बुधवार, 13 मार्च 2013

यमुना मुक्‍ति पदयात्रा: 'जीत' या 'झुनझुना'

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
संत जयकृष्‍ण दास के नेतृत्‍व में यमुना को मुक्‍त कराने निकले पदयात्रियों की जीत हुई या फिर उन्‍हें केन्‍द्र सरकार झुनझुना थमाने में सफल रही?
फिलहाल इस सवाल का जवाब देना तो जल्‍दबाजी होगी लेकिन केन्‍द्र सरकार द्वारा इस यात्रा को लेकर शुरू से अब तक जो रवैया अपनाया गया, उससे उसकी नेक नीयत पर सवाल उठना लाजिमी है।
पहले यह जान लें कि केन्‍द्र सरकार ने यमुना रक्षक दल की मांगों को किस रूप में और कितना स्‍वीकार किया है।
सरकार ने हथिनी कुंड से आगे यमुना का पानी छोड़े जाने पर आंशिक सहमति दी है। आंशिक इसलिए कि यमुना रक्षक दल द्वारा 50 प्रतिशत से अधिक पानी छोड़े जाने की शर्त को सरकार ने नहीं माना, अलबत्‍ता इतना जरूर कहा है कि अब वहां पूरा पानी नहीं रोका जायेगा।
कहने का आशय यह है कि हथिनी कुंड से अब यमुना जल का रिसाव जारी रहेगा जो आंदोलन शुरू होते ही होने लगा था।
इस नजरिये से देखा जाए तो आज 13 दिन तक हर तरह का कष्‍ट सहकर मथुरा-वृंदावन से दिल्‍ली पैदल कूच करने का क्‍या लाभ मिला, यह समझ से परे है।   
सरकार ने यमुना रक्षक दल की दूसरी प्रमुख मांग दिल्‍ली में यमुना के दोनों ओर नाले बनवाने और उसके पानी को ट्रीट करके नहरों के लिए उपलब्‍ध कराने पर दो साल का समय निर्धारित किया है।
जाहिर है कि नाले तुरंत नहीं बन जाएंगे पर जो नाले दिन-रात दिल्‍ली से यमुना में हर किस्‍म की गंदगी, रसायन और यहां तक कि मल-मूत्र विसर्जन कर रहे हैं, उनके तुरंत इंतजाम की कोई बात सरकार ने नहीं की है।
इसके अलावा सरकार ने कहा है कि वह गर्मियों में यमुना को लबालब रखने के लिए पहाड़ों पर बारिश का पानी स्‍टोर करने की व्‍यवस्‍था करेगी।
हर व्‍यक्‍ति जान व समझ सकता है कि सरकार की यह योजना इतनी आसान नहीं है, जितनी आसानी से सरकार इसे सामने रख रही है।
कुल मिलाकर निष्‍कर्ष यही निकलता है कि जितना पानी यमुना पदयात्रा शुरू करने के साथ हथिनी कुंड से छोड़ा जा रहा था, उतने ही पानी का रिसाव जारी रहेगा। अब उससे यमुना के प्रदूषण पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं पड़ता, इससे सरकार को मतलब नहीं है।
केन्‍द्र सरकार आज यमुना रक्षक दल को ड्राफ्ट तैयार करके दे देगी और कहा जा रहा है कि उसके बाद इस ड्राफ्ट को संसद के पटल पर रखा जाएगा।
इस कार्यक्रम के मुताबिक आज शाम से पदयात्री अपने-अपने ठिकानों को वापस चल देंगे।
सरकार की मंशा पर सवाल इसलिए खड़े होते हैं कि यमुना रक्षक दल की जो मांगें उसने अब आकर मानी हैं , वह तो तब भी मानी जा सकती थीं जब इनके लिए पदयात्रा की तैयारी चल रही थी। तब भी मानी जा सकती थीं जब यात्रा ने हरियाणा में प्रवेश किया था। इन मांगों को मानने के लिए सरकार आखिर किस बात का इंतजार कर रही थी।
कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सब सिर पर आई आफत को टालने के लिए किया गया ठीक वैसा ही नाटक हो, जैसा तमाम दूसरे मामलों अथवा जनआंदोलनों को खत्‍म कराने के लिए सरकार पहले भी करती रही है।
ऐसा समझने की एक वजह और है। वह यह कि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार है और वहां की राजनीति यमुना के इस पानी को काफी हद तक प्रभावित करती है। ऐसे में हरियाणा के कांग्रेसी मुख्‍यमंत्री कितने दिन पानी मुहैया कराते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
इन सब शंका-आशंकाओं पर यमुना रक्षक दल के पदाधिकारी कहते हैं कि पूर्व में इस बावत की गई पदयात्राओं, साइकिल यात्रा तथा अनशन आदि का कोई नतीजा नहीं निकला। इस बार जो कुछ मिल रहा है, इससे पदयात्री संतुष्‍ट हैं।
यदि केन्‍द्र सरकार अपना वायदे पूरे नहीं करती, तो क्‍या यमुना रक्षक दल फिर से इतने लोग जुटा पायेगा ?
इस प्रश्‍न के जवाब में दल के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष एडवोकेट राकेश यादव कहते हैं कि लोगों के उत्‍साह को देखकर हम कह सकते हैं कि सरकार ने अगर वादाखिलाफी की तो हम इससे बड़ा आंदोलन खड़ा करेंगे।
जो भी हो लेकिन अभी तो यमुना में दिल्‍ली की सीमा के आगे गिर रहे नाले और ब्रजभूमि के दर्जनों नालों का मुंह बंद कराना, एक बड़ी चुनौती है।
यह नाले यमुना एक्‍शन प्‍लान के तहत करोड़ों रुपये हजम कर जाने के बावजूद बंद नहीं हो पाये, नतीजतन हर किस्‍म की गंदगी व रसायन के साथ-साथ मथुरा की उस पशु वधशाला का खून तक यमुना में समा रहा है जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश-निर्देशों का मजाक उड़ाकर पिछले 14 सालों से संचालित की जा रही है और जिसमें अवैध रूप से हर दिन सैकड़ों पशु काटे जा रहे हैं।
यमुना रक्षक दल सहित प्रत्‍येक ब्रजवासी के लिए एक चुनौती यह है कि यमुना किनारे खड़े मकान, धर्मशालाएं एवं गेस्‍ट हाउस आदि के मल-मूत्र को यमुना में गिरने से कैसे रोका जाए और कैसे उन लोगों को इसके लिए राजी किया जाए जिनके निजी स्‍वार्थ इस काम में आड़े आते हैं। बेशक चुनौतियां कदम-कदम पर हैं और उनको लेकर चिंता व जागरूकता उतनी नहीं है। जीवन दायिनी यमुना को यदि पुनर्जीवन देना है तो खुद को यमुना पुत्र कहने में गौरव का अनुभव करने वालों की बात की जाए या उन तमाम लोगों की जिनके लिए यमुना सिर्फ नदी नहीं आस्‍था व विश्‍वास का दूसरा नाम है, सबको संकल्‍प लेना होगा।
उन्‍हें सबसे पहले स्‍वयं से लड़ना होगा। उन कारणों पर गौर करना होगा जिन्‍होंने यमुना को मरणासन्‍न करने में बड़ी भूमिका अदा की है।
रही बात दिल्‍ली दरबार की तो उससे और अधिक अपेक्षा रखना, किसी मुगालते में रहना है।

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