा में यहाँ आया तो देखा प्रभु सब पर काम कर रहे हैं. मेरे ऊपर भी काम किया और मैं कैंसर से चंगा हो गया."
इसी तरह बौद्ध धर्म को मानने वाली सुलोचना राहुल पवार की दो जुड़वां बेटियां थीं. एक की मौत हो चुकी है.
तब सुलोचना अपनी दूसरी बेटी को लेकर यहाँ आई. उन्होंने कहा, "जब मेरी बेटी गुज़र गई तो डॉक्टर ने कहा कि दूसरी भी नहीं बचेगी क्योंकि इसे भी वही बीमारियाँ होने लगी थीं जिनकी बजह से इसकी बहन की मौत हुई थी."
कई सवाल
इस चर्च की स्थापना 30 साल पहले मुंबई में वडाला मोहल्ले के क्टोवियो नेविस ने की थी. आज इसकी मुंबई, पुणे और इसके आस पास के इलाकों में आठ शाखाएं हैं.
लेकिन कुछ संस्थाएं 'हीलिंग' के ज़रिए लोगों के 'धर्म परिवर्तन' से सावधान रहने की सलाह देती हैं. इंडियन रेशनलिस्ट एसोसिएशन के सनल इदामरुकू कहते हैं फैथ हीलिंग एक ढोंग है और ये धर्म परिवर्तन करने का एक ग़लत तरीका है.
वो कहते हैं, "धर्म परिवर्तन अपने आप में बुरी बात नहीं लेकिन चमत्कार दिखा कर धर्म परिवर्तन सही नहीं है."
मुंबई के ही सनल इदामरुकू चमत्कार या हीलिंग के खिलाफ कई सालों से लड़ रहे हैं. पिछले साल मुंबई के कैथोलिक चर्च की शिकायत के बाद मुंबई पुलिस ने उनके खिलाफ मुक़दमा दायर किया था जिसके बाद से वो देश से बाहर रह रहे हैं.
उनका कहना था कि इसके खिलाफ, "उसी तरह से लड़ना चाहिए जैसे हम किसी संगठित अपराध के खिलाफ लड़ते हैं. ये लोगों को बेवकूफ बनाने का तरीका है.”
कैंसर विशेषज्ञ अभय कुमार मुखर्जी कहते हैं कि इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि इस तरह के चमत्कार से कैंसर का निदान हो सके.
डॉक्टर मुखर्जी कहते है, "जब मर्ज़ बढ़ जाता है और हम जब जवाब दे देते हैं, उस समय मरीज़ को सहारे की ज़रुरत होती है. उस समय लोग भगवान, ईसा मसीहा, अल्लाह का या गुरु नानक की मदद लेते हैं. लोग सोचते हैं कुछ चमत्कार हो जाए, उस सूरत में 'फेथ हीलिंग' आदमी की तकलीफ कम कर देता है."
लेकिन गिरजाघर के ओक्टोवियो नेविस अपने इस तर्क से विचलित नहीं होते. वो कहते हैं, "ये लोग प्रभु यीशु के ख़िलाफ़ भी ऐसा ही कहा कहते थे."
-ज़ुबैर अहमद

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