शनिवार, 27 जनवरी 2018

मंत्री महोदय! पुलिस में ”निकम्‍मेपन” की परिभाषा कुछ और है

सुना है कल प्रदेश के ऊर्जा मंत्री तथा योगी सरकार के प्रवक्‍ता श्रीकांत शर्मा ने मथुरा के एसएसपी स्‍वप्‍निल ममगाई और जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्र से कहा कि ”निकम्‍मे” थानाध्‍यक्षों एवं दरोगाओं को चिन्‍हित कर उनके खिलाफ कार्यवाही करें।
श्रीकांत शर्मा मथुरा में ही शहरी सीट से विधायक हैं और कस्‍बा गोवर्धन अंतर्गत गांव गांठौली के मूल निवासी हैं।
श्रीकांत शर्मा कल मथुरा पुलिस लाइन में कानून-व्‍यवस्‍था के मुद्दे पर जिलाधिकारी और एसएसपी सहित सभी प्रमुख पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे।
ऊर्जा मंत्री के अनुसार पुलिस विभाग में अब भी ”निचले स्‍तर पर” अवैध वसूली हो रही है और दरोगाओं की नाक के नीचे सिपाही उगाही कर रहे हैं।
पहली नजर में देखने से ऐसा लगता है कि जैसे प्रदेश के ऊर्जा मंत्री को पुलिस महकमे के बावत बहुत-कुछ पता है और नीचे से ऊपर तक व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार तथा निकम्‍मेपन से वह परिचित हैं, किंतु गहराई से देखें तो पता लगेगा कि उन्‍होंने जो भी कहा वह उस रटी-रटाई स्‍क्रिप्‍ट का हिस्‍सा था जिसे सरकार में रहते सब बोलते हैं क्‍योंकि यही सरकारी भाषा है।
श्रीकांत शर्मा शायद नहीं जानते कि पुलिस में जिन ”निकम्‍मे” थानाध्‍यक्षों और दरोगाओं को चिन्‍हित कर उनके खिलाफ कार्यवाही की बात वह कर रहे हैं, उन्‍हें विभाग में ”कमाऊ पूत” अथवा ”दुधारु गाय” कहा जाता है। वह विभागीय अधिकारियों के नजरिए से काबिल हैं तभी तो थाना और चौकियों के प्रभारी बने हुए हैं, अन्‍यथा कृष्‍ण जन्‍मभूमि व शाही मस्‍जिद ईदगाह की सुरक्षा ड्यूटी में लगे होते।
प्रदेश के ऊर्जा मंत्री को संभवत: यह भी नहीं पता कि पुलिस ही नहीं, लगभग समूचे सरकारी महकमों में ”निकम्‍मेपन” की परिभाषा कुछ और है। यहां निकम्‍मे कर्मचारी की पहचान ”कामचोर” या काम न करने वाले के तौर पर नहीं बल्‍कि ऐसे कमाऊ पूत के रूप में होती है जो सूखी मिट्टी से भी तेल निकालना जानता हो।
ऊर्जा मंत्री को कौन समझाए कि जिस तरह के ”निकम्‍मे” थानाध्‍यक्षों, दरोगाओं और रिश्‍वतखोर सिपाहियों को चिन्‍हित कर उनके खिलाफ कार्यवाही करने का फरमान वह सुना रहे हैं, यदि उस पर अक्षरश: अमल हुआ तो प्रदेश सरकार को पुलिस विभाग में तत्‍काल नए सिरे से भर्ती करने की जरूररत पड़ जाएगी।
दरअसल, ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा कल ही इससे पहले मथुरा के थाना हाईवे अंतर्गत ग्राम मोहनपुर अडूकी में उस 8 वर्षीय बच्‍चे माधव के परिजनों से मिलकर आए थे जिसकी 17 जनवरी बुधवार को कथित मुठभेड़ के दौरान पुलिस की गोली लगने से तब मौत हो गई थी, जब वह खेत पर अपनी बहनों के साथ बेर तोड़ने गया हुआ था।
