नई दिल्ली। कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी की पार्टी से नाराजगी की खबरों के बीच अब उनके पार्टी छोड़ने की खबर आ रही है। सूत्रों के हवाले से ऐसी खबर आ रही है कि मथुरा में हुई घटना के विरोध में प्रियंका ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। ट्विटर पर भी उन्होंने मथुरा घटना को लेकर खुलकर अपनी नाखुशी जाहिर की थी।
प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने ट्विटर हैंडल के बायो इंट्रो से कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता पद का परिचय हटा लिया है।
बता दें कि मथुरा में कांग्रेस पार्टी के ही कुछ कार्यकर्ताओं ने प्रियंका चतुर्वेदी से दुर्व्यवहार किया था। हालांकि, उन्हें अपने व्यवहार पर खेद जताने के बाद पार्टी में वापस ले लिया गया।
प्रियंका ने इस पर नाराजगी जताते हुए ट्वीट किया था कि कांग्रेस के लिए अपना खून-पसीना एक करने वालों के स्थान पर कुछ लंपट आचरण करने वालों को तरजीह मिल रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया जा रहा है कि मथुरा की घटना के कारण पार्टी छोड़ने से पहले ही कुछ अन्य कारणोंवश प्रियंका पार्टी से नाराज चल रही थीं। मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि प्रियंका मुखरता से पार्टी का पक्ष लेती थीं और उन्हें इस चुनाव में टिकट मिलने की उम्मीद थी। टिकट नहीं मिलने के कारण ही उन्होंने नाराजगी में पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया।
कांग्रेस की मुखर प्रवक्ता के तौर पर प्रियंका ने बनाई पहचान
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस प्रवक्ता के तौर पर प्रियंका चतुर्वेदी ने अलग पहचान बनाई। वह मीडिया चैनल्स और सार्वजनिक मंचों पर बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ पार्टी का मुखर चेहरा बनकर उभरी थीं। कांग्रेस में उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता का पद भी दिया गया। कई बार उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के साथ भी मंच साझा किया। हाल ही में उन्होंंने स्मृृति ईरानी के हलफनामे में डिग्री विवाद पर ताना कसते हुए स्मृति के ही लोकप्रिय सीरियल का गाना गाया था, जिसकी सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हुई।
प्रियंका की नाराजगी के पीछे ”मथुरा” से महेश पाठक की उम्मीदवारी भी
बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रियंका चतुर्वेदी की जड़ें उत्तर प्रदेश के मथुरा से जुड़ी हैं। प्रियंका के पिता और पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट पुरुषोत्तम चतुर्वेदी मथुरा के चौबच्चा मौहल्ला निवासी हैं।
मथुरा और चतुर्वेदी समुदाय में ”लाला” के नाम से मशहूर प्रियंका चतुर्वेदी के पिता कुछ समय पहले तक चतुर्वेदी समाज की पत्रिका के संपादक भी हुआ करते थे।
किन्हीं कारणोंवश उनका विवाद माथुर चतुर्वेद परिषद के संरक्षक महेश चतुर्वेदी यानि महेश पाठक से हुआ।
ये वही उद्योगपति महेश पाठक हैं जिन्हें कांग्रेस ने इस बार मथुरा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़वाया है। इस विवाद के बाद प्रियंका के पिता को समाज की पत्रिका के संपादक पद से मुक्त कर दिया गया।
गौरतलब है कि महेश पाठक का नाम मथुरा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में घोषित होने तक प्रियंका चतुर्वेदी का नाम काफी आगे चल रहा था और माना जा रहा था कि पार्टी उन्हें यहां से चुनाव मैदान में उतारने जा रही है किंतु ऐन वक्त पर महेश पाठक को टिकट दे दिया गया।
