रविवार, 15 मई 2011

मौत की हाइट्स में बसेरा ?

पाण्‍डवों से पूछे गये यक्ष प्रश्‍नों में एक प्रश्‍न यह भी था कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्‍चर्य क्‍या है ?
धर्मराज युधिष्‍ठिर ने इसका जवाब कुछ यूं दिया कि हम हर रोज किसी न किसी को काल के गाल में समाते हुए देखते हैं, बावजूद इसके कभी अपनी मौत का विचार तक नहीं करते। आज के संदर्भ में देखें तो हम मृत्‍यु की बात तो दूर, यक्ष व युधिष्‍ठिर के बीच हुए इस संवाद तक को याद नहीं रखते जबकि मौत हर पल साये की तरह हमारे इर्द-गिर्द मंडराती रहती है।
कुछ लोगों का तर्क हो सकता है कि जब जीवन और मौत दोनों ही हमारे वश में नहीं हैं तो हम इस पर विचार करके भी क्‍या करें। यदि उनके इस तर्क से कुछ देर के लिए सहमत हो लिया जाए तब भी इतना तो कहा जा सकता है कि स्‍वाभाविक मौत तथा अकाल मौत में फर्क है और अकाल मौत वाले व्‍यक्‍ित की दुर्गति होती है। धर्म की बात करें तो अकाल मौत मरने वाले की आत्‍मा अपनी मुक्‍ित के लिए भटकती रहती है।
यहां एक सवाल यह पैदा होता है कि अकाल मौत कहते किसे हैं ?
सामान्‍यत: ऐसा माना जाता है कि स्‍वाभाविक मृत्‍यु के अलावा अन्‍य किसी तरह से हुई मौत, अकाल मौत की श्रेणी में आती है। इनमें से आत्‍महत्‍या को सामाजिक व धार्मिक ही नहीं, कानून की दृष्‍टि से भी अपराध माना जाता है लेकिन आश्‍चर्य होता है यह जानकर कि आज अधिकांश लोग विभिन्‍न कारणोंवश आत्‍महत्‍या करने पर आमादा हैं। कोई जानबूझकर आत्‍महत्‍या करने की कोशिश कर रहा है तो कोई अनजाने में ऐसे कृत्‍य करता है जो उसे किसी भी क्षण मौत का शिकार बना सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर तमाम लोग ट्रेन चल देने के बाद उसमें चढ़ते हैं और उसके रुकने का इंतजार किये बिना उतरते हैं। इस आत्‍मघाती प्रयास में हर दिन कई जानें जाती हैं लेकिन सबक शायद ही कोई सीख्‍ाता हो।
इसी प्रकार ओवरलोडेड बसों में सफर करने की बात हो या भूसे की तरह भरे जाने वाले डग्‍गेमार वाहनों में सफर करने वालों की, यह भी आत्‍मघाती प्रवृत्‍ति है लेकिन ऐसा करने वालों की संख्‍या लाखों में होगी। यह कहना गलत होगा कि हर जगह संसाधनों का अभाव है। संसाधनों की कमी कहीं-कहीं इसका एक कारण हो सकती है लेकिन हर जगह नहीं। आत्‍मघाती प्रवृत्‍ति के मूल में वो मानसिकता है जिसके कारण हम जल्‍दी से जल्‍दी सब कुछ पा लेना चाहते हैं। यहां तक कि गंतव्‍य भी। तभी तो सड़कों तक पर विभिन्‍न वाहनों के बीच दिन-रात रेस लगती दिखाई देती है। सबको इतनी जल्‍दी रहती है जैसे अगर उसने आगे वाले वाहन को ओवरटेक नहीं किया तो बहुत कुछ छूट जायेगा।
अब बात करते हैं तरक्‍की की अंधी दौड़ में शामिल उन लोगों के बारे में जो विलासितापूर्ण जीवन के लिए अपना सब-कुछ दांव पर लगा देते हैं। जरूरत से ज्‍यादा पैसा कमा लेने के बाद सुख-सुविधाओं की लालसा सबको रहती है परन्‍तु क्‍या इस लालसा में उन्‍हें यह तक भूल जाना चाहिए कि जिस सुख को वह मुंहमांगी कीमत पर हासिल करना चाहते हैं, कहीं वह उन्‍हें अकाल मौत के मुंह में तो नहीं ले जा रही।
