सोमवार, 22 अप्रैल 2013

विदर्भ में हर महीने 56 किसान लगाते हैं मौत को गले

मुंबई। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में इस साल के शुरुआती तीन महीनों के दौरान 168 किसानों की मौत हुई। ग्यारह जिलों वाले विदर्भ में राज्य की दो तिहाई खनिज संपदा और तीन चौथाई वन संपदा है। इसके बावजूद इस इलाके में गरीबी और कुपोषण का स्थायी आश्रय बना हुआ है।
किसानों की हक की लड़ाई लड़ने वाले संगठन विदर्भ जनांदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने कहा कि पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक इस साल 31 मार्च तक 168 किसानों ने आत्महत्या की है। उन्होंने कहा कि इस हिसाब से हर महीने 56 किसान असमय मौत के मुंह में जा रहे हैं। इससे इस क्षेत्र में कई सालों से जारी कृषि संकट और प्रशासनिक उदासीनता उजागर होती है।
तिवारी ने कहा कि खेती की बढ़ती लागत और घटता लाभ किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले मुख्य कारण के अलावा भी कई अन्य तथ्य भी हैं। उत्पादन में थोड़ी वृद्धि की दिशा में खेती की परिपाटी अपनाए जाने से इलाके में पर्यावरणीय संकट भी पैदा हो गया है जिससे एकफसली संस्कृति बढ़ रही है।
तिवारी ने कहा कि उत्पादन स्थितरता और लागत खर्च के बढ़ने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न गहरे आर्थिक संकट ने किसानों की आय घटा दी है। संस्थागत कर्ज में कमी इस स्थिति में कोढ़ में खाज वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है। उन्होंने कहा कि चाहे सरकार की ओर से हो या संस्थानों की ओर से सभी नीतियां बड़े किसानों, बड़ी फर्मो, चुनिंदा नगदी फसलों और उच्च लागत वाली उत्पादन पद्धति को समर्थन देती हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक देश में हर 37वें मिनट पर एक किसान आत्महत्या करता है।(एजेंसी)

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