भ्रामक और गुमराह करने वाले विज्ञापनों के लिए यदि उनके मॉडल्स को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है तो फिर Media को क्यों नहीं ?
यह बड़ा सवाल इसलिए खड़ा होता है क्योंकि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद (CCPC) जल्द ही भ्रामक और गुमराह करने वाले विज्ञापनों के लिए उन मॉडल्स अथवा सेलेब्रिटी को भी जिम्मेदार ठहराने की व्यवस्था करने जा रही है जो ऐसे विज्ञापनों का हिस्सा बनते हैं। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद के अध्यक्ष हैं।
रामविलास पासवान का कहना है कि ब्रांड एंबेसेडर के लिए दिशा-निर्देश होने चाहिए और ब्रांड एंबेसेडर को भी किसी उत्पाद या सेवा का विज्ञापन करने से पहले खुद अच्छे से विचार कर लेना चाहिए।
गौरतलब है कि टीडीपी सांसद जेसी दिवाकर रेड्डी की अध्यक्षता में गठित संसद की एक स्थाई समिति भ्रामक विज्ञापनों के मुद्दे की समीक्षा कर रही है। जल्द ही यह समिति संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली है।
बताया जाता है कि समिति की सिफारिशों के मुताबिक यदि इस मुद्दे पर अमल किया गया तो भ्रामक विज्ञापन करने वाले मॉडल या सेलिब्रिटी के ऊपर न केवल भारी जुर्माने की व्यवस्था होगी बल्कि पांच वर्ष तक की सजा का प्रावधान भी होगा।
पहली बार भ्रामक विज्ञापन करने पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना या 2 वर्ष की जेल अथवा दोनों एक साथ और दूसरी बार करने पर 50 लाख तक का जुर्माना या 5 वर्ष की सजा अथवा दोनों एक साथ हो सकते हैं।
भ्रामक, असत्य और गुमराह करने वाले विज्ञापनों में किसी भी प्रकार से संलिप्त मॉडल्स या सेलेब्रिटी को उसके लिए जिम्मेदार ठहराए जाने पर शायद ही किसी को कोई एतराज हो क्योंकि यह सीधे देश की जनता से जुड़ा मामला है लेकिन क्या ऐसे विज्ञापनों के लिए मीडिया जिम्मेदार नहीं है जो उन उत्पादों के प्रचार व प्रसार का मुख्य जरिया बना हुआ है।
जिस प्रकार कोई मॉडल या सेलेब्रिटी किसी उत्पाद का विज्ञापन करने के लिए मोटी रकम लेता है, ठीक वैसे ही मीडिया उसका प्रचार व प्रसार करने के लिए भी भारी-भरकम रकम लेता है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि एक प्रवृति के अपराध पर किसी के लिए बड़ी सजा का प्रावधान और किसी के लिए पूरी स्वतंत्रता क्यों ?
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि मॉडल्स या सेलेब्रिटी हर विज्ञापन का हिस्सा नहीं होते। टीवी और अखबारों में काफी बड़ी तादाद ऐसे विज्ञापनों की भी होती है जिनमें कोई मॉडल या सेलेब्रिटी नहीं होता।
उदाहरण के लिए लगभग समूचा इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ऐसे धार्मिक व्यापारियों का प्रचार-प्रसार करने में लगा है जो हर समस्या का समाधान चुटकी बजाकर कर देने का दावा करते हैं।
कोई रंग-बिरंगी और कलंगी लगी टोपियों से सुसज्जित है तो कोई साधारण वेश-भूषा में असाधारण चमत्कारिक कार्य पूरे करने के नुस्खे पैसे लेकर बांट रहा है। कोई वशीकरण करने का ठेका ले रहा है तो कोई असाध्य रोगों का इलाज तंत्र-मंत्र के जरिए कर रहा है। किसी के पास एकतरफा ”प्यार” का दोतरफा बना देने का तरीका है तो कोई अकूत दौलत व शौहतर अर्जित कराने के उपाय बता रहा है।
मजे की बात यह है कि कोई धर्म, कोई संप्रदाय अब ऐसे टोने-टोटके करने वालों से अछूता नहीं है। ज्यातिषी, नजूमी और भविष्यवक्ताओं की भी जैसे पूरी फौज विभिन्न टीवी चैनल्स पर जुटी पड़ी है, और यह सब टीवी चैनल्स की मोटी कमाई का माध्यम बने हुए हैं। नामचीन अखबारों का हाल तो और भी बुरा है। वह एक ओर जहां खुलेआम लिंग वर्धक यंत्रों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर मसाज पॉर्लर तथा दूसरे ऐसे माध्यमों से युवक-युवतियों को मोटी कमाई का लालच देने वाले विज्ञापन भी छाप रहे हैं।
अपने बचाव के लिए अखबार सिर्फ करते हैं तो इतना कि वह विज्ञापनों के अंत में एक छोटे से बॉक्स के अंदर इस आशय का डिस्क्लेमर दे देते हैं कि समाचार पत्र में छपे विज्ञापनों की सत्यता का पता उपभोक्ता अपने स्तर से कर लें। समाचार पत्र इसके लिए किसी तरह जिम्मेदार नहीं होगा।
किसी भी आपराधिक कृत्य में संलिप्त कोई संस्था अथवा व्यक्ति क्या मात्र डिस्क्लेमर देकर खुद का उससे पल्ला झाड़ सकता है?
