(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष)
एक बच्ची के साथ दुष्कर्म के आरोपी आसाराम बापू की गिरफ्तारी से यूं तो मथुरा-वृंदावन का कोई सीधा संबंध नहीं हैं लेकिन जो संबंध है, वो बहुत महत्वपूर्ण है और उसके बिना आसाराम की कहानी न तो शुरू की जा सकती है, न उसके क्लाईमेक्स का कोई मतलब रह जाता है क्योंकि मथुरा-वृंदावन भी धर्मनगरी हैं लिहाजा यहां साधु-संत एवं महंतों का अच्छा-खासा आधिपत्य है।
आगे बढ़ने से पहले कुछ बातें हैं जिन पर गौर किया जाना बहुत जरूरी है ताकि यह समझा जा सके कि आखिर कैसे कोई 'आसूमल' देखते-देखते आसाराम बापू बन जाता है।
नंबर एक- श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े ने तथाकथित महिला संत राधेमां को विगत माह विवादास्पद तरीके से दिया गया महामण्डलेश्वर का पद बहाल कर दिया। इसकी सफाई में अखाड़े की ओर से कहा गया कि उनके ऊपर लगाये गये आरोपों की जांच के दौरान पुष्टि न हो पाने पर यह फैसला लिया गया है।
नंबर दो- गायत्री तपोभूमि ट्रस्ट में संचारी के पद पर कार्यरत चन्द्रपाल सिंह ने 2 करोड़ 43 लाख रुपये का गबन किया है जिसकी तपोभूमि ट्रस्ट ने मथुरा के गोविंदनगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई है।
गायत्री तपोभूमि ट्रस्ट के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा वैसे तो पड़ोसी जिला आगरा में गांव आंवलखेड़ा के मूल निवासी थे लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाई मथुरा और यहीं से दौलत व शौहरत की ऊंचाइयां हासिल कीं।
नंबर तीन- जयगुरूदेव नाम परमात्मा का, सतयुग आयेगा का ढोल पीटकर नाम और दाम कमाने वाले बाबा जयगुरुदेव की बेशुमार चल-अचल संपत्ति पर उनकी मृत्यु के बाद विवाद चल रहे हैं और यह विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं।
नंबर चार- पूर्वी उत्तर प्रदेश में जनपद प्रतापगढ़ के कस्बा मनगढ़ का मूल निवासी है रामकृपाल त्रिपाठी। आज लोग उसे कृपालु महाराज के नाम से जानते हैं। वह खुद को पांचवां जगद्गुरू शंकराचार्य कहता है। कृपालु महाराज की मथुरा के वृंदावन एवं बरसाना सहित देश-विदेश में अरबों की संपत्ति है।
आसाराम बापू और कृपालु महाराज में काफी समानताएं हैं। मसलन आसाराम की तरह ही कृपालु महाराज गृहस्थ है और उसका भरा-पूरा परिवार है। आसाराम की तरह ही कृपालु की संतानें उसके धर्म के धंधे की वारिस हैं और कृपालु द्वारा स्थापित ट्रस्टों पर वही काबिज हैं।
आसाराम की तरह ही कृपालु पर कई मर्तबा यौन शोषण के आरोप लगे हैं और वह भी गिरफ्तार हुआ है। कृपालु और उसका शिष्य प्रकाशानंद तो दुराचार के आरोप में विदेशी जेलों की भी यात्रा कर चुके हैं।
पीड़ित पक्ष से समझौता कर लिए जाने के कारण कृपालु महाराज बेशक अब तक इन आरोपों में दोषी साबित नहीं हुए परंतु उनका शिष्य प्रकाशानंद अमेरिका की एक अदालत से दोष सिद्ध होने के बाद फरार है। अमेरिकी पुलिस उसे तलाश रही है जिस कारण कृपालु महाराज ने भी अब उससे पल्ला झाड़ लिया है।
कृपालु महाराज भी आसाराम की तरह एक बड़ा भूमाफिया है और उसके संरक्षण में वृंदावन के कई छोटे-बड़े जमीन कारोबारियों ने इतनी हैसियत बना ली है कि आज वह जमीन के साथ-साथ आसमान को भी नापकर बेच डालने की ख्वाहिश रखते हैं।
और हां, आसाराम की तरह ही कपालु महाराज भी एक कथावाचक ही है लेकिन कथावाचक कहलाना पसंद नहीं करता।
आसाराम की गिरफ्तारी के बाद मथुरा-वृंदावन के कई नामचीन संत-महंतों ने आसाराम के क्रिया-कलापों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इन लोगों में महंत प्रेमदास शास्त्री, महंत सच्चिदानंद, बालेंदु स्वामी शंकराचार्य, ब्रह्मचारी यदुनंदन चैतन्य, महंत शेषानंद, मनीष शंकर आचार्य, महंत हरिबोल बाबा शामिल हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आसाराम हो या कृपालु, जयगुरूदेव हो या आचार्य श्रीराम शर्मा, राधे मां हो या कोई अन्य, आखिर ये अपार शौहरत एवं अकूत दौलत व ताकत के स्वामी कैसे बन बैठते हैं?
