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रविवार, 27 दिसंबर 2020
‘उधार के सिंदूर’ से मथुरा में मांग सजाती भाजपा, क्या 2022 में ‘सदा सुहागन’ का आशीर्वाद ले पाएगी?
कड़वा है लेकिन सच है। उधार के सिंदूर से मांग तो सजाई जा सकती है पर ‘सदा सुहागन’ रहने का आशीर्वाद नहीं पाया जा सकता। जनप्रतिनिधियों के मामले में मथुरा का हाल भी कुछ ऐसा ही है।कहने को तो जनपद की कुल जमा पांच विधानसभाओं में से चार पर भाजपा के विधायक काबिज हैं परंतु उनमें से दो उधार के सिंदूर हैं। उधार के सिंदूर का रंग कुछ ज्यादा ही चटख होता है इसलिए उसकी शिनाख्त कराना जरूरी नहीं होता, पब्लिक सबको जानती भी है और पहचानती भी है।
बाकी बचे दो। ये यूं तो ‘स्वयंवर’ करके मथुरा लाए गए थे लेकिन उन पर सौहबत का रंग इस कदर चढ़ा कि सारी कलई उतर गई लिहाजा आज पब्लिक की आंखों में बुरी तरह खटक रहे हैं।
पार्टी के एक नेता ने पिछले दिनों इनमें से एक की तारीफ में कसीदे गढ़ते हुए अपना अनुभव कुछ इस तरह बताया- ”भाईसाहब…मैंने अपने जीवन में ऐसा विधायक नहीं देखा जो किसी के काम ही न आता हो।
काम छोटा हो या बड़ा, विधायक जी सामने वाले को हाजमे की ऐसी पुड़िया थमाते हैं कि वह पलटकर उनकी ओर मुंह भी नहीं करता। दोबारा आने की बात ही छोड़ दें।
वैसे ये हैं बहुत ऊर्जावान, परंतु उनकी सारी ऊर्जा और सारा करंट खुद को ऊर्जावान बनाए रखने के काम आ रहा है। क्या मजाल कि जनता उनकी ऊर्जा से कतई कुछ हासिल कर ले।
करे भी कैसे, वो आम जनता के इतने नजदीक आते ही नहीं कि कोई उनकी ऊर्जा का सदुपयोग कर सके। उनका सीधा फंडा है, अपना काम बनता, फिर भाड़ में जाए जनता। इसका उन्होंने मुकम्मल इंतजाम कर भी रखा है। पार्टीजनों के लिए ‘मजबूरी का नाम महात्मा गांधी’ है इसलिए बेचारे ‘मरा-मरा’ की रट इतनी तीव्र गति से लगा रहे हैं कि वो भी ‘राम-राम’ सुनाई दे रहा है।
दूसरे विधायक जी की बात करें तो उनके बारे में पार्टी के लोगों का कहना है कि उन्हें ओढ़ें या बिछाएं। पहले भी मिट्टी के माधौ थे, आज भी वैसे ही हैं। विधायक जरूर बन गए लेकिन उन्हें कोई आसानी से विधायक मानने को तैयार नहीं है। उनके लिए उनका चुनाव क्षेत्र ही प्रदेश की राजधानी है और ‘निज निवास’ है विधानसभा। इससे ऊपर उन्होंने न तो कभी सोचा, और न सोचने की कोई उम्मीद दिखाई देती है।
जब पार्टीजनों की उनके बारे में इतनी उत्तम राय है तो जनता किस मुंह से कुछ कहे। भूले-भटके कोई कभी कुछ मुंह खोलता भी है तो जवाब मिलता है कि विपक्ष के नाम पर यहां है क्या जो चिंता की जाए। मोदी-योगी जिंदाबाद…फिर हम जैसों को काम करने की जरूरत ही क्या है।
अब बात ‘उधार के सिंदूरों’ की
घाट-घाट का पानी पीकर भाजपा की बहती गंगा में हाथ धोने वाले एक विधायक जी तो जैसे सम्मानित होने के लिए ही पैदा हुए है। उन्होंने उसके लिए बाकायदा अपना एक ऐसा ‘निजी गैंग’ गठित कर रखा है जो उन्हें कहीं न कहीं और किसी न किसी बहाने सम्मानित करता रहता है। क्षेत्र की जनता उन्हें बाजरे और गन्ना के खेतों में तलाशती है लेकिन वो पाए जाते हैं किसी ऐसे मॉल या होटल में जहां उनका ‘सम्मान’ समारोह चल रहा होता है। चले भी क्यों नहीं, भाजपा जितना ख्याल ‘बावफाओं’ का रखती है उससे कहीं अधिक ‘बेवफा’ उसे प्रिय हैं।
वफादारों की विवशता यह है कि वो बेचारे हर हाल में ‘कमल ककड़ी’ से लटके रहते हैं। 2022 में भी वो वहीं लटके पाए जाएंगे, फिर पार्टी चाहे उधार के सिंदूरों को रिपीट करे या न करे। वफादारी का यही तकाजा है।
चौथे और अंतिम विधायक जी, अपनी पूर्ववर्ती सरकार में रहते हुए ही समझ गए थे कि येन-केन-प्रकारेण अपने हृदय ‘कमल’ को खिलाना है क्योंकि ऐसा न करने पर ‘दुर्गति’ को प्राप्त होना तय है।
कारनामे ही कुछ ऐसे रहे कि बात सीबीआई तक जा पहुंची। सगे-संबंधियों और इष्ट-मित्रों के साथ दोनों हाथ ऐसी लूट की कि लुटेरे व चोर-उचक्के भी शरमा जाएं लेकिन ‘चौर कर्म’ को भी ‘चौर कला’ का दर्जा हासिल है इसलिए उच्चकोटि के चोर मौका मिलने पर अपनी कला का प्रदर्शन करने से नहीं चूकते। इन्होंने भी पूरे गिरोह के साथ अपनी कला का मुजाहिरा किया और कुर्ते में जेबें बढ़ाते चले गए।
सुना है उनकी इस कलाकारी को देखते हुए मथुरा के सीडीओ कार्यालय में सीबीआई ने एक सेल्फ को बाकायदा सील किया हुआ है ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए। पार्टी ने भी उनकी महत्ता के मद्देनजर महकमा तो अलॉट कर रखा है परंतु झुनझुने के साथ। जब तक दोनों हाथों से ये विधायक जी पार्टी का झुनझुना बजाते रहेंगे, तब तक सीडीओ ऑफिस की सील लगी रहेगी। झुनझुना छूटा नहीं कि सील खुली नहीं। सील खुली तो घर की खिड़की जेल में जाकर खुलेगी, यह तय है।
जो भी हो लेकिन इस सबके बीच बेचारे कर्तव्यनिष्ठ, कर्मनिष्ठ और सत्यनिष्ठ पार्टीजन उस दिन के इंतजार में हैं जब पार्टी भी समझेगी कि उधार के सिंदूर से मांग तो सजाई जा सकती है पर ‘सदा सुहागन’ रहने का आशीर्वाद नहीं पाया जा सकता।
2022 के चुनाव बहुत दूर नहीं है। बमुश्किल सवा साल बाद वो दिन देखने को मिल जाएगा जब एकबार फिर चौराहे पर काठ की हांड़ी चढ़ानी होगी। तब देखना यह होगा कि पार्टी उधार के इन्हीं सिंदूरों को रिपीट करेगी अथवा सदा सुहागन का जन आशीर्वाद पाने के लिए सात जन्मों का साथ निभाने वालों को मौका देगी।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बड़ी चौथ वसूली न होने पर खोली गई यूपी के छात्रवृत्ति घोटाले की पोल, सही दिशा में जांच आगे बढ़ने पर ‘मथुरा’ के कई प्रभावशाली जाएंगे जेल
