सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

तेल माफिया का नया टारगेट...













भ्रष्‍टाचार के खिलाफ देश में शुरू हुए स्‍पंदन के बीच एक अधिकारी ने मथुरा रिफाइनरी से प्रतिमाह करोड़ों रुपये के तेल का खेल कर रहे माफिया पर शिकंजा कसना क्‍या शुरू किया, उसका विरोध वही लोग कर रहे हैं जिन्‍हें उसके साथ खड़ा होना चाहिए था।
पुलिस एवं प्रशासनिक अमले के बीच अप्रत्‍यक्ष रूप से चल रही इस जंग में धन बल, बाहु बल तथा अनीति के सामने क्‍या आत्‍मबल व नैतिक साहस एक बार फिर हार जायेगा या इस बार नतीजा कुछ और होगा, यह प्रश्‍न उठना स्‍वाभाविक है क्‍योंकि तेल माफिया अब तक अपनी खिलाफत करने वाले हर अधिकारी पर भारी पड़ा है।
इस बार तेल माफिया के निशाने पर हैं एसएसपी भानु भास्‍कर। वह भानु भास्‍कर का तबादला भी उसी प्रकार एकजुट होकर कराने में लगे हैं जिस प्रकार एक अन्‍य एसएसपी लव कुमार का कराया था। यानि ऐलान करके।
आईपीएस अधिकारी भानु भास्‍कर से पहले मथुरा पुलिस की कमान एक प्रोन्‍नत आईपीएस रामभरोसे को सौंपी गई थी और उनसे पहले यहां युवा और तेज-तर्रार आईपीएस लव कुमार तैनात थे। लव कुमार से पहले तक तेल माफिया काफी सुकून में थे क्‍योंकि तब यहां बतौर एसएसपी लम्‍बे समय तक बी. डी. पॉल्‍सन तैनात रहे। बी.डी. पॉल्‍सन तेल माफिया के लिए न केवल माफिक रहे बल्‍िक उनके लिए मुफीद साबित हुए।
लव कुमार ने जनपद के पुलिस कप्‍तान का पदभार ग्रहण करने के साथ तेल माफिया को अपने तीखे तेवरों से अवगत करा दिया लेकिन माफिया पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्‍योंकि उसे अपनी ताकत पर पूरा भरोसा था। भरोसा हो भी क्‍यों नहीं, जब आज तक वह अपने मकसद में हमेशा सफल रहे हैं। उनसे टकराव मोल लेने वाले को या तो उनकी असीमित ताकत के सामने झुककर कम्‍प्रोमाइज करना पड़ा या फिर यहां से रुखसत होना पड़ा।
तेल माफिया ने पहले तो लव कुमार को भ्रष्‍टाचार के प्रचलित शिष्‍टाचार से प्रभावित करने की कोशिश की और जब दाल उस तरह नहीं गली तो सत्‍ताधारी दल के अपने सफेदपोश साथियों से सलाह-मशविरा करके बाकायदा ऐलान कर दिया कि पंचायत चुनावों के लिए लगी आचार संहिता समाप्‍त होने के साथ कप्‍तान को हटवा दिया जायेगा। हुआ भी यही। इधर चुनाव आचार संहिता हटी, उधर लव कुमार का तबादला कर दिया गया। बताया जाता है कि लव कुमार के तबादले के लिए तेल माफिया ने सत्‍ता के दलाल अपने साथियों के माध्‍यम से ऊपर वालों को मोटी रकम पहुंचा दी थी।
तेल माफिया ने लव कुमार का तबादला ही नहीं कराया बल्‍कि प्रोन्‍नत आईपीएस रामभरोसे के रूप में मनमाफिक कप्‍तान की पोस्‍टिंग भी करा ली लेकिन ज्‍यादा दिनों तक मथुरा रामभरोसे नहीं रहा क्‍योंकि वह जिला पंचायत की अध्‍यक्षी के खेल में अपनों का खुलकर साथ नहीं दे सके लिहाजा सत्‍ता के कोप का भाजन बन गये।
रामभरोसे के बाद भानु भास्‍कर को इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक स्‍थल के पुलिस कप्‍तान का पदभार सौंपा गया। यहां की पोस्‍टिंग से पहले भानु भास्‍कर कई वर्षों तक सीबीआई में रहे जिस कारण उनकी कार्यशैली अन्‍य पुलिस अधिकारियों से भिन्‍न रहनी ही थी। इसे सोने पर सुहागा कहें या करेला और नींव चढ़ा कि भानु भास्‍कर पर ईमानदारी का लेबल पहले से ही चस्‍पा था।
