मथुरा। घोषणा के साथ ही विवादों में घिरे अपने कार्यक्रम ‘ब्रज होली रसोत्सव’ पर सफाई देने के लिए मीडिया के सामने आईं मथुरा की सांसद और सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी ने यमुना के प्रदूषण मुक्त न हो पाने का ठीकरा भी मथुरा के ही लोगों के सिर फोड़ने की कोशिश तो की परंतु कार्यक्रम को लेकर उठ रहे सवालों का कोई जवाब अंत तक नहीं दिया।
प्रेस कांफ्रेंस की शुरूआत ही हेमा मालिनी ने यह कहते हुए की कि मैं जब से मथुरा की सांसद बनी हूं तब से मैंने बहुत सारे काम तो किए ही हैं, उसके साथ-साथ कल्चरल प्रोग्राम को भी बढ़ावा दिया है क्योंकि मैं बेसिकली एक आर्टिस्ट हूं।
एक कलाकार होने के नाते जब मैं मुंबई जाती हूं तो हमारे कलाकार मित्र हमेशा मुझसे कहते हैं कि आप मथुरा की सांसद हैं, आप हमें भी वहां लेकर चलिए। हम वहां गाना चाहते हैं, नृत्य करना चाहते हैं। उनकी हमेशा मांग रही है, और इसीलिए हमने दो साल पहले ‘मथुरा महोत्सव’ किया था जो बहुत ही सफल रहा। हमने सारे बॉलीवुड आर्टिस्ट को बुलाकर यह कार्यक्रम किया था। ऐसे कार्यक्रमों से मथुरा की शान बढ़ती है क्योंकि मैं मथुरा की सांसद हूं। एक साल पहले इसी प्रकार का एक कार्यक्रम मैंने ‘रसोत्सव’ के नाम से किया था। उसमें मैंने अपनी विश्व विख्यात नृत्य नाटिका ‘यशोदा-कृष्ण, राधाकृष्ण’ पेश किया था।
एक कलाकार होने के नाते जब मैं मुंबई जाती हूं तो हमारे कलाकार मित्र हमेशा मुझसे कहते हैं कि आप मथुरा की सांसद हैं, आप हमें भी वहां लेकर चलिए। हम वहां गाना चाहते हैं, नृत्य करना चाहते हैं। उनकी हमेशा मांग रही है, और इसीलिए हमने दो साल पहले ‘मथुरा महोत्सव’ किया था जो बहुत ही सफल रहा। हमने सारे बॉलीवुड आर्टिस्ट को बुलाकर यह कार्यक्रम किया था। ऐसे कार्यक्रमों से मथुरा की शान बढ़ती है क्योंकि मैं मथुरा की सांसद हूं। एक साल पहले इसी प्रकार का एक कार्यक्रम मैंने ‘रसोत्सव’ के नाम से किया था। उसमें मैंने अपनी विश्व विख्यात नृत्य नाटिका ‘यशोदा-कृष्ण, राधाकृष्ण’ पेश किया था।
अब मेरा मन था कि मैं कुछ ऐसा बहुत अच्छा करूं जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिले और मथुरा की शान भी बढ़े। हम इस कार्यक्रम के तहत यमुना की आरती करते और यमुना में लाखों दीपक प्रवाहित करते लेकिन अचानक किसी को लगा कि हम यमुना को प्रदूषित करने जा रहे हैं जो कि हम नहीं कर रहे थे।
इसके बाद हेमा मालिनी ने कहा कि हम तो चाहते थे कि यमुना को शुद्ध करो, मथुरा के लोगों ने जो नहीं किया उनसे मैं रिक्वेस्ट करती हूं कि आप लोग यमुना को शुद्ध करो। प्रदूषित है इतना, गंदगी डालकर खराब हो गया है इतना। ये मथुरा वालों की भी जिम्मेदारी है कि उन्हें यमुना को साफ-सुथरा रखना चाहिए। अचानक उनके मन में आया कि मैं उसको खराब करने वाली हूं, तो वो एनजीटी मैं पहुंच गए और मेरे कार्यक्रम पर रोक लगवा दी। मैं एनजीटी से परमीशन लेकर यमुना किनारे कार्यक्रम कर सकती हूं किंतु उसमें समय लगेगा। हालांकि मैंने दृढ़ संकल्प लिया है कि यमुना किनारे जहां अभी कार्यक्रम नहीं हो सका, वहां पर बहुत जल्द कार्यक्रम होगा और जिन लोगों ने विरोध किया है उन्हें मानना पड़ेगा कि हमारे कल्चरल कार्यक्रमों से पर्यटन को कितना बढ़ावा मिलता है।
हेमा मालिनी ने कहा कि समय की कमी को देखते हुए मैंने इस कार्यक्रम को शिफ्ट किया और अब यह कार्यक्रम उसी तरह वेटरिनरी यूनिवर्सिटी के प्रांगण में होगा। मथुरा के मुक्ताकाशीय रंगमंच को भी जल्द से जल्द तैयार कराने का मैंने प्रयास किया ताकि मथुरा में सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहें।
हेमा मालिनी के अनुसार सांसद का काम केवल रोड बनवाना, बिजली दिलवाना और उद्धाटन करते रहना ही नहीं है। कल्चरल प्रोग्राम भी होने चाहिए जिससे ब्रज की कलाओं को बढ़ावा मिले।
अपनी उपलब्धियों गिनाने, यमुना प्रदूषण के लिए मथुरा के ही लोगों को जिम्मेदार ठहराने और उन्हें यमुना किनारे ही अपना कार्यक्रम शीघ्र करने की चुनौती देकर हेमा मालिनी उन सभी सवालों का जवाब दिए बिना उठकर चलती बनीं जिनके कारण उनके कार्यक्रम तथा बतौर सांसद उनकी मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं।
हां, इस दौरान वह यह बताना नही भूलीं कि अगर मथुरा की जनता चाहेगी तो वह अवश्य यहां से दोबारा सांसद बनना चाहेंगी।