मथुरा कांग्रेस की गुटबाजी भी बड़ा कारण
इधर मथुरा कांग्रेस भी काफी लंबे समय से गुटबाजी का शिकार है। मथुरा में एकगुट पूर्व विधायक प्रदीप माथुर का है और दूसरा उन्हें पसंद न करने वाले कांग्रेसियों का। इस गुट में महेश पाठक भी बताए जाते हैं।
जाहिर है ऐसे में प्रदीप माथुर गुट को तरजीह देने वाली प्रियंका चतुर्वेदी को महेश पाठक की उम्मीदवारी रास नहीं आई।
प्रियंका चतुर्वेदी जिस विवाद का हवाला देकर कांग्रेस में गुंडों को महत्व देने की बात कर रही हैं, वो उस प्रेस कांफ्रेंस से ताल्लुक रखता है जिसे उन्होंने प्रदीप माथुर के साथ स्थानीय एक होटल में बुलाया था। यहीं गुटबाजी के चलते प्रियंका चतुर्वेदी से कथित तौर पर अभद्रता की गई।
अभद्रता की घटना पुरानी, फिर रिएक्शन अब क्यों
प्रियंका चतुर्वेदी को महेश पाठक की उम्मीदवारी भले ही रास न आ रही हो किंतु उन्हें मौका तब मिला जब अभद्रता करने वालों का मथुरा में मतदान से ठीक तीन दिन पहले निलंबन वापस ले लिया गया।
पार्टी महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्तर से वापस लिए गए इस निलंबन के पीछे भी महेश पाठक की उनसे नजदीकियां मानी जा रही हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया इससे ठीक पहले मथुरा में महेश पाठक के लिए रैलियां करके गए थे।
ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रियंका चतुर्वेदी के धुर विरोधी महेश पाठक के कहने पर ही उन सभी लोगों का निलंबन रद्द किया गया जिनकी शिकायत प्रियंका चतुर्वेदी ने की थी।
मथुरा में अब हालांकि मतदान हो चुका है किंतु महेश पाठक की उम्मीदवारी ने यहां की गुटबाजी को राष्ट्रीय स्तर पर हवा दे दी और उसी का परिणाम रहा प्रियंका का कांग्रेस को छोड़ना। अब देखना यह है कि पांच चरणों के शेष मतदान में प्रियंका की नाराजगी क्या गुल खिलाती है क्योंकि मुंबई में उनकी सक्रियता भी कांग्रेस के प्रत्याशियों को प्रभावित कर सकती है।
-Legend News
बता दें कि मथुरा में कांग्रेस पार्टी के ही कुछ कार्यकर्ताओं ने प्रियंका चतुर्वेदी से दुर्व्यवहार किया था। हालांकि, उन्हें अपने व्यवहार पर खेद जताने के बाद पार्टी में वापस ले लिया गया।
प्रियंका ने इस पर नाराजगी जताते हुए ट्वीट किया था कि कांग्रेस के लिए अपना खून-पसीना एक करने वालों के स्थान पर कुछ लंपट आचरण करने वालों को तरजीह मिल रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया जा रहा है कि मथुरा की घटना के कारण पार्टी छोड़ने से पहले ही कुछ अन्य कारणोंवश प्रियंका पार्टी से नाराज चल रही थीं। मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि प्रियंका मुखरता से पार्टी का पक्ष लेती थीं और उन्हें इस चुनाव में टिकट मिलने की उम्मीद थी। टिकट नहीं मिलने के कारण ही उन्होंने नाराजगी में पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया।
कांग्रेस की मुखर प्रवक्ता के तौर पर प्रियंका ने बनाई पहचान
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस प्रवक्ता के तौर पर प्रियंका चतुर्वेदी ने अलग पहचान बनाई। वह मीडिया चैनल्स और सार्वजनिक मंचों पर बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ पार्टी का मुखर चेहरा बनकर उभरी थीं। कांग्रेस में उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता का पद भी दिया गया। कई बार उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के साथ भी मंच साझा किया। हाल ही में उन्होंंने स्मृृति ईरानी के हलफनामे में डिग्री विवाद पर ताना कसते हुए स्मृति के ही लोकप्रिय सीरियल का गाना गाया था, जिसकी सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हुई।
