बैंक ऑफिशियल्स की सांठगांठ से देश तथा देशवासियों को हजारों करोड़ रुपयों का चूना लगाने वाले नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे सफेदपोश फ्रॉड सिर्फ महानगरों में ही नहीं है, ऐसे कई फ्रॉड मथुरा जैसी विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी में भी हैं।
विश्वस्त सूत्रों और विभिन्न बैंकों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मथुरा जनपद में करीब एक दर्जन ऐसे फ्रॉड हैं जिन्होंने हजारों करोड़ रुपया लेकर अब तक लौटाने का न तो नाम लिया है और ना ही उनकी इस रकम को लौटाने की कोई मंशा है।
सूत्रों के मुताबिक बैंकों को चूना लगाने वाले स्थानीय कारोबारियों में एक ओर जहां रीयल एस्टेट से जुड़े कुछ लोग हैं वहीं दूसरी ओर शिक्षा व्यवसायी भी शामिल हैं।
इसके अलावा टोंटी कारोबारी, एक नामचीन हॉस्पीटल तथा ब्रांडेड आभूषणों के व्यापारी ने भी बैंक से लिया हुआ कर्ज नहीं लौटाया है। कई होटल व्यवसायी भी बैंकों का पैसा हड़पे बैठे हैं और अब तक संबंधित बैंक ऑफिशियल्स को ऑब्लाइज करके काम चलाने में सफल रहे हैं।
बताया जाता है कि मथुरा की एक यूनिवर्सिटी पर ही अकेले सैकड़ों करोड़ का बैंक कर्ज है किंतु उसे कर्ज देने वाली बैंकों के अधिकारी फिलहाल मुंह सिलकर बैठे हैं।
गौरतलब है कि फिलहाल मथुरा जनपद और विशेष तौर पर मथुरा की सीमा में आने वाला नेशनल हाईवे नंबर दो, शिक्षा के क्षेत्र का एक हब बना हुआ है।
इसके अलावा भी मथुरा-भरतपुर रोड, मथुरा-हाथरस-अलीगढ़ रोड, मथुरा-गोवर्धन रोड तथा मथुरा-वृंदावन रोड पर तमाम शिक्षण संस्थाएं संचालित हैं।
शिक्षा के व्यवसाय में भारी प्रतिस्पर्धा के देखते हुए इससे जुड़े लोगों ने अपने संस्थानों को आधुनिक बनाने के नाम पर बैंकों से भारी-भरकम कर्ज ले रखा है किंतु उसे लौटाने की कोई नीयत नजर नहीं आती।
सूत्रों की मानें तो इन लोगों ने बैंकों की रकम का भारी दुरुपयोग किया है। यानि जिस काम के लिए कर्ज लिया गया था, वहां न लगाकर मोटा मुनाफा कमाने के लिए रीयल एस्टेट में निवेश कर दिया गया क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में अवैध वसूली करना आसान नहीं रहा।
रही-सही कसर 2016 में हुई नोटबंदी और फिर 2017 में आए जीएसटी ने पूरी कर दी। इन दोनों बड़े सरकारी कदमों ने काफी हद तक नंबर दो के लेन-देन को प्रभावित किया लिहाजा दोनों ही जगह कर्ज की रकम फंस कर रह गई।
इसी प्रकार रीयल एस्टेट के कई बड़े कारोबारियों पर न केवल बैंकों का भारी कर्ज फंसा हुआ है बल्कि ये लोग तमाम दूसरे लोगों और निवेशकों का भी मोटा पैसा हड़पे बैठे हैं। पूर्व में एक रीयल एस्टेट कारोबारी के यहां तो देनदारों ने काफी हंगामा काटा था और तब जैसे-तैसे इसने कुछ समय की मोहलत देकर अपना पीछा छुड़ाया।
रीयल एस्टेट का कारोबार हमेशा से नंबर दो की रकम खपाने में सबसे ऊपर रहा है और इसमें पैसा लगाकर कई लोगों ने बुलंदियों को छुआ भी है, किंतु जब से यह कारोबार सरकार की टेढ़ी नज़र का शिकार हुआ है तब से इसके कारोबारियों की असलियत छन-छन कर सामने आने लगी है।
देश के नामचीन रीयल एस्टेट कारोबारियों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कसा गया शिकंजा यह जानने के लिए पर्याप्त है कि किस तरह इन लोगों ने सारी हवा सरकारी पैसों से ही बना रखी थी।
बैंकों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक बहुत से #NPA (Non-Performing Asset) मात्र इसलिए खड़े हुए क्योंकि कर्ज लेने वालों ने एक बहुत बड़ी रकम कारोबार पर खर्च न करके अपने शौक-मौज पर खर्च की।
यही कारण है कि जिस शहर में कभी कारों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थी, आज वहां ऑडी तथा बीएमडब्ल्यू और मर्सडीज कारों की कोई कमी नहीं है।