हेमा मालिनी को दूसरी मर्तबा मथुरा से संसद पहुंचने का सपना संजाेने से पहले यह भी सोच लेना चाहिए था कि एकबार तो उनके पति अभिनेता धर्मेन्द्र भी राजस्थान के बीकानेर से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे थे। मथुरा से जीत के बाद हेमा मालिनी की कार्यप्रणाली अपने पति धर्मेन्द्र से कोई बहुत अलग नहीं रही है।
गौरतलब है कि आज यानि 23 फरवरी को हेमा मालिनी के इसी कार्यक्रम को लेकर एनजीटी में सुनवाई होनी है। पिछली तारीख 15 फरवरी को सुनवाई के बाद एनजीटी ने न सिर्फ कायर्क्रम को यमुना किनारे करने पर रोक लगा दी थी बल्कि ‘नमामि गंगे’ तथा ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ से जवाब तलब भी किया था।
बताया जाता है कि इन दोनों सरकारी संस्थाओं ने यमुना किनारे अब कार्यक्रम न करके वेटरिनरी यूनिवर्सिटी में किए जाने संबंधी साक्ष्यों के साथ अपना जवाब एनजीटी के समक्ष पेश कर दिया है लिहाजा आगे कोई आदेश आने की संभावना कम है।
रहा सवाल हेमा मालिनी द्वारा यमुना किनारे ही जल्द इसी तरह का कार्यक्रम करने की चुनौती देने का, तो उसकी भी उम्मीद काफी कम है क्योंकि प्रथम तो एनजीटी यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर बेहद गंभीर है और दूसरे दिल्ली में यमुना किनारे आध्यात्मिक गुरू श्री-श्री रविशंकर की संस्था ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ द्वारा कराए गए कल्चरल प्रोग्राम की नजीर उसके सामने है।
उस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा शिरकत किए जाने के बावजूद एनजीटी ने यह माना कि आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा कराए गए कार्यक्रम से यमुना और उसके किनारे के पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ। एनजीटी ने आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम से हुए नुकसान की भरपाई के लिए संस्था पर 5 करोड़ रुपए का बड़ा जुर्माना भी ठोका।
जहां तक प्रश्न हेमा मालिनी द्वारा यमुना के प्रदूषण का ठीकरा मथुरावासियों के ही सिर फोड़ने की कोशिश का है तो हेमा मालिनी को जान लेना चाहिए कि मथुरावासी तो 32 साल से मथुरा को प्रदूषण मुक्त कराने की लड़ाई विभिन्न स्तर पर लड़ रहे हैं।
सबसे पहले यमुना के लिए 16 मार्च 1985 को तत्कालीन जिलाधिकारी राजेन्द्र सिंह यादव के समक्ष उनके आवास पर गोपेश्वर चतुर्वेदी के नेतृत्व में आवाज़ बुलंद की गई थी। इस मामले में तब गोपेश्वर चतुर्वेदी सहित कई प्रमुख लोगों के खिलाफ संगीन धाराओं में केस भी दर्ज किया गया था।
उसके बाद जनवरी 1998 में प्रमुख पर्यावरणविद् और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एम. सी. मेहता और गोपाल पीठाधीश्वर विठ्ठलेशजी महाराज के नेतृत्व में बड़ा धरना प्रदर्शन किया गया।
तब गंगा प्रदूषण की कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे एम. सी. मेहता ने जब यहां यमुना की दुर्दशा अपनी आंखों से देखी तो उन्होंने यमुना प्रदूषण के मुद्दे को भी कोर्ट में ले जाना ज्यादा मुनासिब समझा। उसके बाद गोपेश्वर चतुर्वेदी के नाम से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका 1644/98 डाली गई जिसे जनवरी 1998 में ही कोर्ट से स्वीकार करते हुए यमुना कार्य योजना के तहत मथुरा-वृंदावन का मामला शामिल किया और तमाम आदेश-निर्दश जारी दिए।
गोपेश्वर चतुर्वेदी बनाम स्टेट ऑफ यूपी एंड अदर्स के नाम से दाखिल इस याचिका की सुनवाई के बाद दिए गए आदेश-निर्देशों के अनुपालन हेतु कोर्ट ने ही एडीएम स्तर के एक अधिकारी को बहुत से अतिरिक्त अधिकारों सहित यमुना कार्य योजना का स्थानीय नोडल अधिकारी भी बनाया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश-निर्देशों से यमुना में गिरने वाले मथुरा के सभी 19 नाले और वृंदावन के 18 नाले पहली बार टेप किए गए और यमुना जल को शुद्ध बनाए रखने के दूसरे अनेक प्रयास शुरू हुए।
यह बात अलग है कि प्रशासनिक शिथिलता के कारण सन् 2000 के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश-निर्देशों की जो धज्जियां उड़नी शुरू हुईं, वह अब तक उड़ाई जा रही हैं।
