शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

शैतानी हो या साजिश…लेकिन ”निष्‍कलंक” नहीं रह पाया ”योगीराज”

योगी जी…क्‍या अब आप कभी यह कह सकेंगे कि मेरे शासनकाल में उत्तर प्रदेश के अंदर कोई सांप्रदायिक उपद्रव नहीं हुआ?
कासगंज में जो कुछ हुआ, वह कैसे हुआ और क्‍या उसके पीछे कोई साजिश थी…यह जांच का विषय है लिहाजा निष्‍कर्ष निकलने तक इस बावत कुछ भी नहीं कहा जा सकता किंतु यह जरूर कहा जा सकता है कि तमाम मुठभेड़ों के बावजूद न तो आपकी ”खाकी” अपराधियों के मन में भय बैठा सकी और न आप ”खाकी” के मन में।
एक सर्वमान्‍य सूक्‍ति है कि बेहतर शासन-प्रशासन चलाने के लिए सरकार का ”इकबाल” बुलंद होना लाजिमी है। जब सरकार का इकबाल बुलंद होता है तो सरकारी नुमाइंदे अपनी पूरी निष्‍ठा, लगन व ईमानदारी से सक्रिय रहते हैं। उनकी सक्रियता ही अपराधियों के लिए भय का वातावरण बनाती है और जनसामान्‍य के अंदर सुरक्षा की भावना पैदा करती है।
नि:संदेह उत्तर प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था काफी पहले से बदहाल थी और आम लोगों का ”सरकारों” से भरोसा उठ चुका था परन्‍तु अब तो यह भरोसा पैदा होना चाहिए।
देश के इस सबसे बड़े राज्‍य की कमान योगी आदित्‍यनाथ ने 19 मार्च 2017 को संभाली थी। इस हिसाब से उनकी सरकार को आज 10 महीने और 13 दिन पूरे हो चुके हैं लेकिन प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहां बदमाश पूरी तरह बेखौफ दिखाई देते हैं।
खुद सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने इसी महीने की 23 तारीख को सहारनपुर, मथुरा और लखनऊ में लगातार हो रहीं गंभीर आपराधिक वारदातों पर नाराजगी जताई थी। उन्‍होंने प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों को तलब करके पूछा था कि अगर अपराधियों पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा तो जिलों में बैठे पुलिस अधिकारी कर क्‍या रहे हैं। उनसे काम नहीं हो पा रहा तो वह पद छोड़ दें।
23 जनवरी को मुख्‍यमंत्री द्वारा अपनी मंशा स्‍पष्‍ट कर देने के बाद भी तीसरे ही दिन 26 जनवरी पर गणतंत्र दिवस की तिरंगा यात्रा में हुई कासगंज की घटना ने यह साबित कर दिया कि न तो ”योगी राज” से ”खाकी” की कार्यप्रणाली प्रभावित हुई है और न ”खाकी” से बदमाशों में कोई भय उत्‍पन्‍न हुआ है।
गौरतलब है कि प्रदेश के राज्‍यपाल रामनाइक ने भी कासगंज की घटना को उत्तर प्रदेश के लिए ”कलंक” बताया है। राज्‍यपाल इससे पहले भी कानून-व्‍यवस्‍था पर असंतोष जाहिर कर चुके हैं।
रामनाइक के बयान इसलिए ज्‍यादा महत्‍व रखते हैं क्‍योंकि पिछले कुछ वर्षों से राज्‍यपाल का पद भी दलगत राजनीति का शिकार होने लगा था और अमूमन राज्‍यपालों की छवि का आंकलन राजनीतिक नजरिए से किया जा रहा था।
कानून-व्‍यवस्‍था और कासगंज में हुई हिंसा पर राज्‍यपाल के रूप में रामनाइक के बयानों ने निश्‍चित ही इस पद की गरिमा बढ़ाई है किंतु सवाल यह खड़ा होता है कि क्‍या उनके बयानों को शासन-प्रशासन भी गंभीरता से लेगा ?
