शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

.......धोखे में न रहें











 ''नेहरू एक जीवनी'' में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों को उद्धृत करते हुए लिखा है कि '' जो सत्‍ता हमारी उपेक्षा करती है और हमारे साथ घृणा का बर्ताव करती है, उसके सामने दबना तथा उसी से अपील करना बेहद शर्मनाक है।''
नेहरूजी ने शायद ही सोचा हो कि उनके ये शब्‍द कभी उन्‍हीं के वंशजों द्वारा संचालित सत्‍ता पर पूरी तरह सटीक बैठेंगे। बेशक केवल कांग्रेस या नेहरू परिवार इन शब्‍दों के दायरे में नहीं आता बल्‍िक देश का हर शासक तथा प्रत्‍येक राजनीतिक दल इन शब्‍दों की सच्‍चाई को सार्थक कर रहा है परन्‍तु दुर्भाग्‍य से फिलहाल केन्‍द्र में कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली वो सरकार काबिज है जिसका ताल्‍लुक नेहरू परिवार से है और जिस परिवार की बहू सोनिया यूपीए की चेयरपर्सन व कांग्रेस की लगभग स्‍वयंभू राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि स्‍वतंत्रता के बाद से देश को भ्रष्‍टाचार के दलदल में गहरे तक ले जाने का काम तकरीबन हर राजनेता तथा हर पार्टी की सत्‍ता ने किया परन्‍तु कांग्रेस के सिर ठीकरा इसलिए फूटा क्‍योंकि कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली वर्तमान सरकार ने बेशर्मी की सारी हद पार कर दी।
आज अन्‍ना हजारे नई दिल्‍ली के जंतर-मंतर पर भ्रष्‍टाचार के खिलाफ आमरण अनशन कर रहे हैं। अन्‍ना कहते हैं कि इस देश से भ्रष्‍टाचार तभी मिट सकता है जब उसके लिए किये जाने वाले उपायों में जनता की सीधी सहभागिता हो और इसलिए वह चाहते हैं कि प्रस्‍तावित लोकपाल विधेयक सरकारी नियंत्रण से मुक्‍त हो।
अन्‍ना हजारे के आमरण अनशन पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। अधिकांश प्रतिक्रियाएं प्रोत्‍साहित करती हैं और बताती हैं कि लोगों में भ्रष्‍टाचार को लेकर काफी नाराजगी है।
देश की सेलिब्रिटीज ने भी अन्‍ना की मुहिम का स्‍वागत करते हुए अपने-अपने तरीके से प्रतिक्रिया दी है।
प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक शेखर कपूर ने टि्वटर पर कुछ इस तरह की भावना व्‍यक्‍त की है- सचिन, धोनी या आमिर नहीं, बल्कि आम आदमी को खड़े होना चाहिए और कहना चाहिए- नहीं ! मैं अब और नहीं सहूंगा। तब क्रांति हो पायेगी।
मैं लोकपाल बिल पर राष्ट्रीय बहस कराए जाने के लिए अन्ना हजारे के अनशन का समर्थन करता हूं। कम से कम संसद आगे आए और इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दे। अन्ना हजारे जैसे लोग व्यवस्था के खिलाफ जनांदोलन का दबाव बनायेंगे, जिस तरह गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ किया था।
उन्‍होंने पूछा है कि क्या धोनी और उनके लड़के क्रिकेट के अलावा करप्शन के खिलाफ बात करके भारतीयों के चेहरों पर मुस्कान ला सकते हैं?
इसी प्रकार चेतन भगत ने लिखा है कि जब तक अन्ना हजारे आमरण अनशन पर हैं, तब तक हम कैसे आईपीएल खेल या देख सकते हैं ?
कृपया 022-61550789 पर मिस्ड कॉल करें और अन्ना हजारे के साथ आंदोलन में शामिल हों।
मुझे 25 हजार मिस्ड कॉल की जरूरत है। यह ट्वीट है अभिनेत्री मिनिषा लाम्‍बा का।
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई के लिए व्यापक समर्थन तैयार हो रहा है। कहीं भारत अगला मिस्र तो नहीं बनने जा रहा ? मधुर भंडारकर ने अपने ट्वीट में ऐसी आशंका व्‍यक्‍त की है।
अभिनेत्री गुल पनाग के अनुसार भारत में कभी भी इजिप्ट की तरह क्रांति नहीं हो सकती। वह इसलिए क्योंकि हम आलसी हैं , यहां तक कि मतदान केंद्र तक जाने की जहमत नहीं उठाते।
अनुपम खेर का कहना है कि जब कोई भ्रष्टाचार से लड़ा रहा हो, तो मैं उसके तरीकों को जज नहीं करता। मैं उसके उद्देश्य और ऐक्शन की सराहना करता हूं। मैं अन्ना हज़ारे के साथ हूं। उन्‍होंने लोगों से पूछा है- क्या आप भी साथ हो ?