सब-कुछ जानते व समझते हुए उस आपराधिक कृत्य का पैसा लेकर प्रचार-प्रसार करने वाले मीडिया की जिम्मेदारी क्या मात्र एक डिस्क्लेमर देकर पूरी हो जाती है ?
यदि ऐसा है और यह सुविधा मीडिया के लिए उपलब्ध है तो फिर मॉडल्स व सेलेब्रिटी के लिए क्यों नहीं?
ऐसा भी हो सकता है कि मॉडल्स या सेलेब्रिटी के लिए ऐसा कानून बनने के साथ ही वह भी इस सुविधा का लाभ उठाने लगें। वह किसी संदिग्ध उत्पाद के विज्ञापन में कहीं छोटे-छोटे अक्षरों से लिखवा दें कि उत्पाद की गुणवत्ता के बारे में उपभोक्ता अपने स्तर से जानकारी कर लें, मॉडल इसके लिए किसी तरह जिम्मेदार नहीं होगा।
टीवी हो या अखबार, अथवा आज के दौर का कोई दूसरा मीडिया ही क्यों न हो, हर एक पर आने वाले विज्ञापनों में से अधिकांश भ्रामक व गुमराह करने वाले ही होते हैं। सत्यता से उनका दूर-दूर तक वास्ता नहीं होता।
खास पान मसाले के विज्ञापन में बताया जा रहा है कि उसका सेवन करने वाले के दिमाग में ही पानी बचाने का आइडिया आता है। खास परफ्यूम लगाने वाले युवकों पर लड़कियां जान न्यौछावर करने लगती हैं, वह उनके पीछे सब-कुछ करने व कराने को दौड़ी चली आती हैं। खास कोलड्रिंक पीने वाला ही मर्दानगी दिखा सकता है और खास बनियाइन या अंडरवियर पहनने वाला ही समाज में हो रहे अत्याचारों को रोकने में सक्षम है। यह सब क्या है।
क्या मीडिया इन्हें जनहित में जारी करता है, क्या वह इसके लिए उसी प्रकार मोटी रकम नहीं लेता जिस प्रकार कोई मॉडल या सेलेब्रिटी लेता है?
यदि दोनों ही किसी आपराधिक कृत्य में पैसों के लिए जान-बूझकर शामिल हो रहे हैं तो अपराधी कोई एक कैसे हुआ ?
