मंगलवार, 12 मार्च 2013

महज स्‍वार्थपूर्ति कर रही है परवीन:डा.मुस्‍तकीम

अमरोहा। उत्तर प्रदेश में प्रतापगढ़ के पुलिस उपाधीक्षक जिया उल हक की पिछले दो मार्च को हुई हत्या को सांप्रदायिकता से जोड़ने तथा निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह का नाम घसीटने पर समाजशास्त्री, धर्मगुरु तथा योग से जुड़े लोगों ने सवालिया निशान लगाए हैं और राज्य सरकार की ओर से इस तरह मुहैया कराई गई आर्थिक सहायता की आलोचना की है।
प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. मुस्तकीम, धर्मगुरु आचार्य प्रमोद कृष्णम तथा योग गुरु स्वामी कर्मवीर समेत कई विद्वानों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी निंदा की है तथा कहा है कि पुलिस बल व सरकारी मशीनरी को धार्मिक रंग से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। हालांकि कर्तव्यनिष्ठा के लिए संवैधानिक दायरे में ऐसी घटनाओं की जांच व मदद आवश्यक है।
प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. मुस्तकीम ने मंगलवार को यहां कहा कि देश में सरकारी अधिकारी व कर्मचारी तथा पुलिस बल से जुड़े लोगों को एक समान दृष्टि से देखना जरूरी है, जिससे इनके मनोबल पर कोई फर्क न पड़े।
उनका कहना है कि पुलिस उपाधीक्षक की मौत होती है तो सरकार आनन-फानन में निर्धारित मापदंड के विपरीत आर्थिक मदद व नौकरी देने की झड़ी लगा देती है जबकि मुरादाबाद के मैनाढेर मे भीड़ द्वारा तत्कालीन पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) को मरणासन्न स्थिति मे पहुंचा दिया जाता है तब सरकार की ओर से कोई संजीदगी नहीं दिखाई जाती है। उनका कहना है कि डीआईजी हिन्दू थे तथा पुलिस उपाधीक्षक मुस्लिम।
मुस्तकीम ने कहा कि इस तरह की बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा को समान तथा संवैधानिक दायरे मे देखा जाना चाहिए न कि मजहबी नजरिए से।
प्रसिद्ध धर्मगुरु आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि पुलिस बल तथा सरकारी मशीनरी की कर्तव्यनिष्ठा और कुर्बानी को बराबर के आइने से देखा जाए तो सामाजिक संतुलन बना रहेगा। उन्होंने कहा कि कुंडा के पुलिस उपाधीक्षक जिया उल हक की शहादत को पूरा देश सलाम करता है लेकिन प्रदेश सरकार जिस तरह से हत्याकांड पर घुटनों के बल आ गई और शहीद की विधवा जिस तरह शहादत पर स्वार्थपूर्ति में लगी है, वह शर्मनाक है। इससे शहीद की विधवा आम आदमी का विश्वास खो रही है।
राजेश पायलट विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. यतीन्द्र कटारिया का कहना है कि शहादत को जाति, वर्ग या समुदाय के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाए तथा सभी कर्मियों को सरकारी नीति के तहत लाभ और सम्मान दिया जाना चाहिए।
वहीं समाजशास्त्री मुस्तकीम का कहना है कि मो. अजहरुद्दीन को भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया तब किसी ने सांप्रदायिकता की बात नहीं कही, लेकिन जब वह मैच फिक्सिंग मे फंसे तो कहा गया कि उन्हें मुसलमान होने के कारण भेदभाव का शिकार बनाया गया है। इस तरह के बयान देने वाले और मानसिकता वाले लोगों की कड़ी निंदा हो चाहे वह फिल्म अभिनेता शाहरुख खान हो या महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे।
दूसरी ओर अखिल भारतीय गुर्जर महासभा व अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा खुलकर निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह के पक्ष मे उतर आई है। इन संगठनों का कहना है कि रघुराज प्रदेश के प्रभावशाली मंत्री थे। यदि पुलिस उपाधीक्षक से वह नाराज होते तो उनका कहीं तबादला करा सकते थे।
इन संगठनों का कहना है कि शहीद पुलिस उपाधीक्षक पत्नी की बातों के पीछे साजिश की बू आ रही है, जिसकी जांच की जानी चाहिए। महर्षि पतंजलि योग फाउंडेशन के परमाध्यक्ष स्वामी र्कमवीर का कहना है कि पुलिस बल को हिन्दू, मुस्लिम के नजरिए से न देखा जाए। लीक से हटकर सरकारी धन को लुटाना व नौकरी देना अन्य शहीदों का अपमान है।

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