(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष)
घर-घर में पूज्यनीय तुलसी के पौधे का एक नाम वृंदा भी है और उसकी बहुतायत के कारण मथुरा से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित श्रीकृष्ण की एक क्रीड़ास्थली को वृंदावन कहते हैं। अर्थात तुलसी वन, तुलसी का वन।
इसके अलावा भी वृंदावन की अनेक खासियतें हैं। तमाम पहचान हैं। जैसे बांके बिहारी, तटिय स्थान, इस्कॉन, निधि वन, कुंज गलियां, यमुना का तट, नामचीन साधु-संतों के आश्रम, मठ, आदि-आदि।
वृंदावन की इन तमाम विशेषताओं से लोग परिचित हैं और इसलिए यहां हर समय भीड़ का दबाव बना रहता है। लेकिन वृंदावन में बहुत कुछ ऐसा भी है जिससे यहां आने वाले दर्शनार्थी और पर्यटक तब तक अनजान रहते हैं, जब तक कि उनका उससे वास्ता नहीं पड़ता।
वृंदावन के इस दूसरे रूप का साक्षात्कार करने वाले या तो उसे अपना लेते हैं या फिर खुद उसका हिस्सा बन जाते हैं।
कुछ सामर्थ्यवान बाहरी लोगों और कुछ वृंदावनवासियों के बीच कायम हो चुकी इसी जुगलबंदी का परिणाम है कि आज वृंदावन एक ऐसे वीभत्स रूप में डेवलप हो रहा है जिसे जान लेने व समझ लेने वाला आम आदमी इतना भयभीत हो जाता है कि फिर सोचने-समझने की शक्ति ही खो बैठता है।
वृंदावन के इस दूसरे रूप में छिपे हैं सत्ता के गलियारों तक अपनी अच्छी-खासी पकड़ रखने वाले भूमाफिया, पुलिस प्रशासन की नाक के बाल बन चुके धर्म के ठेकेदार, नशीले पदार्थों के तस्कर, क्रिकेट के बुकी, एमसीएक्स के धंधेबाज और हर किस्म के लाइजनर।
इसे यूं भी समझा जा सकता है कि वृंदावन के चप्पे-चप्पे पर काबिज हैं माफिया और कदम-कदम पर उपलब्ध हैं दलाल।
किस्म-किस्म के माफिया और तरह-तरह के दलालों ने अब वृंदावन को एक ऐसे आधुनिक व्यावसायिक केन्द्र में तब्दील कर दिया है, जहां सब-कुछ बिकता है। जरूरत है तो बस इस बात की कि जेब अच्छी-खासी गर्म हो। जेब की गर्मी ही सारी चीजों की उपलब्धता तय करती है। बात चाहे इस ड्राई एरिया में शराब की हो या धर्म नगरी का टैग लगा होने के बावजूद शबाब की, किसी चीज की कमी नहीं।
इसी प्रकार करोड़ों की प्रॉपर्टी खरीदने वालों के लिए चुटकी बजाकर उसका इंतजाम कर दिया जाता है और लाखों का फ्लैट चाहने वालों के सामने हर लोकेशन में फ्लैट सामने होता है।
वृंदावन को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे-2 से लेकर छटीकरा रोड सहित जिस हिस्से में जो चाहिए, वो मिलेगा।
इस नए और विशेष आकर्षण की वजह से धर्म की यह नगरी एक ओर जहां हर स्तर के अपराधियों को प्रभावित करती है वहीं दूसरी ओर नेताओं व अभिनेताओं के साथ-साथ पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों पर भी जादुई असर डालती है।
कौन नहीं जानता कि ब्रजभूमि में एक बार तैनाती पा लेने वाला अधिकारी प्रथम तो यहां से जाना ही नहीं चाहता और जाना ही पड़ जाए तो अपनी सारी एप्रोच दोबारा तैनाती कराने में लगा देता है।
एक बार की तैनाती उसे यह समझा देती है कि सिस्टम में रहकर जितनी आसानी से मलाई यहां मारी जा सकती है, उतनी कहीं नहीं मारी जा सकती। एक बार की तैनाती में वह अपने लिए यहां से जिंदगीभर की आर्थिक सुरक्षा हासिल कर लेता है।