भानु भास्‍कर ने जब कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली का गौरव प्राप्‍त इस जनपद की कमान संभालने पर तेल माफिया को चेतावनी दी तो तेल माफिया ही नहीं, दूसरे लोगों ने भी बहुत गंभीरता से नहीं लिया क्‍यों कि हर पुलिस कप्‍तान शुरूआती दिनों में कुछ ऐसी ही भाषा बोलता है जिसका मकसद कई बार माफिया पर दबाव बनाकर अपने रेट बढ़ाना भी होता है। लेकिन भानु भास्‍कर अलग साबित हुए। उन्‍होंने पहले तो तेल के खेल की बारीकियों को समझा और फिर एक सुनियोजित तरीके से माफिया पर शिकंजा कसा। इस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी गांव बेरी निवासी मनोज अग्रवाल को टारगेट करके कार्यवाही करने वाले भानु भास्‍कर संभवत: पहले एसएसपी हैं। वरना इससे पहले तो पुलिस विभाग में मनोज अग्रवाल की तूती बोलती रही है। वह जो चाहता था और जब चाहता था, करा लेता था।
मनोज की पुलिस महकमे में पकड़ का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके खिलाफ करीब आधा दर्जन आपराधिक मामले दर्ज होने के बावजूद वह कभी पकड़ा नहीं गया। पकड़ना तो दूर, उसके यहां किसी थाने की पुलिस ने कभी दबिश तक नहीं दी। उल्‍टे वह आला पुलिस अधिकारियों के साथ बैठा दिखाई देता था।
जिन स्‍थतियों में कानून किसी व्‍यक्‍ित को एक शस्‍त्र लाइसेंस जारी करने की इजाजत नहीं देता, उन परस्‍िथतियों के चलते मनोज अग्रवाल के नाम कई शस्‍त्र लाइसेंस बताये जाते हैं।
बी. डी. पॉल्‍सन के एसएसपी रहते तेल के खेल में हुई मनोज अग्रवाल के प्रमुख प्रतिद्वंदी राजकुमार की हत्‍या का आरोप जब मनोज पर लगा तो बी. डी. पॉल्‍सन ने एक सिरे से उसे खारिज कर दिया। यह बात अलग है कि भारी दवाब के चलते बाद में बी. डी. पॉल्‍सन को उसे आरोपी बनवाना पड़ा।
पुलिस विभाग के ही सूत्र बताते हैं कि मनोज अग्रवाल प्रति माह पुलिस को ऊपर से नीचे तक अपने गिरोह की ओर से इतनी बड़ी रकम पहुंचाता था जितनी किसी सामान्‍य जिले की पुलिस सोच तक नहीं सकती।
बहरहाल, भानु भास्‍कर की सक्रियता तेल माफिया की परेशानी का कारण इसलिए भी बन गई क्‍योंकि माफिया के काफी बड़े शुभचिंतक एक आईजी का भी स्‍थानांतरण हो चुका था। आईजी से मिलने वाले सहयोग की भरपाई तेल माफिया ने जनपद में ही तैनात कुछ खास पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से करने की नीति बनाई और वह उसमें सफल भी हुए। अब आलम यह है एसएसपी के विरोध में परोक्ष ही नहीं अपरोक्ष रूप से भी वही लोग आ खड़े हुए हैं जिन्‍हें तेल माफिया के खिलाफ मुहिम में एसएसपी का सहयोग करने के साथ-साथ कार्यवाही में भी हिस्‍सा लेना चाहिए था।
तेल माफिया को लेकर अधिकारियों के बीच छिड़ चुकी इस अघोषित जंग का ही परिणाम है कि एक अधिकारी इधर उनके अवैध गोदामों को सील कराता है और दूसरा अधिकारी उन्‍हें अभयदान देकर अपने खास मातहतों से सील तुड़वा देता है। एक जगह चल रहे अवैध गोदाम में काले तेल से भरे टेंकर में आग लगती है तो फायर ब्रिगेड को इलाका पुलिस इसलिए रास्‍ते से ही लौट जाने का आदेश देती है ताकि गोदाम की असलियत सामने न आ जाए। अवैध तेल से भरा टेंकर पकड़े जाने पर अगले ही दिन पता लगता है कि उसमें तो पानी भर दिया गया है।
एक पुलिस अधिकारी जब तेल के खेल में शामिल इलाके के थानाध्‍यक्ष को सबक सिखाने की तैयारी करता है तो पता लगता है कि थानाध्‍यक्ष को सत्‍ताधारी दल के एक नेता का वरदहस्‍त प्राप्‍त है।