उत्तर प्रदेश के जिस छात्रवृत्ति एवं क्षतिपूर्ति घोटाले में मथुरा के समाज कल्याण अधिकारी सहित तीन विभागीय कर्मचारियों को निलंबित किया गया है, उसकी बुनियाद में दरअसल बड़ी चौथ वसूली का वो प्रयास रहा है जो परवान नहीं चढ़ सका और जिसके कारण इसे सामने लाना प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया।यूपी में छात्रवृत्ति एवं क्षतिपूर्ति घोटाले की बात करें तो इसकी शुरूआत डेढ़ दशक से भी पहले हो चुकी थी किंतु तब इसमें समाज कल्याण विभाग और स्कूल-कॉलेज संचालक ही संलिप्त थे। जैसे-जैसे इसकी जानकारी जनसमान्य और नेतानगरी तक पहुंची, वैसे-वैसे इसके तार बाहरी तत्वों से भी जुड़ने लगे।
देश का एक बड़ा प्रदेश है उत्तर प्रदेश, और उत्तर प्रदेश का एक छोटा पर धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिला है मथुरा। लेकिन डेढ़ दशक पहले तक इस धार्मिक महत्व वाले जिले में शिक्षा के नाम पर कुछ खास नहीं था। यही कारण रहा कि यहां शिक्षा व्यवसाइयों द्वारा छात्रवृत्ति की आड़ में की जा रही लूट से भी लोग अनभिज्ञ थे।
सन् 2000 में जब पहली बार मथुरा को एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज की सौगात मिली तो उसके बाद जैसे यहां शिक्षा व्यवसाय को पंख लग गए। देखते-देखते कृष्ण की यह नगरी एक ओर जहां तकनीकी शिक्षा का एक हब बनने लगी वहीं दूसरी ओर छात्रवृत्ति हड़पने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ी।
छात्रवृत्ति के खेल का खुलासा होने पर शिक्षा व्यवसाइयों से इतर लोग भी इसमें रुचि लेने लगे।
बताया जाता है कि इसी रुचि के तहत सत्ता के गलियारों में खासा प्रभाव रखने वाले एक स्थानीय व्यक्ति ने शिक्षा व्यवसाइयों से छात्रवृत्ति घोटाले से की जा रही कमाई में हिस्सा मांगना शुरू कर दिया। शिक्षा व्यवसाइयों ने भी उसका ध्यान रखा और वो उसे आंशिक हिस्सा देने लगे परंतु घोटाले से मिलने वाली बड़ी रकम के कारण आगे बात बनी नहीं रह सकी।
बताते हैं कि सत्ता प्रतिष्ठान तक पहुंच रखने वाले ‘इस व्यक्ति’ ने शिक्षा व्यवसाइयों के सामने प्रति संस्थान पांच लाख रुपए प्रति वर्ष की मांग रखी जिसे उन्होंने ठुकरा दिया क्योंकि घोटाले में अन्य तत्वों की हिस्सेदारी भी बढ़ने लगी थी।
बस यहीं से खेल बिगड़ना शुरू हुआ और बात जा पहुंची शिकायत के रूप में सदन के पटल तक।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार छात्रवृत्ति घोटाले में सर्वाधिक कमाई वर्ष 2009 से लेकर 2016 तक हुई। इस दौरान शिक्षा व्यवसायी तो फर्श से अर्श तक पहुंचे ही, अधिकारी एवं कर्मचारियों से लेकर उन तत्वों ने भी खूब मलाई मारी जो इस खेल की तह तक पहुंच चुके थे।
यही वो दौर था जब छात्रवृत्ति घोटाले ने तमाम लोगों की हैसियत बढ़ाई और जो कल तक बमुश्किल जीवन यापन करते देखे जाते थे, वो स्कूल-कॉलेजों के मालिक बन बैठे।
भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़े किए गए इन शिक्षण संस्थानों में पहले जहां बीएड और पॉलिटेक्निक ही घोटाले का प्रमुख आधार थे वहीं देखते-देखते इसका दायरा ITI और BTC व बीएससी से लेकर इंजीनियरिंग एवं फार्मा सहित दर्जनों दूसरे क्षेत्रों तक विस्तार ले चुका था।
आज स्थिति ये है कि प्रदेश का शायद ही कोई शिक्षण संस्थान छात्रवृत्ति घोटाले में लिप्त न हो। फिर चाहे वह कोई स्कूल हो, कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी ही क्यों न हो।
मथुरा के समाज कल्याण अधिकारी भले ही फिलहाल मात्र 23 करोड़ रुपए का घोटाला पकड़ में आने पर निलंबित किए गए हों परंतु कड़वा सच यह है कि एक-एक शिक्षण संस्थान इस खुली लूट में इतना ही पैसा प्रतिवर्ष हड़पता रहा है। अकेले मथुरा जनपद में इसके जरिए सरकारी खजाने का सैकड़ों करोड़ रुपया हजम किया जा चुका है और प्रदेश स्तर पर तो इसका आंकड़ा हजारों करोड़ रुपए है।
भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलने वाली योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार यदि घोटाले की परतें सही तरीके से खोलने में सफल हो जाए और अधिकारी अपनी जांच की दिशा लक्ष्य पर निर्धारित करते हुए रखें तो तय जानिए कि सरकारी खेमे के साथ-साथ निजी शिक्षा के अनेक बड़े नामचीन व्यवसायी न सिर्फ मथुरा में बल्कि प्रदेश स्तर पर जेल की सलाखों के पीछे होंगे।
साथ ही वो तत्व भी बेनकाब हो सकते हैं जिन्होंने छात्रवृत्ति की लूट में हिस्सेदारी ली और चौथवसूली करते रहे।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि छात्रवृत्ति घोटाले की दिशा यदि सही रहती है तो इसमें लिप्त शिक्षा व्यवसाइयों के अलावा वो सारे तत्व सामने होंगे जो पिछले डेढ़ दशक से सरकारी खजाने को दोनों हाथों से लूटते रहे और जिन्होंने शिक्षा जैसे पवित्र ध्येय का चेहरा इतना बिगाड़ दिया जिससे जनसामान्य ‘शिक्षा माफिया’ जैसा एक नया शब्द गढ़ने पर मजबूर हुआ।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
रविवार, 22 नवंबर 2020
बड़ा सवाल: ऊर्जा मंत्री की अधिकारियों पर ‘चल’ नहीं रही, या वो पब्लिक को ‘चला’ रहे हैं?
बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शामिल प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और योगी सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा की अब अधिकारियों पर ‘चल’ नहीं रही या वो ऐसा दिखाकर पब्लिक को ‘चला’ रहे हैं?यह सवाल 17 नवंबर को ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ के आगरा संस्करण में छपी उस खबर के बाद पूछा जा रहा है जिसके अनुसार ऊर्जा मंत्री श्रीकांत ने वृंदावन कुंभ मेले की तैयारियों को लेकर स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा बरती जा रही ढील पर नाराजगी जताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा है और इस संबंध में उनसे अनुरोध किया है कि वह अधिकारियों को निर्देशित करें।
अखबार के पृष्ठ 3 पर छपी इस खबर के मुताबिक 16 फरवरी 2021 से 28 मार्च 2021 तक 41 दिन वृंदावन में यमुना किनारे चलने वाले इस कुंभ मेले की अब तक कोई भौतिक प्रगति नहीं है जिस कारण साधु-संतों सहित स्थानीय जनमानस निराश व आक्रोशित है।
खबर के अनुसार ऊर्जा मंत्री ने मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में लिखा है कि जिला प्रशासन, ब्रज तीर्थ विकास परिषद के मुख्य कार्यपालक अधिकारी तथा अन्य एजेंसियों को परस्पर समन्वय स्थापित कर कुंभ मेले को भव्य बनाने और समय से कार्य पूर्ण कराने के लिए आदेशित किया जाए।
17 नवंबर को छपी इस खबर के बाद ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में ही आज यानी 19 नवंबर के दिन एक और खबर छपी है जिसके मुताबिक ब्रज तीर्थ विकास परिषद के सीईओ एवं कुंभ मेला अधिकारी तथा मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष नागेन्द्र प्रताप यादव ने बीते कल (बुधवार) को मेला स्थल का निरीक्षण किया।
इस दौरान उन्होंने जल निगम एवं नगर निगम के अधिकारियों को कुंभ मेला शुरू होने से पहले सभी व्यवस्थाएं पूरी करने के निर्देश देते हुए मेला क्षेत्र में सीवर का पानी फिर से भर दिए जाने पर नाराजगी जताई।
इसके अलावा मेला अधिकारी नागेन्द्र प्रताप यादव ने संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखकर यमुना के दोनों ओर अतिक्रमण हटवाने तथा पार्किंग के लिए जमीन का चयन करने को भी कहा है।
नागेन्द्र प्रताप ने यह निरीक्षण कार्य ऊर्जा मंत्री द्वारा सीएम योगी को पत्र लिखने के बाद ही क्यों किया, यह तो वही जानते होंगे अलबत्ता नेता नगरी में चर्चाएं अच्छी-खासी हैं।
गौरतलब है कि नागेन्द्र प्रताप यादव एक ओर जहां मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और ब्रज तीर्थ विकास प्ररिषद के सीईओ हैं वहीं दूसरी ओर ‘उज्जवल ब्रज’ नामक संस्था से भी जुड़े हैं जो ब्रज के विकास हेतु पंजीकृत कराई गई है।
कुल मिलाकर पहले से तीन-तीन बड़ी जिम्मेदारियां निभाते चले आ रहे नागेन्द्र प्रताप पर वृंदावन कुंभ मेला अधिकारी की भी अतिरिक्त जिम्मेदारी है।
बहरहाल, ऊर्जा मंत्री और योगी सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा का कुंभ मेले की तैयारियों में ढील बरतने पर स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ सीधे मुख्यमंत्री को शिकायती पत्र लिखना बहुत कुछ कहता है, वो भी तब जबकि 2022 में यूपी विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं।
मथुरा की जिस विधानसभा सीट से कांग्रेस के लगातार 15 साल विधायक रहे प्रदीप माथुर को हराकर श्रीकांत शर्मा सन् 2017 में भाजपा की टिकट पर विधायक निर्वावित हुए हैं, वह मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट ही है।
कस्बा गोवर्धन के मूल निवासी श्रीकांत शर्मा का इस तरह मथुरा न सिर्फ गृह जनपद है बल्कि निर्वाचन क्षेत्र भी है। ऐसे में श्रीकांत शर्मा का स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों को लेकर मुख्यमंत्री को लिखा गया पत्र समझ से परे है।
लोगों का मत है कि इस पत्र के दो मतलब निकलते हैं। जिसमें पहला तो ये कि श्रीकांत शर्मा का योगीराज में कद घट रहा है इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों पर उनकी पकड़ ढीली पड़ रही है और वह श्रीकांत शर्मा की बात को तरजीह नहीं दे रहे।
इसके अलावा एक दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि ऊर्जा मंत्री की खुद कुंभ मेले की तैयारियों में कोई रुचि नहीं है इसलिए वो पत्र लिखकर स्थानीय नागरिकों एवं साधु-संतों की नाराजगी से पल्ला झाड़ रहे हैं और उन्हें ‘चलता’ कर रहे हैं। हालांकि इसमें पहले वाली बात ज्यादा दमदार लगती है क्योंकि अधिकारी कई मौकों पर उनसे भारी पड़ते दिखाई दिए हैं।
यूं भी काफी समय बाद मथुरा में कोई जिलाधिकारी इतने लंबे समय तक तैनात रहा है, जिस कारण उनकी सत्ता के गलियारों में मजबूत पकड़ के खासे चर्चे हैं।
बताया जाता है कि जिलाधिकारी आसानी से किसी को भाव नहीं देते, फिर चाहे सत्ताधारी दल का कोई नेता हो, मंत्री हो या फिर मीडियाकर्मी ही क्यों न हों।
जहां तक प्रश्न ब्रज तीर्थ विकास परिषद से जुड़े प्रमुख अधिकारियों नागेन्द्र प्रताप और शैलजाकांत मिश्र का है तो उनकी कार्यप्रणाली को लेकर ऊर्जा मंत्री ने भले ही पहली बार सार्वजनिक तौर पर नाराजगी व्यक्त की हो किंतु आम जनता तथा विभिन्न समाजसेवी संगठनों सहित जागरूक लोगों में पहले से काफी नाराजगी है, बावजूद इसके हर बार उनका पलड़ा भारी साबित हुआ है।
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि आईपीएस अधिकारी शैलजाकांत मिश्र और प्रशासनिक अधिकारी नागेन्द्र प्रताप यादव का मथुरा से बहुत गहरा लगाव लगातार बना हुआ है।
नागेन्द्र प्रताप यादव जहां मथुरा में ही एसडीएम और एडीएम भी रहे हैं वहीं शैलजाकांत मिश्र करीब तीन दशक पहले बतौर पुलिस अधीक्षक यहां तैनाती रही। इसी दौरान वह ‘देवरिया बाबा’ के नाम से मशहूर संत ‘देवरहा बाबा’ के संपर्क में आए और फिर उनका निरंतर सानिध्य प्राप्त करने के लिए मथुरा-वृंदावन के होकर रह गए। उनकी तैनाती कहीं भी रही हो परंतु मथुरा आना उनका कम नहीं हुआ। फिलहाल ब्रज तीर्थ विकास परिषद के मुखिया की हैसियत से वो यहां सेवारत हैं।
