शनिवार, 14 सितंबर 2013

कौन होगा मथुरा का 'मोदी' ?

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष) तमाम जद्दोजहद के बाद भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्‍द्र मोदी के सिर प्रधानमंत्री पद की उम्‍मीदवारी का सेहरा अंतत: बांध दिया। एक बड़ा चैप्‍टर क्‍लोज हो गया लेकिन लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इससे कई नए चैप्‍टर खुल गए।
देश-दुनिया और पक्ष-विपक्ष की बात किनारे करके अगर बात करें सिर्फ कृष्‍ण नगरी की, तो मोदी के गुजरात का यहां से गहरा नाता जो है। कुछ वैसा ही जैसा कृष्‍ण का द्वारिका से और द्वारिकाधीश का मथुरा से। जाहिर है कि इस रिश्‍ते का प्रभाव मथुरा की राजनीति को भी अवश्‍य प्रभावित करेगा।
राजनीति के सिरमौर श्रीकृष्‍ण की इस जन्‍मभूमि का उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में वही स्‍थान है जो देश की राजनीति में उत्‍तर प्रदेश का।
किसी भी चुनाव में यहां होने वाली हार-जीत का असर समूचे राजनीतिक परिदृश्‍य पर साफ दिखाई देता है।
ऐसे में महत्‍वपूर्ण हो जाता है यह प्रश्‍न कि मथुरा में लोकसभा की उम्‍मीदवारी का सेहरा किसके सिर बंधेगा....... यानि कौन होगा मथुरा का मोदी?