आईपीएल में भ्रष्‍टाचार के आरोपों से घिरे ललित मोदी ने भी आश्‍चर्यजनक रूप से कहा है कि मैं पूरी तरह से अन्ना हजारे के आमरण अनशन का सपोर्ट करता हूं।
इन सब के अलावा अन्‍ना के समर्थन में देश के लगभग हर इलाके से आवाजें उठ रही हैं। कहा जा रहा है कि अन्‍ना को मिल रहे समर्थन के कारण सरकार के हाथ-पांव फूल गये हैं। अन्‍ना के दबाव में सरकार ने बातचीत की पहल की है। सरकार को झुकना ही होगा वरना क्रांति हो जायेगी।
मेरे विचार इस मामले में कुछ अलग हैं। मैं यह तो मानता हूं कि अन्‍ना हजारे की मुहिम ने लोगों को स्‍पंदित किया है। उनमें व्‍यवस्‍था की गंदगी के खिलाफ आवाज उठाने का माद्दा पैदा किया है। उन्‍हें अहसास कराया है कि सरकार चलाने वाले लोग, जो अब तक उनके भाग्‍य विधाता बने बैठे हैं, वास्‍तव में उनके चाकर हैं और उन्‍हें उनकी असलियत बताया जाना अब जरूरी हो चुका है लेकिन जहां तक सवाल इस मुहिम से किसी बहुत बड़े परिवर्तन की उम्‍मीद करने का है, तो वह अभी नहीं होने का।
मैं निराशावादी नहीं हूं और ना ही अन्‍ना की मुहिम में शामिल लोगों को हतोत्‍साहित करना चाहता हूं लेकिन तल्‍ख सच्‍चाई यही है क्‍योंकि भ्रष्‍टाचार आज हमारे आचरण में समा चुका है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह।
मनमोहन सिंह पर नि:संदेह भ्रष्‍टाचार का कोई आरोप नहीं है और ज्‍यादातर लोग उन्‍हें ईमानदार मानते हैं लेकिन मैं उन्‍हें ईमानदार नहीं कह सकता। मेरा मानना है कि यदि कोई व्‍यक्‍ित अपनी ईमानदारी को ही अपनी कमजोरी बना ले तो वह तमाम भ्रष्‍टाचारियों से गया-गुजरा है। मनमोहन सिंह ने यही किया है। मुझे नहीं पता कि उनकी कौन सी ऐसी मजबूरी थी जिसके कारण वो अपनी नाक के नीचे भ्रष्‍टाचार का नाला बहते देखने के बावजूद हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे। यहां तक कि जब उसकी सड़ांध फैलने लगी तब भी लोगों को कहते रहे कि दु्र्गन्‍ध तुम्‍हारी सांसों से आ रही है। तुम्‍हें भ्रम हो गया है। सरकार में सब-कुछ ठीक है।
मुझे नहीं पता कि किसने, कब और किस परिपेक्ष्‍य में यह जुमला उछाला था कि ''मजबूरी का नाम महात्‍मा गांधी''। लेकिन इससे एक बात जरूर साबित होती है कि महात्‍मा गांधी भी कुछ मामलों में इतने कमजोर रहे होंगे जिस कारण उन्‍हें मजबूरी का पर्याय कहा गया। शायद इसीलिए अन्‍ना हजारे ने कहा है कि आज केवल गांधी से काम चलने वाला नहीं है। आज की लड़ाई के लिए छत्रपति शिवाजी को भी साथ लेकर चलना होगा।
गांधीवादी तरीके से अहिंसक आंदोलन चलाने वाले अन्‍ना हजारे का यह कथन बहुत कुछ कहता है और भविष्‍य की लड़ाई के प्रारूप का संकेत भी दे रहा है। अन्‍ना जिद्दी नहीं हैं, बावजूद इसके वह लोकपाल विधेयक में सरकार से कोई कम्‍प्रोमाइज नहीं करना चाहते। वह जानते हैं कि सरकार ऐसे सारे हथकण्‍डे आजमायेगी जिससे उनकी मुहिम को झटका दिया जा सके। राजनीति की जगह वह इसीलिए कूटनीति का सहारा ले रही है पर अब तक अन्‍ना किसी झांसे में नहीं आये हैं।
