मथुरा। कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और क्रीड़ा स्थली वृंदावन को मिलाकर पहली बार नगर निगम बनी मथुरा में भारतीय जनता पार्टी उधार के सिंदूर से सुहाग सहेजने को मजबूर है।
दरअसल, भाजपा के सामने यह स्थिति मथुरा-वृंदावन का ”मेयर” पद अनुसूचित जाति के लिए ”आरक्षित” हो जाने के कारण पैदा हुई है क्योंकि मथुरा-वृंदावन में भाजपा के पास अनुसूचित जाति का कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं है जो पूरी तरह भाजपा को समर्पित रहा हो या पार्टी का वफादार सिपाही माना जा सके।
मथुरा में भाजपा के पास उसी प्रकार मेयर पद के लिए अनुसूचित जाति के अपने किसी प्रत्याशी का अभाव है जिस प्रकार लोकसभा चुनाव के लिए स्थानीय प्रत्याशी का अभाव था लिहाजा तब काफी दिमागी कसरत के बाद स्वप्न सुंदरी का खिताब प्राप्त सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी को लाया गया।
विधानसभा चुनावों में भी मथुरा-वृंदावन सीट के लिए श्रीकांत शर्मा को दिल्ली से लाना पड़ा, हालांकि श्रीकांत शर्मा कस्बा गोवर्धन (मथुरा) के ही मूल निवासी हैं किंतु वह करीब दो दशक पहले मथुरा को छोड़ चुके थे इसलिए उन्हें बाहरी प्रत्याशी माना गया।
निकाय चुनावों में पहली बार मेयर पद (आरक्षित) के लिए चुनाव लड़ रही मथुरा नगरी के अंदर भाजपा के पास जो संभावित प्रत्याशी दिखाई दे रहे हैं उनमें पूर्व विधायक श्याम सिंह अहेरिया, पूर्व विधायक अजय पोइया और बल्देव क्षेत्र से भाजपा के विधायक पूरन प्रकाश के पुत्र पंकज प्रकाश प्रमुख हैं।
श्याम सिंह अहेरिया सबसे पहले भाजपा की ही टिकट पर गोवर्धन (आरक्षित) सीट से विधायक चुने गए किंतु बाद के चुनावों में जब भाजपा ने उनका टिकट काट दिया तो वह अपने पुत्र सहित ”समाजवादी” हो लिए। उनके पुत्र को समाजवादी पार्टी ने सत्ता में रहते दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री के पद से भी नवाजा था।
समाजवादी पार्टी के सत्ता से बेदखल होने पर वह फिर भाजपाई हो गए किंतु अब उन्हें पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता अथवा वफादार सिपाही नहीं माना जा सकता।
इसी प्रकार एडवोकेट अजय कुमार पोइया का राजनीतिक सफर भी भाजपा की टिकट पर गोवर्धन सुरक्षित सीट से निर्वाचित होने के साथ शुरू हुआ। इससे पहले अजय कुमार पोइया मथुरा में ही वकालत की प्रेक्टिस करते थे।
बाद के चुनावों में पार्टी से उपेक्षित अनुभव करने के कारण अजय कुमार पोइया ने भी भाजपा का दामन छोड़ दिया और बहुजन समाज पार्टी की गोद में जा बैठे। बहुजन समाज पार्टी में रहते हुए कोई उपलब्धि हासिल न होने पर अजय कुमार पोइया एकबार फिर भाजपा की शरण में लौट आए।
गत विधानसभा चुनावों में बल्देव सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की उम्मीद पाले बैठे अजय कुमार पोइया को तब तगड़ा झटका लगा जब पार्टी ने उनकी बजाय राष्ट्रीय लोकदल से भाजपा में आए सिटिंग विधायक पूरन प्रकाश को बल्देव से चुनाव लड़ाने का फैसला किया।
पार्टी से मिले इस झटके पर अजय पोइया ने पूरन प्रकाश के खिलाफ अपने पुत्र को चुनाव लड़ने के लिए खड़ा कर दिया, और दलील यह दी कि वह तो पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं किंतु पुत्र द्वारा चुनाव लड़ना उसका अपना निर्णय था।
