4/5 जून 2011 की रात दिल्ली के रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसने 04 जून 1989 को चीन की राजधानी बीजिंग के ''तिएन आनमेन चौक'' पर चाइनीज सत्ता द्वारा की गई बर्बरता का स्मरण करा दिया। राजधानी बीजिंग के तिएन आनमेन चौक पर 1989 में इसी दिन चीन की सेना ने अंधाधुंध गोलियां चला कर क़रीब सात सप्ताह से बैठे ''सैकड़ों प्रदर्शनकारियों'' को मार डाला था। शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे इन प्रदर्शनकारियों में ज़्यादातर विश्वविद्यालयों के छात्र शामिल थे।
चीन की सरकार इन प्रदर्शनकारियों को चेतावनी दे रही थी। महज़ एक दिन पहले ही तानाशाह शासकों ने कहा था कि "सामाजिक अस्थिरता" फैलाने वाले छात्रों के खिलाफ़ वो जो भी ज़रूरी लगेगा करेंगे, पर किसी को ये उम्मीद नहीं थी की हर दिशा से सेना टैंको के साथ हमला कर देगी। इस बर्बर हमले के बाद आम लोगों ने किसी तरह लोगों को साईकिल रिक्शों पर लाद-लाद कर अस्पताल पहुंचाया था।
चीन सरकार की इस कार्यवाही पर दुनियाभर के देशों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने जहां चीनी क़दम की कड़ी भर्त्सना की वहीं ब्रितानी प्रधानमंत्री मार्गरेट थ्रेचर ने कहा था कि वो "हतप्रभ''' और ''सदमे'' में हैं।
भारत न तो चीन है और ना ही यहां चीन जैसी शासन व्यवस्था है, बावजूद इसके शासकों की सोच में इतनी समानता कैसे ? एक को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का गौरव हासिल है तो दूसरे को सबसे बड़ी तानाशाही का।
दरअसल इस समानता के मूल में वो प्रवृत्ति है, जो हर शासक वर्ग में पायी जाती है। फिर चाहे बात कहीं की हो।
पिछले 63 सालों से लोकतंत्र का ढोल अपने गले में लटकाकर भारत के तथाकथित भाग्य विधाता, आमजन को सिर्फ गुमराह ही करते रहे हैं जबकि असलियत वही है जिसका प्रदर्शन कल रात बाबा रामदेव के अनशन स्थल पर देखने को मिला। शांतिपूर्ण प्रदर्शन को पुलिसिया बर्बरता से कुचलने की न तो यह इस देश की कोई पहली घटना है और ना आखिरी होगी। इससे पहले भी अनेक बार सत्ता के इशारे पर पुलिस यह तरीका अपनाती रही है, आगे भी अपनाती रहेगी।
अपने अहिंसक व शांतिपूर्ण सत्याग्रहों से विश्व को प्रेरित करने वाले मोहनदास कर्मचंद गांधी के इस देश में कहां ऐसी कमी रह गई कि स्वतंत्रता के 6 दशक बाद तक उसके शासक फिरंगियों की छायाप्रति मालूम पड़ रहे हैं।
जिस गांधी बाबा का नाम आज पूरी दुनिया में इसलिए सम्मान पूर्वक लिया जाता है क्योंकि उन्होंने कभी हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया लेकिन उनके अपने देश की सरकार निहत्थे सत्याग्रहियों पर बर्बर लाठीचार्ज करवा रही है। संसद से लेकर सरकारी कार्यालयों तक में गांधीजी की तस्वीरें लटका कर शासन करने वालों की कथनी और करनी के इस फर्क ने क्या गोरे शासकों को भी पीछे नहीं छोड़ दिया ?