कहां से मिलता है इन्हें ऐसा संरक्षण जिसके कारण यह प्रशासन ही नहीं, शासन को भी चुनौती देने से नहीं घबराते?
आसाराम बापू के खिलाफ आज तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले वृंदावन के संत-महंतों में से क्या कोई बतायेगा कि एक-दो नहीं, कई-कई बार बलात्कार के आरोपी बने कृपालु महाराज के खिलाफ वह कब बोलेंगे?
क्या उन्हें इंतजार है किसी ऐसी नई वारदात का जिसके कारण धर्म, संत और वृंदावन बदनाम हो?
कौन नहीं जानता कि आसाराम बापू भी कृपालु की तरह कई मर्तबा विभिन्न आपराधिक कृत्यों में आरोपी रहा है लेकिन कृपालु की तरह ही वह अब तक अपने धनबल एवं राजनीतिक रसूखों के सहारे बचता रहा।
किसे नहीं पता कि आसाराम, कृपालु व राधे मां जैसे धर्म के धंधेबाजों को कौन बचाता है और कैसे वह खरबों की संपत्ति अर्जित कर लेते हैं।
क्यों आज किसी जयगुरूदेव की संपत्ति पर विवाद है और क्यों आचार्य श्रीराम शर्मा के ट्रस्ट का एक अदना सा कर्मचारी 2 करोड़ 43 लाख की बड़ी रकम का गबन करने में सफल रहता है।
देश की व्यवस्था इन तथाकथित साधु-संतों एवं धर्माचार्यों से यह पूछने का साहस करेगी कि इनकी अकूत संपत्ति के स्त्रोत क्या हैं और किसलिए यह इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित करते हैं?
भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्ति के मार्ग को दिखाने का दावा करने वाले क्यों खुद भौतिक सुख-सुविधाओं में आकण्ठ डूबे रहते हैं?
जिस देश में कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। रोजी-रोटी की खातिर युवक-युवतियां देश-विदेश में मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं। बहुत से लोग अपने ही देश में शरणार्थियों सा जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं, वहां धर्म के ये धंधेबाज अरबों-खरबों में कैसे खेल रहे हैं?
एक छोटा सा कारोबारी इन्कमटैक्स दिए बिना चैन की सांस नहीं ले सकता लेकिन इनकी बेशुमार दौलत के बारे में कोई पूछने वाला तक नहीं।
जो मीडिया आज आसाराम बापू को निशाने पर लिए है, वही मीडिया उनके और उनके जैसे सैंकड़ों धार्मिक धंधेबाजों के लंबे-चौड़े विज्ञापन छापता है। प्रवचन के नाम पर परोसी जा रही उनकी बकवास का सीधा प्रसारण करता है। उनके एक इशारे पर जी हुजूरी करने पहुंच जाता है और उनकी शान में मौके-बेमौके कसीदे पढ़ता है, क्या उसे किसी बड़ी वारदात से पहले कोई कृपालु महाराज या राधे मां दिखाई नहीं देती।
सवाल बहुत से हैं लेकिन जवाब किसी का नहीं।
यही सब कारण हैं कि बंटवारे के बाद आकर बसा मामूली सा कोई आसूमल आसाराम बन जाता है और नाच-गाकर कथा करने वाले रामकृपाल, कृपालु महाराज बन बैठता है। पंजाब की सामान्य घरेलू युवती पहले राधेमां और फिर महामण्डलेश्वर बनने में सफल रहती है।
सच तो यह है कि धर्म के धंधे में फर्श से अर्श तक पहुंचने वालों की लंबी फेहरिस्त है लेकिन जैसे देश में दूसरे अवैध धंधे फल-फूल रहे हैं, वैसे धर्म का धंधा भी बुलंदियां छू रहा है।
एक आसाराम की गिरफ्तारी से फिलहाल इस पर ग्रहण लगने की दूर-दूर तक कोई संभावना नजर नहीं आती।
समाज के लिए कोढ़ बन चुके आसाराम और कृपालुओं से यदि मुक्ति पानी है तो इनकी जड़ों को काटना होगा। इनकी आमदनी के स्त्रोत बंद करने होंगे। इनके संरक्षणदाताओं को भी सामने लाना होगा अन्यथा यह इसी प्रकार देश, धर्म व समाज को कलंकित करते रहेंगे और धर्म को बदनाम करेंगे।
एक बच्ची के साथ दुष्कर्म के आरोपी आसाराम बापू की गिरफ्तारी से यूं तो मथुरा-वृंदावन का कोई सीधा संबंध नहीं हैं लेकिन जो संबंध है, वो बहुत महत्वपूर्ण है और उसके बिना आसाराम की कहानी न तो शुरू की जा सकती है, न उसके क्लाईमेक्स का कोई मतलब रह जाता है क्योंकि मथुरा-वृंदावन भी धर्मनगरी हैं लिहाजा यहां साधु-संत एवं महंतों का अच्छा-खासा आधिपत्य है।
