रविवार, 3 अप्रैल 2011

मथुरा में भी है हसन अलियों की भरमार



सफेदपोश नहीं होने देते उनका बाल-बांका  
अपराधियों की एक विशेष नस्‍ल को सफेदपोश कहा जाता है। हसन अली सफेदपोश है या नहीं, यह तय कर पाना तो मुश्‍किल है लेकिन एक बात जरूर तय है कि वह जिनके लिए काम करता है वो लोग सफेदपोश ही हैं। हसन अली जैसे लोगों को ये सफेदपोश अपने अपराधों की फेहरिस्‍त बनाने के लिए पालते हैं । ऐसा भी कह सकते हैं कि ऐसे हसन अली तो मोहराभर होते हैं, असली अपराधी तो यही सफेदपोश हैं। पुणे के घोड़ा व्‍यापारी हसन अली को आप एक उदाहरण मान सकते हैं क्‍योंकि देश ऐसे बेशुमार हसन अलियों से भरा पड़ा है। देश का कोई हिस्‍सा ऐसा नहीं जहां हसन अली अफरात में न पाये जाते हों। फर्क सिर्फ इतना है कि हसन अली बेनकाब हो चुका है जबकि तमाम हसन अली और उनके सफेदपोश आकाओं का बेनकाब होना बाकी है। यही वो लोग हैं जिनका कॉकस देश और उसके सिस्‍टम को दीमक की तरह चाट रहा है। यदि सरकार ईमानदारी से इनकी गिनती कराये तो ये न केवल प्रदेश स्‍तर पर बल्‍िक जिला स्‍तर पर भी मिल जायेंगे।
हाल ही में मथुरा पुलिस ने ऑयल माफिया मनोज की गिरफ्तारी के बाद उसके कुछ संरक्षणदाताओं के नाम जब मीडिया को बताये तब इल्‍म हुआ कि मनोज तो हसन अली की तरह मात्र मोहरा है। तेल के खेल को परदे के पीछे से संचालित करने वाले असली खिलाड़ी वो सफेदपोश हैं जिनमें से किसी ने मिठाई विक्रेता का नकाब पहन रखा है तो किसी ने सुपाड़ी व्‍यवसायी का। कोई कॉलोनाइजर और बिल्‍डर बना बैठा है तो कोई दूसरे व्‍यापार की आड़ लिये हुए है।
मथुरा के एसएसपी भानु भास्‍कर ने साफ-साफ कहा कि इन सफेदपोशों का पैसा ऑयल माफिया के साथ उसके धंधे सहित अन्‍य विभिन्‍न कारोबारों में लगा है। उन्‍होंने कहा तो यह भी कि वह इन सफेदपोशों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे लेकिन ऐसा कर पाना संभवत: उनके लिए कठिन होगा। इसका अंदाज ऐसे लगता है कि मनोज को पुलिस ने सरेंडर करने पर मजबूर अवश्‍य कर दिया पर वह उसे रिमाण्‍ड पर नहीं ले सकी। पुलिस उसे रिमाण्‍ड पर लेकर उसके आका सफेदपोशों के बावत जो जानकारी करना चाहती थी, उसमें उसे सफलता नहीं मिली लिहाजा सफेदपोशों के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही किया जाना फिलहाल संभव नहीं लगता। बताया जाता है कि सफेदपोशों ने एसएसपी को उनकी सख्‍ती का जवाब इलाहाबाद हाईकोर्ट में उन्‍हें तलब कराकर देने की कोशिश की।
जिन सफेदपोशों को एसएसपी ने तेल माफिया का आका बताया, वह काफी ताकतवर हैं। प्रत्‍यक्ष में उनके कारोबार भले ही मिठाई, सुपाड़ी या जमीन की खरीद-फरोख्‍त और भवन निर्माण दिखाई देते हों लेकिन उनकी जड़ें शासन, प्रशासन, मीडिया और यहां तक कि न्‍याय पालिका में गहरे तक समाई हुई हैं। तभी तो जिन सफेदपोशों के नाम खुद एसएसपी ने सार्वजनिक किये, उन्‍हें किसी अखबार ने नहीं छापा। कुछ ने सांकेतिक भाषा में लिखा तो कुछ ने उतनी भी जहमत नहीं उठाई। एसएसपी को इस बात का इल्‍म भी था कि मीडिया इन सफेदपोशों के नाम छापने की हिम्‍मत नहीं करेगा। करेगा भी कैसे, अधिकांश मीडियाकर्मी किसी न किसी रूप में इन सफेदपोशों के हाथ बिके हुए जो हैं।