बहुत समय नहीं बीता जब इंसान की मूलभूत जरूरतें रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित थीं। रोटी और कपडों का जुगाड़ वह जैसे-तैसे कर लेता था लेकिन मकान बनाना उसका सबसे बड़ा ख्‍वाब रहता था। इस ख्‍वाब के पूरा होने पर वह संतुष्‍टि के भाव से भर जाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसके मायने तेजी से बदले हैं।
बेशक विश्‍व की सबसे बड़ी आबादी वाले इस मुल्‍क में आज भी अधिकांश लोगों के लिए अपना एक घर किसी सपने से कम नहीं लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जिनका सपना न तो अपना घर हो जाने से पूरा होता है और न जिनकी हवस कई मकानों से पूरी होती है। पहले छोटे मकान से बड़े मकान की चाहत, फिर एक से अनेक मकान की और उसके बाद उन इलाकों में रहने की जो पॉश कहलाते हैं।
चूंकि यह दौर जमीनी कारोबार का दौर है इसलिए अब तो व्‍यावसायिक दृष्‍टि से भी मकानों की खरीद-फरोख्‍त बड़े पैमाने पर की जाने लगी है। मांग और पूर्ति के इस अर्थशास्‍त्रीय सिद्धांत को देखते हुए भूमाफिया, बिल्‍डर्स, कॉलोनाइजर्स अथवा रीयल एस्‍टेट कारोबारियों की जैसे बाढ़ सी आ गई है। महानगरों की बात यदि ना भी की जाए तो छोटे-छोटे शहरों और कस्‍बों में तेजी के साथ बढ़ती इनकी तादाद से इसका अंदाज लगाया जा सकता है।
कहने को तो पूरे देश की स्‍थिति इस मामले में कमोबेश एक जैसी है लेकिन कृष्‍ण की जन्‍मभूमि का गौरव प्राप्‍त इस धार्मिक जनपद ने जमीन से जुड़े कारोबार में जितनी तेजी के साथ छलांग लगाई है, वह चौंकाने वाली है।
राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली से मात्र 146 किलोमीटर दूर स्‍थित इस जनपद ने अपने गौरवशाली अतीत के अनुरूप चाहे तरक्‍की कतई न की हो लेकिन निजी बिल्‍डर्स की रुचि ने यहां जमीनों के दाम आसमान पर ला खड़े किये हैं। कौड़ियों के दाम खरीदी गई जमीनों पर लोगों के ख्‍वाब पूरे करने की मंशा जताकर बेशुमार पैसा अर्जित करने वाले तत्‍व आज जगह-जगह ''मौत की हाइट्स'' खड़ी कर रहे हैं लेकिन उनसे कोई यह तक पूछने वाला नहीं कि इन बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में कानून सम्‍मत तरीकों का कितना इस्‍तेमाल किया जा रहा है।
विगत माह आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने जापान जैसे तकनीकी रूप से पूर्ण सक्षम देश को ऐसा भयानक मंजर दिखाया जिसकी कल्‍पना मात्र से रूह कांप उठती है।
जरा विचार कीजिये कि यदि ऐसा कोई जलजला कभी हमारे यहां आया तो स्‍थिति क्‍या होगी। जापान में जिस तरह का भूकंप तथा उसके बाद जिस स्‍तर की सुनामी आई थी उसकी तुलना में जनहानि काफी कम हुई क्‍योंकि उन्‍होंने उससे निपटने के इंतजाम कर रखे थे लेकिन यदि भारत में और विशेषकर यहां के उस क्षेत्र में जो बड़ी तीव्रता वाले भूकंप संभावित क्षेत्र में शुमार है ऐसा जलजला कभी आता है तो हालात किस कदर भयावह होंगे इसका अंदाज तक लगाना कठिन है। यहां तो लाशों की गिनती भी संभवत: न की जा सके लेकिन फिलहाल इसकी चिंता किसी को नहीं। न तो भ्रष्‍टाचार में आकण्‍ठ डूबे देश के कर्णधारों को, ना इस भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था का लाभ उठाकर मौत की हाइट्स खड़ी करने वालों को और न उन लोगों को जिन्‍होंने इसी व्‍यवस्‍था के बीच शॉर्टकट रास्‍ते से अच्‍छा-खासा पैसा अर्जित कर लिया है।