अन्‍ना के साथ-साथ उनसे जुड़े लोगों तथा देशभर में उनकी मुहिम के समर्थकों को यह अच्‍छी तरह समझ लेना चाहिए कि किसी भी मायने में यह लड़ाई स्‍वतंत्रता के लिए लड़ी गयी लड़ाई से कम नहीं है। सच तो यह है कि यह उससे भी बड़ी लड़ाई है क्‍योंकि वो लड़ाई विदेशियों से थी जबकि यह उन तथाकथित अपनों से है, जिन्‍हें उनके आचरण के आधार पर फिरंगियों की कॉर्बन कॉपी कहा जा सकता है। उन्‍होंने भी देश को लूटा और यह भी लूट रहे हैं। उन्‍होंने अपना घर भरा, यह भी भर रहे हैं। देश के गद्दारों ने भ्रष्‍टाचार से कमाई गई इतनी बड़ी रकम अपने विदेशी खातों में जमा कर रखी है जो किसी भी देश की समूची अर्थव्‍यवस्‍था को प्रभावित करने के लिए पर्याप्‍त है।
खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके मंत्रिमण्‍डल में कोढ़ की तरह नजर आने वाले तत्‍व, न्‍यायपालिका को तो नसीहत दे रहे हैं कि अपने अधिकारों का अतिक्रमण न करे लेकिन अपने गिरेबां में झांकने की जहमत तक नहीं उठाना चाहते।
अगर कोई यह सोच रहा है कि सरकार अन्‍ना के आमरण अनशन से या उन्‍हें मिल रहे जनसमर्थन से डर गई है तो वह बहुत बड़ी गफलत में है। सरकार ऐसा दिखावा करके अन्‍ना को गुमराह करना चाहती है। उसका आचरण ठीक वैसा ही है जैसा सरेआम चोरी करते पकड़े जाने वाले किसी व्‍यक्‍ित का होता है। वह अपने हाव-भावों से ऐसा दर्शाकर बच निकलना चाहता है कि उसने चोरी मजबूरी में की है। वह आदतन चोर नहीं है। भीड़ में हर जगह कुछ ऐसे व्‍यक्‍ित अवश्‍य मिल जाते हैं जिन्‍हें चोर की बातों पर भरोसा होता है और वह उसके द्वारा बताई गई मजबूरी से सहमत होते हैं। बस यही लोग उस चोर को जीवनदान देने में सहायक सिद्ध होते हैं।
मनमोहन सरकार कुछ यही करना चाहती है। यह बात अलग है कि अब तक उसे अपने मकसद में सफलता नहीं मिल पायी है जिसका बहुत बड़ा कारण अन्‍ना की मुहिम से राजनेताओं व राजनीतिक पार्टियों को दूर रखना भी रहा है।
जनता जानती है कि चोर-चोर मौसेरे भाई हैं और उनके आरोप-प्रत्‍यारोप येन-केन प्रकारेण खुद को सत्‍ता की दौड़ में शामिल करने के लिए हैं। इस मामले में चेतन भगत का यह कहना किसी हद तक उचित है कि अगर सब चोर नहीं हैं तो सत्‍ता का कोई अंग सामने आकर जनता की इस पावन लड़ाई में शामिल क्‍यों नहीं हो रहा ?
वो भी तब जबकि भ्रष्‍टाचार ने केवल अर्थव्‍यवस्‍था को ही प्रभावित नहीं किया है, वह लोगों के जीवन तक से खिलवाड़ कर रहा है। जापान में भूकंप व सुनामी ने सब-कुछ तहस नहस कर दिया। एक ऐसा देश जहां प्राकृतिक आपदा से निपटने के पर्याप्‍त इंतजाम पहले से थे, आज अपने अस्‍तित्‍व की महत्‍वपूर्ण लड़ाई लड़ रहा है। जरा कल्‍पना कीजिये कि यदि भारत को ऐसी किसी आपदा का सामना करना पड़ जाए जिसकी कि आशंका काफी बलवती है, तब क्‍या होगा ?