दरअसल, सन् 2000 के बाद जितने भी नोडल अधिकारी यहां रहे, उनमें से किसी ने न तो अपने अधिकार जानना जरूरी समझा और न कभी यमुना के प्रति अपना कर्तव्य निभाया। यह सिलसिला अब भी जारी है। नतीजतन यमुना दिन-प्रतिदिन पहले से कई गुना अधिक प्रदूषित हो रही है।
गोपेश्वर चतुर्वेदी आज भी यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने की दोहरी लड़ाई लड़ रहे हैं। एक ओर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तो दूसरी ओर नेशनल ग्रीन ट्रेब्यूनल (एनजीटी) में।
गोपेश्वर चतुर्वेदी के अलावा मथुरा के ही कांतानाथ चतुर्वेदी और महेन्द्र नाथ चतुर्वेदी भी न्यायालय के माध्यम से यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इनके अलावा वृंदावन के प्रमुख पत्रकार रहे और इस समय समाज सेवा से जुड़े मधुमंगल शुक्ला ने यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर वर्ष 2010 में याचिका दाखिल की थी और वर्ष 2015 में एनजीटी का गठन होने के बाद वहां भी मूव किया।
मधुमंगल शुक्ला के प्रयासों का ही नतीजा है कि आज यमुना की खादरों में किया गया बेहिसाब अवैध निर्माण गिराया जाने लगा है और यमुना रिवर फ्रंट के कार्य पर एनजीटी ने पूरी नजर बना रखी है।
यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने की एक लड़ाई अपने स्तर से बरसाना (मथुरा) स्थित मान मंदिर के महंत रमेश बाबा भी लड़ रहे हैं। रमेश बाबा के सानिध्य में उनके शिष्य रहे बाबा जयकृष्ण दास ने यमुना रक्षक दल के बैनर तले करीब 50 हजार लोगों के साथ मार्च 2013 में मथुरा से दिल्ली के लिए कूच किया था।
जयकृष्ण दास के काफिले को देखकर घबराई तत्कालीन यूपीए सरकार के केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने बाबा से मुलाकात कर यमुना को प्रदूषण मुक्त करने की एक रूपरेखा उनके सामने प्रस्तुत की, जिसके बाद जयकृष्ण दास फरीदाबाद से वापस लौट आए। बाद में हरीश रावत के सरकारी आश्वासन का भी वही हश्र हुआ जैसा सभी सरकारों के आश्वासन का होता आया है।
यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर बाबा जयकृष्ण दास का साथ स्थानीय अन्य लोगों ने भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर दिया। इनमें भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट), कांग्रेसी नेता राकेश यादव व अब्दुल जब्बार, समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महानगर अध्यक्ष डॉ. अशोक अग्रवाल, वृंदावन के जुझारु नेता उदयन शर्मा आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे। पंकज बाबा ने भी यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने के इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। ये सभी लोग आज भी अपने-अपने स्तर से यमुना को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। रमेश बाबा ने तो एकबार फिर मार्च में दिल्ली कूच करने का एलान कर रखा है।
आश्चर्य की बात यह है कि कल की अपनी प्रेस कांफ्रेंस में यमुना प्रदूषण का ठीकरा ब्रजवासियों के सिर ही फोड़ने की हेमा मालिनी की कोशिश का जिक्र तक स्थानीय मीडिया ने अपने समाचारों में नहीं किया और सिर्फ उनके कार्यक्रम का ब्यौरा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जबकि हेमा मालिनी का यह प्रयास मथुरावासियों के प्रति पूर्वाग्रह तथा आत्मप्रशंसा से भरा था।
होली रसोत्सव संबंधी विज्ञापनों के बोझ तले दबे और कार्यक्रम के पास पाने की अभिलाषा में हेमा मालिनी से स्थानीय पत्रकारों ने यह पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि दो साल पहले उनके द्वारा किए गए ‘मथुरा महोत्सव’ तथा एक साल पहले किए गए ‘रसोत्सव’ से मथुरा के पर्यटन में कितनी वृद्धि हुई। उन्होंने अपने कार्यक्रमों में यहां की संस्कृति और उससे जुड़े यहां के लोगों को कितना बढ़ावा दिया और मुक्ताकाशीय रंगमंच का निर्माण कराने में वह क्यों सफल नहीं हुईं।
यमुना के लिए मथुरावासियों को उनका कर्तव्य याद दिलाने वाली हेमा मालिनी से किसी ने यह भी पूछना मुनासिब नहीं समझा कि उन्होंने अपने करीब चार साल के संसदीय कार्यकाल में यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का क्या प्रयास किया।