घोर आश्‍चर्य की बात यह है कि वो लोग भी इस स्‍थिति को समझने के लिए तैयार नहीं जो अपनी जिंदगीभर की जमा पूंजी या बैंक से कर्ज लेकर अपने एक निजी मकान का सपना साकार करते हैं।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली और उसके आसपास का सारा क्षेत्र जिसमें मथुरा व आगरा भी शामिल है भूकंप के प्रति अति संवेदनशील जोन 4 में आता है। जाहिर है कि इस खतरे को देखते हुए यहां बनने वाली इमारतों को भूकंपरोधी बनाया जाना जरूरी है ताकि आपदा के वक्‍त कम से कम जन व धन हानि हो परन्‍तु शायद ही यहां किसी इमारत को खड़ी करने में उन मानकों का ध्‍यान रखा जा रहा हो जिनकी वजह से कोई इमारत भूकंप का झटका झेलने लायक बन पाती है। यह बात दीगर है कि हर बिल्‍डर अपनी इमारत के भूकंपरोधी होने का दावा करता है।
आखिर कैसे बनती है कोई इमारत भूकंपरोधी, क्‍या कहता है इस बारे में हमारा कानून और सच्‍चाई के धरातल पर हो क्‍या रहा है, इन सब बातों के उत्‍तर जानने के लिए ''लीजेण्‍ड न्‍यूज़'' ने जब विशेषज्ञों से बात की तो चौंकाने वाले तथ्‍य सामने आये।
किसी बिल्‍डिंग को भूकंपरोधी बनाने लिए सबसे जरूरी है सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट। यह रिपोर्ट बताती है कि उस जगह की मिट्टी में बिल्डिंग का कितना वजन सहन करने की क्षमता है। इलाके की मिट्टी की क्षमता के आधार पर ही बिल्डिंग में मंजिलों की संख्या तय की जाती है और डिजाइन तैयार किया जाता है। तकनीकी शब्दों में इसे सॉइल की 'बियरिंग कैपेसिटी' कहा जा सकता है। इस रिपोर्ट से ही यह पता चलता है कि नेचुरल ग्राउंड लेवल के नीचे कितनी गहराई तक जाकर भूकंप के प्रति बियरिंग कपैसिटी मिल सकती है। मान लीजिए- रिपोर्ट बताती है कि हमें तीन मीटर नीचे जाकर बियरिंग कपैसिटी मिलेगी। यहां स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम शुरू होता है। वह रिपोर्ट के आधार पर वहां डेढ़ बाई डेढ़ मीटर की फाउंडेशन तैयार करेगा। इसके बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम बिल्डिंग का डिजाइन तैयार करना होता है। आजकल भूकंपरोधी मकान बनाने के लिए लोड बियरिंग स्ट्रक्चर की बजाय फ्रेम स्ट्रक्चर बनाए जाते हैं, जिनसे पूरी बिल्डिंग कॉलम पर खड़ी हो जाती है। कॉलम को जमीन के नीचे दो-ढाई मीटर तक लगाया जाता है। फ्लोर लेवल, लिंटेल लेवल, सेमी परमानेंट लेवल (टॉप) और साइड लेवल (दरवाजे-खिड़कियों के साइड) में बैंड (बीम) डालने जरूरी होते हैं।
कौन करेगा जांच
- मिट्टी की जांच की जिम्मेदारी कई सेमी गवर्नमेंट और प्राइवेट एजेंसी संभालती हैं। इसके लिए इंश्योरेंस सर्वेयर्स की तरह इंडिपेंडेंट सर्वेयर भी होते हैं।
- इसके लिए वे बाकायदा एक निर्धारित फीस चार्ज करते हैं।
- जांच के बाद एक सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।
क्या पता चलेगा
- मिट्टी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर कितना लोड झेल सकती है?
- यह जगह कंस्ट्रक्शन के लिए ठीक है या नहीं?