इस थानाध्‍यक्ष को हटाने के लिए आला पुलिस अधिकारियों तक को भारी मशक्‍कत करनी पड़ती है और जैसे-तैसे हटाने में सफलता मिलने पर जिस दूसरे दरोगा को उस थाने का प्रभारी बनाने की वकालत की जाती है, वह एक ऐसे खास अधिकारी की नाक का बाल होता है जिसका तेल माफिया को खुला संरक्षण मिला हुआ है।
तेल माफिया मनोज अग्रवाल को गिरफ्त में लेने के लिए जब दबिश दी जाती है तो उसे पुलिस बल के पहुंचने से पहले ही सूचना दे दी जाती है और वह घर से निकल लेता है। दबिश देने जो लोग जाते हैं, उनमें से कई को वहीं नजदीक में स्‍थित उसके ठिकाने की जानकारी होती है लेकिन वह उस पर नजर नहीं डालते। एसएसपी की मजबूरी यह है कि उन्‍हें उन्‍हीं अधीनस्‍थों से काम लेना है, जिनकी कार्यप्रणाली व गतिविधियां पूरी तरह संदिग्‍ध हैं। इनमें से एक-दो अधिकारी तो ऐसे भी हैं जिन्‍हें हर किस्‍म के जरायमपेशा लोगों का साइलेंट पार्टनर कहा जा सकता है। ऐसे अधिकारियों की सत्‍ता में पहुंच तथा पकड़ का अंदाज लगाने को यही जान लेना काफी है कि उनके सामने आधा दर्जन से अधिक एसएसपी आये और चले गये लेकिन उनको कोई हिला नहीं पाया।
जनपद के फरह थाना अंतर्गत नेशनल हाईवे-2 से सटे एक छोटे से गांव बेरी के निवासी मनोज अग्रवाल को तेल माफिया बनाने में केवल पुलिस, प्रशासनिक और रिफाइनरी के अधिकारियों का ही योगदान नहीं है। एक मामूली ग्रामीण युवक व मामूली हैसियत वाले व्‍यक्‍ित को तेल के खेल का सिद्धहस्‍त खिलाड़ी तथा पचासों करोड़ का आदमी बनाने में रेलवे, सीआईएसएफ, आरपीएफ, जीआरपी सहित उन सफेदपोश नेताओं का भी पूरा हाथ रहा है जिनका समय-समय पर सत्‍ता के गलियारों में दखल बना और जिन्‍होंने मनोज के साथ-साथ अपने व अपनों के भी बारे-न्‍यारे किये।
आज भी मनोज अग्रवाल और उसके गिरोह में शामिल लोगों को सत्‍ता के गलियारों से ही भरपूर सहयोग मिलता है क्‍योंकि वह अब तेल माफिया के संरक्षणदाता की भूमिका से ऊपर उठकर उनके छद्म हिस्‍सेदार बन चुके हैं। मनोज और उसके साथियों की गर्दन तक अब पुलिस के हाथ पहुंचने का सीधा मतलब यह है कि कोई अधिकारी इन सफेदपोशों की गर्दन नापने का दुस्‍साहस कर रहा है। तभी तो गत दिनों तेल माफिया के साथ उसके इन छद्म हिस्‍सेदारों ने नेशनल हाईवे स्‍थित एक होटल पर अति गोपनीय बैठक कर एसएसपी के स्‍थानांतरण की रणनीति बनाई।
बताया जाता है कि इस बैठक में भानु भास्‍कर का तबादला करवाने के लिए उसी योजना पर अमल करने का निर्णय लिया गया जिस योजना का इस्‍तेमाल लव कुमार को हटवाने के लिए किया गया था।
अब देखना यह है कि इस बार भी उनकी यह योजना कारगर साबित होती है या नहीं। नतीजा जो भी हो, फिलहाल तो तेल माफिया की आंख की किरकिरी बने एसएसपी सहित उनका साथ देने वाले अधिकारी एवं अधीनस्‍थों को एक ओर जहां माफिया से लड़ना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर उन अधिकारियों व कर्मचारियों से भी निपटना पड़ रहा है जो खाते तो सरकारी खजाने का हैं लेकिन बजाते तेल माफिया की हैं।
इन हालातों में यदि तेल माफिया अपने मकसद में सफल हो जाता है तो निश्‍चित ही उसके हौसले पहले से ज्‍यादा बुलंद हो जायेंगे और भविष्‍य में किसी पुलिस अधिकारी को उनके खिलाफ अभियान चलाने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा।

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