हेमा मालिनी से यह प्रश्न भी नहीं किया गया कि अब उनके द्वारा कराए जा रहे इस कार्यक्रम में कितने स्थानीय कलाकारों को तरजीह दी गई है क्योंकि जिन सुनामधन्य कलाकारों का जिक्र हेमा मालिनी ने किया वह किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। पंडित जसराज और हरिप्रसाद चौरसिया अपने-अपने फन के वो माहिर उस्ताद हैं कि हेमा मालिनी उनके सामने कहीं नहीं टिकतीं।
बेशक ये दिग्गज कलाकार देश की शान और पहचान हैं किंतु मथुरा में इनके कार्यक्रम मथुरा की कला व संस्कृति को कैसे समृद्ध करेंगे, यह बात समझ से परे है।
यूं भी देखा जाए तो महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्ण की जन्मस्थली को नामचीन कलाकारों के कार्यक्रमों से अधिक नेकनीयत रखने वाले नेताओं की दरकार है क्योंकि बाहरी नेताओं से मथुरावासी पहले भी धोखा खाते रहे हैं।
हरियाणा से आए मनीराम बागड़ी से लेकर स्वामी सच्चिदानंद साक्षी तक और जयंत चौधरी से लेकर हेमा मालिनी तक, जितने भी नेताओं ने मथुरा से अपनी संसदीय पारी शुरू की, उन सभी ने मथुरा की जनता को निराश किया।
एकबार और मथुरा से संसद पहुंचने का ख्वाब देखने वालीं सिने तारिका कम से कम स्थानीय जनता की नब्ज टटोल लें, साथ ही पार्टी स्तर पर भी पता कर लें कि वह उन्हें फिर चुनाव में उतारने का जोखिम उठाने को तैयार है भी या नहीं, तो उनके लिए बेहतर होगा।
आत्ममुग्ध सांसद हेमा मालिनी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि केवल सड़क बनवाना और बिजली मुहैया कराना ही उनका काम नहीं है। कल्चरल प्रोग्राम भी करते रहना चाहिए जिससे ब्रज की कलाओं को बढ़ावा मिले।
अच्छा होता यदि सांसद यह भी बता देतीं कि उन्होंने मथुरा जनपद में अपने प्रयासों से कितनी सड़क बनवाई हैं और बिजली की सुचारु आपूर्ति के लिए कितने प्रयास किए हैं।
हां, उद्घाटन करने वह समय-समय पर जरूर आती रही हैं किंतु उनका ब्यौरा जनता ने रखना जरूरी नहीं समझा होगा।
कौन नहीं जानता कि 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता पर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के काबिज होने तथा मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक श्रीकांत शर्मा को ऊर्जा मंत्रालय मिलने के बाद ही मथुरा जनपद की विद्युत समस्या का समाधान हुआ है अन्यथा इससे पहले शहर को भी बमुश्किल 12-14 घंटे ही बिजली मिल पाती थी परंतु सांसद ने कभी कोई प्रयास नहीं किए।
अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कथित उपलब्धियों और आगामी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का ऐलानी खाका खींचने वाली हेमा मालिनी ने अंत तक यह नहीं बताया कि यह ब्रजभूमि विकास ट्रस्ट क्या है और इसके पदाधिकारी कौन-कौन हैं।
हेमा मालिनी समय-समय पर यह तो कहती रही हैं कि वह ब्रज के विकास के लिए एक ट्रस्ट का गठन करके देश-विदेश से पैसा इकठ्ठा करेंगी परंतु वह ट्रस्ट कौन सा है, इसकी जानकारी कभी नहीं दी।
गौरतलब है कि होली रसोत्सव के नाम से बड़ी रकम एकत्र किए जाने की खासी चर्चा है और माथुर चतुर्वेद परिषद ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में इसका उल्लेख यह कहते हुए किया था कि फिल्म तो दिखानी ही पड़ेगी क्योंकि टिकट जो बिक चुकी हैं।
माथुर चतुर्वेद परिषद ने यह बात उस समय कही जब उन्हें बताया गया कि हेमा मालिनी का कार्यक्रम तो अब भी होने जा रहा है। फर्क केवल इतना है कि अब वह यमुना पार न होकर वेटरिनरी के प्रांगण में होगा।
हेमा मालिनी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में माथुर चतुर्वेद परिषद के एनजीटी पहुंच जाने तथा एनजीटी से यमुना किनारे प्रस्तावित कार्यक्रम पर रोक लगा देने की बात तो बताई परंतु परिषद के इस आरोप का कोई उत्तर नहीं दिया कि जब टिकट बिक गए तो फिल्म दिखानी पड़ेगी।
इसी प्रकार होली रसोत्सव के सहआयोजकों में ब्रजभूमि विकास ट्रस्ट का उल्लेख अवश्य किया गया है किंतु उसका कोई पदाधिकारी, कार्यक्रम की किसी प्रेस कांफ्रेंस का हिस्सा नहीं बना जबकि पहली प्रेस कांफ्रेंस समन्वयक बताए गए अनूप शर्मा ने तथा दूसरी खुद हेमा मालिनी ने की।
दोनों ही प्रेस कांफ्रेंस के वक्त उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग और तीर्थ विकास ट्रस्ट की ओर से भी किसी की नुमाइंदगी न होना शंका तो प्रकट करता है क्योंकि इन्हें मात्र विज्ञापन का हिस्सा बनाकर छोड़ दिया गया।