यानि अजय पोइया एकबार फिर पार्टी के प्रति बड़ी चालाकी के साथ बेवफाई पर उतर आए ताकि संभव हो तो सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे की कहावत को चरितार्थ कर सकें।
यह बात अलग है कि अजय पोइया के पुत्र, पूरन प्रकाश का कुछ नहीं बिगाड़ सके और पूरन प्रकाश लगातार दूसरी बार बल्देव सुरक्षित सीट से निर्वाचित होने में सफल रहे।
जहां तक सवाल पूरन प्रकाश के पुत्र पंकज प्रकाश का है तो बेशक उन्होंने 2010 के जिला पंचायत चुनावों में सर्वाधिक मतों से चुनाव जीतकर एक रिकॉर्ड कायम किया किंतु बुनियादी रूप से उनके विधायक पिता या दादा का कभी भाजपा की नीतियों में विश्वास देखने को नहीं मिला। पंकज प्रकाश के दादा मास्टर कन्हैया लाल भी विधायक रहे थे लेकिन भाजपा से कभी उनका कोई वास्ता नहीं रहा।
इन तीन प्रमुख दावेदारों के अलावा जो अन्य दो दावेदार हैं उनमें से एक मुकेश आर्यबंधु के पूरे परिवार की निष्ठा हमेशा कांग्रेस से जुड़ी रही है और उनके बड़े भाई ब्रजमोहन बाल्मीकि ने कांग्रेस की टिकट पर गोवर्धन सुरक्षित सीट से ही चुनाव भी लड़ा था।
दूसरे दावेदार ब्रजेश खरे ही एकमात्र ऐसे दावेदार हैं जो पूर्व में भाजपा सभासद रह चुके हैं और एक लंबे समय से भाजपा के प्रति समर्पित हैं किंतु ब्रजेश खरे की दो पूर्व विधायकों तथा एक विधायक पुत्र के सामने कितनी दाल गल पाएगी, यह देखने वाली बात होगी।
भाजपा की सबसे बड़ी समस्या ही यह है कि विश्व विख्यात धार्मिक नगरी मथुरा राजनीतिक रूप से उसके लिए चाहे कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हो किंतु यहां उसके पास कद्दावर नेताओं का काफी समय से अभाव रहा है।
2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को रालोद के युवराज जयंत चौधरी को समर्थन देना पड़ा क्योंकि तब भी भाजपा के पास कोई दमदार उम्मीदवार नहीं था।
यह स्थिति तो तब है जबकि मथुरा से दो बार भाजपा की टिकट पर डॉ. सच्चिदानंद हरि साक्षी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे और तीन बार वर्तमान जिलाध्यक्ष चौधरी तेजवीर सिंह सांसद चुने गए।
उधार के सिंदूर या बेवफाओं में से किसी को मेयर पद पर चुनाव लड़वाना भाजपा को इसलिए मुसीबत में डाल सकता है क्योंकि निवर्तमान पालिका अध्यक्ष मनीषा गुप्ता भी जनआंकाक्षाओं पर खरी नहीं उतरीं। साथ ही उनके ऊपर पौने दो करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप भी एनजीटी में लंबित है।
मनीषा गुप्ता के कार्यकाल में यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए किए जाने वाले उपायों से पैसे का तो खूब बंदरबांट हुआ किंतु यमुना हर दिन पहले से अधिक प्रदूषित होती गई।
जाहिर है कि मनीषा गुप्ता के कार्यकाल की छाया भी इन नगर निकाय चुनावों में किसी न किसी स्तर पर देखने को जरूर मिलेगी क्योंकि यमुना प्रदूषण का मुद्दा फिर गर्माने लगा है। संत समाज भी यमुना प्रदूषण के मामले में न सिर्फ मथुरा-वृंदावन की नगर पालिकाओं से नाराज है बल्कि केन्द्र सरकार के आश्वासनों की घुट्टी से भी आजिज आ चुका है और उसने मार्च 2018 से इसके लिए आंदोलन करने का ऐलान कर दिया है।
