बुधवार, 17 दिसंबर 2025

कई गंभीर सवाल खड़े करता है मथुरा में सैकड़ों वकीलों के चैंबर पर चला प्रशासन का बुलडोजर


 कानून-व्यवस्था की सबसे ताकतवर रूप में स्‍थापित एक इकाई अधिवक्ता ही यदि कानून-व्यवस्था के रखवालों से पीड़ित दिखाई दे तो इससे कई गंभीर सवाल खड़े हो जाना लाजिमी है, क्योंकि सामान्य तौर पर किसी काले कोट वाले के खिलाफ कोई कदम उठाने से पहले पुलिस अथवा प्रशासनिक अधिकारी 36 बार सोचते हैं। और यदि मामला पूरे अधिवक्ता समाज से जुड़ा हो, तो पुलिस प्रशासन के लिए सिरदर्द से कम नहीं होता। बीते शनिवार-रविवार की रात कलक्ट्रेट परिसर मथुरा में एसपी सिटी कार्यालय के पीछे जिला प्रशासन ने वकीलों के करीब 200 चैंबर बुलडोजर से ध्वस्त कर दिए। वकीलों को इसकी जानकारी रविवार सुबह हुई। उम्मीद के मुताबिक वकीलों ने प्रशासन पर एक ओर जहां बिना किसी पूर्व सूचना अथवा नोटिस के ध्‍वस्तीकरण की कार्रवाई किए जाने का आरोप लगाया वहीं दूसरी ओर आज यानी सोमवार से बार एसोसिएशन ने बेमियादी हड़ताल का भी एलान कर दिया। 

बार एसोसिएशन मथुरा अब इस लड़ाई को कहां तक लेकर जाएगी और उसके द्वारा घोषित बेमियादी हड़ताल कितने दिन चलेगी, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। अलबत्ता इस पूरे प्रकरण पर गौर करें तो कुछ महत्वपूर्ण सवाल स्‍वत: खड़े हो जाते हैं। ये वो सवाल हैं जिन पर इस सम्मानजनक पेशे से जुड़े लोगों को न केवल गंभीरता पूर्वक विचार करना होगा बल्कि सच कहें तो अपने गिरेबान में भी झांकना होगा। 
यहां सबसे पहला सवाल तो यही खड़ा होता है कि क्या कोई प्रशासनिक अधिकारी जिलाधिकारी के संज्ञान में लाए बिना वकीलों के सैकड़ों चैंबर पर रातों-रात बुलडोजर चलाने की हिमाकत कर सकता है? 
हालांकि दैनिक जागरण में छपी खबर के मुताबिक जिलाधिकारी कहते हैं कि उन्हें वकीलों के चैंबर ध्वस्त किए जाने की कोई जानकारी नहीं है क्‍योंकि वह जिला मुख्यालय से बाहर गए हुए हैं। 
जिलाधिकारी की बात सही है तो ये जांच का विषय हो सकता है, किंतु दूसरा बड़ा सवाल तब खड़ा होता है जब वकीलों का ही एक वर्ग यह कहता है कि कहीं भी और कभी भी चैंबर बना लेना किसी भी नजरिए से उचित नहीं है। 
लीजेंड न्यूज़ ने जब इस पूरे प्रकरण की सच्चाई जानने का प्रयास किया तो बहुत चौंकाने वाली बातें सामने आईं। 
दरअसल, बहुत से वकीलों ने स्वीकार किया कि बिना डीएम की जानकारी के यह संभव ही नहीं है कि उनका कोई अधीनस्थ अधिकारी इतना बड़ा कदम उठा सके। 
वो तो यहां तक कहते हैं कि रातों-रात वकीलों के चैंबर ध्‍वस्‍त कराने में वकीलों के ही उस प्रभावशाली गुट का हाथ है जिसके निजी हित जिला प्रशासन से पूरे होते हैं। 
समाज में वकालत के पेशे की साख बनाकर रखने वाले अधिकांश वकील मानते हैं कि अब बहुत से ऐसे तत्व इस पेशे से जुड़ गए हैं जिनके लिए काला कोट और बार एसोसिएशन की सदस्यता सिर्फ एक आड़ का काम करती है। उनका मूल व्यवसाय विवादित जमीनों की खरीद-फरोख्‍त करना और फिर उसके लिए कानून के चोगे का दुरुपयोग करना है। 
चूंकि इन तत्वों के लिए खुद को शो-ऑफ करना बेहद जरूरी होता है इसलिए वो महंगी-महंगी गाड़ियों में बिना किसी जरूरी काम के भी कलक्ट्रेट आते हैं और चैंबर पर इस तरह बैठते हैं जैसे वह बड़े प्रैक्टिशनर वकील हों और हर रोज अदालत में उनकी मौजूदगी अहमियत रखती हो। 
बताया जाता है कि मथुरा में अब ऐसे तत्वों की तादाद इतनी ज्यादा हो गई है कि इनका गुट नामचीन प्रैक्टिशनर वकीलों पर भी हावी है और वो इनके सामने पड़ने से भी कतराते हैं। जाहिर है कि ऐसे में हर निर्णय इन तत्वों के प्रभाव में जाता है, जबकि तमाम वकील इनसे इत्तेफाक नहीं रखते। 
नामचीन प्रैक्टिशनर वकीलों की मानें तो सैकड़ों चैंबर ध्‍वस्त कराने और फिर उनके विरोध में खड़े दिखाई देने के पीछे एक कारण जनवरी में प्रस्तावित बार एसोसिएशन मथुरा के चुनाव भी हैं। इन चुनावों में अब आम चुनावों की तरह जाति तथा धर्म का प्रभाव इस कदर हावी हो चुका है कि वकीलों का हित चाहने वालों का चुनकर आना लगभग समाप्त हो गया है। 
कहा जा रहा है कि ये सारा खेल प्रशासन को बरगलाकर निजी हित साधने तथा चुनावी दांव-पेंच के लिए खेला गया है ताकि गुटबाजी को और हवा दी जा सके, उसे और सुर्ख किया जा सके। 
बहरहाल, यदि यही हाल रहा तो इसका खामियाजा समूचे अधिवक्ता समाज को भुगतना होगा। साथ ही एक सम्मानजनक पेशे की साख भी दिन-प्रतिदिन प्रभावित होगी। 
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह घटनाक्रम बार एसोसिएशन मथुरा के साथ-साथ प्रैक्टिशनर वकीलों के लिए भी किसी परीक्षा की घड़ी से कम नहीं है। देखना यह होगा कि इस परीक्षा से वो कैसे निपटते हैं और क्या इससे कोई सबक लेकर बड़ी लकीर खींचने का काम करते हैं।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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