यहां तो कोई सरकारी अथवा गैर सरकारी इमारत ऐसी नहीं है जिसकी नींव में भ्रष्‍टाचार का रेत ना मिला हो। बिल्‍डर खुलेआम घोषणा करते हैं कि उनका प्रोजेक्‍ट भूकंपरोधी है जबकि किसी का कोई प्रोजेक्‍ट भूकंपरोधी नहीं है।
महानगरों की बात यदि न की जाए तो छोटे-छोटे शहरों में भ्रष्‍टाचार की बुनियाद पर आकर्षक नामों वाले हाईट्स खड़े किये जा रहे हैं और खरीदने वालों को इसका इल्‍म तक नहीं कि जिन्‍हें वह अपने सपनों का महल या जीवनभर की पूंजी से खरीदा गया बसेरा समझ रहे हैं, वह मौत की ऐसी हाईट्स हैं जो धरती के जरा से कंपन को सहने की क्षमता नहीं रखतीं। पृथ्‍वी के गर्भ में हुई मामूली सी हलचल उन्‍हें ताश के पत्‍तों से खड़े किये गये महल की तरह गिरा देगी। उस स्‍थिति में हुई जनहानि का अंदाज लगाकर कोई भी सिहर सकता है।
और बात केवल घरोंदों की ही नहीं है। चाहे जीवन रक्षक दवाएं हों या फल और शाक-सब्‍िजयां, मसाले हों या आटा और दालें। यहां तक कि नदियों का पानी भी जहर बन जाने के पीछे भ्रष्‍टाचार ही तो है। प्राणवायु तक अगर जहरीली बन चुकी है तो वह भी भ्रष्‍टाचार की देन है। कोई चीज ऐसी नहीं जिसमें भ्रष्‍टाचार का जहर गहरे तक न समा चुका हो। फिर भी खुद को देश का भाग्‍य विधाता कहने वालों का तर्क है कि बातचीत से हर समस्‍या का समाधान संभव है। यदि ऐसा होता तो 63 सालों में भ्रष्‍टाचार के दानव की हवस कहीं तो जाकर ठहरती। 42 सालों से लोकपाल विधेयक किसी मुकाम पर तो पहुंचता। बातचीत की समय सीमा अब समाप्‍त हो चुकी है। अब तो एकमात्र उपाय है कथनी और करनी के अंतर को दूर करके त्‍वरित कार्यवाही किया जाना, जिसे टालने का यथासंभव प्रयास सरकार कर रही है।
हो सकता है कि अन्‍ना हजारे की मुहिम रंग ले आये और सरकार जनआंकाक्षा के अनुरूप तैयार किये गये लोकपाल विधेयक के मसौदे को स्‍वीकार कर ले लेकिन तब भी न तो अन्‍ना का काम समाप्‍त होगा तथा ना उनका जो उनकी मुहिम में शामिल हैं क्‍योंकि अभी इसे जनांदोलन कहना जल्‍दबाजी होगी। यह एक तरह से खुद को धोखे में रखने जैसा है।
भ्रष्‍टाचार के खिलाफ शुरू की गई यह मुहिम तब सही मायनों में सार्थक होगी, जब लोकतंत्र के तीनों संवैधानिक स्‍तंभ- विधायिका, न्‍यायपालिका व कार्यपालिका और चौथा ''सो कॉल्‍ड'' स्‍तंभ पत्रकारिता (मीडिया) भी इससे मुक्‍त हो सके। ऐसा तीन दिन पहले शुरू हुई मुहिम से संभव नहीं होगा। इसके लिए लंबी लड़ाई की तैयारी करनी होगी। अन्‍ना ने जिस मुहिम की शुरूआत की है, वह आगाज़ तो है लेकिन अंजाम अभी दूर की कौड़ी बना हुआ है। इससे लोग स्‍पंदित हुए हैं, जागरूक नहीं। भ्रष्‍टाचार को समूल नष्‍ट करने के लिए आम आदमी के अंदर ऐसी जागरूकता पैदा करनी होगी जो अपने अधिकारों के साथ-साथ देश के समाज के प्रति अपने कर्तव्‍यों को भी समझे क्‍योंकि नेता हों या ब्‍यूरोक्रेट्स, न्‍ययायाधीश हों या मीडियाकर्मी, आखिर आते तो उसी समाज से हैं जो हमारा अपना है। जिसे हम स्‍वयं गढ़ते हैं और स्‍वयं ही मान्‍यता देते हैं।
आज जितनी आवश्‍यकता एक मुकम्‍मल मानवाधिकार आयोग तथा जनलोकपाल विधेयक की है, उतनी ही आवश्‍यकता एक मुकम्‍मल मानव कर्तव्‍य आयोग की भी है क्‍योंकि इसके बिना भ्रष्‍टाचार विहीन भारत की कल्‍पना तक करना बेमानी होगा।

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