बैंकों का पैसा हड़प कर बैठे लोगों की शानो-शौकत का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि ये और इनकी औलादें शॉपिंग के लिए भी अब्रॉड जाती हैं। पारिवारिक काय्रक्रमों में ही नहीं, निजी पार्टियों में भी पानी की तरह पैसा बहाते इन्हें आसानी से देखा जा सकता है।
ऋण लेकर घी पीने की मानसिकता वाले ये लोग देश के महानगरों में जाकर तो अय्याशी करते ही हैं, साथ ही अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए एक-एक लाख रुपए प्रति नाइट वसूलने वाली ‘कॉलगर्ल्स’ को भी यहां बुलाते हैं। ये ‘कॉलगर्ल्स’ फिर उन लोगों को मुहैया कराई जाती हैं, जिनसे ‘आउट ऑफ द वे’ जाकर काम कराना होता है।
आम आदमी को शायद यह जानकर आश्चर्य होगा कि शहर के कुछ सफेदपोश लोग तो सुरा एवं सुंदरी के जरिए मुश्किल से मुश्किल टास्क पूरा करने के विशेषज्ञ बन चुके हैं और ये लोग उस वर्ग की नाक के बाल बने हुए हैं जिसे कथित रूप से शहर की शान माना जाता है। जिनकी तरक्की के उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं।
जहां तक सवाल उन बैंकों का है जिनका पैसा ये सफेदपोश फ्रॉड दबाए बैठे हैं तो उनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, सिंडीकेट बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ोदा, इंडियन ओवरसीज बैंक, इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स सहित आईसीआईसीआई, एचडीएफसी तथा एक्सिस बैंक शामिल हैं।
इन बैंक के अधिकारियों की सफेदपोश बेईमानों से सांठगांठ इस कदर है कि बैंक अधिकारी इनके बारे में कोई जानकारी नहीं देते और न यह बताकर देते हैं कि उनका इस जनपद में कुल NPA आखिर है कितना।
अब देखना यह है कि विजय माल्या और ललित मोदी के बाद नीरव मोदी, मेहुल चौकसी तथा कोठारी पिता-पुत्रों की कारगुजारियां सामने आने पर भी बैंकें मथुरा के धोखेबाजों पर कब व कितना शिकंजा कसती हैं। कसती भी हैं या उनके भाग जाने का इंतजार करती हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
विश्वस्त सूत्रों और विभिन्न बैंकों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मथुरा जनपद में करीब एक दर्जन ऐसे फ्रॉड हैं जिन्होंने हजारों करोड़ रुपया लेकर अब तक लौटाने का न तो नाम लिया है और ना ही उनकी इस रकम को लौटाने की कोई मंशा है।
सूत्रों के मुताबिक बैंकों को चूना लगाने वाले स्थानीय कारोबारियों में एक ओर जहां रीयल एस्टेट से जुड़े कुछ लोग हैं वहीं दूसरी ओर शिक्षा व्यवसायी भी शामिल हैं।
इसके अलावा टोंटी कारोबारी, एक नामचीन हॉस्पीटल तथा ब्रांडेड आभूषणों के व्यापारी ने भी बैंक से लिया हुआ कर्ज नहीं लौटाया है। कई होटल व्यवसायी भी बैंकों का पैसा हड़पे बैठे हैं और अब तक संबंधित बैंक ऑफिशियल्स को ऑब्लाइज करके काम चलाने में सफल रहे हैं।
बताया जाता है कि मथुरा की एक यूनिवर्सिटी पर ही अकेले सैकड़ों करोड़ का बैंक कर्ज है किंतु उसे कर्ज देने वाली बैंकों के अधिकारी फिलहाल मुंह सिलकर बैठे हैं।
गौरतलब है कि फिलहाल मथुरा जनपद और विशेष तौर पर मथुरा की सीमा में आने वाला नेशनल हाईवे नंबर दो, शिक्षा के क्षेत्र का एक हब बना हुआ है।
इसके अलावा भी मथुरा-भरतपुर रोड, मथुरा-हाथरस-अलीगढ़ रोड, मथुरा-गोवर्धन रोड तथा मथुरा-वृंदावन रोड पर तमाम शिक्षण संस्थाएं संचालित हैं।
शिक्षा के व्यवसाय में भारी प्रतिस्पर्धा के देखते हुए इससे जुड़े लोगों ने अपने संस्थानों को आधुनिक बनाने के नाम पर बैंकों से भारी-भरकम कर्ज ले रखा है किंतु उसे लौटाने की कोई नीयत नजर नहीं आती।
सूत्रों की मानें तो इन लोगों ने बैंकों की रकम का भारी दुरुपयोग किया है। यानि जिस काम के लिए कर्ज लिया गया था, वहां न लगाकर मोटा मुनाफा कमाने के लिए रीयल एस्टेट में निवेश कर दिया गया क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में अवैध वसूली करना आसान नहीं रहा।