- इलाके में वॉटर लेवल कितना है?
- वॉटर लेवल और बियरिंग कपैसिटी का सही अनुपात क्या है?
- मिट्टी हार्ड है या सॉफ्ट?
कितना आएगा खर्च
90 गज के प्लॉट के लिए करीब 25 हजार रुपये।
बिल्डिंग के लिए जिम्मेदारी
- टेस्टिंग के बाद सर्वेयर और बिल्डिंग डिजाइन करने के बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर एक सर्टिफिकेट जारी करते हैं। बिल्डिंग को कोई नुकसान पहुंचने पर इनकी भी जवाबदेही तय की जा सकती है।
क्या है सेफ
- कॉलम में सरिया कम-से-कम 12 मिमी. मोटाई वाला हो।
- फाउंडेंशन कम-से-कम 900 बाई 900 की हो।
- लिंटेल बीम (दरवाजों के ऊपर) में कम-से-कम 12 मिमी मोटाई का स्टील इस्तेमाल किया जाए।
- पुटिंग में कम-से-कम 10-12 मिमी. मोटाई वाले स्टील का प्रयोग हो।
- स्टील की मोटाई कंक्रीट की थिकनेस के आधार पर कम या ज्यादा की जा सकती है।
- स्टील की क्वॉलिटी बेहतर होनी चाहिए, ज्यादा इलास्टिसिटी वाले स्टील से बिल्डिंग को मजबूती मिलती है।
तैयार मकान
अगर आप प्लॉट पर अपना मकान बनवाने की बजाय पहले से ही तैयार कोई मकान लेने जा रहे हैं, तो उसकी जांच करने के लिए आपके पास विकल्प सीमित हो जाते हैं। इसके लिए ठीक ब्लड टेस्ट की तरह थोड़े-थोड़े सैंपल लेकर जांच की जा सकती है, लेकिन यह काम भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता। इसके लिए किसी स्ट्रक्चरल इंजीनियर की सर्विस लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए, तैयार मकान के कॉलम को किसी जगह से छीलकर सरिये की मोटाई और संख्या का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए खास मशीन भी आती है, जो एक्स-रे की तरह कॉलम को नुकसान पहुंचाए बिना सरिये की स्थिति बता देती है। इसी तरह, प्लिंथ (फ्लोर) लेवल पर कंक्रीट की थिकनेस और एरिया देखकर उसका मिलान मिट्टी की बियरिंग कपैसिटी से कर सकते हैं। अगर कोई कमी पाई जाती है और लगता है कि मकान भूकंप नहीं सह सकता तो अतिरिक्त कॉलम खड़े करके उसे मजबूत बनाया जा सकता है। वैसे कंस्ट्रक्शन मटीरियल की जांच भी कुछ राहत दे सकती है।
मटीरियल की जांच
जमीन की मिट्टी ठीक होना ही बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए काफी नहीं है, यह भी जरूरी है कि बिल्डिंग को तैयार करने में क्वॉलिटी मटीरियल भी लगाया गया हो। इस मटीरियल में कंक्रीट, सीमेंट, ईंट, सरिये आदि शामिल होते हैं। मटीरियल के ठीक होने या नहीं होने के संबंध में ज्यादातर संतुष्टि केवल डेवलपर के ट्रैक रिकॉर्ड और उसकी साख को देखकर ही की जाती है। फिर भी कुछ हद तक सावधानी बरती जा सकती है।
बिल्डिंग मटीरियल टेस्टिंग
- किसी प्रोफेशनल एजेंसी से भी बिल्डिंग मटीरियल की टेस्टिंग कराई जा सकती है।
- ये एजेंसियां पूरी बिल्डिंग या आपकी इच्छानुसार किसी खास हिस्से के मटीरियल की टेस्टिंग करेंगी।
- अलग-अलग तरह की जांच के लिए अलग-अलग फीस ली जाती है।
- जांच के बाद 10-15 दिनों में रिपोर्ट मिल जाती है।
प्रोफेशनल सर्टिफिकेट
- आरसीसी फ्रेमवर्क के तहत आने वाली चीजों की जांच किसी प्रोफेशनल से कराई जा सकती है।
- इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत पिलर, नींव, स्लैब्स आदि आते हैं।
- प्रोफेशनल के रूप में स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सटिर्फिकेट लिया जा सकता है।
साइट विजिट
- अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में फ्लैट बुक कराया है तो साइट विजिट जरूर करें।
- वहां मौजूद एक्सपर्ट/प्रोजेक्ट इंचार्ज से मटीरियल की जानकारी लें।
- आम आदमी को भी मौके पर रखे सामान को देखकर क्वॉलिटी का अंदाजा हो जाता है।
थर्ड पार्टी क्वॉलिटी चेक
- इस प्रक्रिया के अंतर्गत बिल्डर मिट्टी समेत सभी मटीरियल की क्वॉलिटी चेक कराता है।
- यह जांच प्राइवेट एजेंसियां निर्धारित मानकों के आधार पर करती हैं, जिन्हें मानना बिल्डर के लिए जरूरी होता है।
- सभी चीजों की जांच के बाद सर्टिफिकेट दिए जाते हैं, जिन्हें एक बार जरूर देख लेना चाहिए।
मल्टी स्टोरी फ्लैट
मल्टी स्टोरी फ्लैट भूकंपरोधी हैं या नहीं, यह जांच करने के ज्यादा मौके आपके पास नहीं होते। इसके लिए बिल्डर पर भरोसा कर लेना ही आमतौर पर उपलब्ध विकल्प होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, किसी भी फ्लैट में इंडिविजुअल रूप से यह नहीं जांचा जा सकता कि वह भूकंपरोधी है या नहीं? इसके लिए पूरी बिल्डिंग की ही टेस्टिंग की जाती है। हां, डेवलपर से बिल्डिंग और फ्लैट का स्ट्रक्चरल डिजाइन मांगकर उसे किसी एक्सपर्ट से चेक कराया जा सकता है।
क्या है स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग
स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग सिविल इंजीनियरिंग का एक हिस्सा है। इसके अंतर्गत किसी बिल्डिंग, ब्रिज, डैम या किसी अन्य निर्माण का स्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन का कार्य आता है। बिल्डिंग के स्ट्रक्चर को डिजाइन करते समय बिल्डिंग कैसे खड़ी होगी और इस पर कितना लोड आयेगा, इसका आंकलन सबसे पहले किया जाता है। बिल्डिंग कितने लोगों के लिए तैयार की जा रही है, यह बिल्डिंग कॉमर्शियल होगी या रेजीडेंशियल, जमीन किस तरह की है, मिट्टी की क्षमता कितनी है, उस स्थान पर भूकंप, बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कितना डर है आदि बातों को ध्यान में रखकर बिल्डिंग का डिजाइन तैयार किया जाता है। यह सारा कार्य स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के अंतर्गत आता है। इसके अंतर्गत कॉलम, बीम, फ्लोर, स्लैब आदि की मोटाई जैसे मुद्दों पर भी गंभीर रूप से ध्यान दिया जाता है। स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड और इंडियन बिल्डिंग कोड के मानकों का ध्यान रखा जाता है, जिससे मकान या बिल्डिंग सालों-साल सुरक्षित रहते हैं।
स्ट्रक्चरल इंजीनियर और सावधानियां
- घर या बिल्डिंग बनवाने से पहले ही नहीं, फ्लैट खरीदते वक्त भी स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सलाह लें।
- यह सलाह ड्रॉइंग डिटेल बनवाने तक ही सीमित न रहे। उस डिटेल पर पूरी तरह अमल भी करें।
- घर बनवाते वक्त/साइट पर स्ट्रक्चरल इंजीनियर से यह चेक करवाते रहें कि निर्माण सही हो रहा है या नहीं?