केंद्र सरकार यदि लोगों को भ्रामक विज्ञापनों के जरिए बिकने वाले घटिया उत्पादों तथा उनके पीछे छिपी आपराधिक मंशा से छुटकारा दिलाना चाहती है तो उसे मॉडल्स व सेलेब्रिटी के साथ-साथ मीडिया को भी ऐसे कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराने की व्यवस्था करनी होगी अन्यथा शातिर दिमाग लोग इसके लिए बनने वाले कानून का भी उसी प्रकार मजाक उड़ाते रहेंगे जिस प्रकार दूसरे अपराधों के लिए बने कानून का उड़ाते हैं। कोई एक डिस्क्लेमर देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेगा और कोई कानून में छोड़े गए सुराखों से साफ निकल जायेगा। रह जायेगी वो जनता जो कानून होते हुए असहाय बनी रहती है।
-Legendnews
यह बड़ा सवाल इसलिए खड़ा होता है क्योंकि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद (CCPC) जल्द ही भ्रामक और गुमराह करने वाले विज्ञापनों के लिए उन मॉडल्स अथवा सेलेब्रिटी को भी जिम्मेदार ठहराने की व्यवस्था करने जा रही है जो ऐसे विज्ञापनों का हिस्सा बनते हैं। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद के अध्यक्ष हैं।
रामविलास पासवान का कहना है कि ब्रांड एंबेसेडर के लिए दिशा-निर्देश होने चाहिए और ब्रांड एंबेसेडर को भी किसी उत्पाद या सेवा का विज्ञापन करने से पहले खुद अच्छे से विचार कर लेना चाहिए।
गौरतलब है कि टीडीपी सांसद जेसी दिवाकर रेड्डी की अध्यक्षता में गठित संसद की एक स्थाई समिति भ्रामक विज्ञापनों के मुद्दे की समीक्षा कर रही है। जल्द ही यह समिति संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली है।
बताया जाता है कि समिति की सिफारिशों के मुताबिक यदि इस मुद्दे पर अमल किया गया तो भ्रामक विज्ञापन करने वाले मॉडल या सेलिब्रिटी के ऊपर न केवल भारी जुर्माने की व्यवस्था होगी बल्कि पांच वर्ष तक की सजा का प्रावधान भी होगा।
पहली बार भ्रामक विज्ञापन करने पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना या 2 वर्ष की जेल अथवा दोनों एक साथ और दूसरी बार करने पर 50 लाख तक का जुर्माना या 5 वर्ष की सजा अथवा दोनों एक साथ हो सकते हैं।
भ्रामक, असत्य और गुमराह करने वाले विज्ञापनों में किसी भी प्रकार से संलिप्त मॉडल्स या सेलेब्रिटी को उसके लिए जिम्मेदार ठहराए जाने पर शायद ही किसी को कोई एतराज हो क्योंकि यह सीधे देश की जनता से जुड़ा मामला है लेकिन क्या ऐसे विज्ञापनों के लिए मीडिया जिम्मेदार नहीं है जो उन उत्पादों के प्रचार व प्रसार का मुख्य जरिया बना हुआ है।
जिस प्रकार कोई मॉडल या सेलेब्रिटी किसी उत्पाद का विज्ञापन करने के लिए मोटी रकम लेता है, ठीक वैसे ही मीडिया उसका प्रचार व प्रसार करने के लिए भी भारी-भरकम रकम लेता है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि एक प्रवृति के अपराध पर किसी के लिए बड़ी सजा का प्रावधान और किसी के लिए पूरी स्वतंत्रता क्यों ?
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि मॉडल्स या सेलेब्रिटी हर विज्ञापन का हिस्सा नहीं होते। टीवी और अखबारों में काफी बड़ी तादाद ऐसे विज्ञापनों की भी होती है जिनमें कोई मॉडल या सेलेब्रिटी नहीं होता।
उदाहरण के लिए लगभग समूचा इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ऐसे धार्मिक व्यापारियों का प्रचार-प्रसार करने में लगा है जो हर समस्या का समाधान चुटकी बजाकर कर देने का दावा करते हैं।
कोई रंग-बिरंगी और कलंगी लगी टोपियों से सुसज्जित है तो कोई साधारण वेश-भूषा में असाधारण चमत्कारिक कार्य पूरे करने के नुस्खे पैसे लेकर बांट रहा है। कोई वशीकरण करने का ठेका ले रहा है तो कोई असाध्य रोगों का इलाज तंत्र-मंत्र के जरिए कर रहा है। किसी के पास एकतरफा ”प्यार” का दोतरफा बना देने का तरीका है तो कोई अकूत दौलत व शौहतर अर्जित कराने के उपाय बता रहा है।
मजे की बात यह है कि कोई धर्म, कोई संप्रदाय अब ऐसे टोने-टोटके करने वालों से अछूता नहीं है। ज्यातिषी, नजूमी और भविष्यवक्ताओं की भी जैसे पूरी फौज विभिन्न टीवी चैनल्स पर जुटी पड़ी है, और यह सब टीवी चैनल्स की मोटी कमाई का माध्यम बने हुए हैं। नामचीन अखबारों का हाल तो और भी बुरा है। वह एक ओर जहां खुलेआम लिंग वर्धक यंत्रों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर मसाज पॉर्लर तथा दूसरे ऐसे माध्यमों से युवक-युवतियों को मोटी कमाई का लालच देने वाले विज्ञापन भी छाप रहे हैं।
अपने बचाव के लिए अखबार सिर्फ करते हैं तो इतना कि वह विज्ञापनों के अंत में एक छोटे से बॉक्स के अंदर इस आशय का डिस्क्लेमर दे देते हैं कि समाचार पत्र में छपे विज्ञापनों की सत्यता का पता उपभोक्ता अपने स्तर से कर लें। समाचार पत्र इसके लिए किसी तरह जिम्मेदार नहीं होगा।
किसी भी आपराधिक कृत्य में संलिप्त कोई संस्था अथवा व्यक्ति क्या मात्र डिस्क्लेमर देकर खुद का उससे पल्ला झाड़ सकता है?
