मंगलवार, 25 जनवरी 2011

संदिग्‍ध आतंकी....बंदर या कुत्‍ता ?


इसे जोक कह सकते हैं, व्‍यंग्‍य कह सकते हैं, या फिर उत्‍तर प्रदेश पुलिस की कार्यशैली पर तीखा कटाक्ष भी कह सकते हैं। यह जोक, व्‍यंग्‍य या कटाक्ष कुछ इस प्रकार है कि किसी अति प्रभावशाली मंत्रीजी का कुत्‍ता कहीं खो गया। तमाम प्रयासों के बाद भी जब कुत्‍ता नहीं मिला तो उसे खोजने की जिम्‍मेदारी यूपी पुलिस को सौंप दी गई। यूपी पुलिस ने चंद घण्‍टों के अंदर मंत्रीजी के यहां खबर भिजवा दी कि आपका कुत्‍ता सकुशल बरामद कर लिया गया है।
मंत्रीजी अपने प्रिय कुत्‍ते की खातिर स्‍वयं भागे-भागे थाने पहुंचे तो देखते क्‍या हैं कि वहां एक कोने में सिकुड़ा-सिमटा मरियल सा बंदर बैठा है और पुलिस उसी को मंत्रीजी का कुत्‍ता बता रही है। घोर आश्‍चर्य की बात यह थी कि वह बंदर भी खुद को मंत्रीजी का कुत्‍ता बताते हुए कह रहा था कि वह एक अवारा कुतिया के इश्‍क में पड़कर घर से भाग निकला, अब ऐसी गलती फिर नहीं करेगा।
दरअसल यूपी पुलिस ने अपनी चिर-परिचित कार्यशैली के तहत उक्‍त बंदर पर फर्स्‍ट, सेकेंड और थर्ड सारी डिग्रियां एप्‍लाई कर डालीं थीं और उसे यह कहने पर मजबूर कर दिया कि वह बंदर नहीं, मंत्रीजी का कुत्‍ता है।
उत्‍तर प्रदेश पुलिस किसी से कुछ भी कहलवा सकती है, इसे समूचा तंत्र जानता है लेकिन कोई कर कुछ नहीं सकता क्‍योंकि व्‍यवस्‍था ने ही उसे ऐसी पॉवर दे रखी है। रस्‍सी को सांप और सांप को रस्‍सी बनाना उसके बांये हाथ का खेल है। यही कारण है कि पुलिस स्‍वयं भी बंदर तथा कुत्‍ता और सांप तथा रस्‍सी को लेकर कन्‍फ्यूज़ रहती है। पुलिस का ही एक वर्ग, दूसरे वर्ग के दावे को संदेह की नजर से देखता है।
अब कल के ही एकदम नये मामले को ले लीजिये। मथुरा जनपद के कोसी थाना क्षेत्र में एनआईए, एटीएस और इलाका पुलिस ने संयुक्‍त कार्यवाही करते हुए दो युवकों को यूएसए मेड पांच पिस्‍टल सहित बंदी बनाया है। पुलिस के मुताबिक ये युवक संदिग्‍ध आतंकवादी हैं और उक्‍त पिस्‍टल दिल्‍ली में किसी को देने जा रहे थे। इन युवकों के तार पाकिस्‍तान से जुड़े होने के सुबूत मिले हैं। मथुरा जनपद के ही थाना शेरगढ़ अंतर्गत ग्राम विशम्‍भरा निवासी ताहिर ने उन्‍हें यह जिम्‍मेदारी सौंपी थी जो युवकों का रिश्‍तेदार भी है।
मजे की बात यह है कि हरियाणा के पुन्‍हाना (नूंह) निवासी उक्‍त युवकों से पुलिस उस व्‍यक्‍ित का नाम जानने में असफल रही जिसे वह इन हथियारों की सप्‍लाई करने जा रहे थे जिसका सीधा मतलब यह निकलता है कि युवक जिसे हथियार देने जा रहे थे, उसका नाम-पता तक उन्‍हें मालूम नहीं था।
अब जरा गणतंत्र दिवस के ठीक पहले एनआईए, एटीएस और कोसी पुलिस की इस संयुक्‍त उपल्‍ब्‍िध पर जिले के एसएसपी की टिप्‍पणी देखिये। एसएसपी भानु भास्‍कर का कहना है कि पकड़े गये युवकों के आतंकवादियों से सम्‍बन्‍ध हैं या नहीं, इसकी जानकारी जांच के बाद हो सकेगी। पुलिस इन युवकों को रिमाण्‍ड पर लेकर पूछताछ करेगी।
वैसे यह कोई पहला मामला नहीं है जब कृष्‍ण की इस नगरी के तार किसी आतंकवादी वारदात या घटना से जुड़े हों। इससे पहले भी ऐसे कई मामले प्रकाश में आये हैं लेकिन पुलिस आज तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची।
यह बात अलग है कि समय-समय पर केन्‍द्र सरकार के ही विभिन्‍न सूत्र इस बात की पुष्‍टि करते रहते हैं कि जिन धार्मिक जनपदों पर आतंकियों की निगाहें केन्‍द्रित हैं, उनमें कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली भी शामिल है, हालांकि प्रदेश सरकार इन सूत्रों से इत्‍तेफाक नहीं रखती। प्रदेश सरकार और उसके आला अधिकारी कहते हैं कि यूपी में आतंकवादियों की सक्रियता ना के बराबर है।
केन्‍द्र और राज्‍य सरकार के इन दावे-प्रतिदावों के बीच इतना तो कहा जा सकता है कि मथुरा में इंडियन ऑयल कार्पोरेशन की एक अति महत्‍वपूर्ण इकाई होने, कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान जैसी विश्‍व विख्‍यात धार्मिक जगह होने तथा प्रति वर्ष मुड़िया पूर्णिमा व कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी जैसे आयोजन होने के बावजूद यह जिला आतंकवादियों की निगाहों से पूरी तरह बचा हुआ हो, ऐसा नहीं हो सकता। यह बात अलग है कि अब तक उन्‍होंने यहां अपनी किसी नापाक हरकत को अंजाम नहीं दिया।
