महाराष्ट्र में तेल माफियाओं ने एडीएम यशवंत सोनवड़े को जिंदा जलाकर मार डालने जैसा दुस्साहसिक अपराध यूं ही नहीं कर दिया। ऐसा जघन्य अपराध करने की हिमाकत उन्होंने इसलिए की क्योंकि उनके पीछे प्रदेश के कद्दावर राजनेताओं का हाथ बताया जा रहा है। केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने इस मामले को लेकर नई दिल्ली में एक आपात बैठक बुलाई है जिसमें तेल कंपनियों के अधिकारी और अन्य सीनियर अधिकारी भाग ले रहे हैं। इस बैठक का मकसद देशभर में पेट्रोल में चल रहे मिलावट के गोरखधंधे पर लगाम लगाने की योजना बनाना है।
केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी द्वारा बुलाई गई आपात बैठक का उद्देश्य यदि यही है तो इसका मतलब यह हुआ कि देशभर में पेट्रोलियम पदार्थों के अंदर की जा रही मिलावट का इल्म उन्हें भी है और इस खेल में केवल राज्य स्तरीय नेता ही नहीं, केन्द्रीय नेता भी किसी न किसी स्तर पर संलिप्त हैं वरना आज एडीएम की हत्या के बाद जिस बावत विचार किया जा रहा है, उस पर पहले कभी विचार करने की जरूरत क्यों महसूस नहीं की गई।
गौरतलब है कि कृष्ण की नगरी में नेशनल हाईवे नम्बर-2 पर ''मथुरा रिफाइनरी'' के नाम से एक विशाल तेल शोधक कारखाना है जिसकी गिनती देश के ही नहीं, विश्व के महत्वपूर्ण तेल शोधक कारखानों में की जाती है।
सर्वविदित है कि इस रिफाइनरी से बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम पदार्थों की सप्लाई देश के विभिन्न हिस्सों को पाइप लाइन के जरिये, रेलवे वैगन के जरिये तथा टैंकरों द्वारा की जाती है और इसी आड़ में तेल की चोरी एवं उसमें मिलावट जैसे कार्यों को अंजाम दिया जाता है।
मथुरा जनपद की सीमा में पड़ने वाले करीब 100 किलोमीटर लम्बे राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर दो और दूसरे शहरों तथा राज्यों को जोड़ने वाले राजमार्गों पर तेल की चोरी एवं मिलावटखोरी का धंधा पिछले कई दशकों से बेखौफ जारी है। यदि यह कहा जाए कि नेशनल हाईवे और हाईवे ही नहीं, मथुरा रिफाइनरी पर भी तेल माफियाओं का वर्चस्व कायम है, तो कोई अतिशयोक्ित नहीं होगी।
मथुरा की कानून-व्यवस्था इन तेल माफियाओं के सामने या तो लाचार है या फिर जिनके ऊपर कानून-व्यवस्था का पालन कराने की जिम्मेदारी है, वह तेल माफियाओं के हाथ बिके हुए रहते हैं।
लगभग पूरे नेशनल हाईवे और हाईवे पर ढाबों के पीछे, फैक्ट्रियों की आड़ में तथा झाड़ियों की ओट लेकर बनाये गये तेल के अवैध गोदाम इस बात की पुष्टि करते हैं कि तेल माफिया को किसी का कोई खौफ नहीं है। यहीं ये लोग रिफाइनरी से निकलने वाले तेल से भरे टैंकर्स को रोककर खुलेआम वहां तेल की चोरी और मिलावट करते हैं।
यही नहीं, तेल माफिया द्वारा पेट्रोल सप्लाई करने के लिए बिछाई गई भूमिगत पाइप लाइन को भी काटकर चोरी की जाती है और इस चोरी की पुष्टि कई बार हुई है लेकिन हर बार पुलिस-प्रशासन ने सफेदपोशों को बचाकर उनके कारिंदों के खिलाफ मामूली कार्यवाही करके सारे प्रकरण की लीपापोती कर दी है।
मथुरा रिफाइनरी के निकट स्थित ''बाद'' रेलवे स्टेशन से रेलवे वैगनों के जरिये की जाने वाली पेट्रोल पदार्थों की सप्लाई से तो तेल माफिया बाकायदा मोटे-मोटे पाइप डालकर तेल चुराते हैं लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाता क्योंकि इस कार्य में सिविल पुलिस, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, जीआरपी तथा आरपीएफ सभी का सहयोग तेल माफिया को रहता है। रिफाइनरी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों से लेकर इन सभी का तेल की इस चोरी में हिस्सा तय है लिहाजा वह माफिया के खिलाफ सूचना देने या कानूनी कार्यवाही करने की बजाय, उन्हें संरक्षण प्रदान करते हैं।
