मंगलवार, 1 जून 2021

जेल के अंदर गैंगवार पर आश्‍चर्य नहीं, आश्‍चर्य है मथुरा व बागपत के बाद चित्रकूट में भी 9 MM पिस्‍टल के यूज... पर?


 उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में कल जेल के अंदर हुई गैंगवार न तो कोई नई बात है और न बहुत आश्‍चर्य जताने वाली क्‍योंकि पूर्व में भी जेल के अंदर ऐसी गैंगवार होती रही हैं।

सोचने की बात यदि कोई है तो वो ये कि मथुरा जिला कारागार में हुई गैंगवार के बाद बागपत जेल में हुई गैंगवार और अब चित्रकूट जेल की गैंगवार में आश्‍चर्यजनक रूप से 9 एमएम पिस्‍टल का ही इस्‍तेमाल हुआ है।
बागपत जिला जेल में 09 जुलाई 2018 को कुख्‍यात माफिया डॉन मुन्‍ना बजरंगी को गोलियों से भून डाला गया।
इससे पहले 17 जनवरी 2015 की दोपहर मथुरा जिला जेल में हुई गोलीबारी के दौरान एक गैंग से अक्षय सोलंकी को मौत के घाट उतार दिया गया। दूसरे गैंग से राजकुमार शर्मा, दीपक वर्मा और राजेश ऊर्फ टोंटा घायल हुए।
दूसरे ही दिन 18 जनवरी को टोंटा को तब गोलियों से भून डाला गया जब उसे इलाज के लिए एंबुलेंस में भारी पुलिस फोर्स के साथ मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी आगरा ले जा रही थीं।
मथुरा के फरह थाना क्षेत्र में नेशनल हाईवे नंबर 2 पर मथुरा-आगरा के बीच पचासों पुलिसकर्मियों के रहते एंबुलेंस के अंदर राजेश टोंटा को गोलियों से छलनी कर दिया गया और पुलिस न तो एक भी बदमाश को मौके से पकड़ सकी और न टोंटा के साथ एंबुलेंस में मौजूद कोई पुलिसकर्मी घायल हुआ।
मिली जानकारी के अनुसार मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या में सिर्फ एक असलाह का इस्‍तेमाल हुआ किंतु मथुरा जिला जेल में हुई गैंगवार के दौरान दोनों पक्षों ने आधुनिक हथियार चलाए। पुलिस की कहानी के अनुसार इस गैंगवार में इस्‍तेमाल किए गए 9 एमएम हथियार बंदी रक्षक कैलाश गुप्‍ता ने पहुंचाए थे। इस गैंगवार के बाद मथुरा जिला जेल से बरामद दोनों हथियार 9 एमएम (प्रतिबंधित बोर) के थे।
इत्‍तेफाक देखिए कि मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या में भी इसी बोर के हथियार को इस्‍तेमाल किए जाने की बात सामने आई।
अब चित्रकूट जिला जेल की गैंगवार में भी 9 एमएम पिस्‍टल इस्‍तेमाल किए जाने की बात कही गई है।
कुल मिलाकर यदि ये कहा जाए कि उत्तर प्रदेश की जेलें हर दौर में कुख्‍यात अपराधियों के लिए सजा का ठिकाना न होकर संरक्षण के केंद्र रही हैं तो कुछ गलत नहीं होगा। राज चाहे आज योगी का हो अथवा इससे पहले अखिलेश, मुलायम या मायावती का।
भाजपा के सहयोग से सरकार चला रही मायावती के शासनकाल के दौरान 1995  में मथुरा जिला कारागार के अंदर वाले गेट पर भाड़े के बदमाशों ने किशन पुटरो की हत्‍या कर दी थी। इस हत्‍याकांड में तब किशन पुटरो के अलावा जेल का एक सफाईकर्मी भी मारा गया।
कहने का आशय यह है कि उत्तर प्रदेश की जेलों में एक लंबे समय से कुख्‍यात अपराधी मनमानी करते रहे हैं। यह बात अलग है कि जिस तरह आज योगी आदित्‍यनाथ पहले से बेहतर कानून-व्‍यवस्‍था होने का दावा करते हैं, उसी तरह मायावती और अखिलेश भी अपने-अपने समय में कानून का राज होने का दावा करते थे किंतु सच्‍चाई यही है जो आज चित्रकूट जेल से सामने आई है या इससे पहले मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या के रूप में बागपत जेल से और अक्षय सोलंकी की हत्‍या के रूप में मथुरा जिला कारागार से सामने आई थी।
मथुरा और बागपत के बाद अब चित्रकूट की गैंगवार में भी 9 एमएम पिस्‍टल का इस्‍तेमाल किया जाना यह साबित करता है कि किसी न किसी स्‍तर पर जितनी आवश्‍यकता प्रदेश के जेल तंत्र को परखने की है, उससे ज्‍यादा यह जानने की है कि आखिर एक ही किस्‍म का हथियार जेलों के अंदर क्‍यों और कैसे पहुंच रहा है। कहीं इसके पीछे भी समूचे प्रदेश में जेल तंत्र तथा अपराधियों का विशेष गठजोड़ तो काम नहीं कर रहा।
मायावती और अखिलेश राज के बाद अब योगीराज में भी जेल के अंदर की ये गैंगवार साबित करती है कि यहां सरकारें भले ही बदलती हों लेकिन बाकी कुछ नहीं बदलता। निश्‍चित ही इसके लिए वो व्‍यवस्‍था दोषी है जिसके चलते पूरे तंत्र का बुरी तरह राजनीतिकरण हो चुका है। ऐसे में जाहिर है कि जब तक इस राजनीतिकरण को खत्‍म नहीं किया जाता तब तक न सड़क पर अपराध कम होंगे और न जेल के अंदर।
-Legend News

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