इस मामले पर रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी जिन 3
एजेंसियों को दी गई थी उनमें आपस में ही इस बात को लेकर मतभेद है कि काले
धन का कारोबार आखिर है कितना बड़ा ?
NIPFP के मुताबिक 10 लाख करोड़
NIFM के मुताबिक 12 लाख करोड़
BJP के मुताबिक 462 अरब डॉलर
काला धन वापस लाने या फिर इस पर रोक लगाने की सरकार की कोशिशें मुश्किल में पड़ सकती हैं क्योंकि इस मामले पर रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी जिन 3 एजेंसियों को दी गई थी उनमें आपस में ही इस बात को लेकर मतभेद है कि काले धन का कारोबार कितना बड़ा है।
बाबा रामदेव के आंदोलन और विपक्षी पार्टियों के हंगामे में जिस तरीके से काले धन की बड़ी तस्वीर पेश की गई, सरकारी दस्तावेजों में ये तस्वीर धुंधली होती दिख रही है। इसकी वजह है कि काले धन के कारोबार को लेकर भारी मतभेद।
दरअसल काले धन पर मचे भारी हंगामे के बाद सरकार ने तीन एजेंसियों नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीईएआर), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट (एनआईएफएम) को काले धन के आंकलन की जिम्मेदारी सौंपी थी।
सूत्रों की मानें तो एनआईपीएफपी ने जो रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को सौंपी है उसमें जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर काला धन बताया गया है यानी 10 लाख करोड़ रुपये।
एनआईएफएम के मुताबिक काला धन जीडीपी के 12 फीसदी के बराबर यानि 12 लाख करोड़ रुपये है। वहीं विपक्षी पार्टी बीजेपी के मुताबिक काला धन 462 अरब डॉलर है जोकि जीडीपी के 42 फीसदी के बराबर है।
हालांकि वित्त मंत्रालय अब इन तीनों एंजेसियों की रिपोर्ट के आधार पर काले धन का एक औसत अनुमान लगाएगी। फिर आगे की रणनीति तय की जाएगी जिसमें काले धन पर रोक लगाने और काले धन को वापस लाने पर फैसला लिया जाएगा।
वित्त मंत्रालय के सामने पेश तीनों रिपोर्ट में काले धन के लिए जिम्मेदार सेक्टर पर एकमत हैं। यानी रियल एस्टेट, माइनिंग और बुलियन को सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराया गया है। काले धन पर रोक लगाने के लिए तरीके पर भी सभी कमोबेश एकमत हैं। यानी अब जरूरत है तो इस रिपोर्ट पर आगे की कार्यवाही करने की। हालांकि काले धन के आंकलन के मुद्दे पर राजनैतिक हंगामे की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
NIPFP के मुताबिक 10 लाख करोड़
NIFM के मुताबिक 12 लाख करोड़
BJP के मुताबिक 462 अरब डॉलर
काला धन वापस लाने या फिर इस पर रोक लगाने की सरकार की कोशिशें मुश्किल में पड़ सकती हैं क्योंकि इस मामले पर रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी जिन 3 एजेंसियों को दी गई थी उनमें आपस में ही इस बात को लेकर मतभेद है कि काले धन का कारोबार कितना बड़ा है।
बाबा रामदेव के आंदोलन और विपक्षी पार्टियों के हंगामे में जिस तरीके से काले धन की बड़ी तस्वीर पेश की गई, सरकारी दस्तावेजों में ये तस्वीर धुंधली होती दिख रही है। इसकी वजह है कि काले धन के कारोबार को लेकर भारी मतभेद।
दरअसल काले धन पर मचे भारी हंगामे के बाद सरकार ने तीन एजेंसियों नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीईएआर), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट (एनआईएफएम) को काले धन के आंकलन की जिम्मेदारी सौंपी थी।
सूत्रों की मानें तो एनआईपीएफपी ने जो रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को सौंपी है उसमें जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर काला धन बताया गया है यानी 10 लाख करोड़ रुपये।
एनआईएफएम के मुताबिक काला धन जीडीपी के 12 फीसदी के बराबर यानि 12 लाख करोड़ रुपये है। वहीं विपक्षी पार्टी बीजेपी के मुताबिक काला धन 462 अरब डॉलर है जोकि जीडीपी के 42 फीसदी के बराबर है।
हालांकि वित्त मंत्रालय अब इन तीनों एंजेसियों की रिपोर्ट के आधार पर काले धन का एक औसत अनुमान लगाएगी। फिर आगे की रणनीति तय की जाएगी जिसमें काले धन पर रोक लगाने और काले धन को वापस लाने पर फैसला लिया जाएगा।
वित्त मंत्रालय के सामने पेश तीनों रिपोर्ट में काले धन के लिए जिम्मेदार सेक्टर पर एकमत हैं। यानी रियल एस्टेट, माइनिंग और बुलियन को सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराया गया है। काले धन पर रोक लगाने के लिए तरीके पर भी सभी कमोबेश एकमत हैं। यानी अब जरूरत है तो इस रिपोर्ट पर आगे की कार्यवाही करने की। हालांकि काले धन के आंकलन के मुद्दे पर राजनैतिक हंगामे की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
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