ऐसा नहीं है कि होली रसोत्सव करने के तौर-तरीकों से माथुर चतुर्वेद परिषद को ही शिकायत हुई हो, भाजपा का एक बड़ा वर्ग भी आयोजन के मकसद को न तो समझ पा रहा है और न पचा पा रहा है क्योंकि इसका औचित्य उनकी समझ से परे है।
यही कारण है कि कार्यक्रम की घोषणा से लेकर आज तक हेमा मालिनी के इर्द-गिर्द सिर्फ ऐसे लोगों का जमावड़ा रहा है जिनकी पार्टी में भी कोई पूछ नहीं रह गई और जो हर वक्त किसी न किसी की आड़ में अपना चेहरा चमकाने का प्रयास करते रहते हैं।
जाहिर है कि इतने सारे प्रश्नों और आरोपों के बीच आज से शुरू होने जा रहे होली रासोत्सव का कल समापन तो हो जाएगा लेकिन जो प्रश्न इसके आयोजकों पर उठे हैं, वह 2019 के लोकसभा चुनावों तक भाजपा और हेमा मालिनी का पीछा नहीं छोड़ने वाले।
ऐसे में हेमा मालिनी खुद सोच लें कि पार्टी द्वारा उतारे जाने के बाद भी क्या 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना उनके लिए आसान होगा, और क्या वह तब भी इसी प्रकार किसी प्रश्न का जवाब दिए बिना सिर्फ अपनी बात कहकर प्रेस कांफ्रेंस से उठ पाएंगी।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
इसके बाद हेमा मालिनी ने कहा कि हम तो चाहते थे कि यमुना को शुद्ध करो, मथुरा के लोगों ने जो नहीं किया उनसे मैं रिक्वेस्ट करती हूं कि आप लोग यमुना को शुद्ध करो। प्रदूषित है इतना, गंदगी डालकर खराब हो गया है इतना। ये मथुरा वालों की भी जिम्मेदारी है कि उन्हें यमुना को साफ-सुथरा रखना चाहिए। अचानक उनके मन में आया कि मैं उसको खराब करने वाली हूं, तो वो एनजीटी मैं पहुंच गए और मेरे कार्यक्रम पर रोक लगवा दी। मैं एनजीटी से परमीशन लेकर यमुना किनारे कार्यक्रम कर सकती हूं किंतु उसमें समय लगेगा। हालांकि मैंने दृढ़ संकल्प लिया है कि यमुना किनारे जहां अभी कार्यक्रम नहीं हो सका, वहां पर बहुत जल्द कार्यक्रम होगा और जिन लोगों ने विरोध किया है उन्हें मानना पड़ेगा कि हमारे कल्चरल कार्यक्रमों से पर्यटन को कितना बढ़ावा मिलता है।
हेमा मालिनी ने कहा कि समय की कमी को देखते हुए मैंने इस कार्यक्रम को शिफ्ट किया और अब यह कार्यक्रम उसी तरह वेटरिनरी यूनिवर्सिटी के प्रांगण में होगा। मथुरा के मुक्ताकाशीय रंगमंच को भी जल्द से जल्द तैयार कराने का मैंने प्रयास किया ताकि मथुरा में सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहें।
हेमा मालिनी के अनुसार सांसद का काम केवल रोड बनवाना, बिजली दिलवाना और उद्धाटन करते रहना ही नहीं है। कल्चरल प्रोग्राम भी होने चाहिए जिससे ब्रज की कलाओं को बढ़ावा मिले।
अपनी उपलब्धियों गिनाने, यमुना प्रदूषण के लिए मथुरा के ही लोगों को जिम्मेदार ठहराने और उन्हें यमुना किनारे ही अपना कार्यक्रम शीघ्र करने की चुनौती देकर हेमा मालिनी उन सभी सवालों का जवाब दिए बिना उठकर चलती बनीं जिनके कारण उनके कार्यक्रम तथा बतौर सांसद उनकी मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं।
हां, इस दौरान वह यह बताना नही भूलीं कि अगर मथुरा की जनता चाहेगी तो वह अवश्य यहां से दोबारा सांसद बनना चाहेंगी।
हेमा मालिनी को दूसरी मर्तबा मथुरा से संसद पहुंचने का सपना संजाेने से पहले यह भी सोच लेना चाहिए था कि एकबार तो उनके पति अभिनेता धर्मेन्द्र भी राजस्थान के बीकानेर से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे थे। मथुरा से जीत के बाद हेमा मालिनी की कार्यप्रणाली अपने पति धर्मेन्द्र से कोई बहुत अलग नहीं रही है।
गौरतलब है कि आज यानि 23 फरवरी को हेमा मालिनी के इसी कार्यक्रम को लेकर एनजीटी में सुनवाई होनी है। पिछली तारीख 15 फरवरी को सुनवाई के बाद एनजीटी ने न सिर्फ कायर्क्रम को यमुना किनारे करने पर रोक लगा दी थी बल्कि ‘नमामि गंगे’ तथा ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ से जवाब तलब भी किया था।
बताया जाता है कि इन दोनों सरकारी संस्थाओं ने यमुना किनारे अब कार्यक्रम न करके वेटरिनरी यूनिवर्सिटी में किए जाने संबंधी साक्ष्यों के साथ अपना जवाब एनजीटी के समक्ष पेश कर दिया है लिहाजा आगे कोई आदेश आने की संभावना कम है।