बाबा रामदेव का अनशन भ्रष्टाचार तथा भ्रष्टाचारियों के खिलाफ था। वो चाहते हैं कि भ्रष्टाचारियों द्वारा विदेशी बैंकों में जमा किये गये अकूत काले धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित किया जाए और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त सजा का प्राविधान हो।
कितने आश्चर्य की बात है कि बाबा रामदेव के इस मामले में उठ खड़े होने के बाद से उन्हें घेरने की लगातार कोशिशें की जाने लगीं। कोई उन्हें व्यापारी बता रहा है तो कोई आरएसएस का एजेंट, कोई कह रहा है कि बाबा को अपना काम करना चाहिए और कोई उन्हें नसीहत दे रहा है कि वह सत्याग्रह जैसे कदम न उठायें तो ही बेहतर है।
अगर यह मान लिया जाए कि बाबा रामदेव व्यापारी हैं और वह अपने योग तथा अपनी आयुर्वेदिक चिकित्सा का व्यापार कर रहे हैं तो भी क्या इस कारण उनसे उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को छीना जा सकता है। क्या उनके ऐसे अधिकारों का हनन किया जा सकता है जो संविधान ने देश के हर नागरिक को दे रखे हैं।
अगर बाबा रामदेव अपने व्यापार में कोई हेरफेर कर रहे हैं, अगर वह गलत तरीकों से धन अर्जित कर रहे हैं तो उनके खिलाफ अनर्गल प्रलाप करने वाले कांग्रेस के नुमाइंदे तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार हाथ पर हाथ रखकर क्यों बैठी है। क्यों वह इतने दिनों से केवल विषवमन करा रही है लेकिन कोई ठोस कार्यवाही अमल में नहीं ला रही।
बाबा रामदेव द्वारा सत्याग्रह शुरू करने का ऐलान करने के बाद से लेकर आजतक सर्वाधिक आश्चर्यजनक है कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह का आचरण। दिग्विजय सिंह लगातार बाबा रामदेव को न केवल निशाने पर ले रहे हैं बल्िक अपशब्दों तथा अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए बेतुके तर्क प्रस्तुत करते हैं और समूची कांग्रेस तमाशबीन बनी हुई है।
कल की घटना के बाद दिग्विजय सिंह ने बाबा रामदेव को ठग घोषित कर दिया है। उनका कहना है कि बाबा के साथ वही किया गया है जो एक ठग के साथ किया जाना चाहिए था।
यहां सवाल यह पैदा होता है कि क्या दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने व्यवस्था की सारी श्ाक्ितयों का केन्द्र बना दिया है। उनके बयानों से ऐसा लगता है जैसे शासन के लिए जरूरी सारी शक्ितयां उनमें निहित हों। विधायिका, न्यायपालिका तथा कार्यपालिका सब-कुछ उनके अधीन हो। संभवत: इसीलिए वह बाबा रामदेव को जेल में ठूंसने की बात से लेकर उन्हें ठग घोषित करने तक में जरा भी नहीं हिचकिचाते।
बेलगाम दिग्विजय सिंह का आचरण कुछ ऐसा आभास करा रहा है जैसे देश के सारे भ्रष्टाचारियों ने और उन्होंने जिनका अकूत कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है, उन्हें अपना मुखिया निर्वाचित कर दिया हो और अपने बचाव की जिम्मेदारी उन पर छोड़ रखी हो।
बाबा रामदेव के अनशन पर बैठने के बाद से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी तथा पार्टी के युवराज राहुल गांधी की चुप्पी भी काबिले गौर है। चंद रोज पहले ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल में हुई घटना पर हंगामा काटने तथा अपने खिलाफ की गई पुलिसिया कार्यवाही पर प्रदेशभर में आंदोलन कराने वाले राहुल गांधी अब पुलिस व सरकार के इस नंगे नाच पर क्या बोलेंगे, कुछ बोलेंगे भी या नहीं, यह तो वक्त बतायेगा अलबत्ता उनके मुंह से कुछ भी बोले जाने का इंतजार सब बेसब्री से कर रहे हैं।