वैसे भी देखा जाए तो फिलहाल मथुरा-वृंदावन नगर निगम के मेयर पद हेतु जिन दो पूर्व विधायकों के नाम सामने आ रहे हैं उनकी वफादारी के अलावा कार्यक्षमता पर भी पहले से सवालिया निशान लगे हैं। उनकी उम्र भी उनकी कार्यक्षमता को लेकर चुगली करती प्रतीत होती है जबकि नगर निगम बन जाने के बाद जनआकांक्षाएं काफी प्रबल हैं।
बल्देव क्षेत्र के विधायक पूरन प्रकाश के पुत्र पंकज प्रकाश ही एकमात्र ऐसे संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं जो युवा होने के साथ-साथ अच्छे-खासे शिक्षित भी हैं लेकिन उनकी उम्मीदवारी में भाजपा की नीतियां आड़े आती हैं।
इस सबके बावजूद यदि भाजपा इन्हीं चर्चित लोगों में से किसी एक को मथुरा में मेयर पद के लिए खड़ा करती है तो यही माना जाएगा कि वह या तो उधार के सिंदूर से सुहाग सहेजने को मजबूर है या फिर बेवफाओं से वफादारी की उम्मीद पालकर मथुरा-वृंदावन की जनता को उसी दलदल में धकेलने जा रही है जिससे निकलने का जनता को वर्षों से इंतजार है।
रहा सवाल अन्य राजनीतिक दलों का तो समाजवादी पार्टी मथुरा में कभी किसी स्तर पर अपना जनाधार खड़ा नहीं कर सकी और बहुजन समाज पार्टी फिलहाल भाजपा के मुकाबले में दिखाई नहीं देती। कांग्रेस के पास भी अच्छे उम्मीदवारों का भारी अकाल है और राष्ट्रीय लोकदल की स्थिति उस बूढ़े सांड़ की तरह है जो खुरों से मिट्टी खोदकर रास्ते की धूल तो उड़ा सकता है किंतु किसी से मुकाबला करने की सामर्थ्य पूरी तरह खो चुका है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
दरअसल, भाजपा के सामने यह स्थिति मथुरा-वृंदावन का ”मेयर” पद अनुसूचित जाति के लिए ”आरक्षित” हो जाने के कारण पैदा हुई है क्योंकि मथुरा-वृंदावन में भाजपा के पास अनुसूचित जाति का कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं है जो पूरी तरह भाजपा को समर्पित रहा हो या पार्टी का वफादार सिपाही माना जा सके।
मथुरा में भाजपा के पास उसी प्रकार मेयर पद के लिए अनुसूचित जाति के अपने किसी प्रत्याशी का अभाव है जिस प्रकार लोकसभा चुनाव के लिए स्थानीय प्रत्याशी का अभाव था लिहाजा तब काफी दिमागी कसरत के बाद स्वप्न सुंदरी का खिताब प्राप्त सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी को लाया गया।
विधानसभा चुनावों में भी मथुरा-वृंदावन सीट के लिए श्रीकांत शर्मा को दिल्ली से लाना पड़ा, हालांकि श्रीकांत शर्मा कस्बा गोवर्धन (मथुरा) के ही मूल निवासी हैं किंतु वह करीब दो दशक पहले मथुरा को छोड़ चुके थे इसलिए उन्हें बाहरी प्रत्याशी माना गया।
निकाय चुनावों में पहली बार मेयर पद (आरक्षित) के लिए चुनाव लड़ रही मथुरा नगरी के अंदर भाजपा के पास जो संभावित प्रत्याशी दिखाई दे रहे हैं उनमें पूर्व विधायक श्याम सिंह अहेरिया, पूर्व विधायक अजय पोइया और बल्देव क्षेत्र से भाजपा के विधायक पूरन प्रकाश के पुत्र पंकज प्रकाश प्रमुख हैं।
