सोमवार, 8 जुलाई 2013

आतंकियों के भरोसे है मथुरा-वृंदावन की सुरक्षा

मथुरा  (लीजेण्ड न्यूज़ विशेष) क्या मथुरा-वृंदावन के सभी प्रमुख मंदिरों की सुरक्षा आतंकवादियों के रहमो-करम पर निर्भर है?
क्या मथुरा-वृंदावन सहित जनपद के सभी धार्मिक स्थान तभी तक महफूज हैं, जब तक आतंकवादी अपनी खास रणनीति के तहत यहां किसी वारदात को अंजाम देना नहीं चाहते?
 
इन प्रश्नों के जवाब तलाशने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि जब-जब देश के किसी हिस्से में आतंकवादी वारदात होती है, तब-तब जिन प्रमुख धार्मिक जनपदों को हाईअलर्ट पर लिया जाता है उनमें मथुरा-वृंदावन भी शामिल रहता है।
रहे भी क्यों नहीं,
आखिर मथुरा की गिनती विश्व के अग्रणी धार्मिक स्थानों में जो होती है। यहां महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्ण ने मनुष्य के एक आश्चर्यजनक रूप में जन्म लिया था।
यूं तो मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थान की सुरक्षा-व्यवस्था के लिए न केवल भारी तादाद में सुरक्षाबल तैनात रहते हैं बल्कि लोकल इंटेलीजेंस की यूनिट सहित केन्द्र की गुप्तचर एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) भी पैनी नजर रखती है।
इसके अलावा हर तीसरे महीने सरकार द्वारा गठित एक हाईपावर कमेटी कृष्ण जन्मस्थान व शाही मस्जिद ईदगाह की सुरक्षा-व्यवस्था की समीक्षा करती है।
पूरा मंदिर और मस्जिद परिसर क्लोज सर्किट कैमरों, डीएफएमडी, एक्सरे मशीन, सोडियम लैम्प्स व ड्रेगन लाइट्स आदि से सुसज्जित है और यहां अबाध विद्युत आपूर्ति का भी पर्याप्त बंदोबस्त किया हुआ है। किसी व्यक्ति को जांच कराये बिना अंदर प्रवेश नहीं मिल सकता।
दावों की बात करें तो यहां तैनात सुरक्षा बलों की मर्जी के खिलाफ धार्मिक इमारतों पर परिन्दा तक पर नहीं मार सकता।

