शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

ना इधर-उधर की तू बात कर, ये बता कि काफिला क्यूं लुटा

नई दिल्‍ली। 
"हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, ना जाने कितने सवालों की आबरू रखी।" कुछ इस शायराना अंदाज में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोलगेट मामले में विपक्ष के पूछे सवालों का जवाब दिया था और आज दस साल में तीसरी बार मनमोहन खुद प्रेस कांफ्रेंस कर कई अहम सवालों का जवाब दे रहे हैं।
आखिर अब ऎसा क्या हो गया, जो उन्हें अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ रही है। आईए जानते हैं कि वो क्या मजबूरियां हैं जिनके चलते उनको सालों की चुप्पी तोड़नी पड़ रही है।
दिसंबर 2013 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जनता ने सिरे से नकार दिया। कांग्रेस को राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में मुंह की खानी पड़ी। पार्टी की थोड़ी सी लाज केवल मिजोरम में बची, जहां उनकी सरकार फिर से सत्ता में आई।
इन चार राज्यों हुई दुर्गती ने कांग्रेस की आंखे खोल दी। जनता ने अपना गुस्सा कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाकर जाहिर किया। चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस को अहसास हो गया कि जनता ने पार्टी को पूरी तरह से नकार दिया है, अगर अब कोई कोशिश नहीं हुई तो लोकसभा चुनाव में और भी बुरे परिणामों से दो-चार होना पड़ सकता है। माना जा रहा है कि मनमोहन सिंह की चुप्पी और अन्य कांग्रेस नेताओं का बड़बोलापन भी हार का एक बड़ा कारण रहा।
इन चार राज्यों के चुनाव में यह भी सामने आया कि कांग्रेस को अगर डूबने से बचाना है, तो परम्परा को तोड़ते हुए चुनाव से पहले प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करना होगा। फिलहाल कांग्रेस के पास केवल एक नाम है जिसको लेकर पार्टी आशान्वित है। वह नाम है कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का।
मनमोहन को अपनी पारी समेटने और राहुल गांधी की नई पारी के आगाज के लिए चुप्पी तोड़ने की जरूरत पड़ी। इससे पहले भी मनमोहन राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का संकेत यह कहकर दे चुके हैं कि वे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने का तैयार हैं।
मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के अब तक के कार्यकाल में मंहगाई ने जमकर आम आदमी के सब्र की परीक्षा ली। खुद मनमोहन और वित्तमंत्री की लाख कोशिशों के बावजूद मंहगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती रही। मंहगाई फैक्टर ने न केलव कांग्रेस को दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में सबक सिखाया, वल्कि संकेत भी दे दिए कि लोकसभा चुनाव मे भी इतिहास दोहराया जा सकता है।
जब शायरी में किया जवाब-तलब
पिछले वर्ष मार्च में मनमोहन सिंह ने संसद में कुछ इस तरह से विपक्ष को खरी-खरी सुनाई-
"हमको है उनसे वफा की उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है।"
इस बार विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ये दिया जवाब-
"कुछ तो मजबूरियां रही होंगी यूं कोई बेवफा नहीं होता।"
इसके बाद सुषमा ने फिर शायरना अंदाज में कहा-
"तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं,
जिंदगी और मौत के तो दो ही रास्ते हैं,
एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं।"

कुछ वर्ष पहले विकीलिक्स मामले पर संसद में डिबेट के दौरान मनमोहन सिंह ने आलम इकबाल का लिखा शेर सुषमा स्वराज पर निशाना साधते हुए कहा-
"माना की तेरे दीद के काबिल नहीं हूं मैं,
तुम मेरा शौक तो देख, मेरा इंतजार तो कर।"

मनमोहन इस शायरी को पढ़ते हुए मुस्कुराते रहे और सदन में ठहाके गूंज उठे।
सुषमा ने भी मुस्कुराते हुए इकबाल का ही एक शेर पढ़ा-
"ना इधर-उधर की तू बात कर, ये बता कि काफिला क्यूं लुटा,
हमें रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है..."

-एजेंसी

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