रही-सही कसर 2016 में हुई नोटबंदी और फिर 2017 में आए जीएसटी ने पूरी कर दी। इन दोनों बड़े सरकारी कदमों ने काफी हद तक नंबर दो के लेन-देन को प्रभावित किया लिहाजा दोनों ही जगह कर्ज की रकम फंस कर रह गई।
इसी प्रकार रीयल एस्टेट के कई बड़े कारोबारियों पर न केवल बैंकों का भारी कर्ज फंसा हुआ है बल्कि ये लोग तमाम दूसरे लोगों और निवेशकों का भी मोटा पैसा हड़पे बैठे हैं। पूर्व में एक रीयल एस्टेट कारोबारी के यहां तो देनदारों ने काफी हंगामा काटा था और तब जैसे-तैसे इसने कुछ समय की मोहलत देकर अपना पीछा छुड़ाया।
रीयल एस्टेट का कारोबार हमेशा से नंबर दो की रकम खपाने में सबसे ऊपर रहा है और इसमें पैसा लगाकर कई लोगों ने बुलंदियों को छुआ भी है, किंतु जब से यह कारोबार सरकार की टेढ़ी नज़र का शिकार हुआ है तब से इसके कारोबारियों की असलियत छन-छन कर सामने आने लगी है।
देश के नामचीन रीयल एस्टेट कारोबारियों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कसा गया शिकंजा यह जानने के लिए पर्याप्त है कि किस तरह इन लोगों ने सारी हवा सरकारी पैसों से ही बना रखी थी।
बैंकों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक बहुत से #NPA (Non-Performing Asset) मात्र इसलिए खड़े हुए क्योंकि कर्ज लेने वालों ने एक बहुत बड़ी रकम कारोबार पर खर्च न करके अपने शौक-मौज पर खर्च की।
यही कारण है कि जिस शहर में कभी कारों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थी, आज वहां ऑडी तथा बीएमडब्ल्यू और मर्सडीज कारों की कोई कमी नहीं है।
बैंकों का पैसा हड़प कर बैठे लोगों की शानो-शौकत का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि ये और इनकी औलादें शॉपिंग के लिए भी अब्रॉड जाती हैं। पारिवारिक काय्रक्रमों में ही नहीं, निजी पार्टियों में भी पानी की तरह पैसा बहाते इन्हें आसानी से देखा जा सकता है।
ऋण लेकर घी पीने की मानसिकता वाले ये लोग देश के महानगरों में जाकर तो अय्याशी करते ही हैं, साथ ही अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए एक-एक लाख रुपए प्रति नाइट वसूलने वाली ‘कॉलगर्ल्स’ को भी यहां बुलाते हैं। ये ‘कॉलगर्ल्स’ फिर उन लोगों को मुहैया कराई जाती हैं, जिनसे ‘आउट ऑफ द वे’ जाकर काम कराना होता है।
आम आदमी को शायद यह जानकर आश्चर्य होगा कि शहर के कुछ सफेदपोश लोग तो सुरा एवं सुंदरी के जरिए मुश्किल से मुश्किल टास्क पूरा करने के विशेषज्ञ बन चुके हैं और ये लोग उस वर्ग की नाक के बाल बने हुए हैं जिसे कथित रूप से शहर की शान माना जाता है। जिनकी तरक्की के उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं।
जहां तक सवाल उन बैंकों का है जिनका पैसा ये सफेदपोश फ्रॉड दबाए बैठे हैं तो उनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, सिंडीकेट बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ोदा, इंडियन ओवरसीज बैंक, इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स सहित आईसीआईसीआई, एचडीएफसी तथा एक्सिस बैंक शामिल हैं।
इन बैंक के अधिकारियों की सफेदपोश बेईमानों से सांठगांठ इस कदर है कि बैंक अधिकारी इनके बारे में कोई जानकारी नहीं देते और न यह बताकर देते हैं कि उनका इस जनपद में कुल NPA आखिर है कितना।
अब देखना यह है कि विजय माल्या और ललित मोदी के बाद नीरव मोदी, मेहुल चौकसी तथा कोठारी पिता-पुत्रों की कारगुजारियां सामने आने पर भी बैंकें मथुरा के धोखेबाजों पर कब व कितना शिकंजा कसती हैं। कसती भी हैं या उनके भाग जाने का इंतजार करती हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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