”चेतक” मोबाइल के जिन दो सिपाहियों की गोलीबारी का माधव शिकार हुआ उनकी अमानवीयता का आलम यह रहा कि वह बच्‍चे को खेत में ही तड़पता छोड़कर भाग खड़े हुए नतीजतन अस्‍पताल पहुंचाते-पहुंचाते उसकी मौत हो गई। अगर समय पर उसे पुलिस वाले ही अस्‍पताल ले गए होते तो हो सकता है उसकी जान बच जाती।
योगी सरकार ने हालांकि बच्‍चे के परिजनों को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देकर तथा आगरा जोन के आईजी राजा श्रीवास्‍तव द्वारा दो सब इंस्‍पेक्‍टरों सहित चार पुलिसकर्मियों को निलंबित कर पीड़ित परिवार के घाव पर मरहम लगाने की कोशिश की है लेकिन सवाल यह है कि इसमें नया क्‍या है। यह तो हर सरकार में होता है और कुछ दिन बाद फिर कहीं न कहीं पुलिस की ऐसी ही कोई कहानी सामने आती है। भद्रजनों के लिए ”खाकी” एक किस्‍म के ”खौफ” का पर्याय बन चुकी है। ऐसा खौफ जो स्‍वतंत्रता के 70 सालों बाद भी मिटने का नाम नहीं ले रहा।
योगी राज में हो रही मुठभेड़ों से भले ही कई ईनामी बदमाश जान गंवा चुके हों और तमाम पकड़े भी गए हों परंतु ऐसा कहीं नहीं लगता कि पुलिस का इकबाल बुलंद हुआ हो और आपराधिक वारदातों पर प्रभावी अंकुश लग पाया हो। जितने बदमाश मारे नहीं गए, उससे कई गुना अधिक संगीन वारदातें सामने आ चुकी हैं।
ऊर्जा मंत्री को याद होगा कि थाना हाईवे क्षेत्र की ही अमर कॉलोनी में हुए दोहरे हत्‍याकांड को पुलिस आजतक नहीं खोल पाई है जबकि तमाम धरने-प्रदर्शनों के बाद यह मामला न सिर्फ विधानसभा में उठ चुका है बल्‍कि हाईकोर्ट भी जा पहुंचा है और केस का अनावरण न होने की वजह से परिवार की बड़ी पुत्री आत्‍महत्‍या कर चुकी है।
इसी प्रकार बहुचर्चित रौनक हत्‍याकांड का भी पुलिस पर्दाफाश नहीं कर पाई है और इस मामले में आए दिन धरने-प्रदर्शन किए जा रहे हैं।
लूट, डकैती, चोरी और हत्‍याएं तो जैसे इस धार्मिक नगरी की पहचान बन चुके हैं क्‍योंकि शायद ही कोई दिन ऐसा व्‍यतीत होता है जिस दिन बदमाशों द्वारा पुलिस को खुली चुनौती न दी जा रही हो। चेन स्‍नेचिंग, लड़कियों से छेड़छाड़, वाहन चोरी आदि के साथ-साथ बढ़ते साइबर अपराधों की तो कोई गिनती ही नहीं है।
योगी आदित्‍यनाथ के शपथ ग्रहण करते ही मथुरा में दो युवा सर्राफा व्‍यवसाइयों की हत्‍या करके करोड़ों रुपए के आभूषण लूट कर ले जाने की जघन्‍य वारदात को शायद ही कोई अभी भूल पाया हो।
यहां अपराधियों के दुस्‍साहस का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि योगी सरकार के दस महीने बाद भी चंद रोज पहले मात्र एक दिन के अंतराल में बदमाशों ने एक ओर जहां प्रदेश के कबीना मंत्री चौधरी लक्ष्‍मीनारायण की गैस ऐजेंसी का लाखों रुपया लूट लिया वहीं दूसरी ओर उनके समधी की गोली मारकर हत्‍या कर दी। चौधरी लक्ष्‍मीनारायण मथुरा की ही छाता विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट पर निर्वाचित हैं।
ऐसा नहीं है ”खाकी” का यह हाल सिर्फ मथुरा तक सीमित हो, प्रदेशभर में उसकी कार्यप्रणाली करीब-करीब एक जैसी है। सरकारें बदलती हैं किंतु ”खाकी” का चरित्र नहीं बदलता।