शैलजाकांत मिश्र का दावा है कि देवरहा बाबा ने उन्हें मथुरा में तैनाती के दौरान ही ऐसा आशीर्वाद दिया था जिसके कारण उन्हें ब्रज तीर्थ विकास परिषद के मुखिया की हैसियत से दोबारा यहां सेवा करने का मौका मिल रहा है। ये बात और है कि लोग उनकी सेवा को संदिग्ध मानते हैं और सेवा की आड़ में मेवा हासिल करने का आरोप भी लगाते हैं।
जो भी हो, किंतु इसमें दो राय नहीं कि जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्र से लेकर ब्रज तीर्थ विकास परिषद के मुखिया शैलजाकांत मिश्र तक और तीन-तीन सरकारी जिम्मेदारियां निभा रहे नागेन्द्र प्रताप यादव सहित कई अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की सत्ता के गलियारों में कहीं तो कोई ऐसी पकड़ है जिसके बूते वह श्रीकांत शर्मा जैसे कद्दावर मंत्री व भाजपा नेता की बात को दरकिनार करने का माद्दा रखते हैं।
यदि ऐसा नहीं है और श्रीकांत शर्मा आम जनता और साधु-संतों को गुमराह करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री को शिकायती पत्र लिखकर कोई खेल कर रहे हैं तो तय जानिए कि आगामी चुनाव उनके लिए इतना आसान नहीं होगा क्योंकि उन्हें लेकर भी जनता को बहुत शिकायतें हैं।
ये भी कह सकते हैं कि उनका अपना मतदाता हो या पार्टी का कार्यकर्ता, कम से कम उनसे खुश तो नहीं है। बेहतर होगा कि ऊर्जा मंत्री उनके अंदर निहित ऊर्जा को कम आंकने की भूल न करें अन्यथा चुनावों में उसका करंट मुश्किल में डाल सकता है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
शनिवार, 7 नवंबर 2020
नीरा राडिया के नयति हेल्थकेयर पर 300 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का मामला दर्ज
नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मामला दर्ज कर दो फर्मों के खिलाफ जांच शुरू की है, जिसमें नयति हेल्थकेयर (Nayati Healthcare) भी शामिल है, जिसकी चेयरपर्सन और प्रमोटर नीरा राडिया हैं। गुरुग्राम की हेल्थ फर्म के साथ-साथ ईओडब्ल्यू की एफआइआर में दर्ज एक अन्य कंपनी नारायणी इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड पर 300 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है जो एक ऋण के माध्यम से प्राप्त की गई थी। नयति और नारायणी पर गुरुग्राम और विमहंस हॉस्पिटल दिल्ली के प्रिमामेद हॉस्पिटल परियोजनाओं (Primamed Hospital Projects) में 2018-2020 के बीच 312.50 करोड़ रुपये की राशि के गबन और जालसाजी का आरोप लगाया गया है।दिल्ली के ऑर्थोपेडिक सर्जन राजीव के शर्मा ने यह शिकायत दर्ज की है। सूत्रों के अनुसार फर्मों ने विभिन्न प्रसिद्ध ठेकेदारों के नाम पर फर्जी खाते खोलकर और इन खातों में सीधे लोन मनी ट्रांसफर करके लोन से करोड़ों का गबन किया। राजीव शर्मा ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि 400 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण और इक्विटी मनी को बेशर्मी से निकाल दिया गया है जबकि गुरुग्राम अस्पताल के बिल्डिंग की हालत पहले से भी बदतर हो गई है।
इस संबंध में अन्य जांच की प्रक्रिया अभी है जारी
नयति हेल्थकेयर ने बाद में इस मामले को लेकर एक बयान जारी किया। डॉ. शर्मा बोर्ड के सदस्य होने के नाते कंपनी के सभी कार्यों के लिए एक पार्टी और हस्ताक्षरकर्ता थे। मतभेदों के कारण जो गतिविधियों के एक फोरेंसिक ऑडिट के संचालन के लिए पीछा किया गया था। डॉ. राजीव शर्मा के तहत पिछला प्रबंधन, गलतबयानी और दुर्भावना के कुछ मामले सामने आए। इन मुद्दों को डॉ. शर्मा के साथ उठाया गया था और विधिवत रूप से पुलिस को एक शिकायत (SIC) के रूप में सूचित किया गया था। इस संबंध में अन्य जांच की प्रक्रिया अभी जारी है।
-एजेंसियां
रविवार, 25 अक्टूबर 2020
पत्रकारों को विशेष संदेश देता है “विजय दशमी” का पर्व, बशर्ते ध्यान दें
विजय दशमी…असत्य पर सत्य और अत्याचार पर सदाचार की विजय का प्रतीक पर्व… आज के दौर की पत्रकारिता तथा पत्रकारों को विशेष संदेश देता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम का संदेश बहुत स्पष्ट है कि मर्यादा में रहकर भी असत्य और अत्याचार पर विजय हासिल की जा सकती है किंतु शक्ति की उपासना के साथ।शक्ति और सामर्थ्य का अहसास कराए बिना विजय हासिल कर पाना संभव नहीं है।
“प्रेस” से “मीडिया” और “मीडिया” से “मीडिएटर” में तब्दील हो चुके इस एक “शब्द” का निहितार्थ समझना और समय की मांग को देखते हुए अपने ‘शब्दों’ की ताकत को पुनर्स्थापित करना जरूरी हो गया है अन्यथा भावी अनर्थ को रोक पाना असंभव हो जाएगा।
चाटुकारिता कभी पत्रकारिता का पर्याय नहीं होती और मर्यादा कभी शक्तिहीन व श्रीहीन नहीं बनाती। यदि ऐसा होता तमाम आसुरी शक्तियों का वध करने वाले श्रीराम… ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ नहीं कहलाते।
वो मर्यादा पुरुषोत्तम इसीलिए हैं क्योंकि उन्होंने शक्ति और सामर्थ्य का इस्तेमाल वहां किया, जहां करना जरूरी था। न खुद उसे किसी पर जाया किया न अपने सहयोगियों को जाया करने दिया।
और जब लंका विजय में बाधा बनकर खड़े समुद्र ने अनेक अनुनय-विनय को अनसुना किया तो लक्ष्मण को ये बताने से भी नहीं चूके कि-
विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होय न प्रीति।।
माना कि आज की पत्रकारिता कोई मिशन ने रहकर व्यवसाय बन चुकी है, बावजूद इसके उसका धर्म नहीं बदला।
व्यावसायिकता के इस दौर में भी यह समझना होगा कि कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए और अधिकारों का अतिक्रमण किए बिना किस प्रकार इस धर्म का पालन किया जा सकता है।
“दुम हिलाने वालों के सामने टुकड़ा तो उछाला जाता है किंतु उन्हें सम्मान नहीं दिया जाता। सम्मान के साथ हक हासिल करने के लिए धर्म और कर्म को समझना समय की सबसे बड़ी मांग है।”
कर्तव्य के पथ पर भी वहीं निरंतर अग्रसर हो सकता है जो धर्म और कर्म के मर्म को समझे, अन्यथा पत्रकारिता की जो गति आज बन चुकी है उसकी दुर्गति कहीं अधिक भयावह हो सकती है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
शनिवार, 3 अक्टूबर 2020
क्या योगी सरकार अवैध खनन में लगे पुलिस-प्रशासन और माफिया के संगठित गिरोह को तोड़ पाएगी?
भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने का दावा करने वाले योगीराज में भ्रष्टाचार की शिकायतें क्यों आम हो गई हैं और क्यों इन पर अंकुश नहीं लग पा रहा, इसके पीछे यदि देखा जाए तो पुलिस-प्रशासन और माफिया का ऐसा संगठित गिरोह है जिसे किसी का खौफ नहीं रहा।महोबा के संदर्भ में इस बात की पुष्टि करते हुए खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने यह कहा है कि ऐसा लगता है जैसे पूरा गिरोह बनाकर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है।
यहां सवाल किसी एक क्षेत्र से मिल रही शिकायत का नहीं है, हर सरकारी क्षेत्र का है क्योंकि कोई क्षेत्र ऐसा बाकी नहीं है जिसमें भ्रष्टाचार की गंध न बसी हो।
अगर बात करें अवैध खनन की तो शासन भी उसके सामने हारता दिखाई देता है, शायद इसीलिए प्रदेश का कोई हिस्सा खनन माफिया की सक्रियता से अछूता नहीं रहा।
वो जिले भी उनकी मनमानी से त्रस्त हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि योगी आदित्यनाथ की उन पर सीधी निगाह रहती है।
ऐसा ही एक जिला है भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली मथुरा। मथुरा से योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में दो ताकतवर मंत्री हैं और जनपद की कुल पांच विधानसभा सीटों में से चार पर भाजपा काबिज है। यहां की सांसद हेमा मालिनी भाजपा के विशिष्ट सांसदों में से एक हैं जबकि जिला पंचायत से लेकर नगर निगम तक पर भाजपा का परचम लहरा रहा है।
कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि योगी आदित्यनाथ और भाजपा की नाक, आंख और कान यहां सब सक्रिय हैं तो कुछ गलत नहीं होगा परंतु आश्चर्यजनक रूप से यहां का जिला प्रशासन निष्क्रिय है।
उत्तर प्रदेश के तमाम दूसरे जिलों की तरह अवैध खनन मथुरा जनपद की एक बड़ी समस्या है। कृष्ण की पटरानी कालिंदी को खनन माफिया ने यहां पूरी तरह खोखला कर दिया है। अवैध खनन की शिकायतें आए दिन सक्षम अधिकारियों तक पहुंचाई जाती हैं लेकिन वो एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं।
अधिकारी ऐसा क्यों करते हैं, इससे कोई अनभिज्ञ नहीं है लेकिन मजबूरी यह है कि आम आदमी शिकायत करे तो किससे करे।
नियम कानूनों का हवाला देकर खनन माफिया पर हाथ न डालने वाली पुलिस भी तब उनके खिलाफ कार्यवाही करती है जब उसे उनसे मिलने वाली महीनेदारी में कमी दिखाई देने लगती है।
प्रशासनिक अधिकारी ये कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि खनन माफिया को पुलिस का संरक्षण प्राप्त है लिहाजा वो उन्हें पकड़ने में उनका सहयोग नहीं करती।
सच तो यह है कि पुलिस-प्रशासन और माफिया के संगठित गिरोह ने जिले के कोयला अलीपुर, करनावल और अगरपुरा जैसे खादर के क्षेत्र को जेसीबी मशाीनों से छलनी कर दिया है।
बाढ़ के पानी को रोकने में सहायक इन इलाकों में अब इतने गहरे-गहरे गड्ढे बन गए हैं कि कई-कई हाथी एक के ऊपर एक खड़े किए जा सकते हैं। कृषि कार्य में उपयोगी ट्रैक्टर-ट्रालियां यहां भोर होने से पहले खनन करने में लगा दी जाती हैं जिससे अधिकतम खुदाई की जा सके।
यमुना किनारे के किसानों ने अवैध खनन को ही अपनी आमदनी का मुख्य जरिया बना लिया है और वो इसलिए अपने खेत की मिट्टी का भी सौदा करने से नहीं हिचकिचाते। स्थिति यह है कि जिले में जितना खनन यमुना की बालू का हो रहा है, उतना ही खेतों का सीना भी बड़ी बेदर्दी से चीरा जा रहा है।
मजे की बात यह है कि जिन क्षेत्रों में बाकायदा जेसीबी के साथ सैकड़ों की संख्या में ट्रैक्टर-ट्रॉली लगाकर खनन किया जा रहा है, उनके बारे में भी शिकायत करने पर पुलिस-प्रशासन कहता है कि उनकी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं है।
यह हाल तो तब है जबकि बिना सेटिंग किए जा रहे खनन को पुलिस द्वारा सड़क पर रोककर वसूली करते कभी भी देखा जा सकता है।
दिन-रात चल रहे अवैध खनन के इस खेल ने सरकार द्वारा बनाई जाने वाली कई सड़कों का तो सत्यानाश किया ही है, लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाला है क्योंकि दिन-रात उड़ने वाली रेत और धूल उन्हें गंभीर बीमारियों की सौगात दे रही है।
खनन माफिया के वाहन चूंकि हर वक्त बहुत जल्दी और तेजी में रहते हैं इसलिए उनके कारण आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होना आम बात है।
राजस्व विभाग, खनन विभाग, पुलिस विभाग, परिवहन विभाग आदि सबकी चुप्पी यह बताती है कि कोई भी इस अवैध धंधे से होने वाली अतिरिक्त आमदनी का मोह त्यागने को तैयार नहीं है।
सच तो यह है कि यदा-कदा यदि इन्हें किसी शिकायत पर कार्यवाही करने को बाध्य होना भी पड़ता है तो ये अपने नेटवर्क के माध्यम से माफिया तक पहले ही सूचना भेज देते हैं नतीजतन शिकायतकर्ता सबके सामने झूठा साबित हो जाता है, साथ ही वह सबके निशाने पर भी आ जाता है। फिर एक लाइन से सबके सब शिकायतकर्ता से दुश्मनी निकालने में जुट जाते हैं ताकि दोबारा वह वैसी हिमाकत न करे।
यही कारण है कि वह शिकायतकर्ताओं को खुलेआम धमकी देने से बाज नहीं आते, यहां तक कि मीडिया को धमकाने से भी नहीं हिचकते क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनके वर्चस्व को चुनौती देना इतना आसान नहीं है।
खनन माफिया के बुलंद हौसलों का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यदि कभी कोई ईमानदार पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी उसके काम में बाधक बने हैं तो उन्होंने उस पर प्राणघातक हमला करने में जरा भी देरी नहीं की।
समूचे उत्तर प्रदेश में रह-रहकर होने वाली ऐसी घटनाएं खनन माफिया के दुस्साहस की तस्दीक करती हैं।
विश्व के प्रमुख धार्मिक स्थानों में शुमार कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा के एक ओर तो चूंकि यमुना बहती है और दूसरी ओर पवित्र अरावली पर्वत श्रृंखला है इसलिए खनन माफिया के लिए यह अन्य जिलों से कहीं अधिक मुफीद है। साथ ही मुफीद है, उन अफसरों के लिए भी जिनके लिए खनन माफिया किसी दुधारू गाय से कम नहीं।
