गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

जूतियां साफ करने की कला













कहते हैं कि लोग जितने अपने दु:ख से दुखी नहीं हैं, उतने दूसरों के सुख से दुखी हैं। अब अपनी बहिनजी के बारे में ही ले लो। पता नहीं लोगों को उनसे इतनी जलन क्‍यों है। एक अदना से ऑफीसर ने सरेआम और सरेराह अपने रूमाल से उनकी जूतियां क्‍या साफ कर दीं, विपक्षियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। अरे भाई, बहिनजी कोई मामूली हस्‍ती हैं। वह यूपी की भाग्‍य विधाता हैं। दलितों की मसीहा हैं। बहुजन समाज की एकमात्र सर्वमान्‍य नेता हैं और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो हैं। अब अगर वह अपनी जूतियां किसी ऑफीसर से साफ नहीं करवायेंगी तो क्‍या कोई ऐरा-गैरा नत्‍थू खैरा करवायेगा। है किसी माई के ''लाल'' और ''लाली'' में दम तो ऐसा करवा कर दिखा दे।
वैसे भी बहिनजी ने थोड़े ही ना कहा था उस सीओ से कि वह उनकी जूतियां साफ कर दे। वह तो उसी की अगाध श्रद्धा ने जोर मारा और करने लगा सबके सामने जूतियां साफ। जरा आप ही बताइये कि किसी की श्रद्धा पर बहिनजी चोट कैसे कर सकती थीं। वह उसे कैसे रोकतीं। रोकतीं तो यही लोग जो आज जूतियां साफ करने पर बबाल काट रहे हैं, फिर कहते कि देखो एक दलित की बेटी ने दलित अधिकारी की भावनाएं कितनी बेरहमी के साथ आहत कर दीं। वह बेचारा उनकी चरण्‍ा पादुकाएं साफ करना चाहता था और बहिनजी ने उसे इतना भी नहीं करने दिया। इस मामले में कैबिनेट सचिव का बयान काबिले तारीफ है कि अधिकारी ने जो किया, वह उसकी ड्यूटी का हिस्‍सा था। कैबिनेट सचिव वाकई इंटेलीजेंट हैं। हो सकता है, वह भी अपनी ड्यूटी कुछ इसी प्रकार बजाते रहे हों या अपने मातहतों से बजवाते हों।
कहने का कुल जमा मतलब यह है कि बहिनजी के विरोधियों को चैन कैसे भी नहीं है। एक ओर स्‍वयं कहते हैं कि श्रद्धा और विश्‍वास पर उंगली नहीं उठाई जा सकती और दूसरी ओर बहिनजी के प्रति सीक्‍योरिटी ऑफीसर की श्रद्धा पर लानत भेज रहे हैं।
सच पूछो तो बहिनजी महान हैं। वह अपने भक्‍तों, अनुयायियों, पार्टी कार्यकर्ताओं और यहां तक कि विधायकों एवं सांसदों की भावनाओं का पूरा ख्‍याल रखती हैं। उनके भक्‍तों में यदि कुछ सरकारी अफसर हैं तो इसमें उनका क्‍या दोष। भक्‍त तो भक्‍त है, उन्‍हें वर्गों में विभाजित करना अन्‍याय है। क्‍या सरकारी और क्‍या गैर सरकारी।
बहिनजी के आचार-विचार तथा व्‍यवहार पर टीका-टिप्‍पणी करने वाले नासमझ हैं। वह जानते ही नहीं कि बहिनजी त्रिकालदर्शी हैं। उन्‍हें भूत, भविष्‍य और वर्तमान का पूरा ज्ञान हैं। तभी तो उन्‍होंने प्रदेशभर में जगह-जगह अपनी आदमकद मूर्तियां स्‍थापित कराई हैं। उन्‍हें मालूम है कि भविष्‍य में उनकी पूजा करने के लिए इन मूर्तियों की जरूरत पड़ेगी। तब लोग बेशक बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्‍बेडकरजी को भी पूजते रहें लेकिन उनके मन, उनकी आत्‍मा में माया की ही मूरत होगी। यहां आप मान्‍यवर की बात मत करना। मान्‍यवर मतलब स्‍वर्गीय श्रीकांशीराम जी। मान्‍यवर को तो लोगों ने उनके जीवनकाल में ही उपेक्षित कर दिया था तथा उनकी जगह बहिनजी ने ले ली थी इसलिए समय के साथ मान्‍यवर और धुंधले होते जाएं तो कोई आश्‍चर्य नहीं। आज भी दलितों की मसीहा का खिताब बहिनजी को ही प्राप्‍त है।
मुझे तो ऐसा लगता है कि बहिनजी के तूफानी दौरों से परेशान होकर विपक्ष उनके खिलाफ राजनीतिक षड्यंत्र रचने की कोशिश कर रहा है ताकि बहिनजी अपने दौरे बंद कर दें और जो चुनावी बिगुल उन्‍होंने फूंका है, वह कमजोर पड़ जाए। आखिर सब जानते हैं कि बहिनजी के दौरे विकास कार्यों का निरीक्षण अथवा उनका अवलोकन करने के लिए नहीं हैं और ना ही गरीबों के लिए शुरू की गईं योजनाओं के क्रियान्‍वयन की असलियत जानने के लिए हैं। यह दौरे तो पिछले करीब साढ़े तीन सालों के दौरान दिखाई गई निष्‍िक्रयता को सक्रियता में तब्‍दील करने के लिए हैं जिससे अगले वर्ष प्रस्‍तावित चुनाव में इनका लाभ उठाया जा सके।