- आर्किटेक्ट और स्ट्रक्चरल इंजीनियर का आपसी मेल-जोल होना भी बहुत जरूरी है।
- अगर खुद घर बनवा रहे हैं तो कंस्ट्रक्शन पर आने वाली कुल लागत का अनुमान लगाना आसान हो जाता है।
गौरतलब है कि समय के अभाव और रेडीमेड के चलन ने मकानों का निर्माण खुद कराने की परंपरा को लगभग समाप्‍त सा कर दिया है। अधिकांश लोग निजी बिल्‍डर या डेवलेपमेंट अथॉरिटी द्वारा निर्मित कॉलोनियों में मकान खरीदने को प्राथमिकता देते हैं। निजी बिल्‍डर को अपनी कॉलोनी का डेवलेपमेंट अथॉरिटी से एप्रूवल लेने के लिए न सिर्फ सभी जरूरी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं बल्‍िक इसके लिए भारी-भरकम रकम भी देनी पड़ती है।
क्‍या कहते हैं बिल्‍डर
इस बारे में बिल्‍डर्स का कहना है कि यदि वह किसी प्रोजेक्‍ट का नियमानुसार एप्रूवल लेना चाहें तो कभी प्रोजेक्‍ट खड़ा ही नहीं कर सकते। फिर भूकंपरोधी इमारत बनाने के मामले में तो एप्रूवल के बाद भी गुणवत्‍ता को चेक करने का प्रावधान शामिल है।
उनका कहना है कि किसी इमारत को भूकंपरोधी बनाने के लिए सबसे अहम् और बेसिक चीज सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट की बात करें तो उसी पर कोई खरा नहीं उतरेगा।
शायद ही कोई बिल्‍डर हो जिसने एप्रूवल से पूर्व डेवलेपमेंट अथॉरिटी को नियमानुसार सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट दी हो जबकि एप्रूवल सबको दे दिया जाता है क्‍योंकि वहां एप्रूवल के लिए सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट की नहीं, कदम-कदम पर मोटे सुविधा शुल्‍क की दरकार होती है।
बिल्‍डर्स के कथन की पुष्‍टि इस बात से भी होती है कि अनेक प्रयास करने के बावजूद आज तक विकास प्राधिकरण का कोई अधिकारी इस मामले में मुंह खोलने को तैयार नहीं हुआ।
रही बात निर्माण कार्य शुरू हो जाने के बाद प्राधिकरण के अधिकारियों तथा तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा चेक करने की तो उसका फिर सवाल ही पैदा नहीं होता। पैदा होती है तो केवल हर सुविधा देने की कीमत जिसे वह इमारत के निर्माण की गति बढ़ने के साथ वसूलते रहते हैं।
विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा और उसके उपनगर वृंदावन में इन दिनों तमाम मल्‍टी स्‍टोरी बिल्‍िडंग्‍स का निर्माण कार्य जोरों पर है इनमें 3 मंजिला से लेकर 14 मंजिला इमारत तक शामिल हैं।
वृंदावन के हरिनिकुंज चौराहे पर जी. के. ग्रुप द्वारा गिर्राज आश्रम एवं ब्रजधाम अपार्टमेंट्स, छटीकरा रोड पर कोषदा बिल्‍डकॉन द्वारा मंदाकिनी, छटीकरा रोड पर ही पुष्‍पांजलि कन्‍सट्रक्‍शन प्रा.लि. द्वारा गोपनंदा, वहीं रुक्‍मणि विहार, कोजी ग्रुप द्वारा जीएलए यूनीवर्सिटी के पास गोकुल धाम, इस्‍कॉन मंदिर के पास हरेकृष्‍ण आर्किड,  रुक्‍मणि विहार के सामने कान्‍हा इंफ्राटेक द्वारा कान्‍हा हाइट्स का निर्माण किया जा रहा है जबकि मथुरा में बेरीवाल कन्‍सट्रक्‍शन ग्रुप द्वारा गोवर्धन रोड पर श्रीजी शिवासा, नीलकंठ ग्रुप द्वारा नेशनल हाईवे नम्‍बर दो से सटे गोवर्धन चौराहे पर हाईवे प्‍लेटीनियम, नेशनल हाईवे पर ही श्री ग्रुप द्वारा श्री राधा वैली, गोवर्धन रोड पर श्री राधा सिटी, जेएसआर ग्रुप द्वारा गनेशरा रोड पर नाले के लगभग ठीक ऊपर अशोका टावर, इसी रोड पर निधिवन हाइट्स, श्रीजी अपार्टमेंट्स आदि के अलावा ओमेक्‍स ग्रुप सहित कई अन्‍य डेवलपर्स की बहुमंजिला इमारतें निर्माणाधीन हैं तथा कई प्रस्‍तावित हैं।