अब देखना यह होगा कि भ्रष्टाचार एवं भ्रष्टाचारियों पर इन दिनों सख्त कार्यवाही करने में लगे योगी आदित्यनाथ कृष्ण की नगरी में चल रहे इस सुनियोजित अवैध धंधे की कड़ी तोड़ पाते हैं या पुलिस-प्रशासन और माफिया का संगठित गिरोह उन्हें फिर गुमराह करने में सफल हो जाता है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
मंगलवार, 15 सितंबर 2020
मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाला: SIT खुद बनी वादी, रिसीवर रमाकांत गोस्वामी भूमिगत
मथुरा। गोवर्धन के प्रसिद्ध मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाले की FIR में वादी भी SIT खुद ही बनी है। SIT निरीक्षक कुंवर ब्रह्मप्रकाश ने अपने यहां क्राइम नंबर 0010/20120 पर यह मामला 11 सितंबर 2020 को शाम 6 बजकर 46 मिनट पर दर्ज कराया है।
इससे पहले SIT की जांच रिपोर्ट पर FIR दर्ज किए जाने के आदेशों को नकारने वाले मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाले के मुख्य आरोपी रमाकांत गोस्वामी अब भूमिगत हो गए हैं और इस प्रयास में लगे हैं कि अब भी किसी तरह SIT के IO को प्रभावित कर अपना नाम चार्जशीट में शामिल किए जाने से बच सकें।मथुरा के प्रतिष्ठित ‘श्रीजी बाबा’ परिवार से ताल्लुक रखने वाले कथावाचक रमाकांत गोस्वामी को यूं तो दौलत, शोहरत और इज्जत सब-कुछ विरासत में मिला किंतु उनकी ‘हवस’ ने उन्हें आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है जहां से वो कभी भी अपने ‘गिरोह’ सहित जेल की सलाखों के पीछे दिखाई देंगे।
दरअसल, न्यायिक व्यवस्था, प्रशासनिक अव्यवस्था और धार्मिक संस्थाओं की कुव्यवस्थाओं से उपजा कॉकस (Caucus) जब कोई दुरभि संधि करता है तब रमाकांत गोस्वामी जैसे लोग सुर्खियों में आते हैं।
चूंकि इनका उदय ही किसी दुरभि संधि के तहत होता है इसलिए आसानी से इनका बाल बांका नहीं हो पाता।
मुकुट मुखारबिंद मंदिर का मामला भी सिविल जज सीनियर डिवीजन चतुर्थ के न्यायालय में लंबित है परंतु तमाम शिकायतों के बावजूद वहां से रिसीवर रमाकांत द्वारा लगातार की जा रही कारगुजारियों पर कोई रोक नहीं लगाई गई जबकि न्यायिक व्यवस्था के ही अनुसार रिसीवर को प्रत्येक दो माह में मंदिर का हिसाब-किताब पूरे स्टेटमेंट और बिल-बाउचर सहित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
गोवर्धन के तत्कालीन एसडीएम नागेन्द्र कुमार सिंह ने अपनी जांच आख्या में लिखा है कि मंदिर के रिसीवर द्वारा भूमि क्रय करने, फूल बंगले और पेंशन आदि को लेकर न्यायालय की अनुमति लेने का कोई सबूत पेश नहीं किया गया। जिससे परिलक्षित होता है कि मंदिर के रिसीवर ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन न करते हुए घोर लापरवाही पूर्वक मंदिर की संपत्ति का दुरुपयोग किया।
एसडीएम की रिपार्ट से साफ जाहिर है कि गोवर्धन स्थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर में करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप होने बावजूद रिसीवर रमाकांत गोस्वामी अब तक खुली हवा में सांस कैसे ले पाए और यथासंभव सबूतों से भी छेड़छाड़ करने में किस तरह लगे रहे।
मीडिया को भी प्रभावित करने में सफल
एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर के रिसीवर की गद्दी पर बैठकर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने वाले रमाकांत गोस्वामी को मीडिया का मुंह बंद कराने में भी महारत हासिल है लिहाजा समय-समय पर मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर की हैसियत से मीडिया को लाखों रुपए के विज्ञापन देकर ऑब्लाइज करने में काफी हद तक सफल रहे।
हालांकि अब उन विज्ञापनों पर हुए खर्च का हिसाब-किताब भी सौंपना होगा और यह बताना होगा कि मंदिर के पैसों को अखबारों के विज्ञापन पर खर्च करने का अधिकार उन्हें किसने दिया।
SIT की जांच के दौरान भी लूटते रहे मंदिर का पैसा
रिसीवर रमाकांत गोस्वामी और उनके गिरोह के दुस्साहस का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि NGT के निर्देश और शासनादेशों से की जा रही SIT जांच के दौरान भी वह यथासंभव मंदिर का पैसा लूटते रहे।
कोरोना जैसी महामारी के बीच जब समूचा देश ‘लॉकडाउन’ चल रहा था तब भी मुकुट मुखारबिंद मंदिर में बने बनाए फर्श उखड़वाकर उनके स्थान पर नए फर्श बनवाए जा रहे थे।
संभवत: इसीलिए मुकुट मुखारबिंद मंदिर के घोटाले को इस स्टेज तक ले जाने वाले सभी शिकायतकर्ता SIT की FIR में न तो मात्र 12 लोगों के नाम शामिल किए जाने से से संतुष्ट हैं और न घोटाले की रकम से।
शिकायतकर्ताओं की बात पर भरोसा करें तो यह पूरा घपला करीब सौ करोड़ रुपए का है और इसमें शामिल लोगों की संख्या भी एक दर्जन न होकर लगभग पांच दर्जन है जिसमें एक न्यायिक अधिकारी भी आरोपी हो सकते हैं।
अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को कुछ दिन पहले तक पूरी तरह खारिज करने वाले रिसीवर रमाकांत गोस्वामी भी इस सच्चाई से भलीभांति वाकिफ हैं और इसलिए अब न तो मीडिया के सामने आ रहे हैं और न सार्वजनिक तौर पर दिखाई दे रहे हैं।
बावजूद इसके कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग इतना सब होने पर भी उनके खिलाफ कोई खबर छापने में दिलचस्पी नहीं ले रहा और इस इंतजार में है कि विज्ञापन की शक्ल में कोई सफाई जनता के समक्ष रख सके।
राजनीतिक संरक्षण की भी चाहत
आधा दर्जन फेसबुक अकाउंट के ‘धनी’ रमाकांत गोस्वामी ने अपनी ‘वॉल’ पर चस्पा तस्वीरों के जरिए तो खुद को भाजपायी साबित करने की कोशिश की ही है, साथ ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों पटुका पहनकर सम्मानित होने का फोटो भी लगा रखा है।
रिसीवर रमाकांत द्वारा ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा क्या रही होगी, इसे समझने के लिए बहुत दिमाग लगाने की जरूरत शायद ही हो।
गुरुवार, 10 सितंबर 2020
मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाला: SIT रिपोर्ट दबाने के लिए भाजपा नेता के माध्यम से दी गई 50 लाख रुपए की मोटी रिश्वत, जानिए… फिर भी सच कैसे आया सामने?