आगे बढ़ने से पहले कुछ बातें हैं जिन पर गौर किया जाना बहुत जरूरी है ताकि यह समझा जा सके कि आखिर कैसे कोई 'आसूमल' देखते-देखते आसाराम बापू बन जाता है।
नंबर एक- श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े ने तथाकथित महिला संत राधेमां को विगत माह विवादास्पद तरीके से दिया गया महामण्डलेश्वर का पद बहाल कर दिया। इसकी सफाई में अखाड़े की ओर से कहा गया कि उनके ऊपर लगाये गये आरोपों की जांच के दौरान पुष्टि न हो पाने पर यह फैसला लिया गया है।
नंबर दो- गायत्री तपोभूमि ट्रस्ट में संचारी के पद पर कार्यरत चन्द्रपाल सिंह ने 2 करोड़ 43 लाख रुपये का गबन किया है जिसकी तपोभूमि ट्रस्ट ने मथुरा के गोविंदनगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई है।
गायत्री तपोभूमि ट्रस्ट के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा वैसे तो पड़ोसी जिला आगरा में गांव आंवलखेड़ा के मूल निवासी थे लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाई मथुरा और यहीं से दौलत व शौहरत की ऊंचाइयां हासिल कीं।
नंबर तीन- जयगुरूदेव नाम परमात्मा का, सतयुग आयेगा का ढोल पीटकर नाम और दाम कमाने वाले बाबा जयगुरुदेव की बेशुमार चल-अचल संपत्ति पर उनकी मृत्यु के बाद विवाद चल रहे हैं और यह विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं।
नंबर चार- पूर्वी उत्तर प्रदेश में जनपद प्रतापगढ़ के कस्बा मनगढ़ का मूल निवासी है रामकृपाल त्रिपाठी। आज लोग उसे कृपालु महाराज के नाम से जानते हैं। वह खुद को पांचवां जगद्गुरू शंकराचार्य कहता है। कृपालु महाराज की मथुरा के वृंदावन एवं बरसाना सहित देश-विदेश में अरबों की संपत्ति है।
आसाराम बापू और कृपालु महाराज में काफी समानताएं हैं। मसलन आसाराम की तरह ही कृपालु महाराज गृहस्थ है और उसका भरा-पूरा परिवार है। आसाराम की तरह ही कृपालु की संतानें उसके धर्म के धंधे की वारिस हैं और कृपालु द्वारा स्थापित ट्रस्टों पर वही काबिज हैं।
आसाराम की तरह ही कृपालु पर कई मर्तबा यौन शोषण के आरोप लगे हैं और वह भी गिरफ्तार हुआ है। कृपालु और उसका शिष्य प्रकाशानंद तो दुराचार के आरोप में विदेशी जेलों की भी यात्रा कर चुके हैं।
पीड़ित पक्ष से समझौता कर लिए जाने के कारण कृपालु महाराज बेशक अब तक इन आरोपों में दोषी साबित नहीं हुए परंतु उनका शिष्य प्रकाशानंद अमेरिका की एक अदालत से दोष सिद्ध होने के बाद फरार है। अमेरिकी पुलिस उसे तलाश रही है जिस कारण कृपालु महाराज ने भी अब उससे पल्ला झाड़ लिया है।
कृपालु महाराज भी आसाराम की तरह एक बड़ा भूमाफिया है और उसके संरक्षण में वृंदावन के कई छोटे-बड़े जमीन कारोबारियों ने इतनी हैसियत बना ली है कि आज वह जमीन के साथ-साथ आसमान को भी नापकर बेच डालने की ख्वाहिश रखते हैं।
और हां, आसाराम की तरह ही कपालु महाराज भी एक कथावाचक ही है लेकिन कथावाचक कहलाना पसंद नहीं करता।
आसाराम की गिरफ्तारी के बाद मथुरा-वृंदावन के कई नामचीन संत-महंतों ने आसाराम के क्रिया-कलापों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इन लोगों में महंत प्रेमदास शास्त्री, महंत सच्चिदानंद, बालेंदु स्वामी शंकराचार्य, ब्रह्मचारी यदुनंदन चैतन्य, महंत शेषानंद, मनीष शंकर आचार्य, महंत हरिबोल बाबा शामिल हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आसाराम हो या कृपालु, जयगुरूदेव हो या आचार्य श्रीराम शर्मा, राधे मां हो या कोई अन्य, आखिर ये अपार शौहरत एवं अकूत दौलत व ताकत के स्वामी कैसे बन बैठते हैं?
