मंगलवार, 7 जून 2011

अनशन के खिलाफ कठपुतलियों की चाल

 मनमोहन सरकार द्वारा कोई ऐसा कदम उठाये जाने का अंदेशा हो रहा है जो इतिहास के पन्‍नों का काला अध्‍याय बन सकता है।
8 अप्रैल के अपने अंक में ''........धोखे में न रहें'' शीर्षक से हमने बतौर चेतावनी लिखा था- ''अगर कोई यह सोच रहा है कि अन्‍ना के आमरण अनशन से या उन्‍हें मिल रहे जनसमर्थन से सरकार डर गई है तो वह बहुत बड़ी गफलत में है। सरकार ऐसा दिखावा करके अन्‍ना को गुमराह करना चाहती है।
उसका आचरण ठीक वैसा ही है जैसा सरेआम चोरी करते पकड़े जाने वाले किसी व्‍यक्‍ित का होता है। वह अपने हाव-भावों से ऐसा दर्शाकर बच निकलना चाहता है कि उसने चोरी मजबूरी में की है। वह आदतन चोर नहीं है। भीड़ में हर जगह कुछ ऐसे व्‍यक्‍ित अवश्‍य मिल जाते हैं जिन्‍हें चोर की बातों पर भरोसा होता है और वह उसके द्वारा बताई गई मजबूरी से सहमत होते हैं। बस यही लोग उस चोर को जीवनदान देने में सहायक सिद्ध होते हैं।
मनमोहन सरकार कुछ यही करना चाहती है।''
हमारी उक्‍त चेतावनी आज न केवल पूरी तरह सही साबित हो रही है बल्‍िक अन्‍ना हजारे व उनकी टीम भी कह रही है कि हमारे साथ धोखा हुआ है। सरकार की नीयत ठीक नहीं है।
4 जून से अनशन करने पर आमादा बाबा रामदेव को भी अन्‍ना अब सलाह दे रहे हैं कि वह सरकार के झांसे में न आयें।
यही नहीं, सरकार ने साजिशन फूट डालो और राज करो की जिस नीति को अख्‍ितयार कर भ्रष्‍टाचार के खिलाफ आंदोलन की हवा निकालने का प्रयास किया था, अन्‍ना ने अपने एक बयान से उसका रुख मोड़ दिया। अन्‍ना के इस एलान ने कि वह निर्विवाद रूप से बाबा के साथ हैं और 5 जून को उनके अनशन में शामिल भी होंगे, सरकार की ही हवा निकाल दी।
सच तो यह है कि मनमोहन सरकार के पंचरत्‍नों की बुद्धि भी काम नहीं कर रही।
रामायण में साफ-साफ लिखा है- जाकौं प्रभु दारुण दु:ख देईं, ताकी मति पहले हर लेहीं।
लगता है कि मनमोहन सरकार पर रामचरित मानस का यह दोहा शीघ्र ही सटीक बैठने वाला है क्‍योंकि वह हड़बड़ाहट व बौखलाहट में ऐसे कदम उठाने की सोचने लगी है जो उसके साथ-साथ कांग्रेस की भी लुटिया डुबोने वाले साबित होंगे।
दरअसल मनमोहन सरकार में कुछ ऐसे जयचंद हैं जो अपने स्‍वार्थों की सिद्धि तथा महत्‍वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सरकार को वो कदम उठाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिन्‍हें आत्‍मघाती कहा जा सकता है।
ऐसा नहीं कि सरकार उनकी मंशा से अनभिज्ञ हो लेकिन सरकार के पास अब इतना नैतिक साहस भी नहीं बचा कि बेलगाम हो चुके इन जयचंदों पर नियंत्रण रख सके। इसीलिए एक ओर मनमोहन सिंह, बाबा रामदेव के सामने साष्‍टांग दण्‍डवत करने के लिए अपनी केबिनेट के दिग्‍गज मंत्रियों को भेजते हैं तो दूसरी ओर दिग्‍विजय सिंह बाबा को व्‍यापारी बताते हुए कहते हैं कि सरकार को बाबा से डर नहीं लगता। अगर सरकार डरी होती तो बाबा को जेल में डाल देती।
कड़वा सच यह है कि दिग्‍विजय सिंह की जुबान से निकले ये शब्‍द ही सरकारी मंशा हैं। ये बात अलग है कि सरकार उन्‍हें अब तक अपनी जुबान पर ला नहीं पायी है। हो सकता है कि इसके पीछे भी ऐसी कोई नीति छिपी हो कि मंत्र कोई पढ़े और बांबी में हाथ कोई डाले।
बाबा रामदेव हों या अन्‍ना हजारे, उनके अनुयायी हों अथवा देश की आम जनता सबको एक बात अच्‍छी तरह समझ लेनी चाहिए कि आज की तारीख में मनमोहन सरकार एक कठपुतली सरकार बनकर रह गई है। उसकी डोर किसी और के हाथ में है। पर्दे के पीछे से कठपुतलियों की डोर जितनी खींची जाती है, उतनी ही हलचल इनमें होती है। पर्दे के पीछे बैठे इन लोगों की उंगलियों के इशारे से ही सरकार के साथ-साथ संगठन की पुतलियां भी स्‍पंदित होती हैं। फिर वो चाहे मनमोहन सिंह हों या दिग्‍विजय सिंह।
मनमोहन सिंह की समस्‍या यह है कि वह अपना आत्‍मबल पूरी तरह खो चुके हैं और उनकी सरकार में शामिल लोग तथा वो लोग जिनकी उंगलियां पर्दे के पीछे से कमाल दिखा रही हैं, सब इसी बात का फायदा उठाना चाहते हैं।
उनकी दृष्‍टि से वह एक तीर के जरिये कई निशाने साधने जा रहे हैं लेकिन शायद उन्‍हें इस बात का इल्‍म नहीं हुआ कि 63 सालों से चली जा रही चालें अब 64वें साल में जनता को समझ आने लगी हैं।
इस सबके बावजूद मनमोहन सरकार द्वारा कोई ऐसा कदम उठाये जाने का अंदेशा हो रहा है जो इतिहास के पन्‍नों का काला अध्‍याय बन सकता है।
मनमोहन सरकार की जरा सी चूक इसके लिए काफी होगी लेकिन लगता नहीं कि वह चूक करने से चूकेगी।
जो भी हो, बाबा रामदेव व अन्‍ना हजारे के साथ-साथ उनके अनुयायियों एवं देश की जनता के लिए भी यह परीक्षा की घड़ी है। इस परीक्षा में देश पास होता है या फिरंगियों की कार्बन कॉपियां, यह तो वक्‍त ही बतायेगा लेकिन इतना तय है कि देश के नौजवानों को कुछ तय करने तथा किसी नतीजे पर पहुंचने का अवसर अवश्‍य मिलेगा। 

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