इस प्रश्‍न की महत्‍ता इसलिए और बढ़ जाती है कि जिस प्रकार देश एक लंबे समय से राजनीतिक दरिद्रता भोग रहा है, उसी प्रकार मथुरा भी काफी समय से राजनीतिक दरिद्रता का शिकार है।
इसके अलावा मोदी की उम्‍मीदवारी जितनी जटिल थी, उससे कतई कम जटिल नहीं है मथुरा के लोकसभा उम्‍मीदवार का चयन क्‍योंकि मोदी और मथुरा के हालातों में बड़ी समानता है।
जैसे भाजपा की राष्‍ट्रीय राजनीति एक भीष्‍मपितामह को लेकर द्विविधाग्रस्‍त थी, वैसे ही मथुरा की राजनीति को भी एक भीष्‍मपिताह द्विविधाग्रस्‍त बनाये रखने में बड़ी भूमिका अदा करते हैं।
भाजपा के नीति निर्धारकों की तरह मथुरा के नीति निर्धारक भी खेमेबंदी के शिकार हैं और इसीलिए राष्‍ट्रीय नेतृत्‍व की तरह यहां भी गुटबाजी एक बड़ी समस्‍या है।
राष्‍ट्रीय नेतृत्‍व की भांति मथुरा के युवा भाजपायी यह जानते हैं कि भुने हुए चने चाहे हाजमा दुरुस्‍त रखने में कितने ही कारगर हों परंतु उनसे खेती नहीं की जा सकती, लिहाजा वह चाहते हैं कि किसी ऊर्जावान उम्‍मीदवार को उतारा जाए ताकि मथुरा में पार्टी की फसल फिर लहलहा उठे।
सब-कुछ जानते व समझते हुए उनकी परेशानी यह है कि उन्‍हें सुनने वाला कोई नहीं और पद लोलुप पार्टीजन उनकी आवाज़ सही प्‍लेटफार्म तक पहुंचने भी नहीं देते जबकि मथुरा को बेसब्री से इंतजार है किसी ऐसे जनप्रतिनिधि का जो सही मायनों में अपने जनप्रतिनिधि होने का अहसास करा सके और ब्रजभूमि को उसकी गरिमा के अनुरूप स्‍वरूप प्रदान करा पाए।
चूंकि फिलहाल बात कर रहे हैं भारतीय जनता पार्टी की तो इसी को आगे बढ़ाते हुए यह जानने का प्रयास किया जाए कि क्‍या मोदी के प्रभाव वाली भाजपा मथुरा को कोई ऐसा लोकसभा प्रत्‍याशी दिलायेगी जो न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं को मान्‍य हो बल्‍कि जनता को भी पसंद आये।
यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि मथुरा से भाजपा के कौन-कौन नेता लोकसभा की उम्‍मीदवारी का दावा कर रहे हैं और उनकी पार्टी व जनता के बीच कितनी अहमियत है।
2014 के लिए उम्‍मीदवारी के प्रबल दावेदारों की सूची यूं तो बहुत लंबी है लेकिन कुछ नाम जो उभरकर आ रहे हैं उनमें पूर्व सांसद चौधरी तेजवीर सिंह, पूर्व विधायक चौधरी प्रणतपाल सिंह, पूर्व विधायक व उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग, शिक्षा व्‍यवसाई एस. के. शर्मा, राजेश चौधरी एवं ठाकुर कारिन्‍दा सिंह प्रमुख हैं।
उल्‍लेखनीय है कि 2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने राष्‍ट्रीय लोकदल से गठबंधन के चलते मथुरा की सीट जयंत चौधरी के नाम लिख दी थी। भाजपा के सहारे जयंत चौधरी को तो उम्‍मीद से बड़ी सफलता मिली किंतु भाजपा को उससे भी बड़ी निराशा।
कृष्‍ण की जिस नगरी में इससे पहले जहां भाजपा का परचम लहराया करता था, वहीं उसके पतन की नित-नई कहानियां लिखी जाने लगीं।
बहरहाल, 2014 के लोकसभा चुनाव सामने हैं और मथुरा के लिए भाजपा अब तक किसी उम्‍मीदवार का चयन नहीं कर पाई है।
वो भी तब जबकि दूसरी विपक्षी पार्टियों ने अपने-अपने पत्‍ते कब के खोल दिए हैं। बहुजन समाज पार्टी ने योगेश द्विवेदी के रूप में ब्रह्मण पर दांव खेला है तो समाजवादी पार्टी ने ठाकुर चंदन सिंह को अपना उम्‍मीदवार बनाया है। राष्‍ट्रीय लोकदल से गठबंधन को देखते हुए कांग्रेस अपना लोकसभा प्रत्‍याशी यहां खड़ा नहीं करेगी और रालोद के युवराज व वर्तमान सांसद जयंत चौधरी ही फिर यहां मैदान मारने उतरेंगे।
भारतीय जनता पार्टी की उम्‍मीदवारी के चयन में सबसे बड़ी दिक्‍कत यह है कि दावेदारों की खासी तादाद होने के बाद भी कोई चेहरा ऐसा नहीं है, जिसे आंख बंद करके उतारा जा सके।
चौधरी तेजवीर सिंह को मथुरा की जनता ने भरपूर मौका दिया लेकिन उनके खाते में ऐसा कोई उल्‍लेखनीय काम नहीं है जो उनके संसदीय कार्यकाल की याद दिलाता हो।
चौधरी प्रणतपाल सिंह किस आधार पर लोकसभा चुनाव लड़ने का दावा पेश कर रहे हैं, यह समझ से परे है।
शिक्षा व्‍यवसाई एस. के. शर्मा की दावेदारी में सबसे बड़ा रोड़ा बसपा का बाह्मण उम्‍मीदवार है क्‍योंकि एक ब्राह्मण के रहते भाजपा किसी ब्राह्मण को उतारने का जोखिम नहीं उठायेगी।
यही समस्‍या ठाकुर उम्‍मीदवार के रूप में समाजवादी पार्टी के चंदन सिंह की वजह से ठाकुर कारिन्‍दा सिंह को लेकर भाजपा के सामने है।
राजेश चौधरी बेशक युवा होने के साथ-साथ ऊर्जावान भी हैं लेकिन उनका जाट होना इसलिए समीकरण बिगाड़ रहा है क्‍योंकि राष्‍ट्रीय लोकदल के युवराज जयंत चौधरी सामने हैं और कांग्रेस का सहयोग उनके खाते में है।
वर्तमान दावेदारों में एक और नाम वैश्‍य समाज के रविकांत गर्ग का है। रविकांत गर्ग की पहचान अपनी उम्र से अधिक जुझारू तथा ऊर्जावान नेता की है लेकिन जातिगत समीकरण उनके लिए कितने फिट बैठते हैं, यह कहना मुश्‍किल होगा।
मुश्‍किल इसलिए क्‍योंकि राजनीति में जिस तरह निष्‍ठाएं बदलते देर नहीं लगती, उसी तरह उम्‍मीदवारों का भी उलटफेर होते देर नहीं लगती। सपा हो या बसपा, भाजपा हो या कांग्रेस, कौन सी पार्टी कब अपना उम्‍मीदवार बदल दे, कहा नहीं जा सकता।
तब स्‍थितियां देखते-देखते बदल जाती हैं और देखते-देखते बदल जाते हैं उम्‍मीदवार।
पार्टियां उम्‍मीदवार बदलती हैं तो चुनाव लड़ने को कमर कस चुके नेता, निष्‍ठाएं बदलने में देर नहीं लगाते। आज जो कमल के फूल को लेकर निष्‍ठावान है, कल वही हाथी की सूंड से लटका दिखाई देगा। जिसे साइकिल की सवारी रास आ रही है, वह कांग्रेस के हाथ का सहारा लेने से नहीं चूकेगा। निष्‍ठाओं के साथ दल बदलने की इस लाइलाज बीमारी से न कोई दल बचा हुआ है और न कोई नेता।
2014 के लिए शंखनाद होने तक कौन किसके प्रति निष्‍ठवान रहेगा और कौन किसका फाइनल उम्‍मीदवार होगा, यह बता पाना नि:संदेह कठिन है लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी उम्‍मीदवारी के चयन में काफी पीछे है।
पीछे इसलिए है कि मथुरा के लिए उम्‍मीदवारी का चयन मोदी की पीएम पद के लिए उम्‍मीदवारी जितना जटिल न सही, पर उससे कम भी नहीं है।
अब देखना यह है कि नये कलेवर वाली भाजपा मथुरा में अपनी खोई हुई जमीन हासिल कर पाती है या नहीं।
मथुरा के लिए क्‍या कोई ऐसा उम्‍मीदवार मिलेगा जो भाजपा को यहां पुनर्स्‍थापित कर सके और उसकी वो प्रतिष्‍ठा कायम करा सके जिस पर उसे कभी नाज हुआ करता था।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 15/09/2013 को ज़िन्दगी एक संघर्ष ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः005 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ....ललित चाहार
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