इन बहुमंजिला इमारतों को बनाने की इजाजत किस स्‍तर से और किस तरह दी गई है, यह जानकारी देने वाला भी कोई नहीं अलबत्‍ता यह बात जरूर कही जा रही है कि मथुरा में 4 मंजिल से अधिक ऊंची इमारत को बनाने की परमीशन देने का अधिकार स्‍थानीय अधिकारियों के पास नहीं है।
जो बहुमंजिला इमारतें यहां बन रही हैं, उनमें से कोषदा बिल्‍डकॉन द्वारा निर्मित ''मंदाकिनी'' की छत पर तो हैलीपेड बनाने का प्रचार लम्‍बे समय से खुद उनके द्वारा अपनी प्रचार सामग्री में किया जा रहा है।
निर्माणाधीन इन तमाम हाइट्स में से कई तो भर्त की जमीन पर खड़ी की जा रही हैं यानि जहां ये बन रही हैं वह जगह पहले गड्ढे के रूप में थी जिसे बाद में मिट्टी भरवाकर समतल किया गया है जबकि इस तरह की जगह पर मल्‍टी स्‍टोरी बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सामान्‍य मकान बनाने से पहले भी भर्त करने की एक जटिल प्रक्रिया अपनाने के बाद ऐसी जगह के लिए परमीशन दी जाती है।
इन हालातों में ब्रज वसुंधरा पर जगह-जगह बन रहीं मौत की ये हाइट्स जमीन के अंदर होने वाली जरा सी हलचल से कब ताश के पत्‍तों की तरह ढह जायेंगी, कहना मुश्‍िकल है। तब इन ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं और उनमें रहने वालों का हाल क्‍या होगा, इसका अंदाज बखूबी लगाया जा सकता है लेकिन अभी तो सब उसी तरह आंखें बंद किये बैठे हैं जैसे बिल्‍ली द्वारा देख लिए जाने पर भी कबूतर इस झूठी उम्‍मीद में अपनी आंखें बंद कर लेता है कि उसके ऐसा कर लेने से शायद मौत टल जायेगी।
कबूतर फिर भी बेवश होता है लेकिन यहां तो सब-कुछ जानते हुए लोग मौत को खुला निमंत्रण दे रहे हैं जो एक प्रकार से आत्‍महत्‍या का प्रयास ही है। भ्रष्‍टाचार की रेत और गारे पर टिकी इन तमाम हाइट्स को मौत की हाइट्स में तब्‍दील होते उतनी भी देर नहीं लगेगी जितनी कि पलक झपकने में लगती है लेकिन फिलहाल तो तरक्‍की का पैमाना बन चुकी इन हाइट्स की बुनियाद में झांकने का वक्‍त किसी के पास नहीं। ये बात अलग है कि अन्‍ना हजारे द्वारा छेड़ी गई भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मुहिम में सब एकसाथ खड़े नजर आते हैं। भ्रष्‍टाचारी भी और उनके शिकार जनसामान्‍य भी।

1 टिप्पणी:

  1. शुभागमन...!
    आपके हिन्दी ब्लागिंग के अभियान को सफलतापूर्वक उन्नति की राह पर बनाये रखने में मददगार 'नजरिया' ब्लाग की पोस्ट नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव. और ऐसे ही अन्य ब्लागर्स उपयोगी लेखों के साथ ही अपने व अपने परिवार के स्वास्थ्योपयोगी जानकारियों से परिपूर्ण 'स्वास्थ्य-सुख' ब्लाग की पोस्ट बेहतर स्वास्थ्य की संजीवनी- त्रिफला चूर्ण एक बार अवश्य देखें और यदि इन दोनों ब्लाग्स में प्रस्तुत जानकारियां अपने मित्रों व परिजनों सहित आपको अपने जीवन में स्वस्थ व उन्नति की राह में अग्रसर बनाये रखने में मददगार लगे तो भविष्य की उपयोगिता के लिये इन्हें फालो भी अवश्य करें । धन्यवाद के साथ शुभकामनाओं सहित...

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