श्याम सिंह अहेरिया सबसे पहले भाजपा की ही टिकट पर गोवर्धन (आरक्षित) सीट से विधायक चुने गए किंतु बाद के चुनावों में जब भाजपा ने उनका टिकट काट दिया तो वह अपने पुत्र सहित ”समाजवादी” हो लिए। उनके पुत्र को समाजवादी पार्टी ने सत्ता में रहते दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री के पद से भी नवाजा था।
समाजवादी पार्टी के सत्ता से बेदखल होने पर वह फिर भाजपाई हो गए किंतु अब उन्हें पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता अथवा वफादार सिपाही नहीं माना जा सकता।
इसी प्रकार एडवोकेट अजय कुमार पोइया का राजनीतिक सफर भी भाजपा की टिकट पर गोवर्धन सुरक्षित सीट से निर्वाचित होने के साथ शुरू हुआ। इससे पहले अजय कुमार पोइया मथुरा में ही वकालत की प्रेक्टिस करते थे।
बाद के चुनावों में पार्टी से उपेक्षित अनुभव करने के कारण अजय कुमार पोइया ने भी भाजपा का दामन छोड़ दिया और बहुजन समाज पार्टी की गोद में जा बैठे। बहुजन समाज पार्टी में रहते हुए कोई उपलब्धि हासिल न होने पर अजय कुमार पोइया एकबार फिर भाजपा की शरण में लौट आए।
गत विधानसभा चुनावों में बल्देव सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की उम्मीद पाले बैठे अजय कुमार पोइया को तब तगड़ा झटका लगा जब पार्टी ने उनकी बजाय राष्ट्रीय लोकदल से भाजपा में आए सिटिंग विधायक पूरन प्रकाश को बल्देव से चुनाव लड़ाने का फैसला किया।
पार्टी से मिले इस झटके पर अजय पोइया ने पूरन प्रकाश के खिलाफ अपने पुत्र को चुनाव लड़ने के लिए खड़ा कर दिया, और दलील यह दी कि वह तो पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं किंतु पुत्र द्वारा चुनाव लड़ना उसका अपना निर्णय था।
यानि अजय पोइया एकबार फिर पार्टी के प्रति बड़ी चालाकी के साथ बेवफाई पर उतर आए ताकि संभव हो तो सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे की कहावत को चरितार्थ कर सकें।
यह बात अलग है कि अजय पोइया के पुत्र, पूरन प्रकाश का कुछ नहीं बिगाड़ सके और पूरन प्रकाश लगातार दूसरी बार बल्देव सुरक्षित सीट से निर्वाचित होने में सफल रहे।
जहां तक सवाल पूरन प्रकाश के पुत्र पंकज प्रकाश का है तो बेशक उन्होंने 2010 के जिला पंचायत चुनावों में सर्वाधिक मतों से चुनाव जीतकर एक रिकॉर्ड कायम किया किंतु बुनियादी रूप से उनके विधायक पिता या दादा का कभी भाजपा की नीतियों में विश्वास देखने को नहीं मिला। पंकज प्रकाश के दादा मास्टर कन्हैया लाल भी विधायक रहे थे लेकिन भाजपा से कभी उनका कोई वास्ता नहीं रहा।
इन तीन प्रमुख दावेदारों के अलावा जो अन्य दो दावेदार हैं उनमें से एक मुकेश आर्यबंधु के पूरे परिवार की निष्ठा हमेशा कांग्रेस से जुड़ी रही है और उनके बड़े भाई ब्रजमोहन बाल्मीकि ने कांग्रेस की टिकट पर गोवर्धन सुरक्षित सीट से ही चुनाव भी लड़ा था।
दूसरे दावेदार ब्रजेश खरे ही एकमात्र ऐसे दावेदार हैं जो पूर्व में भाजपा सभासद रह चुके हैं और एक लंबे समय से भाजपा के प्रति समर्पित हैं किंतु ब्रजेश खरे की दो पूर्व विधायकों तथा एक विधायक पुत्र के सामने कितनी दाल गल पाएगी, यह देखने वाली बात होगी।
भाजपा की सबसे बड़ी समस्या ही यह है कि विश्व विख्यात धार्मिक नगरी मथुरा राजनीतिक रूप से उसके लिए चाहे कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हो किंतु यहां उसके पास कद्दावर नेताओं का काफी समय से अभाव रहा है।