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश पर की गई यूपी SIT की जांच को मुकुट मुखारबिंद मंदिर के घोटालेबाजों ने 50 लाख रुपए की रिश्वत देकर दबाने का प्रयास किया था किंतु फिर भी वो अपने मकसद में सफल नहीं हुए, आखिर क्यों ?इस सवाल का जवाब जानने से पहले ये जान लें कि करीब-करीब 100 करोड़ रुपए के इस घोटाले की नींव कब रखी गई और इसके पीछे कितने शातिर दिमाग काम कर रहे थे।
कैसे हुआ खुलासा
गोवर्धन स्थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर में करोड़ों रुपए के घोटाले का खुलासा सबसे पहले दसविसा (गोवर्धन) निवासी राधारमन और प्रभुदयाल शर्मा ने किया। उन्होंने मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्वामी पर ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप लगाया था।
एनजीओ ने प्रेस कांफ्रेस करके लगाए गंभीर आरोप
इसके बाद 13 मई 2018 को इंपीरियल पब्लिक फाउंडेशन नामक NGO ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके मंदिर की संपत्ति में करोड़ों रुपए का घोटाला मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्वामी द्वारा ही अपने गुर्गों के साथ मिलकर किए जाने की जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि अपर सिविल जज प्रथम मथुरा के आदेश से मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर नियुक्त किए गए रमाकांत गोस्वामी ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपए की संपत्ति हड़प ली है।
इंपीरियल पब्लिक फाउंडेशन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि वर्ष 2010 में रमाकांत गोस्वामी ने न्यायालय के समक्ष इस आशय का एक प्रस्ताव रखा कि मुकुट मुखारबिंद मंदिर का प्रबंधतंत्र मंदिर के पैसों से एक अस्पताल बनवाना चाहता है।
रमाकांत गोस्वामी का यह प्रस्ताव न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को “इतना पसंद आया” कि उन्होंने न सिर्फ मंदिर के पैसों से अस्पताल बनवाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया बल्कि रिसीवर रमाकांत गोस्वामी को ही उसके लिए आवश्यक जमीन खरीदने के अधिकार भी सौंप दिए।
रमाकांत गोस्वामी भी यही चाहते थे इसलिए उन्होंने तत्काल एक जमीन का इकरार नामा पहले तो मात्र 40 लाख रुपयों में अपने खास मित्रों के नाम करवाया और फिर 4 महीने बाद ही उसी जमीन को उसके असली मालिक से 2 करोड़ 30 लाख रुपए में मंदिर के नाम खरीद लिया।
कारनामे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए रमाकांत गोस्वामी ने अपने मित्रों को द्वितीय पक्ष दिखा दिया जबकि जमीन के असली मालिक को प्रथम पक्ष बताया।
इस तरह सिर्फ चार महीने के अंतराल में मंदिर को बड़ी चालाकी के साथ करीब एक करोड़ 90 लाख रुपए का चूना लगा दिया गया।
रमाकांत गोस्वामी यहीं नहीं रुके, इसके बाद उन्होंने मंदिर को विस्तार देने की आड़ में 5 अगस्त 2011 को अपने मित्रों से ‘खास महल’ नामक एक संपत्ति 2 करोड़ 70 लाख रुपयों में खरीद ली।
वर्ष 2011 में अपनी साजिश सफल हो जाने पर रिसीवर रमाकांत गोस्वामी के हौसले बुलंद हो गए अत: उन्होंने वर्ष 2014-15 में फिर मंदिर की ढाई करोड़ रुपयों से अधिक की धनराशि का गबन किया। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में पौने चार करोड़ का, 16-17 में पौने छ: करोड़ रुपयों का घोटाला किया गया।
इतना सब हो जाने पर भी कोई कार्यवाही होते न देख इंपीरियल पब्लिक फाउंडेशन ने 05 जून 2018 को तहसील दिवस में एक शिकायती पत्र दिया, जिसके बाद जिलाधिकारी ने समस्त प्रकरण की जांच एसडीएम गोवर्धन नागेन्द्र कुमार सिंह के हवाले कर दी। इस जांच में एनजीओ द्वारा रमाकांत गोस्वामी पर लगाए गए सभी आरोप प्रथम दृष्टया सही पाये गए हैं।
गौरतलब है कि इन्हीं घोटालों की शिकायत इंपीरियल पब्लिक फाउंडेशन ने एनजीटी में भी की थी, जिसके बाद एनजीटी ने एसआईटी का गठन कर जांच कराने के आदेश दिए थे।
चारों ओर से खुद को फंसता देख रिसीवर रमाकांत गोस्वामी ने एक ओर जहां बड़े-बड़े विज्ञापन देकर मीडिया को चुप रखने की कोशिश की वहीं दूसरी ओर अपने राजनीतिक रसूखों के बल पर SIT की जांच को प्रभावित करने का प्रयास किया।
दी गई 50 लाख रुपयों की रिश्वत
घोटालेबाजों ने लगभग चार महीने पहले इसके लिए मथुरा में भाजपा के एक ऐसे पदाधिकारी से संपर्क किया जिसके गहरे संबंध और यहां तक कि रिश्तेदारी भी प्रदेश स्तरीय पदाधिकारी से है।
बताया जाता है कि एसआईटी की जांच को प्रभावित करने तथा उसे ठंडे बस्ते में डलवाने के लिए 50 लाख रुपए लखनऊ जाकर दिए गए और उसके बाद न सिर्फ यह मान लिया गया कि सब-कुछ समाप्त हो गया है बल्कि सार्वजनिक तौर पर इसका ढिंढोरा भी पीटा गया।
फिर भी सच कैसे आया सामने
इतना करने के बावजूद घोटालेबाज अपने मकसद में इसलिए कामयाब नहीं हुए और इसलिए अंतत: एसआईटी को अपनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करनी पड़ी क्योंकि गोवर्धन के ही दसबिसा निवासी हरीबाबू शर्मा पुत्र मोहन लाल शर्मा ने गत दिनों इलाहाबाइ हाईकोर्ट में एक याचिका डालने की पूरी तैयारी कर उसमें प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) उत्तर प्रदेश तथा डीआईजी (एसआईटी) लखनऊ को भी पार्टी बनाने के मकसद से अपने वकील सत्येन्द्र नारायाण सिंह के जरिए याचिका की कॉपी भेज दी।
दरअसल, हरीबाबू ऐसा करने के लिए तब मजबूर हुए जब उन्हें आरटीआई के माध्यम से यह जानकारी मिली कि जांच एजेंसी अपना काम पूरा करके रिपोर्ट शासन को दे चुकी है।
ये पता लगने के बाद हरीबाबू को यकीन हो गया कि घोटालेबाजों द्वारा किया गया दावा सही था कि वह एसआईटी की जांच को ठंडे बस्ते में डलवा चुके हैं।
अब जबकि हरीबाबू द्वारा प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) उत्तर प्रदेश तथा डीआईजी (एसआईटी) को पार्टी बनाने की सूचना मिली तो हड़कंप मचना स्वाभाविक था लिहाजा तुरंत शासन स्तर से एक ओर जहां एसआईटी की जांच रिपोर्ट को सामने रख दिया गया वहीं दूसरी ओर 11 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर कराने के आदेश भी कर दिए गए।
इस संबंध में पूछे जाने पर हरीबाबू शर्मा ने बताया कि एसआईटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज कर लिए जाने के बाद भी वह न्यायालय के माध्यम से मुकुट मुखारबिंद और दानघाटी मंदिर में हुए उन घोटालों को सामने लाने की लड़ाई लड़ते रहेंगे जो अभी दबे हुए हैं और जिन्हें इस गिरोह ने अंजाम दिया है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सोमवार, 7 सितंबर 2020
मथुरा में बहुत मशहूर है एक और खेल, क्या इस खेल का भी खुलासा करेगी पुलिस?