इन धार्मिक स्थलों के लिए शासन स्तर से अधिकारियों की नियुक्ति भी अलग की जाती है और फोर्स की भी तैनाती अलग से होती है।
जिले के आला पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा अपने दिशा-निर्देशन में यहां अक्सर मॉक ड्रिल (रिहर्सल) भी कराई जाती है ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मंदिरों का जिला है मथुरा। यहां तो कदम-कदम पर मंदिर हैं लिहाजा सबकी सुरक्षा पुलिस-प्रशासन नहीं कर सकता इसलिए हम बात कर रहे हैं उन्हीं मंदिरों की जहां प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं और जिनकी विशेष अहमियत है।
इन प्रमुख मंदिरों में कृष्ण जन्मस्थान के अलावा, द्वारिकाधीश मंदिर, बांके बिहारी, इस्कॉन टेंपिल, दानघाटी, मुखारबिंद आदि हैं जबकि कुछ मंदिर या स्थान ऐसे हैं जहां विशेष अवसरों पर भीड़ उमड़ती है। इनमें कोसी स्थित कोकिलावन का शनिदेव मंदिर, बरसाने का राधा रानी मंदिर और गिरिराज जी की परिक्रमा प्रमुख है। इसी माह मुड़िया पूर्णिमा (गुरू पूर्णिमा) पर गिरिराज जी की परिक्रमा के लिए लाखों श्रद्धालु उमड़ने वाले हैं।
इन प्रमुख स्थानों की सुरक्षा-व्यवस्था और विशेषकर किसी संभावित आतंकी वारदात को लेकर जब आर्मी इंटेलीजेंस के एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की गई तो उनका जवाब बहुत चौंकाने वाला था।
नाम न लिखे जाने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा कि प्रथम तो मथुरा में सुरक्षा के जितने भी इंतजाम हैं, वो सब दिखावटी हैं। दूसरे यहां अधिकारी एवं कर्मचारियों की तैनाती का कोई मानदंड नहीं है। शासन व प्रशासन में बैठे लोगों ने ही इसे 6 दिसंबर सन् 1992 से एक किस्म का पनिश्मेंट प्लेस बना दिया है और यहां उन अधिकारी एवं कर्मचारियों को भेजा जाता है जिनसे उनके आका किसी कारण खुश नहीं होते।
जाहिर है कि ऐसी स्थिति में न तो वह अपनी ड्यूटी का निर्वहन मन लगाकर करते हैं और ना ही ड्यूटी से संतुष्ट रह पाते हैं। उनका अधिकांश समय किसी न किसी तरह यहां से निकलकर फील्ड ड्यूटी पाने की कोशिश में जाया होता है।
इस सबके अलावा तकनीकी तौर पर देखें तो डीएफएमडी जैसे उपकरण लगातार इस्तेमाल करने की सूरत में एक निर्धारित समय के बाद काम करना बंद कर देते हैं और शोपीस बन जाते हैं। इसी प्रकार बहुत अधिक भीड़ होने पर क्लोज सर्किट कैमरे भी उपयोगी नहीं रह जाते।
एक्सरे मशीन का भी यही हाल है और ड्रेगन लाइट्स का भी यही। पब्लिक एड्रस सिस्टम का शायद ही जिले की पुलिस व प्रशासन ने कभी इस्तेमाल किया हो।
आर्मी इंटेलीजेंस के मुताबिक आतंकवाद से निपटने की न यहां किसी में इच्छाशक्ति है और ना हम तकनीकी रूप से उसके लिए सक्षम हैं। यह बात अलग है कि हर वारदात के बाद हमारे यहां आतंकवाद का डटकर मुकाबला करने जैसे जुमले उछाले जाते हैं, वो भी चार दिन।
उनका कहना था कि जिस देश में हर आतंकी वारदात के बाद लोगों की घर से निकल पड़ने की मजबूरी को बहादुरी घोषित किया जाता हो, सब-कुछ सहते जाने जैसी कायरता को हिम्मत प्रचारित कर उसकी ब्रांडिंग की जाती हो, बड़ी से बड़ी आतंकी वारदात को आतंकियों की हताशा का परिणाम बताकर उससे पल्ला झाड़ लिया जाता हो, उस देश में कोई आतंकवाद से मुकाबला कर भी कैसे सकता है।
बात चाहे मथुरा-वृंदावन जैसे विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थान की हो या बोधगया की। मुंबई के भीड़-भाड़ वाले इलाकों की हो अथवा कहीं और की। हम इनके सुरक्षित रहने का भ्रम पाले हुए हैं। हमें लगता है कि हमारी व्यवस्थाएं मुकम्मल न सही, पर्याप्त जरूर हैं लेकिन यह भ्रम तब एक झटके में दूर हो जाता है जब आतंकवादी अपनी सुविधा अनुसार अपने मकसद में सफल होकर निकल जाते हैं और हमारे पास रह जाता है जांच बैठाने का अधिकार तथा रटे-रटाये जुमलों से मूर्ख बनाने का सिलसिला।
ऐसे में यह कहना भी अतिशयोक्ति ही लगता है कि हमारी सुरक्षा-व्यवस्था भगवान भरोसे है। सच तो यह है कि भगवान और इंसान दोनों की सुरक्षा-व्यवस्था उन आतंकियों के भरोसे है जिन्हें हमारी व्यवस्था की नाकामियों पर पूरा भरोसा है। वह जानते हैं कि जो दिन और जो समय वह मुकर्रर कर देंगे, अपने मकसद में कामयाब होकर रहेंगे।

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