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सोमवार, 10 मई 2021
कोरोना से तो बच सकते हैं लेकिन इन वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और भ्रम फैलाने वाले वायरसों से कैसे बचें?
चीन के वुहान में उपजा कोरोना नामक वायरस जब से ग्लोबल हुआ है, तब से तमाम दूसरे वायरस भी दुनियाभर में सक्रिय हो चुके हैं। कोरोना की हर लहर के साथ इनकी संख्या बढ़ती जा रही है लिहाजा समझ में नहीं आ रहा इनसे बचाव कैसे किया जाए?दो गज की दूरी और मास्क जरूरी, सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजेशन, आइसोलेशन, वर्क फ्रॉम होम आदि को अपनाकर शायद कोविड-19 से तो बचा जा सकता है किंतु वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों के रूप में सोशल मीडिया, वेब मीडिया, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के जरिए फैल चुके वायरसों से बचने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा।
दुनिया अभी जहां बमुश्किल कोरोना की वैक्सीन ही ईजाद कर सकी है वहीं ये वैज्ञानिक और विशेषज्ञ दिन-रात नए-नए नतीजे निकाल कर और कोरोना के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का बखान करके लोगों को भयभीत करने का काम कर रहे हैं।
लोगों के दिलो-दिमाग में भय का भूत व्याप्त करने वाले ये तत्व इस कदर वायरल हो चुके हैं कि आदमी “मीडिया” से दूर भागने लगा है। हालांकि ये फिर भी पीछा नहीं छोड़ रहे।
आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे तत्वों में विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO सहित कई विकसित देशों के वो विशेषज्ञ और वैज्ञानिक भी शामिल हैं जिन्होंने अब तक अपनी ऐसी ही कथित योग्यता के बल पर न केवल मान-सम्मान बल्कि धन-दौलत और तमाम पुरस्कार भी हासिल किए हैं।
ख्याति प्राप्त ये संस्थाएं और व्यक्ति आज न तो कोरोना के किसी एक इलाज पर एकमत हैं और न उसके लक्षण एवं दुष्प्रभावों पर। सब अपनी-अपनी ढपली बजा रहे हैं जिससे आम आदमी अधिक भ्रमित हो रहा है।
इनकी मानें तो अब पृथ्वी से सारे रोग दूर हो चुके हैं। जो कुछ है, वो कोरोना है। समूचे विश्व में जितने भी लोग मर रहे हैं, वो सिर्फ और सिर्फ कोरोना से मर रहे हैं। भविष्य में भी हर रोग कोरोना की देन होगा क्योंकि इनके अनुसार उसके आफ्टर इफेक्ट्स ही इतने हैं कि उनमें सब-कुछ समाहित हो जाएगा।
कुल मिलाकर मौत के लिए आत्मा का शरीर छोड़ देना भले ही जरूरी हो किंतु तब भी कोरोना पीछा छोड़ दे, यह जरूरी नहीं है।
ऐसे में हिंदू धर्मावलंबियों को तो एक सवाल और परेशान कर रहा है कि क्या शरीर के खाक हो जाने पर भी कोरोना उसमें शेष रहता होगा।
क्या कोरोना उस फ़ीनिक्स नामक पक्षी की तरह है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसकी राख से ही उसका पुनर्जन्म होता है।
यदि ऐसा है तो फिर उन धर्मों के मृत शरीरों का क्या जिनमें दफनाने, लटकाने अथवा दूसरे जीवों का भोजन बना देने के लिए उन्हें छोड़ देने का रिवाज है। वो तो बहुत खतरनाक साबित हो सकते हैं।
इस तरह कोरोना सर्वव्यापी हो जाएगा और उससे कभी पीछा छूटेगा ही नहीं। वो हवा में तो होगा ही, कब्र में लेटी लाश में भी होगा और जल, जंगल तथा पहाड़ों पर भी चारों ओर फैला होगा।
सिरदर्द, बदन दर्द, बुखार, खांसी, जुकाम, त्वचा विकार, उल्टियां, दस्त, एसिडिटी, सांस फूलना, आंखों में जलन, सुगंध एवं दुर्घन्ध का अहसास न होने, सीने में दर्द और यहां तक कि कम सुनाई देने तथा मुंह का स्वाद चले जाने जैसे अनगिनत लक्षणों के प्रचार-प्रसार से कोरोना हमारे दिमाग में तो पूरी तरह घुस ही गया है… अब इससे पहले कि वह हमें पागल कर दे सरकार को कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे मानसिक रोगियों की तादाद परेशान न करने लगे।
कहीं ऐसा न हो कि जैसे-तैसे बनाए जा रहे कोविड अस्पतालों को फिर पागलखानों में तब्दील करना पड़ जाए क्योंकि किसी भी बीमारी का खौफ उसके वास्तविक खतरे से कहीं अधिक भारी होता है।
कहते हैं कि दुनिया में सांपों की जितनी भी प्रजातियां पाई जाती हैं, उनमें से बहुत कम ही ऐसी होती हैं जिनमें आदमी को मारने लायक जहर होता हो। इसीलिए सांप के काटने पर मरने वालों में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा होती है जिनका दहशत में हार्टफेल हो जाता है।
बेशक कोरोना इस दौर में उपजा एक खतरनाक वायरस है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए किंतु इसका यह मतलब नहीं कि जागरूकता के नाम पर भय का ऐसा वातावरण बना दिया जाए कि वह लोगों के अंदर घर कर बैठे। बिना किसी ठोस आधार के और रिसर्च किए बगैर उसके इतने आफ्टर इफेक्ट्स प्रचारित कर दिए जाएं कि कोरोना से मुक्ति मिलने पर भी लोग उससे मुक्त न हो सकें तथा मानसिक विकृति के शिकार हो जाएं।
उचित तो ये होगा कि ऐसे ज्ञानियों, विज्ञानियों तथा विशेषज्ञों के निजी निष्कर्षों पर सरकारें सख्ती के साथ लगाम लगाने की व्यवस्था करें अन्यथा इसके दूरगामी परिणाम भुगतने होंगे, और वो किसी भी वायरस से अधिक घातक हो सकते हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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