मेट्रो सिटीज दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, चेन्नई सहित देश के तमाम दूसरे महानगरों तथा नगरों के साथ तरक्की की दौड़ में विश्व का नामचीन धार्मिक शहर मथुरा बेशक काफी पिछड़ा हुआ प्रतीत होता हो, बेशक यहां अभी तरक्की को परिभाषित करने वाली अनेक सुविधाओं का अभाव हो, बेशक देश-दुनिया के साथ तरक्की के लिए कदम ताल मिलाने में इसे लंबा समय लगे, लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है जिसमें कृष्ण की यह नगरी अन्य दूसरे महानगरों एवं नगरों से किसी तरह पीछे नहीं हैं। सच तो यह है कि वह बहुत से नगरों एवं महानगरों से इस क्षेत्र में काफी आगे है।
जी हां! चाहे आपको आसानी से यकीन आये या ना आए, चाहे आपका मुंह आश्चर्य से एकबार को खुले का खुला रह जाए लेकिन सच्चाई यही है कि विश्व की धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं साहित्यिक विरासत को दरकिनार कर यह शहर उस दिशा में करवट ले चुका है जिसके बारे में सोचना तक आम आदमी के लिए किसी महापाप से कम नहीं है।
यहां हम बात कर रहे हैं पैसे वालों के एक शौक, या कहें एक ऐसे खेल की जिसे ”वाइफ स्वेपिंग” और ”कपल स्वेपिंग” कहा जाता है। पैसे वालों का इसलिए कि मध्यम वर्गीय लोगों की तो औकात से ही बाहर है इस खेल में शामिल होना।
इस खेल के तहत पैसे वाले परिवारों से संबंध रखने वाले कपल, कम से कम छ: कपल का एक ग्रुप बनाते हैं और यह ग्रुप फिर वाइफ स्वेपिंग करता है। वाइफ स्वेपिंग के तहत न्यूड एवं सेमी न्यूड ग्रुप डांस से लेकर ग्रुप सेक्स तक सब-कुछ शामिल होता है।
इसके लिए सबकी सहमति से शहर के किसी बाहरी हिस्से में अच्छे होटल का हॉल तथा कमरे बुक कराये जाते हैं, जहां ग्रुप के सदस्य कपल पूर्व निर्धारित दिन व समय पर अपनी-अपनी गाड़ियों से पहुंचते हैं। इस खेल में शामिल होने के लिए जितना जरूरी है एक अदद कपल का होना, उतना ही जरूरी है एक गाड़ी का होना। खेल की शुरूआत ड्रिंक या ड्रग्स से होती है, और उसके बाद जैसे-जैसे सुरूर चढ़ता जाता है, खेल शुरू होने लगता है।
खेल की शुरूआत के लिए ग्रुप के सभी सदस्य हॉल की बत्तियां बुझाकर एक टेबिल पर अपनी-अपनी गाड़ियों की चाभियां रख देते हैं और फिर अंधेरे में ही ग्रुप के पुरुष सदस्य किसी एक गाड़ी की चाभी उठाते हैं। जिसके हाथ में जिसकी गाड़ी की चाभी आ जाती है, वह उस सदस्य की बीबी के साथ खेल खेलने को अधिकृत हो जाता है। ठीक इसी प्रकार उसकी बीबी के साथ वह सदस्य खेल खेलने का अधिकारी हो जाता है जिसकी चाभी उसके हाथ लगी है।
चाभियों की अदला-बदली के साथ यह सदस्य अपने पार्टनर को होटल में ही पहले से बुक्ड कमरों में ले जाते हैं और फिर वहां स्वछंद सेक्स का यह खेल शुरू हो जाता है।
इससे भी आगे इस खेल में कुछ लोग हॉल के अंदर ही एक-दूसरे की पत्नियों को लेकर सब-कुछ करने को स्वतंत्र होते हैं जबकि कुछ लोग दो-दो और तीन-तीन की संख्या में ग्रुप सेक्स करते हैं।
जाहिर है कि इस सारे खेल का राजदार और हिस्सेदार वह होटल मालिक भी होता है जिसके यहां खेल खेला जाता है। उसे इसके लिए अच्छी-खासी रकम मिलती है, वो अलग।
बताया जाता है कि मथुरा के नवधनाढ्यों को इस खेल की लत उस क्लब कल्चर से लगी है जो कथित तौर पर समाज सेवा के कार्य करते हैं अथवा समाज सेवा करने का दावा करते हैं।
इनके अलावा कुछ लोगों ने पर्सनल क्लब या ग्रुप भी बना लिए हैं और उनकी आड़ में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं। जिनका असल मकसद उनके बीच से छांटकर ‘वाइफ स्वेपिंग’ अथवा ‘कपल’ स्वेपिंग के लिए एक अलग ग्रुप बनाना होता है।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले कुछ समय के अंदर इस धार्मिक शहर के विशेष वर्ग में हुईं आकस्मिक युवा संदिग्ध मौंतों के पीछे यही खेल रहा है क्योंकि इसके आफ्टर इफेक्ट अंतत: ऐसे ही परिणाम निकालते हैं।
सूत्रों की मानें तो विगत माह एक प्रसिद्ध होटल मालिक की शादी-शुदा बहिन इसी खेल में अपनी जान दे चुकी है। उसकी मौत को हालांकि इसलिए आत्महत्या प्रचारित किया गया क्योंकि उसने अपने मायके में जान दी थी परंतु सूत्रों की मानें तो इसके पीछे का असली कारण वाइफ स्वेपिंग का खेल ही था।
इसके अलावा कुछ समय पहले एक बिल्डर के युवा पुत्र की संदिग्ध मौत हो या एक अन्य बड़े व्यवसाई के अधेड़ उम्र पुत्र की होटल के कमरे में हुई मौत का मामला हो, सबके पीछे यही खेल बताया जाता है।
जिन परिवारों में यह मौतें हुई हैं, वह दबी जुबान से इतना तो स्वीकार करते हैं कि अवैध संबंध इन मौतों का कारण बने हैं, लेकिन सीधे-सीधे वाइफ स्वेपिंग के खेल में संलिप्तता स्वीकार नहीं करते।
चूंकि इस खेल के परिणाम स्वरूप एचआईवी एड्स तथा आज के दौर की कोराना जैसी संक्रामक बीमारियां भी तोहफे में मिलने की पूरी संभावना रहती है इसलिए इसके परिणाम तो किसी न किसी स्तर पर जाकर घातक होने ही होते हैं। ऐसी स्थिति में पति-पत्नी एक-दूसरे को दोषी ठहराने का प्रयास करते हैं और इसके फलस्वरूप गृहक्लेश बढ़ जाता है। रोज-रोज के गृहक्लेश का नतीजा फिर किसी अनहोनी के रूप में सामने आता है।
इस खेल से जुड़े लोगों से प्राप्त जानकारी के अनुसार धार्मिक शहर मथुरा में यूं तो इस खेल की शुरूआत हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन पिछले करीब पांच सालों से इसमें काफी तेजी आई है। पांच सालों में मथुरा के अंदर इस खेल के कई ग्रुप बने हैं और इसी कारण सो-कॉल्ड सभ्रांत परिवारों में कई जवान संदिग्ध मौतें भी हुई हैं।
आजतक ऐसी किसी मौत का मामला पुलिस के पास न पहुंचने की वजह से पुलिस ने उसमें कोई रुचि नहीं ली क्योंकि यूं भी मामला पैसे वालों से जुड़ा होता है।
यही कारण है वाइफ स्वेपिंग का यह खेल धर्म की इस नगरी में न केवल बदस्तूर जारी है बल्कि दिन-प्रतिदिन परवान चढ़ रहा है।
एक-दो नहीं, अनेक अपराधों का रास्ता बनाने वाला यह खेल यदि इसी प्रकार फलता-फूलता रहा और पुलिस व प्रशासन के बड़े अधिकारियों ने इस ओर अपनी निगाहें केंद्रित न कीं तो आने वाले समय में कृष्ण की नगरी के लिए यह ऐसा कलंक साबित होगा जिससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जायेगा।
मुश्किल इसलिए कि मथुरा से दिल्ली बहुत दूर नहीं है। दिल्ली का कचरा अगर यमुना में बहकर आ रहा है तो दिल्ली का कल्चर भी सड़क के रास्ते मथुरा को प्रदूषित कर ही रहा है।
-लीजेण्ड न्यूज़