राहुल गांधी कुछ बोलें या ना बोलें, मनमोहन सिंह कोई सफाई दें या ना दें और सोनिया गांधी की प्रतिक्रिया कुछ भी हो लेकिन पिछले तीन दिनों के घटनाक्रम और उससे पूर्व अन्ना हजारे के अनशन को तुड़वाने के लिए अपनाई गई रणनीति ने एकबात पूरी तरह स्पष्ट कर दी है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की मंशा भ्रष्टाचारियों को किसी भी तरह महफूज रखने की है।
मनमोहन सरकार के क्रियाकलाप जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी के इस आरोप को बल प्रदान करते हैं कि उन्हें मालूम है सोनिया गांधी का कितना पैसा किन-किन देशों की बैंकों में जमा है।
यही नहीं, सरकार का व्यवहार घोड़ा व्यवसायी हसन अली व प्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी के कथन की भी पुष्टि करता है। हसन अली ने बताया था कि महाराष्ट्र के 3 मुख्यमंत्रियों का पैसा उनके मार्फत जमा है और रामजेठमलानी ने कहा था कि उन्हें कालाधन जमा करने वालों के नाम मालूम हैं।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के भ्रष्टाचारियों से गहरे सम्बन्धों का संकेत इस बात से भी मिलता है कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार आदेशित किये जाने के बावजूद कालेधन के रूप में देश की सम्पत्ति विदेशी बैंकों के अंदर जमा करने वालों के नाम तक उजागर करने को तैयार नहीं है।
अब सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा प्रश्न यही पैदा होता है कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना इस देश में अपराध है, क्या वाकई इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है या पिछले 63 सालों से निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा है।
दिल्ली के रामलीला मैदान पर कल रात हुई घटना के संदर्भ में पुलिसिया बर्बरता को लेकर एक युवक की यह टिप्पणी बहुत-कुछ कहती है कि व्यवस्था खुद हमें आतंकवादी बनने की प्रेरणा दे रही है। हो सकता है कि लोगों को इस युवक के शब्द हताशा व पीड़ा से उपजी भावनात्मक प्रतिक्रिया लगे हों लेकिन सच्चाई यह है कि हालात ऐसे ही हैं।
भूखे-प्यासे सत्याग्रहियों पर अचानक बिना किसी कारण मध्यरात्रि में हमलावर होकर टूट पड़ना, किसी की भी सोच को प्रभावित करने के लिए काफी है। वो भी तब जबकि सत्याग्रहियों में वृद्धजन, महिलाएं तथा बच्चे तक शामिल हों।
जनता द्वारा जनता के लिए चुनी गई सरकार अगर अपने ही देशवाशियों पर इस कदर अत्याचार करेगी, तो उसके प्रति भरोसा रहेगा भी कैसे।
नि:संदेह आज देश की स्थितियां विस्फोटक हो चुकी हैं। लोकतंत्र के तीनों संवैधानिक स्तंभ और चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया सबके अंदर घुन लग चुका है। फर्क केवल इतना है कि कोई पूरी तरह घुन चुका है तो किसी का बड़ा हिस्सा उसकी चपेट में है। न्याय के लिए जनसामान्य को दर-दर भटकना पड़ता है लेकिन उसकी सुनवाई कहीं नहीं होती। कोई सरकारी महकमा ऐसा नहीं है जिसमें भ्रष्टाचार न समाया हो। हर जगह सिर्फ और सिर्फ पैसों का बोलबाला है। जिसकी जेब में रिश्वत देने को पैसा नहीं है, उसके लिए न्याय मिलना असंभव है।
न्याय की अंतिम उम्मीद और आखिरी पायदान तक से अधिकांश लोगों को निराश लौटना पड़ता है जबकि वहां तक पहुंच पाना ही हर किसी के वश की बात नहीं।