कहां से मिलता है इन्हें ऐसा संरक्षण जिसके कारण यह प्रशासन ही नहीं, शासन को भी चुनौती देने से नहीं घबराते?
आसाराम बापू के खिलाफ आज तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले वृंदावन के संत-महंतों में से क्या कोई बतायेगा कि एक-दो नहीं, कई-कई बार बलात्कार के आरोपी बने कृपालु महाराज के खिलाफ वह कब बोलेंगे?
क्या उन्हें इंतजार है किसी ऐसी नई वारदात का जिसके कारण धर्म, संत और वृंदावन बदनाम हो?
कौन नहीं जानता कि आसाराम बापू भी कृपालु की तरह कई मर्तबा विभिन्न आपराधिक कृत्यों में आरोपी रहा है लेकिन कृपालु की तरह ही वह अब तक अपने धनबल एवं राजनीतिक रसूखों के सहारे बचता रहा।
किसे नहीं पता कि आसाराम, कृपालु व राधे मां जैसे धर्म के धंधेबाजों को कौन बचाता है और कैसे वह खरबों की संपत्ति अर्जित कर लेते हैं।
क्यों आज किसी जयगुरूदेव की संपत्ति पर विवाद है और क्यों आचार्य श्रीराम शर्मा के ट्रस्ट का एक अदना सा कर्मचारी 2 करोड़ 43 लाख की बड़ी रकम का गबन करने में सफल रहता है।
देश की व्यवस्था इन तथाकथित साधु-संतों एवं धर्माचार्यों से यह पूछने का साहस करेगी कि इनकी अकूत संपत्ति के स्त्रोत क्या हैं और किसलिए यह इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित करते हैं?
भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्ति के मार्ग को दिखाने का दावा करने वाले क्यों खुद भौतिक सुख-सुविधाओं में आकण्ठ डूबे रहते हैं?
जिस देश में कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। रोजी-रोटी की खातिर युवक-युवतियां देश-विदेश में मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं। बहुत से लोग अपने ही देश में शरणार्थियों सा जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं, वहां धर्म के ये धंधेबाज अरबों-खरबों में कैसे खेल रहे हैं?
एक छोटा सा कारोबारी इन्कमटैक्स दिए बिना चैन की सांस नहीं ले सकता लेकिन इनकी बेशुमार दौलत के बारे में कोई पूछने वाला तक नहीं।
जो मीडिया आज आसाराम बापू को निशाने पर लिए है, वही मीडिया उनके और उनके जैसे सैंकड़ों धार्मिक धंधेबाजों के लंबे-चौड़े विज्ञापन छापता है। प्रवचन के नाम पर परोसी जा रही उनकी बकवास का सीधा प्रसारण करता है। उनके एक इशारे पर जी हुजूरी करने पहुंच जाता है और उनकी शान में मौके-बेमौके कसीदे पढ़ता है, क्या उसे किसी बड़ी वारदात से पहले कोई कृपालु महाराज या राधे मां दिखाई नहीं देती।
सवाल बहुत से हैं लेकिन जवाब किसी का नहीं।
यही सब कारण हैं कि बंटवारे के बाद आकर बसा मामूली सा कोई आसूमल आसाराम बन जाता है और नाच-गाकर कथा करने वाले रामकृपाल, कृपालु महाराज बन बैठता है। पंजाब की सामान्य घरेलू युवती पहले राधेमां और फिर महामण्डलेश्वर बनने में सफल रहती है।
सच तो यह है कि धर्म के धंधे में फर्श से अर्श तक पहुंचने वालों की लंबी फेहरिस्त है लेकिन जैसे देश में दूसरे अवैध धंधे फल-फूल रहे हैं, वैसे धर्म का धंधा भी बुलंदियां छू रहा है।
एक आसाराम की गिरफ्तारी से फिलहाल इस पर ग्रहण लगने की दूर-दूर तक कोई संभावना नजर नहीं आती।
समाज के लिए कोढ़ बन चुके आसाराम और कृपालुओं से यदि मुक्ति पानी है तो इनकी जड़ों को काटना होगा। इनकी आमदनी के स्त्रोत बंद करने होंगे। इनके संरक्षणदाताओं को भी सामने लाना होगा अन्यथा यह इसी प्रकार देश, धर्म व समाज को कलंकित करते रहेंगे और धर्म को बदनाम करेंगे।
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