भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है। इतना बड़ा
नेटवर्क होने के बावजूद रेल दुर्घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पाया है।
औसतन देश में हर साल 300 दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं शामिल हैं। इतनी दुर्घटनाएं होने के बावजूद आजादी के बाद से लेकर आज तक सरकार इन्हें रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है।
यही नहीं, दुर्घटना के वक्त जो भी रेल मंत्री होता है, वह जिम्मेदारी लेने के बजाए दूसरों पर जिम्मेदारी डाल कर पीछे हट जाता है।
हमारे रेल मंत्रियों को लाल बहादुर शास्त्री से सीख लेनी चाहिए।
शास्त्री 13 मई 1952 से लेकर 7 दिसंबर 1956 तक रेल मंत्री थे। उन्होंने सितंबर 1956 को एक रेल दुर्घटना होने पर अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी।
इस दुर्घटना में 112 लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्त प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनका इस्तीफा मंजूर करने से मना कर दिया था।
हालांकि तीन महीने बाद तमिलनाडु के अरियालुर में हुई रेल दुर्घटना (जिसमें144 लोगों की मौत हो गई थी) की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए शास्त्री जी ने पद से इस्तीफा दे दिया।
संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था कि वह इस्तीफा इसलिए मंजूर कर रहे हैं कि ऎसा करने से संवैधानिक शिष्टाचार का उदाहरण पेश होगा, इसलिए नहीं कि इस दुर्घटना के लिए शास्त्री किसी भी तरह से जिम्मेदार हैं।
हमें आज लालबहादुर शास्त्री जैसे रेल मंत्रियों की जरूरत है, जो रेल दुर्घटना होने पर नैतिक जिम्मेदारी ले सकें।
आज की तारीख में संभवत: शास्त्री ही एकमात्र रेलमंत्री ऎसे थे जिन्होंने दो बार दुर्घटना होने पर पद से इस्तीफा दे दिया था।
वहीं, तत्कालीन रेल मंत्री मुकुल रॉय जब 2011 में रेल राज्य मंत्री थे तो उन्होंने असम में हुई रेल दुर्घटना की जगह पर जाने से ही मना कर दिया था। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अस्थाई तौर पर यह मंत्रालय अपने पास रख लिया।
10 जुलाई 2011 को एक ब्लास्ट के बाद रंगिया स्टेशन के पास गुवाहाटी-पुरी एक्सप्रेस के छह डिब्बे पटरी से उतर गए थे जिसमें करीब 100 लोग घायल हो गए थे। दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री ने रेल राज्य मंत्री रॉय, जो उस वक्त पश्चिम बंगाल में ही थे, को दुर्घटना स्थल पर जाने के लिए कहा। लेकिन रॉय ने वहां जाने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि पटिरयां ठीक कर दी गई हैं और उनके वहां जाकर निरीक्षण करने के लिए कुछ नहीं बचा है।
रॉय, जो तृणामूल कांग्रेस से सांसद हैं, प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों से कहा कि पटरियां दुरुस्त कर दी गई हैं, घायलों को अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया है इसलिए उनके वहां जाने का कोई तुक नहीं बनता।
औसतन देश में हर साल 300 दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं शामिल हैं। इतनी दुर्घटनाएं होने के बावजूद आजादी के बाद से लेकर आज तक सरकार इन्हें रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है।
यही नहीं, दुर्घटना के वक्त जो भी रेल मंत्री होता है, वह जिम्मेदारी लेने के बजाए दूसरों पर जिम्मेदारी डाल कर पीछे हट जाता है।
हमारे रेल मंत्रियों को लाल बहादुर शास्त्री से सीख लेनी चाहिए।
शास्त्री 13 मई 1952 से लेकर 7 दिसंबर 1956 तक रेल मंत्री थे। उन्होंने सितंबर 1956 को एक रेल दुर्घटना होने पर अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी।
इस दुर्घटना में 112 लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्त प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनका इस्तीफा मंजूर करने से मना कर दिया था।
हालांकि तीन महीने बाद तमिलनाडु के अरियालुर में हुई रेल दुर्घटना (जिसमें144 लोगों की मौत हो गई थी) की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए शास्त्री जी ने पद से इस्तीफा दे दिया।
संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था कि वह इस्तीफा इसलिए मंजूर कर रहे हैं कि ऎसा करने से संवैधानिक शिष्टाचार का उदाहरण पेश होगा, इसलिए नहीं कि इस दुर्घटना के लिए शास्त्री किसी भी तरह से जिम्मेदार हैं।
हमें आज लालबहादुर शास्त्री जैसे रेल मंत्रियों की जरूरत है, जो रेल दुर्घटना होने पर नैतिक जिम्मेदारी ले सकें।
आज की तारीख में संभवत: शास्त्री ही एकमात्र रेलमंत्री ऎसे थे जिन्होंने दो बार दुर्घटना होने पर पद से इस्तीफा दे दिया था।
वहीं, तत्कालीन रेल मंत्री मुकुल रॉय जब 2011 में रेल राज्य मंत्री थे तो उन्होंने असम में हुई रेल दुर्घटना की जगह पर जाने से ही मना कर दिया था। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अस्थाई तौर पर यह मंत्रालय अपने पास रख लिया।
10 जुलाई 2011 को एक ब्लास्ट के बाद रंगिया स्टेशन के पास गुवाहाटी-पुरी एक्सप्रेस के छह डिब्बे पटरी से उतर गए थे जिसमें करीब 100 लोग घायल हो गए थे। दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री ने रेल राज्य मंत्री रॉय, जो उस वक्त पश्चिम बंगाल में ही थे, को दुर्घटना स्थल पर जाने के लिए कहा। लेकिन रॉय ने वहां जाने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि पटिरयां ठीक कर दी गई हैं और उनके वहां जाकर निरीक्षण करने के लिए कुछ नहीं बचा है।
रॉय, जो तृणामूल कांग्रेस से सांसद हैं, प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों से कहा कि पटरियां दुरुस्त कर दी गई हैं, घायलों को अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया है इसलिए उनके वहां जाने का कोई तुक नहीं बनता।
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