उनके द्वारा यहां अब तक ऐसा कुछ न किये जाने की दूसरी वजहें हो सकतीं हैं लेकिन पुलिस की व्‍यवस्‍था को इसका श्रेय नहीं दिया जा सकता। ऐसा भी कह सकते हैं कि मथुरा यदि अब तक महफूज है तो उसके पीछे आतंकियों की अपनी कोई मजबूरी रही होगी।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि आतंकवादियों के लिए मथुरा एक सॉफ्ट टारगेट हो सकता है और इस बात को जितनी जल्‍दी मान लिया जाए, वही ठीक है वरना खामियाजा भुगतने के बाद तो मानना ही होगा।
मथुरा की धार्मिक महत्‍ता,  यहां स्‍थापित तेल शोधक कारखाना और इसकी भौगोलिक स्‍थितियां आतंकियों के लिए काफी मुफीद हैं लेकिन दुर्भाग्‍य से पुलिस केवल मॉक ड्रिल तथा रटे-रटाये अंदाज में सुरक्षा व्‍यवस्‍था का जायजा लेते रहने तक सीमित है जबकि तमाम खतरे चारों ओर से मुंह बाये खड़े हैं।
कोसी में पकड़े गये हरियाणा के युवकों का ताल्‍लुकात किसी आतंकी गिरोह से है या नहीं,  यह बता पाना तो फिलहाल जल्‍दबाजी होगी लेकिन यह तय है कि मथुरा आतंकियों से सर्वथा महरूम भी नहीं है।
जहां तक बात पुलिस की उपल्‍ब्‍िध की है तो उस पर खुद पुलिस को ही पूरा भरोसा नहीं है।
मथुरा पर मंडरा रहे आतंकी खतरे को यदि समय रहते दूर करना है तो पुलिस को न केवल अपनी तथाकथित गुडवर्क की कार्यशैली को बदलना होगा बल्‍िक उन तत्‍वों पर गौर करना होगा जो बिना किसी ठोस वजह के पुलिस के ही इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं और पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों से निकटना बनाने का बहाना तलाशते हैं।
पुलिस के आला अधिकारियों को ऐसे तत्‍वों पर भी कड़ी नजर रखनी होगी, जिनकी आर्थिक हैसियत बहुत कम समय में अचानक काफी अच्‍छी हो चुकी है जबकि उनका प्रत्‍यक्ष कारोबार उनकी इस हैसियत से मेल नहीं खाता।
पुलिस को यदि इस धार्मिक जनपद को सुरक्षित रखना है और यहां से संचालित आतंकी गतिविधियों को सामने लाना है तो उसे उन लोगों पर भी निगाहें गढ़ानी होंगी जो यहां तैनात रहे लगभग हर पुलिस अधिकारी से निकट सम्‍बन्‍ध बनाने में सफल रहे।
इन सबके अलावा विभिन्‍न मोबाइल कंपनियों के कनेक्‍शन, कनेक्‍शन धारकों की आइडेंटिटी तथा साइबर कैफेज का पूरा ब्‍यौरा तलब करना होगा। साइबर कैफे संचालकों को इस आशय की लिखित व स्‍पष्‍ट हिदायत देनी होगी कि वह अपने यहां आने-जाने वाले लोगों की पुख्‍ता जानकारी रखें ताकि जरूरत पड़ने पर उनका पता लगाया जा सके।
कुछ इसी तरह की सूचना होटल व गैस्‍ट हाउस संचालकों को भी देनी होगी और सहयोग न करने वालों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्यवाही अमल में लानी होगी।
गौरतलब है कि कनेक्‍शनों की संख्‍या बढ़ाने के लालच में मोबाइल कंपनियां फर्जी आईडी प्रूफ लेकर सिम एक्‍टिवेट कर देती हैं। इसी प्रकार होटल व गेस्‍ट हाउस व्‍यवसायी भी अपने यहां ''घण्‍टों के हिसाब से ठहरने वालों'' का कोई ब्‍यौरा नहीं रखते।
अगर बात करें मथुरा-वृंदावन सहित जनपद के दूसरे इलाकों में संचालित साइबर कैफेज की तो उनकी कोई जानकारी एकत्र करना आज तक पुलिस-प्रशासन ने जरूरी नहीं समझा।
इन हालातों में अगर पुलिस उक्‍त दो युवकों को संदिग्‍ध आतंकवादी प्रचारित कर कोई बड़ी सफलता पाने का सपना संजोती है या इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद पर मंडरा रहे आतंकी खतरे से निपटने का मुगालता पालती है तो यह एक बड़ी भूल साबित हो सकता है।
सच तो यह है कि पुलिस को ठोस जानकारी हासिल किये बिना श्रेय लेने की परंपरागत प्रवृत्‍ति से भी बचना चाहिए ताकि एक ओर उसके दावे हास्‍यास्‍पद न हों और दूसरी ओर तारतम्‍य के अभाव में विभिन्‍न स्‍तर पर अंतर पैदा न हो क्‍योंकि इसका प्रत्‍यक्ष लाभ अपराधियों को तो मिलता है, साथ ही ऐसे दूसरे तत्‍व सतर्क हो जाते हैं

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