यहां संपत्ति की खातिर एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा मठाधीश हैं, विवादित जमीनों पर गिद्ध दृष्टि गढ़ाकर बैठे भूमाफिया हैं, ड्रग्स के तस्कर हैं, भोग और वासना में लिप्त धर्माचार्य हैं और अय्याशी के आलीशान से आलीशान अड़डे हैं।
जाहिर है कि जहां इतना सब-कुछ होगा, वहां ऊपरी कमाई तो अफराती होगी ही।
नजर फेर लेने का नजराना लाखों से लेकर करोड़ों तक में हो सकता है। देखना यह पड़ता है कि जहां से नजर फेरी जा रही है, उसकी अपनी कीमत क्या है।
कहते हैं कि हर चीज बिकती है, बस खरीदने वाला चाहिए। वृंदावन इसका बेहतरीन उदाहरण है। यहां अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक, शराब से लेकर शबाब तक, जमीन से लेकर कमीन तक और धर्म से लेकर अधर्म तक, सबकी अपनी कीमत निर्धारित है और सबके लाइजनर (दलाल) तय हैं।
धर्म की नगरी में अधर्म तथा अधर्मियों का बोलबाला है और धर्म व धार्मिक लोग धक्के खा रहे हैं। कोई दो जून की रोटी को तरस रहा है तो कोई बमुश्किल अपने परिवार की गाड़ी ढो पा रहा है।
वृंदावन एक है लेकिन उसके रूप अनेक। किसी को उसका रूप मोहित करता है तो किसी को भयभीत।
बेशक केदारघाटी जैसी आपदा यहां कभी नहीं आई लेकिन आपदाओं के पहाड़ यहां भी लोगों पर हर रोज टूटते हैं।
असहाय लोगों को सरकार और सरकारी नुमाइंदों से राहत कहीं नहीं मिलती। शायद इसीलिए लोगों को भी सिस्टम की जुगलबंदी से बने कॉकस का सानिध्य ज्यादा रास आने लगता है।
संभवत: इसी को वृंदावन कहते हैं और यही कहलाती है ब्रजभूमि... ब्रज वसुंधरा।
घर-घर में पूज्यनीय तुलसी के पौधे का एक नाम वृंदा भी है और उसकी बहुतायत के कारण मथुरा से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित श्रीकृष्ण की एक क्रीड़ास्थली को वृंदावन कहते हैं। अर्थात तुलसी वन, तुलसी का वन।
इसके अलावा भी वृंदावन की अनेक खासियतें हैं। तमाम पहचान हैं। जैसे बांके बिहारी, तटिय स्थान, इस्कॉन, निधि वन, कुंज गलियां, यमुना का तट, नामचीन साधु-संतों के आश्रम, मठ, आदि-आदि।
वृंदावन की इन तमाम विशेषताओं से लोग परिचित हैं और इसलिए यहां हर समय भीड़ का दबाव बना रहता है। लेकिन वृंदावन में बहुत कुछ ऐसा भी है जिससे यहां आने वाले दर्शनार्थी और पर्यटक तब तक अनजान रहते हैं, जब तक कि उनका उससे वास्ता नहीं पड़ता।
वृंदावन के इस दूसरे रूप का साक्षात्कार करने वाले या तो उसे अपना लेते हैं या फिर खुद उसका हिस्सा बन जाते हैं।
कुछ सामर्थ्यवान बाहरी लोगों और कुछ वृंदावनवासियों के बीच कायम हो चुकी इसी जुगलबंदी का परिणाम है कि आज वृंदावन एक ऐसे वीभत्स रूप में डेवलप हो रहा है जिसे जान लेने व समझ लेने वाला आम आदमी इतना भयभीत हो जाता है कि फिर सोचने-समझने की शक्ति ही खो बैठता है।
वृंदावन के इस दूसरे रूप में छिपे हैं सत्ता के गलियारों तक अपनी अच्छी-खासी पकड़ रखने वाले भूमाफिया, पुलिस प्रशासन की नाक के बाल बन चुके धर्म के ठेकेदार, नशीले पदार्थों के तस्कर, क्रिकेट के बुकी, एमसीएक्स के धंधेबाज और हर किस्म के लाइजनर।
इसे यूं भी समझा जा सकता है कि वृंदावन के चप्पे-चप्पे पर काबिज हैं माफिया और कदम-कदम पर उपलब्ध हैं दलाल।