रहा सवाल हेमा मालिनी द्वारा यमुना किनारे ही जल्द इसी तरह का कार्यक्रम करने की चुनौती देने का, तो उसकी भी उम्मीद काफी कम है क्योंकि प्रथम तो एनजीटी यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर बेहद गंभीर है और दूसरे दिल्ली में यमुना किनारे आध्यात्मिक गुरू श्री-श्री रविशंकर की संस्था ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ द्वारा कराए गए कल्चरल प्रोग्राम की नजीर उसके सामने है।
उस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा शिरकत किए जाने के बावजूद एनजीटी ने यह माना कि आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा कराए गए कार्यक्रम से यमुना और उसके किनारे के पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ। एनजीटी ने आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम से हुए नुकसान की भरपाई के लिए संस्था पर 5 करोड़ रुपए का बड़ा जुर्माना भी ठोका।
जहां तक प्रश्न हेमा मालिनी द्वारा यमुना के प्रदूषण का ठीकरा मथुरावासियों के ही सिर फोड़ने की कोशिश का है तो हेमा मालिनी को जान लेना चाहिए कि मथुरावासी तो 32 साल से मथुरा को प्रदूषण मुक्त कराने की लड़ाई विभिन्न स्तर पर लड़ रहे हैं।
सबसे पहले यमुना के लिए 16 मार्च 1985 को तत्कालीन जिलाधिकारी राजेन्द्र सिंह यादव के समक्ष उनके आवास पर गोपेश्वर चतुर्वेदी के नेतृत्व में आवाज़ बुलंद की गई थी। इस मामले में तब गोपेश्वर चतुर्वेदी सहित कई प्रमुख लोगों के खिलाफ संगीन धाराओं में केस भी दर्ज किया गया था।
उसके बाद जनवरी 1998 में प्रमुख पर्यावरणविद् और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एम. सी. मेहता और गोपाल पीठाधीश्वर विठ्ठलेशजी महाराज के नेतृत्व में बड़ा धरना प्रदर्शन किया गया।
तब गंगा प्रदूषण की कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे एम. सी. मेहता ने जब यहां यमुना की दुर्दशा अपनी आंखों से देखी तो उन्होंने यमुना प्रदूषण के मुद्दे को भी कोर्ट में ले जाना ज्यादा मुनासिब समझा। उसके बाद गोपेश्वर चतुर्वेदी के नाम से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका 1644/98 डाली गई जिसे जनवरी 1998 में ही कोर्ट से स्वीकार करते हुए यमुना कार्य योजना के तहत मथुरा-वृंदावन का मामला शामिल किया और तमाम आदेश-निर्दश जारी दिए।
गोपेश्वर चतुर्वेदी बनाम स्टेट ऑफ यूपी एंड अदर्स के नाम से दाखिल इस याचिका की सुनवाई के बाद दिए गए आदेश-निर्देशों के अनुपालन हेतु कोर्ट ने ही एडीएम स्तर के एक अधिकारी को बहुत से अतिरिक्त अधिकारों सहित यमुना कार्य योजना का स्थानीय नोडल अधिकारी भी बनाया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश-निर्देशों से यमुना में गिरने वाले मथुरा के सभी 19 नाले और वृंदावन के 18 नाले पहली बार टेप किए गए और यमुना जल को शुद्ध बनाए रखने के दूसरे अनेक प्रयास शुरू हुए।
यह बात अलग है कि प्रशासनिक शिथिलता के कारण सन् 2000 के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश-निर्देशों की जो धज्जियां उड़नी शुरू हुईं, वह अब तक उड़ाई जा रही हैं।
दरअसल, सन् 2000 के बाद जितने भी नोडल अधिकारी यहां रहे, उनमें से किसी ने न तो अपने अधिकार जानना जरूरी समझा और न कभी यमुना के प्रति अपना कर्तव्य निभाया। यह सिलसिला अब भी जारी है। नतीजतन यमुना दिन-प्रतिदिन पहले से कई गुना अधिक प्रदूषित हो रही है।
गोपेश्वर चतुर्वेदी आज भी यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने की दोहरी लड़ाई लड़ रहे हैं। एक ओर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तो दूसरी ओर नेशनल ग्रीन ट्रेब्यूनल (एनजीटी) में।
गोपेश्वर चतुर्वेदी के अलावा मथुरा के ही कांतानाथ चतुर्वेदी और महेन्द्र नाथ चतुर्वेदी भी न्यायालय के माध्यम से यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इनके अलावा वृंदावन के प्रमुख पत्रकार रहे और इस समय समाज सेवा से जुड़े मधुमंगल शुक्ला ने यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर वर्ष 2010 में याचिका दाखिल की थी और वर्ष 2015 में एनजीटी का गठन होने के बाद वहां भी मूव किया।
मधुमंगल शुक्ला के प्रयासों का ही नतीजा है कि आज यमुना की खादरों में किया गया बेहिसाब अवैध निर्माण गिराया जाने लगा है और यमुना रिवर फ्रंट के कार्य पर एनजीटी ने पूरी नजर बना रखी है।
यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने की एक लड़ाई अपने स्तर से बरसाना (मथुरा) स्थित मान मंदिर के महंत रमेश बाबा भी लड़ रहे हैं। रमेश बाबा के सानिध्य में उनके शिष्य रहे बाबा जयकृष्ण दास ने यमुना रक्षक दल के बैनर तले करीब 50 हजार लोगों के साथ मार्च 2013 में मथुरा से दिल्ली के लिए कूच किया था।
जयकृष्ण दास के काफिले को देखकर घबराई तत्कालीन यूपीए सरकार के केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने बाबा से मुलाकात कर यमुना को प्रदूषण मुक्त करने की एक रूपरेखा उनके सामने प्रस्तुत की, जिसके बाद जयकृष्ण दास फरीदाबाद से वापस लौट आए। बाद में हरीश रावत के सरकारी आश्वासन का भी वही हश्र हुआ जैसा सभी सरकारों के आश्वासन का होता आया है।
यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर बाबा जयकृष्ण दास का साथ स्थानीय अन्य लोगों ने भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर दिया। इनमें भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट), कांग्रेसी नेता राकेश यादव व अब्दुल जब्बार, समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महानगर अध्यक्ष डॉ. अशोक अग्रवाल, वृंदावन के जुझारु नेता उदयन शर्मा आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे। पंकज बाबा ने भी यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने के इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। ये सभी लोग आज भी अपने-अपने स्तर से यमुना को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। रमेश बाबा ने तो एकबार फिर मार्च में दिल्ली कूच करने का एलान कर रखा है।
आश्चर्य की बात यह है कि कल की अपनी प्रेस कांफ्रेंस में यमुना प्रदूषण का ठीकरा ब्रजवासियों के सिर ही फोड़ने की हेमा मालिनी की कोशिश का जिक्र तक स्थानीय मीडिया ने अपने समाचारों में नहीं किया और सिर्फ उनके कार्यक्रम का ब्यौरा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जबकि हेमा मालिनी का यह प्रयास मथुरावासियों के प्रति पूर्वाग्रह तथा आत्मप्रशंसा से भरा था।
होली रसोत्सव संबंधी विज्ञापनों के बोझ तले दबे और कार्यक्रम के पास पाने की अभिलाषा में हेमा मालिनी से स्थानीय पत्रकारों ने यह पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि दो साल पहले उनके द्वारा किए गए ‘मथुरा महोत्सव’ तथा एक साल पहले किए गए ‘रसोत्सव’ से मथुरा के पर्यटन में कितनी वृद्धि हुई। उन्होंने अपने कार्यक्रमों में यहां की संस्कृति और उससे जुड़े यहां के लोगों को कितना बढ़ावा दिया और मुक्ताकाशीय रंगमंच का निर्माण कराने में वह क्यों सफल नहीं हुईं।
यमुना के लिए मथुरावासियों को उनका कर्तव्य याद दिलाने वाली हेमा मालिनी से किसी ने यह भी पूछना मुनासिब नहीं समझा कि उन्होंने अपने करीब चार साल के संसदीय कार्यकाल में यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का क्या प्रयास किया।
हेमा मालिनी से यह प्रश्न भी नहीं किया गया कि अब उनके द्वारा कराए जा रहे इस कार्यक्रम में कितने स्थानीय कलाकारों को तरजीह दी गई है क्योंकि जिन सुनामधन्य कलाकारों का जिक्र हेमा मालिनी ने किया वह किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। पंडित जसराज और हरिप्रसाद चौरसिया अपने-अपने फन के वो माहिर उस्ताद हैं कि हेमा मालिनी उनके सामने कहीं नहीं टिकतीं।
बेशक ये दिग्गज कलाकार देश की शान और पहचान हैं किंतु मथुरा में इनके कार्यक्रम मथुरा की कला व संस्कृति को कैसे समृद्ध करेंगे, यह बात समझ से परे है।
यूं भी देखा जाए तो महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्ण की जन्मस्थली को नामचीन कलाकारों के कार्यक्रमों से अधिक नेकनीयत रखने वाले नेताओं की दरकार है क्योंकि बाहरी नेताओं से मथुरावासी पहले भी धोखा खाते रहे हैं।
हरियाणा से आए मनीराम बागड़ी से लेकर स्वामी सच्चिदानंद साक्षी तक और जयंत चौधरी से लेकर हेमा मालिनी तक, जितने भी नेताओं ने मथुरा से अपनी संसदीय पारी शुरू की, उन सभी ने मथुरा की जनता को निराश किया।
एकबार और मथुरा से संसद पहुंचने का ख्वाब देखने वालीं सिने तारिका कम से कम स्थानीय जनता की नब्ज टटोल लें, साथ ही पार्टी स्तर पर भी पता कर लें कि वह उन्हें फिर चुनाव में उतारने का जोखिम उठाने को तैयार है भी या नहीं, तो उनके लिए बेहतर होगा।