प्रियंका की नाराजगी के पीछे ”मथुरा” से महेश पाठक की उम्मीदवारी भी
बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रियंका चतुर्वेदी की जड़ें उत्तर प्रदेश के मथुरा से जुड़ी हैं। प्रियंका के पिता और पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट पुरुषोत्तम चतुर्वेदी मथुरा के चौबच्चा मौहल्ला निवासी हैं।
मथुरा और चतुर्वेदी समुदाय में ”लाला” के नाम से मशहूर प्रियंका चतुर्वेदी के पिता कुछ समय पहले तक चतुर्वेदी समाज की पत्रिका के संपादक भी हुआ करते थे।
किन्हीं कारणोंवश उनका विवाद माथुर चतुर्वेद परिषद के संरक्षक महेश चतुर्वेदी यानि महेश पाठक से हुआ।
ये वही उद्योगपति महेश पाठक हैं जिन्हें कांग्रेस ने इस बार मथुरा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़वाया है। इस विवाद के बाद प्रियंका के पिता को समाज की पत्रिका के संपादक पद से मुक्त कर दिया गया।
गौरतलब है कि महेश पाठक का नाम मथुरा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में घोषित होने तक प्रियंका चतुर्वेदी का नाम काफी आगे चल रहा था और माना जा रहा था कि पार्टी उन्हें यहां से चुनाव मैदान में उतारने जा रही है किंतु ऐन वक्त पर महेश पाठक को टिकट दे दिया गया।
मथुरा कांग्रेस की गुटबाजी भी बड़ा कारण
इधर मथुरा कांग्रेस भी काफी लंबे समय से गुटबाजी का शिकार है। मथुरा में एकगुट पूर्व विधायक प्रदीप माथुर का है और दूसरा उन्हें पसंद न करने वाले कांग्रेसियों का। इस गुट में महेश पाठक भी बताए जाते हैं।
जाहिर है ऐसे में प्रदीप माथुर गुट को तरजीह देने वाली प्रियंका चतुर्वेदी को महेश पाठक की उम्मीदवारी रास नहीं आई।
प्रियंका चतुर्वेदी जिस विवाद का हवाला देकर कांग्रेस में गुंडों को महत्व देने की बात कर रही हैं, वो उस प्रेस कांफ्रेंस से ताल्लुक रखता है जिसे उन्होंने प्रदीप माथुर के साथ स्थानीय एक होटल में बुलाया था। यहीं गुटबाजी के चलते प्रियंका चतुर्वेदी से कथित तौर पर अभद्रता की गई।
अभद्रता की घटना पुरानी, फिर रिएक्शन अब क्यों
प्रियंका चतुर्वेदी को महेश पाठक की उम्मीदवारी भले ही रास न आ रही हो किंतु उन्हें मौका तब मिला जब अभद्रता करने वालों का मथुरा में मतदान से ठीक तीन दिन पहले निलंबन वापस ले लिया गया।
पार्टी महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्तर से वापस लिए गए इस निलंबन के पीछे भी महेश पाठक की उनसे नजदीकियां मानी जा रही हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया इससे ठीक पहले मथुरा में महेश पाठक के लिए रैलियां करके गए थे।
ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रियंका चतुर्वेदी के धुर विरोधी महेश पाठक के कहने पर ही उन सभी लोगों का निलंबन रद्द किया गया जिनकी शिकायत प्रियंका चतुर्वेदी ने की थी।
मथुरा में अब हालांकि मतदान हो चुका है किंतु महेश पाठक की उम्मीदवारी ने यहां की गुटबाजी को राष्ट्रीय स्तर पर हवा दे दी और उसी का परिणाम रहा प्रियंका का कांग्रेस को छोड़ना। अब देखना यह है कि पांच चरणों के शेष मतदान में प्रियंका की नाराजगी क्या गुल खिलाती है क्योंकि मुंबई में उनकी सक्रियता भी कांग्रेस के प्रत्याशियों को प्रभावित कर सकती है।
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