बाबा रामदेव के आंदोलन को बर्बर तरीके से कुचल देने की बात यदि ना भी की जाए तो आये दिन शासकों के इशारे पर देशभर में कहीं न कहीं इसी प्रकार पुलिस का दुरुपयोग किया जाता है। किसी भी सभ्य समाज में महिला, वृद्ध और बच्चों पर अकारण लाठियां भांजना उचित नहीं कहा जा सकता लेकिन हमारी सरकारें कहीं न कहीं हर रोज यह घिनौना कृत्य करवाती हैं।
बाबा रामदेव का सत्याग्रह अब कौन सा रूप अख्ितयार करेगा तथा अन्ना हजारे व उनकी टीम अब अपने साथ हुए धोखे से किस तरह निपटेगी, यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक बात जो सरकार के रवैये ने तय कर दी है, वह यह है कि कल तक दुनिया के तमाम देशों को अपने सबसे बड़े लोकतंत्र से नसीहत देने वाला मुल्क और उसके शासक कैसे खुद को गांधी का अनुयायी कहेंगे। किस मुंह से वह अपने पड़ोसी मुल्कों की तानाशाही पर टिप्पणी करेंगे।
यदि यही हाल रहा तो तय समझिये कि जिस तरह हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को आतंकवाद पर उसकी दोगली नीति चट करती जा रही है और आज उसके नेता विश्व में अपना मुंह दिखाने लायक तक नहीं हैं, ठीक इसी तरह एक दिन हमारे देश को भ्रष्टाचार पर हमारे शासकों द्वारा अपनायी जा रही दोमुंही नीति बर्बाद कर देगी और हम भ्रष्टाचार की लिस्ट के टॉप-10 में नहीं, टॉप पर होंगे।
केवल इतना ही नहीं, भ्रष्टाचार के कारण हमारा मुल्क भी उसी तरह अराजकता का शिकार होगा, जिस तरह आज दुनिया के तमाम दूसरे मुल्क विभिन्न कारणों से हो चुके हैं।
चंद वर्षों में देश को विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ित बनाने का सपना दिखाने वाले हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री का नाम इतिहास के उन पन्नों में दर्ज होगा, जिन्हें हमारी आने वाली पीढ़ियां कभी पलटकर देखना भी गवारा नहीं करेंगी।
इस पूरे घटनाक्रम से भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने वाले बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे जैसे लोगों को भी एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि केवल जनसमर्थन से सरकार की कुटिल चालों को मात दे पाना संभव नहीं है, उसके लिए चाणक्य नीति से सबक लेना होगा। उसे आत्मसात करना होगा कि किस तरह चाणक्य ने सत्ता के ही अंगों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर तब के आतातायी, भ्रष्ट व अय्याश घनानंद के शासन का अंत किया था।
भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ी हुई आम जनता को भी यह बात समझनी होगी कि वर्षों से देश तथा देश के ख्ाजाने पर कुण्डली मारे बैठे फिरंगियों के ही उत्राधिकारी आसानी से हार मानने वाले नहीं हैं।
उन्हें इस बात पर भी गौर करना होगा कि मात्र सत्ता परिवर्तन से इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता क्योंकि पिछले 63 सालों से सत्ता पर काबिज होने वाली सूरतें बेशक बदलती रही हो लेकिन सीरतें नहीं बदलीं। आज जो लोग उनके साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं, कल यदि वह सत्ता पर काबिज होते हैं तो वह भी पुलिस का दुरुपयोग करने से नहीं चूकेंगे। भ्रष्टाचार से मुक्ित की कल्पना भी तभी की जा सकती है जब समूची व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन का शंखनाद किया जाए न कि सिर्फ सत्ता परिवर्तन का।