2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को रालोद के युवराज जयंत चौधरी को समर्थन देना पड़ा क्योंकि तब भी भाजपा के पास कोई दमदार उम्मीदवार नहीं था।
यह स्थिति तो तब है जबकि मथुरा से दो बार भाजपा की टिकट पर डॉ. सच्चिदानंद हरि साक्षी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे और तीन बार वर्तमान जिलाध्यक्ष चौधरी तेजवीर सिंह सांसद चुने गए।
उधार के सिंदूर या बेवफाओं में से किसी को मेयर पद पर चुनाव लड़वाना भाजपा को इसलिए मुसीबत में डाल सकता है क्योंकि निवर्तमान पालिका अध्यक्ष मनीषा गुप्ता भी जनआंकाक्षाओं पर खरी नहीं उतरीं। साथ ही उनके ऊपर पौने दो करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप भी एनजीटी में लंबित है।
मनीषा गुप्ता के कार्यकाल में यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए किए जाने वाले उपायों से पैसे का तो खूब बंदरबांट हुआ किंतु यमुना हर दिन पहले से अधिक प्रदूषित होती गई।
जाहिर है कि मनीषा गुप्ता के कार्यकाल की छाया भी इन नगर निकाय चुनावों में किसी न किसी स्तर पर देखने को जरूर मिलेगी क्योंकि यमुना प्रदूषण का मुद्दा फिर गर्माने लगा है। संत समाज भी यमुना प्रदूषण के मामले में न सिर्फ मथुरा-वृंदावन की नगर पालिकाओं से नाराज है बल्कि केन्द्र सरकार के आश्वासनों की घुट्टी से भी आजिज आ चुका है और उसने मार्च 2018 से इसके लिए आंदोलन करने का ऐलान कर दिया है।
वैसे भी देखा जाए तो फिलहाल मथुरा-वृंदावन नगर निगम के मेयर पद हेतु जिन दो पूर्व विधायकों के नाम सामने आ रहे हैं उनकी वफादारी के अलावा कार्यक्षमता पर भी पहले से सवालिया निशान लगे हैं। उनकी उम्र भी उनकी कार्यक्षमता को लेकर चुगली करती प्रतीत होती है जबकि नगर निगम बन जाने के बाद जनआकांक्षाएं काफी प्रबल हैं।
बल्देव क्षेत्र के विधायक पूरन प्रकाश के पुत्र पंकज प्रकाश ही एकमात्र ऐसे संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं जो युवा होने के साथ-साथ अच्छे-खासे शिक्षित भी हैं लेकिन उनकी उम्मीदवारी में भाजपा की नीतियां आड़े आती हैं।
इस सबके बावजूद यदि भाजपा इन्हीं चर्चित लोगों में से किसी एक को मथुरा में मेयर पद के लिए खड़ा करती है तो यही माना जाएगा कि वह या तो उधार के सिंदूर से सुहाग सहेजने को मजबूर है या फिर बेवफाओं से वफादारी की उम्मीद पालकर मथुरा-वृंदावन की जनता को उसी दलदल में धकेलने जा रही है जिससे निकलने का जनता को वर्षों से इंतजार है।
रहा सवाल अन्य राजनीतिक दलों का तो समाजवादी पार्टी मथुरा में कभी किसी स्तर पर अपना जनाधार खड़ा नहीं कर सकी और बहुजन समाज पार्टी फिलहाल भाजपा के मुकाबले में दिखाई नहीं देती। कांग्रेस के पास भी अच्छे उम्मीदवारों का भारी अकाल है और राष्ट्रीय लोकदल की स्थिति उस बूढ़े सांड़ की तरह है जो खुरों से मिट्टी खोदकर रास्ते की धूल तो उड़ा सकता है किंतु किसी से मुकाबला करने की सामर्थ्य पूरी तरह खो चुका है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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