तेल के खेल में शामिल एक अधिकारी के अनुसार तेल माफिया को सहयोग व संरक्षण देना उनकी मजबूरी है क्योंकि माफिया के हाथ उनसे कहीं बहुत अधिक लम्बे हैं। अगर उन्हें नौकरी करनी है तो तेल माफिया को सहयोग करना ही होगा।
उक्त अधिकारी की बात इसलिए सही प्रतीत होती है क्योंकि आज तक कोई अधिकारी तेल माफिया को नियंत्रित नहीं कर सका। जिसने तेल माफिया पर हाथ डालने की जुर्रत की, उसे उसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
तेल माफिया की असीमित ताकत का सबसे ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब उन्होंने बाकायदा ऐलान करके जिले के तत्कालीन एसएसपी लव कुमार का स्थानांतरण कराया। तेज-तर्रार युवा आईपीएस अधिकारी लव कुमार, तेल माफिया से कम्प्रोमाइज नहीं कर सके लिहाजा उसने उन्हें चंद महीनों के अंदर ही दोयम दर्जे के जिले में स्थानांतरित करा दिया। वो भी तब जबकि ''लीजेण्ड न्यूज़'' ने ''तेल माफिया के निशाने पर एसएसपी'' शीर्षक से खबर प्रकाशित कर इस बात का भी उल्लेख काफी पहले कर दिया था कि पंचायत चुनावों के लिए लगी आचार संहिता समाप्त होते ही एसएसपी को हटवाने की तैयारी तेल माफिया ने कर ली है।
ऐसा नहीं है कि तेल के इस खेल में केवल पुलिस, प्रशासन, नेता और माफिया का ही गठजोड़ काम कर रहा हो। सच तो यह है कि इसमें लोकनिर्माण विभाग के अधिकारियों की भी पूरी भूमिका है क्योंकि मथुरा रिफाइनरी से बड़े पैमाने पर लोकनिर्माण विभाग को बिटुमिन की सप्लाई दी जाती है। इस बिटुमिन का एक बड़ा हिस्सा मात्र कागजों पर आता जाता है क्योंकि रिफाइनरी से निकलते ही अधिकारी और सप्लायर इसका बंदरबांट कर लेते हैं।
बताया जाता है कि तेल माफिया द्वारा केवल जिला स्तर पर ही नहीं, राज्य स्तर तक सभी सम्बन्धित अधिकारियों को उनका हिस्सा पहुंचाते हैं और जो उनके कार्य में बाधक बनता है, उसे रास्ते से ही हटा देते हैं। फिर चाहे वह कोई अधिकारी हो अथवा कर्मचारी और टेंकर के चालक-परिचालक हों या व्यवस्था के संचालक।
सर्वविदित है कि तेल माफिया का मथुरा में एक बड़ा गढ़ है और उसके सामने आंख उठाने की हिम्मत किसी में नहीं है।
कहने को कभी-कभी तेल के अवैध गोदामों पर छापामारी की जाती है और थोड़ा-बहुत माल भी बरामद दिखाया जाता है लेकिन आज तक किसी गोदाम का मालिक पुलिस ने गिरफ्त में नहीं लिया।
महाराष्ट्र में चूंकि एडीएम की सरेआम नृशंस हत्या की गई इसलिए आज यह मामला तूल पकड़ रहा है वरना तेल माफिया की राह में रोड़ा बने कितने लोगों को मथुरा में ठिकाने लगाया जा चुका है और आज तक कोई पकड़ा नहीं जा सका। किसी मामले को संदिग्ध बताकर उसकी लीपापोती कर दी जाती है तो किसी को लूट में हुई हत्या अथवा सड़क दुर्घटना बता दिया जाता है। तेल माफिया जो चाहते हैं और जैसा चाहते हैं, वैसी कानूनी औपचारिकता पूरी करा लेते हैं।
एडीएम की हत्या से सबक लेकर यदि अब तेल माफिया के खिलाफ कोई कठोर कदम उठाये जाएं तो भले ही इस खेल पर लगाम लगे अन्यथा आज महाराष्ट्र में तो कल मथुरा में और उसके बाद किसी दूसरे राज्य अथवा जिले में ऐसी वारदातों को अंजाम दिया जाता रहेगा क्योंकि इनके सूत्रधार वही हैं जिनके हाथों में व्यवस्था की लगाम है।
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