एसएसपी को इस बात का भी अहसास होगा कि ऑयल माफिया के संरक्षणदाता कुछ नामों का जिक्र उन्‍होंने नहीं किया क्‍योंकि वह सत्‍ता के अंग हैं। जनप्रतिनिधि कहलाने वाले ये सफेदपोश तो एक लम्‍बे समय से तेल माफिया को न केवल सहारा दे रहे हैं बल्‍िक उसके साइलेंट पार्टनर बने हुए हैं। सब जानते हैं कि तेल के खेल में वह बराबर के हिस्‍सेदार हैं लेकिन उनके मामले में यक्ष प्रश्‍न वही खड़ा हो जाता है कि बिल्‍ली के गले में घण्‍टी कौन बांधे।
बताया जाता है कि ऑयल माफिया के खिलाफ सख्‍ती बरतने वाले एसएसपी भानु भास्‍कर का प्रमोशन ड्यू है इसलिए वह अब यहां ज्‍यादा दिनों तक नहीं रह पायेंगे।
जाहिर है कि अब तक उन्‍हें शिकस्‍त देने में असफल रहने वाले सफेदपोशों को भी अब उनके प्रमोशन तथा उसके बाद रवानगी होने का इंतजार होगा लेकिन यह मथुरा का दुर्भाग्‍य कहा जा सकता है।
नि:संदेह उसके बाद ऑयल माफिया के माध्‍यम से उसके सफेदपोश आका इस बीच हुए अपने नुकसान की भरपायी के लिए पहले से कहीं अधिक तेजी के साथ सक्रिय होंगे जिसका सीधा-सीधा अर्थ होगा कि मथुरा एक बार फिर एक ऐसे चंगुल में फंस जायेगा जिससे बाहर निकलना असंभव न सही लेकिन अत्‍यंत कठिन अवश्‍य होता है।
देश में जबकि इस समय भ्रष्‍टाचार के खिलाफ एक किस्‍म का अभियान खड़ा होता दिखाई दे रहा है, तब जितना जरूरी है शहर-शहर में मौजूद हसन अलियों को पहचान कर उन्‍हें सामने लाने की, उससे कई गुना ज्‍यादा जरूरी है इन हसन अलियों के पीछे छिपे उन चेहरों को बेनकाब करने की जो आर्थिक अपराध के सूत्रधार हैं और जिनके कारण पूरी व्‍यवस्‍था चौपट होती जा रही है।
मथुरा का ही उदाहरण देते हुए अगर बात की जाए तो ऑयल माफिया मनोज को हसन अली की तरह इस्‍तेमाल करने वाले सफेदपोशों के पास पैसों की कोई कमी नहीं है। उनके पास बेहिसाब पैसा है लेकिन उनकी हवस फिर भी कम होने का नाम नहीं लेती।
मिठाई का प्रत्‍यक्ष कारोबारी सफेदपोश व्‍यक्‍ित, प्रॉपर्टी का बड़ा सौदागर भी है। वह गोल्‍ड का काम बहुत बड़े पैमाने पर करता है, एमसीएक्‍स के कारोबार में खासी दखल रखता है, न्‍यायपालिका को सेट रखने के लिए सब-कुछ करता है और पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से उसके घनिष्‍ठ ताल्‍लुकात रहते हैं। इसके अलावा भी कई दूसरे ऐसे कारोबारों में लिप्‍त है जो अधिकारियों, मीडियाकर्मियों, नेताओं एवं अन्‍य सफेदपोशों को ऑब्‍लाइज करने में सहायक हैं।
सुपाड़ी व्‍यवसायी दूसरे सफेदपोश का भी तकरीबन यही हाल है और जमीन का कारोबार करने वालों की तो अधिकारियों से एक किस्‍म की रिश्‍तेदारी जुड़ जाती है क्‍योंकि जमीन से जुड़ा कोई भी काम बिना द्वंद-फंद किये संभव नहीं होता।
घुन और दीमक की तरह समूची व्‍यवस्‍था को चाट रहे ऐसे सफेदपोशों का अगर सही इलाज हमारे अधिकारी कर पाते हैं तो हसन अलियों का इलाज खुद-ब-खुद हो जायेगा अन्‍यथा न तो किसी हसन अली का कुछ बिगड़ेगा और ना उसके आकाओं का।
फिर कहीं कोई तेल माफिया जेल से छूटकर कानून को खुली चुनौती देगा तो कहीं कोई सफेदपोश किसी ईमानदार अधिकारी को मुंह चिढ़ायेगा।

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