सब-कुछ जानते व समझते हुए उस आपराधिक कृत्य का पैसा लेकर प्रचार-प्रसार करने वाले मीडिया की जिम्मेदारी क्या मात्र एक डिस्क्लेमर देकर पूरी हो जाती है ?
यदि ऐसा है और यह सुविधा मीडिया के लिए उपलब्ध है तो फिर मॉडल्स व सेलेब्रिटी के लिए क्यों नहीं?
ऐसा भी हो सकता है कि मॉडल्स या सेलेब्रिटी के लिए ऐसा कानून बनने के साथ ही वह भी इस सुविधा का लाभ उठाने लगें। वह किसी संदिग्ध उत्पाद के विज्ञापन में कहीं छोटे-छोटे अक्षरों से लिखवा दें कि उत्पाद की गुणवत्ता के बारे में उपभोक्ता अपने स्तर से जानकारी कर लें, मॉडल इसके लिए किसी तरह जिम्मेदार नहीं होगा।
टीवी हो या अखबार, अथवा आज के दौर का कोई दूसरा मीडिया ही क्यों न हो, हर एक पर आने वाले विज्ञापनों में से अधिकांश भ्रामक व गुमराह करने वाले ही होते हैं। सत्यता से उनका दूर-दूर तक वास्ता नहीं होता।
खास पान मसाले के विज्ञापन में बताया जा रहा है कि उसका सेवन करने वाले के दिमाग में ही पानी बचाने का आइडिया आता है। खास परफ्यूम लगाने वाले युवकों पर लड़कियां जान न्यौछावर करने लगती हैं, वह उनके पीछे सब-कुछ करने व कराने को दौड़ी चली आती हैं। खास कोलड्रिंक पीने वाला ही मर्दानगी दिखा सकता है और खास बनियाइन या अंडरवियर पहनने वाला ही समाज में हो रहे अत्याचारों को रोकने में सक्षम है। यह सब क्या है।
क्या मीडिया इन्हें जनहित में जारी करता है, क्या वह इसके लिए उसी प्रकार मोटी रकम नहीं लेता जिस प्रकार कोई मॉडल या सेलेब्रिटी लेता है?
यदि दोनों ही किसी आपराधिक कृत्य में पैसों के लिए जान-बूझकर शामिल हो रहे हैं तो अपराधी कोई एक कैसे हुआ ?
केंद्र सरकार यदि लोगों को भ्रामक विज्ञापनों के जरिए बिकने वाले घटिया उत्पादों तथा उनके पीछे छिपी आपराधिक मंशा से छुटकारा दिलाना चाहती है तो उसे मॉडल्स व सेलेब्रिटी के साथ-साथ मीडिया को भी ऐसे कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराने की व्यवस्था करनी होगी अन्यथा शातिर दिमाग लोग इसके लिए बनने वाले कानून का भी उसी प्रकार मजाक उड़ाते रहेंगे जिस प्रकार दूसरे अपराधों के लिए बने कानून का उड़ाते हैं। कोई एक डिस्क्लेमर देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेगा और कोई कानून में छोड़े गए सुराखों से साफ निकल जायेगा। रह जायेगी वो जनता जो कानून होते हुए असहाय बनी रहती है।
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