यही कारण है कि मथुरा हो या मुजफ्फरनगर और शामली हो या सहारनपुर, हर जगह उसका वही चेहरा सामने आता है जो उसकी स्‍थाई पहचान बन चुका है।
इसी गुरूवार रात की बात है। सहारनपुर जिले में बेरी बाग इलाके के मंगलनगर चौक पर एक बाइक अनियंत्रित होकर खंभे से जा टकराई और बाइक सवार दो किशोर गंभीर घायल हो गए। नुमाइश कैंप सेतिया विहार निवासी ये दोनों किशोर अर्पित खुराना और सन्नी तड़पते रहे लेकिन मौके पर पहुंचे पुलिसजनों ने उन्‍हें इसलिए अस्‍पताल ले जाने से मना कर दिया क्‍योंकि घायलों के खून से उनकी सरकारी गाड़ी गंदी हो जाती। बाद में जब इन नाबालिगों को किसी अन्‍य वाहन से अस्‍पताल पहुंचाया गया तो पता लगा कि तब तक वह दम तोड़ चुके थे।
बेशक पुलिस विभाग में भी अच्‍छे लोग हैं और वह हरसंभव जहां मानवता का परिचय देते हैं वहीं आमजनता के बीच बन चुकी पुलिस की अमानवीय छवि को दूर करने का प्रयास भी करते हैं किंतु ऐसे लोगों की संख्‍या इतनी कम है कि उनके सारे प्रयासों पर मथुरा व सहारनपुर जैसी घटनाएं पानी फेर देती हैं।
बेहतर होगा कि योगी आदित्‍यनाथ सरकार ”खाकी” के मूल चरित्र में परिवर्तन करने की कोशिश करे, न कि पूर्ववर्ती सरकारों की तरह हर बड़ी वारदात के बाद रटे-रटाए तरीके अपनाकर लीपापोती करके काम चलाए।
हर कोई जानता है कि पुलिस की चाल व चरित्र में आमूल-चूल परिर्वतन किए बिना उसके विभागीय सूत्र वाक्‍य ” परित्राणाय साधूनाम, विनाशाय च दुष्‍कृताम” को सार्थक कर पाना संभव नहीं होगा, और पुलिस में परिवर्तन तभी हो सकता है जब सरकारें एवं उसके नुमाइंदे रटी-रटाई स्‍क्रिप्‍ट पढ़ने की बजाय समस्‍या की उस जड़ को समाप्‍त करने की कोशिश करें जो परतंत्रता से स्‍वतंत्रता तक का सफर पूरा करने के बावजूद गहराई में समाई हुई है।
स्‍वयं सीएम योगी आदित्‍नाथ हों या उनके नुमाइंदे ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, उन्‍हें समझना होगा कि ”खाकी” को बंदर घुड़की से बदलना संभव नहीं है।
खाकी के क्रिया-कलापों को बदलना है तो पहले सरकारी कार्यप्रणाली बदलनी होगी और सरकारी कार्यप्रणाली बदलने के लिए उस ”वीआईपी संस्‍कृति” को बदलना होगा जो आमजन का दर्द समझने में असहाय है। जिसके लिए किसी परिवार के ”भविष्‍य” की कीमत मात्र 5 लाख रुपए है। जिसके लिए सड़क पर तड़पते दुर्घटना के शिकार किशोरवय लड़कों की जिंदगी केवल इसलिए बेमानी है क्‍योंकि वो जिस सरकारी गाड़ी को इस्‍तेमाल करते हैं वह उनके खून से गंदी हो जाएगी।
सरकार और सरकारी कर्मचारियों की रग-रग में समा चुकी इस वीआईपी संस्‍कृति से मुक्‍ति पाए बिना न तो अपराध और अपराधियों से मुक्‍ति मिल सकेगी और न कानून का राज स्‍थापित हो पाएगा। फिर चाहे और अगले दस साल ”कोई योगी” सरकार चलाता रहे अथवा पूरे पांच साल कोई सत्‍ता का भोगी काबिज होकर चला जाए।
-www.legendnews.in

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