किस्म-किस्म के माफिया और तरह-तरह के दलालों ने अब वृंदावन को एक ऐसे आधुनिक व्यावसायिक केन्द्र में तब्दील कर दिया है, जहां सब-कुछ बिकता है। जरूरत है तो बस इस बात की कि जेब अच्छी-खासी गर्म हो। जेब की गर्मी ही सारी चीजों की उपलब्धता तय करती है। बात चाहे इस ड्राई एरिया में शराब की हो या धर्म नगरी का टैग लगा होने के बावजूद शबाब की, किसी चीज की कमी नहीं।
इसी प्रकार करोड़ों की प्रॉपर्टी खरीदने वालों के लिए चुटकी बजाकर उसका इंतजाम कर दिया जाता है और लाखों का फ्लैट चाहने वालों के सामने हर लोकेशन में फ्लैट सामने होता है।
वृंदावन को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे-2 से लेकर छटीकरा रोड सहित जिस हिस्से में जो चाहिए, वो मिलेगा।
इस नए और विशेष आकर्षण की वजह से धर्म की यह नगरी एक ओर जहां हर स्तर के अपराधियों को प्रभावित करती है वहीं दूसरी ओर नेताओं व अभिनेताओं के साथ-साथ पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों पर भी जादुई असर डालती है।
कौन नहीं जानता कि ब्रजभूमि में एक बार तैनाती पा लेने वाला अधिकारी प्रथम तो यहां से जाना ही नहीं चाहता और जाना ही पड़ जाए तो अपनी सारी एप्रोच दोबारा तैनाती कराने में लगा देता है।
एक बार की तैनाती उसे यह समझा देती है कि सिस्टम में रहकर जितनी आसानी से मलाई यहां मारी जा सकती है, उतनी कहीं नहीं मारी जा सकती। एक बार की तैनाती में वह अपने लिए यहां से जिंदगीभर की आर्थिक सुरक्षा हासिल कर लेता है।
यहां संपत्ति की खातिर एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा मठाधीश हैं, विवादित जमीनों पर गिद्ध दृष्टि गढ़ाकर बैठे भूमाफिया हैं, ड्रग्स के तस्कर हैं, भोग और वासना में लिप्त धर्माचार्य हैं और अय्याशी के आलीशान से आलीशान अड़डे हैं।
जाहिर है कि जहां इतना सब-कुछ होगा, वहां ऊपरी कमाई तो अफराती होगी ही।
नजर फेर लेने का नजराना लाखों से लेकर करोड़ों तक में हो सकता है। देखना यह पड़ता है कि जहां से नजर फेरी जा रही है, उसकी अपनी कीमत क्या है।
कहते हैं कि हर चीज बिकती है, बस खरीदने वाला चाहिए। वृंदावन इसका बेहतरीन उदाहरण है। यहां अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक, शराब से लेकर शबाब तक, जमीन से लेकर कमीन तक और धर्म से लेकर अधर्म तक, सबकी अपनी कीमत निर्धारित है और सबके लाइजनर (दलाल) तय हैं।
धर्म की नगरी में अधर्म तथा अधर्मियों का बोलबाला है और धर्म व धार्मिक लोग धक्के खा रहे हैं। कोई दो जून की रोटी को तरस रहा है तो कोई बमुश्किल अपने परिवार की गाड़ी ढो पा रहा है।
वृंदावन एक है लेकिन उसके रूप अनेक। किसी को उसका रूप मोहित करता है तो किसी को भयभीत।
बेशक केदारघाटी जैसी आपदा यहां कभी नहीं आई लेकिन आपदाओं के पहाड़ यहां भी लोगों पर हर रोज टूटते हैं।
असहाय लोगों को सरकार और सरकारी नुमाइंदों से राहत कहीं नहीं मिलती। शायद इसीलिए लोगों को भी सिस्टम की जुगलबंदी से बने कॉकस का सानिध्य ज्यादा रास आने लगता है।
संभवत: इसी को वृंदावन कहते हैं और यही कहलाती है ब्रजभूमि... ब्रज वसुंधरा।
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