चीन की सरकार इन प्रदर्शनकारियों को चेतावनी दे रही थी। महज़ एक दिन पहले ही तानाशाह शासकों ने कहा था कि "सामाजिक अस्थिरता" फैलाने वाले छात्रों के खिलाफ़ वो जो भी ज़रूरी लगेगा करेंगे, पर किसी को ये उम्मीद नहीं थी की हर दिशा से सेना टैंको के साथ हमला कर देगी। इस बर्बर हमले के बाद आम लोगों ने किसी तरह लोगों को साईकिल रिक्शों पर लाद-लाद कर अस्पताल पहुंचाया था।
चीन सरकार की इस कार्यवाही पर दुनियाभर के देशों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने जहां चीनी क़दम की कड़ी भर्त्सना की वहीं ब्रितानी प्रधानमंत्री मार्गरेट थ्रेचर ने कहा था कि वो "हतप्रभ''' और ''सदमे'' में हैं।
भारत न तो चीन है और ना ही यहां चीन जैसी शासन व्यवस्था है, बावजूद इसके शासकों की सोच में इतनी समानता कैसे ? एक को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का गौरव हासिल है तो दूसरे को सबसे बड़ी तानाशाही का।
दरअसल इस समानता के मूल में वो प्रवृत्ति है, जो हर शासक वर्ग में पायी जाती है। फिर चाहे बात कहीं की हो।
पिछले 63 सालों से लोकतंत्र का ढोल अपने गले में लटकाकर भारत के तथाकथित भाग्य विधाता, आमजन को सिर्फ गुमराह ही करते रहे हैं जबकि असलियत वही है जिसका प्रदर्शन कल रात बाबा रामदेव के अनशन स्थल पर देखने को मिला। शांतिपूर्ण प्रदर्शन को पुलिसिया बर्बरता से कुचलने की न तो यह इस देश की कोई पहली घटना है और ना आखिरी होगी। इससे पहले भी अनेक बार सत्ता के इशारे पर पुलिस यह तरीका अपनाती रही है, आगे भी अपनाती रहेगी।
अपने अहिंसक व शांतिपूर्ण सत्याग्रहों से विश्व को प्रेरित करने वाले मोहनदास कर्मचंद गांधी के इस देश में कहां ऐसी कमी रह गई कि स्वतंत्रता के 6 दशक बाद तक उसके शासक फिरंगियों की छायाप्रति मालूम पड़ रहे हैं।
जिस गांधी बाबा का नाम आज पूरी दुनिया में इसलिए सम्मान पूर्वक लिया जाता है क्योंकि उन्होंने कभी हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया लेकिन उनके अपने देश की सरकार निहत्थे सत्याग्रहियों पर बर्बर लाठीचार्ज करवा रही है। संसद से लेकर सरकारी कार्यालयों तक में गांधीजी की तस्वीरें लटका कर शासन करने वालों की कथनी और करनी के इस फर्क ने क्या गोरे शासकों को भी पीछे नहीं छोड़ दिया ?
बाबा रामदेव का अनशन भ्रष्टाचार तथा भ्रष्टाचारियों के खिलाफ था। वो चाहते हैं कि भ्रष्टाचारियों द्वारा विदेशी बैंकों में जमा किये गये अकूत काले धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित किया जाए और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त सजा का प्राविधान हो।
कितने आश्चर्य की बात है कि बाबा रामदेव के इस मामले में उठ खड़े होने के बाद से उन्हें घेरने की लगातार कोशिशें की जाने लगीं। कोई उन्हें व्यापारी बता रहा है तो कोई आरएसएस का एजेंट, कोई कह रहा है कि बाबा को अपना काम करना चाहिए और कोई उन्हें नसीहत दे रहा है कि वह सत्याग्रह जैसे कदम न उठायें तो ही बेहतर है।
अगर यह मान लिया जाए कि बाबा रामदेव व्यापारी हैं और वह अपने योग तथा अपनी आयुर्वेदिक चिकित्सा का व्यापार कर रहे हैं तो भी क्या इस कारण उनसे उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को छीना जा सकता है। क्या उनके ऐसे अधिकारों का हनन किया जा सकता है जो संविधान ने देश के हर नागरिक को दे रखे हैं।