आत्ममुग्ध सांसद हेमा मालिनी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि केवल सड़क बनवाना और बिजली मुहैया कराना ही उनका काम नहीं है। कल्चरल प्रोग्राम भी करते रहना चाहिए जिससे ब्रज की कलाओं को बढ़ावा मिले।
अच्छा होता यदि सांसद यह भी बता देतीं कि उन्होंने मथुरा जनपद में अपने प्रयासों से कितनी सड़क बनवाई हैं और बिजली की सुचारु आपूर्ति के लिए कितने प्रयास किए हैं।
हां, उद्घाटन करने वह समय-समय पर जरूर आती रही हैं किंतु उनका ब्यौरा जनता ने रखना जरूरी नहीं समझा होगा।
कौन नहीं जानता कि 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता पर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के काबिज होने तथा मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक श्रीकांत शर्मा को ऊर्जा मंत्रालय मिलने के बाद ही मथुरा जनपद की विद्युत समस्या का समाधान हुआ है अन्यथा इससे पहले शहर को भी बमुश्किल 12-14 घंटे ही बिजली मिल पाती थी परंतु सांसद ने कभी कोई प्रयास नहीं किए।
अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कथित उपलब्धियों और आगामी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का ऐलानी खाका खींचने वाली हेमा मालिनी ने अंत तक यह नहीं बताया कि यह ब्रजभूमि विकास ट्रस्ट क्या है और इसके पदाधिकारी कौन-कौन हैं।
हेमा मालिनी समय-समय पर यह तो कहती रही हैं कि वह ब्रज के विकास के लिए एक ट्रस्ट का गठन करके देश-विदेश से पैसा इकठ्ठा करेंगी परंतु वह ट्रस्ट कौन सा है, इसकी जानकारी कभी नहीं दी।
गौरतलब है कि होली रसोत्सव के नाम से बड़ी रकम एकत्र किए जाने की खासी चर्चा है और माथुर चतुर्वेद परिषद ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में इसका उल्लेख यह कहते हुए किया था कि फिल्म तो दिखानी ही पड़ेगी क्योंकि टिकट जो बिक चुकी हैं।
माथुर चतुर्वेद परिषद ने यह बात उस समय कही जब उन्हें बताया गया कि हेमा मालिनी का कार्यक्रम तो अब भी होने जा रहा है। फर्क केवल इतना है कि अब वह यमुना पार न होकर वेटरिनरी के प्रांगण में होगा।
हेमा मालिनी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में माथुर चतुर्वेद परिषद के एनजीटी पहुंच जाने तथा एनजीटी से यमुना किनारे प्रस्तावित कार्यक्रम पर रोक लगा देने की बात तो बताई परंतु परिषद के इस आरोप का कोई उत्तर नहीं दिया कि जब टिकट बिक गए तो फिल्म दिखानी पड़ेगी।
इसी प्रकार होली रसोत्सव के सहआयोजकों में ब्रजभूमि विकास ट्रस्ट का उल्लेख अवश्य किया गया है किंतु उसका कोई पदाधिकारी, कार्यक्रम की किसी प्रेस कांफ्रेंस का हिस्सा नहीं बना जबकि पहली प्रेस कांफ्रेंस समन्वयक बताए गए अनूप शर्मा ने तथा दूसरी खुद हेमा मालिनी ने की।
दोनों ही प्रेस कांफ्रेंस के वक्त उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग और तीर्थ विकास ट्रस्ट की ओर से भी किसी की नुमाइंदगी न होना शंका तो प्रकट करता है क्योंकि इन्हें मात्र विज्ञापन का हिस्सा बनाकर छोड़ दिया गया।
ऐसा नहीं है कि होली रसोत्सव करने के तौर-तरीकों से माथुर चतुर्वेद परिषद को ही शिकायत हुई हो, भाजपा का एक बड़ा वर्ग भी आयोजन के मकसद को न तो समझ पा रहा है और न पचा पा रहा है क्योंकि इसका औचित्य उनकी समझ से परे है।
यही कारण है कि कार्यक्रम की घोषणा से लेकर आज तक हेमा मालिनी के इर्द-गिर्द सिर्फ ऐसे लोगों का जमावड़ा रहा है जिनकी पार्टी में भी कोई पूछ नहीं रह गई और जो हर वक्त किसी न किसी की आड़ में अपना चेहरा चमकाने का प्रयास करते रहते हैं।
जाहिर है कि इतने सारे प्रश्नों और आरोपों के बीच आज से शुरू होने जा रहे होली रासोत्सव का कल समापन तो हो जाएगा लेकिन जो प्रश्न इसके आयोजकों पर उठे हैं, वह 2019 के लोकसभा चुनावों तक भाजपा और हेमा मालिनी का पीछा नहीं छोड़ने वाले।
ऐसे में हेमा मालिनी खुद सोच लें कि पार्टी द्वारा उतारे जाने के बाद भी क्या 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना उनके लिए आसान होगा, और क्या वह तब भी इसी प्रकार किसी प्रश्न का जवाब दिए बिना सिर्फ अपनी बात कहकर प्रेस कांफ्रेंस से उठ पाएंगी।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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