योगी आदित्‍यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश में 21वें मुख्‍यमंत्री की शपथ लेने के मात्र 15 दिनों के बाद “Legend News” ने सबसे बड़ी चुनौती: क्‍या पुलिस का DNA बदल पाएगी योगी सरकार ?” शीर्षक से लिखा था कि जरूरत से ज्‍यादा राजनीतिक दखल, भ्रष्‍टाचार, जातिवाद और अनुशासनहीनता के चलते पुलिस पूर्णत: निरंकुश हो चुकी है।
प्रदेश के तत्‍कालीन डीजीपी जावीद अहमद ने खुद स्‍वीकारा था कि पुलिस में काफी लोगों की अपराधियों से सांठगांठ है। पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश अर्थात मेरठ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, नोएडा, मथुरा, आगरा आदि में उन्‍होंने ऐसे पुलिसकर्मियों की भरमार बताई जो अपराधियों से मिले हुए हैं। जावीद अहमद ने हालांकि ऐसे पुलिसजनों की सूची तैयार कर उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही करने की बात कही थी लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था, लिहाजा न वो कर पाए और न उनके बाद बने दूसरे डीजीपी।
कासगंज की घटना को समय रहते नियंत्रित न कर पाना और चार-पांच दिनों तक उसका सुलगते रहना, यह साबित करता है कि स्‍थानीय पुलिस पूरी तरह फेल रही। कुछ पूर्व पुलिस अधिकारियों सहित आईजी तथा कमिश्‍नर ने भी यह माना है कि पुलिस की लापरवाही ने कासगंज के हालातों को ज्‍यादा बिगाड़ दिया।
यूं भी नामजद आरोपियों के घर से असलहों का बरामद होना और तिरंगा यात्रा के दौरान माहौल बिगड़ने की भनक तक न लग पाना, यह बताता है कि स्‍थानीय पुलिस-प्रशासन किस तरह काम कर रहा था।
योगी आदित्‍यनाथ से प्रदेश को बड़ी उम्‍मीदें हैं। उनके गेरुआ वस्‍त्र भरोसा दिलाते हैं लेकिन ”भय” के बिना ”प्रीति” नहीं होती, इसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी माना था।
गोस्‍वामी तुलसीदास कृत रामायण की यह चौपाई यहां गौरतलब है-
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होय न प्रीत।।
इसके अलावा ”चाणक्‍य नीति” भी कहती है कि ”दंड” प्रक्रिया का सख्‍ती पूर्वक प्रयोग किए बिना समाज में शांति स्‍थापित नहीं हो सकती।
”चाणक्‍य नीति” के इस गूढ़ार्थ को समझा जाए तो ”दंड” प्रक्रिया का सख्‍ती पूर्वक प्रयोग हर उस व्‍यक्‍ति, वर्ग अथवा गुट पर किया जाना चाहिए जो कानून-व्‍यवस्था में बाधा उत्‍पन्‍न करता हो। फिर वह शासन-प्रशासन के अंग ही क्‍यों न हों।
उत्तर प्रदेश जितना बड़ा है, उतनी ही बड़ी हो जाती हैं यहां कानून-व्‍यवस्‍था का राज कायम करने की जिम्‍मेदारियां।
माना कि उत्तर प्रदेश इससे पहले अनेक बार इतने बड़े-बड़े सांप्रदायिक उपद्रवों की आग में झुलसा है कि कासगंज में हुए उपद्रव की उनसे तुलना नहीं की जा सकती, किंतु दाग तो दाग है। योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्‍व वाली भाजपा सरकार पर यह दाग लग चुका है। अब यह छोटा हो या बड़ा, लेकिन दाग तो है।
कासगंज की घटना चाहे शैतानी हो या किसी साजिश का हिस्‍सा, किंतु इसमें दोराय नहीं कि योगी राज ”निष्‍कलंक” नहीं रह पाया।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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