अगर बाबा रामदेव अपने व्यापार में कोई हेरफेर कर रहे हैं, अगर वह गलत तरीकों से धन अर्जित कर रहे हैं तो उनके खिलाफ अनर्गल प्रलाप करने वाले कांग्रेस के नुमाइंदे तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार हाथ पर हाथ रखकर क्यों बैठी है। क्यों वह इतने दिनों से केवल विषवमन करा रही है लेकिन कोई ठोस कार्यवाही अमल में नहीं ला रही।
बाबा रामदेव द्वारा सत्याग्रह शुरू करने का ऐलान करने के बाद से लेकर आजतक सर्वाधिक आश्चर्यजनक है कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह का आचरण। दिग्विजय सिंह लगातार बाबा रामदेव को न केवल निशाने पर ले रहे हैं बल्िक अपशब्दों तथा अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए बेतुके तर्क प्रस्तुत करते हैं और समूची कांग्रेस तमाशबीन बनी हुई है।
कल की घटना के बाद दिग्विजय सिंह ने बाबा रामदेव को ठग घोषित कर दिया है। उनका कहना है कि बाबा के साथ वही किया गया है जो एक ठग के साथ किया जाना चाहिए था।
यहां सवाल यह पैदा होता है कि क्या दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने व्यवस्था की सारी श्ाक्ितयों का केन्द्र बना दिया है। उनके बयानों से ऐसा लगता है जैसे शासन के लिए जरूरी सारी शक्ितयां उनमें निहित हों। विधायिका, न्यायपालिका तथा कार्यपालिका सब-कुछ उनके अधीन हो। संभवत: इसीलिए वह बाबा रामदेव को जेल में ठूंसने की बात से लेकर उन्हें ठग घोषित करने तक में जरा भी नहीं हिचकिचाते।
बेलगाम दिग्विजय सिंह का आचरण कुछ ऐसा आभास करा रहा है जैसे देश के सारे भ्रष्टाचारियों ने और उन्होंने जिनका अकूत कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है, उन्हें अपना मुखिया निर्वाचित कर दिया हो और अपने बचाव की जिम्मेदारी उन पर छोड़ रखी हो।
बाबा रामदेव के अनशन पर बैठने के बाद से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी तथा पार्टी के युवराज राहुल गांधी की चुप्पी भी काबिले गौर है। चंद रोज पहले ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल में हुई घटना पर हंगामा काटने तथा अपने खिलाफ की गई पुलिसिया कार्यवाही पर प्रदेशभर में आंदोलन कराने वाले राहुल गांधी अब पुलिस व सरकार के इस नंगे नाच पर क्या बोलेंगे, कुछ बोलेंगे भी या नहीं, यह तो वक्त बतायेगा अलबत्ता उनके मुंह से कुछ भी बोले जाने का इंतजार सब बेसब्री से कर रहे हैं।
राहुल गांधी कुछ बोलें या ना बोलें, मनमोहन सिंह कोई सफाई दें या ना दें और सोनिया गांधी की प्रतिक्रिया कुछ भी हो लेकिन पिछले तीन दिनों के घटनाक्रम और उससे पूर्व अन्ना हजारे के अनशन को तुड़वाने के लिए अपनाई गई रणनीति ने एकबात पूरी तरह स्पष्ट कर दी है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की मंशा भ्रष्टाचारियों को किसी भी तरह महफूज रखने की है।
मनमोहन सरकार के क्रियाकलाप जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी के इस आरोप को बल प्रदान करते हैं कि उन्हें मालूम है सोनिया गांधी का कितना पैसा किन-किन देशों की बैंकों में जमा है।