विपक्ष जानता है कि जनता की मैमोरी काफी वीक रहती है, बहिनजी के ये ताबड़तोड़ दौरे उन्‍हें याद रहेंगे और पिछले साढ़े तीन सालों को वह भूल जायेगी इसलिए वह चाहता है कि बहिनजी के दौरों में येन-केन-प्रकारेण व्‍यवधान पैदा किया जाए। फिर चाहे वह उनकी जूतियों को साफ करने जैसी मामूली श्रद्धा को ही मुद्दा बनाकर क्‍यों न संभव हो।
आपको पता ही है कि बहिनजी अपने दौरों में किसी न किसी अफसर को नापती जरूर हैं। अफसरों को नापना बहिनजी की पहचान बन चुकी है। अब तो अपने दौरों के दौरान जिस जनपद में वह किसी अफसर को नापें नहीं, उस जनपद में ऐसा लगता है जैसे वह अभागा रह गया। बहिनजी जैसे वहां पहुंचीं ही नहीं।
कृष्‍ण की नगरी इसका ताजा उदाहरण है। यहां उन्‍होंने किसी अफसर की क्‍लास नहीं ली तो लोग कहते रहे कि यह भी कोई दौरा हुआ। बहिनजी आयीं और पता तक नहीं लगा। थोड़ा-बहुत माहौल बनाने की कोशिश स्‍थानीय पत्रकारों ने तब की जब जिला अस्‍पताल के बाहर यह कहते हुए धरने पर जा बैठे कि उन्‍हें अंदर प्रवेश करने नहीं दिया जा रहा लेकिन बहिनजी ने उनकी कोशिशें नाकाम कर दीं। देर से ही सही, लेकिन अंदर बुलाकर दिखा दिया कि निरीक्षण कैसे होता है।
बहिनजी तो ममता (बनर्जी नहीं) की मूरत हैं। वह सबका ध्‍यान रखती हैं। फिर अगर उनकी जूतियों का ध्‍यान एक पुलिस अफसर ने रख लिया तो इसमें हर्ज क्‍या है।
आज ही राजस्‍थान के एक मंत्री ने रहस्‍योद्घाटन किया है कि आज की हमारी महामहिम कभी इंदिराजी के यहां किचन संभाला करती थीं। उन्‍होंने यह बात उन कार्यकर्ताओं से कही जो अपनी उपेक्षा पर नाराजगी जाहिर कर रहे थे। उन्‍होंने उन मूढ़ कार्यकर्ताओं को समझाया कि कौन जाने कब आपकी किस्‍मत का सितारा चमक जाए। पता नहीं किस दिन 10 जनपथ से बुलावा आ जाए। कोई आये और कहे कि चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है। वह तुम्‍हें तुम्‍हारी स्‍वामिभक्‍ित का तोहफा देना चाहतीं हैं। तुम्‍हें राज्‍यसभा सदस्‍य बनाना चाहतीं हैं।
मंत्रीजी की बात में दम है। उनका अनुभव बोल रहा है। निश्‍चित ही उन्‍होंने अपने बाल हमारी-आपकी तरह धूप में सफेद नहीं किये। उन्‍हें मालूम है कि राजनीति के सोपान चाटुकारिता के रास्‍ते ही चढ़े जाते हैं।
हो सकता है कि जिसे आपने आज बहिनजी की जूतियां साफ करते देखा है, वही कल सत्‍ता के किसी महत्‍वपूर्ण पद पर काबिज हो जाए और उसी के जूते खाने को तमाम लोगों के सिर अपना सौभाग्‍य मानें क्‍योंकि इस देश में चाटुकारिता से सब कुछ संभव है। रसोई में काम करने वाले जब महामहिम हो सकते हैं और जूतियां साफ करने वाले मुख्‍यमंत्री के पद को सुशोभित कर सकते हैं। किसी जमाने में नारायण दत्‍त तिवारी ने तब के कांग्रेस के युवराज संजय गांधी की चरण पादुका उठाई थी। कौन नहीं जानता कि नारायण दत्‍त तिवारी ने कितने लम्‍बे समय तक यूपी के सीएम का पद सुशोभित किया और बाद में उत्‍तरांचल का।
इसलिए भाई मेरे, बी पॉजेटिव ! आज बहिनजी की जूतियां साफ करने वाला कल किसी और से जूतियां साफ करा रहा होगा। इस देश में सब संभव है। तभी तो किसी ज्ञानी ने नारा दिया था- सौ में से नब्‍बे बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान।
यह नारा भी लगता है अब आउटडेटेड हो चुका है। इसकी परसंटेज पर संदेह है इसलिए निकट भविष्‍य में ''सौ में से 99 बेईमान......फिर भी मेरा भारत महान'' सामने आ सकता है। रही बात चापलूसों की तो उनकी गणना करना ही बेमानी है। भारत का वजूद आज चापलूसों के बल पर ही टिका है। चापलूसों के बिना न तो राजनेता की कल्‍पना की जा सकती है और ना राजनीति की। संतरी से लेकर मंत्री तक और यहां तक कि प्रधानमंत्री तक, सब किसी न किसी की चापलूसी करते हैं। कुछ जुबान से तलवे चाटते हैं और कुछ मुंह से। ऐसे में बेचारे उस सीओ ने बहिनजी की जूतियां साफ करके कौन सा अपराध कर दिया। अपना भविष्‍य बनाने का हक सभी को है।
जय हिंद ! जय भारत !

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