यही नहीं, सरकार का व्यवहार घोड़ा व्यवसायी हसन अली व प्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी के कथन की भी पुष्टि करता है। हसन अली ने बताया था कि महाराष्ट्र के 3 मुख्यमंत्रियों का पैसा उनके मार्फत जमा है और रामजेठमलानी ने कहा था कि उन्हें कालाधन जमा करने वालों के नाम मालूम हैं।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के भ्रष्टाचारियों से गहरे सम्बन्धों का संकेत इस बात से भी मिलता है कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार आदेशित किये जाने के बावजूद कालेधन के रूप में देश की सम्पत्ति विदेशी बैंकों के अंदर जमा करने वालों के नाम तक उजागर करने को तैयार नहीं है।
अब सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा प्रश्न यही पैदा होता है कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना इस देश में अपराध है, क्या वाकई इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है या पिछले 63 सालों से निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा है।
दिल्ली के रामलीला मैदान पर कल रात हुई घटना के संदर्भ में पुलिसिया बर्बरता को लेकर एक युवक की यह टिप्पणी बहुत-कुछ कहती है कि व्यवस्था खुद हमें आतंकवादी बनने की प्रेरणा दे रही है। हो सकता है कि लोगों को इस युवक के शब्द हताशा व पीड़ा से उपजी भावनात्मक प्रतिक्रिया लगे हों लेकिन सच्चाई यह है कि हालात ऐसे ही हैं।
भूखे-प्यासे सत्याग्रहियों पर अचानक बिना किसी कारण मध्यरात्रि में हमलावर होकर टूट पड़ना, किसी की भी सोच को प्रभावित करने के लिए काफी है। वो भी तब जबकि सत्याग्रहियों में वृद्धजन, महिलाएं तथा बच्चे तक शामिल हों।
जनता द्वारा जनता के लिए चुनी गई सरकार अगर अपने ही देशवाशियों पर इस कदर अत्याचार करेगी, तो उसके प्रति भरोसा रहेगा भी कैसे।
नि:संदेह आज देश की स्थितियां विस्फोटक हो चुकी हैं। लोकतंत्र के तीनों संवैधानिक स्तंभ और चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया सबके अंदर घुन लग चुका है। फर्क केवल इतना है कि कोई पूरी तरह घुन चुका है तो किसी का बड़ा हिस्सा उसकी चपेट में है। न्याय के लिए जनसामान्य को दर-दर भटकना पड़ता है लेकिन उसकी सुनवाई कहीं नहीं होती। कोई सरकारी महकमा ऐसा नहीं है जिसमें भ्रष्टाचार न समाया हो। हर जगह सिर्फ और सिर्फ पैसों का बोलबाला है। जिसकी जेब में रिश्वत देने को पैसा नहीं है, उसके लिए न्याय मिलना असंभव है।
न्याय की अंतिम उम्मीद और आखिरी पायदान तक से अधिकांश लोगों को निराश लौटना पड़ता है जबकि वहां तक पहुंच पाना ही हर किसी के वश की बात नहीं।
बाबा रामदेव के आंदोलन को बर्बर तरीके से कुचल देने की बात यदि ना भी की जाए तो आये दिन शासकों के इशारे पर देशभर में कहीं न कहीं इसी प्रकार पुलिस का दुरुपयोग किया जाता है। किसी भी सभ्य समाज में महिला, वृद्ध और बच्चों पर अकारण लाठियां भांजना उचित नहीं कहा जा सकता लेकिन हमारी सरकारें कहीं न कहीं हर रोज यह घिनौना कृत्य करवाती हैं।
बाबा रामदेव का सत्याग्रह अब कौन सा रूप अख्ितयार करेगा तथा अन्ना हजारे व उनकी टीम अब अपने साथ हुए धोखे से किस तरह निपटेगी, यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक बात जो सरकार के रवैये ने तय कर दी है, वह यह है कि कल तक दुनिया के तमाम देशों को अपने सबसे बड़े लोकतंत्र से नसीहत देने वाला मुल्क और उसके शासक कैसे खुद को गांधी का अनुयायी कहेंगे। किस मुंह से वह अपने पड़ोसी मुल्कों की तानाशाही पर टिप्पणी करेंगे।
यदि यही हाल रहा तो तय समझिये कि जिस तरह हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को आतंकवाद पर उसकी दोगली नीति चट करती जा रही है और आज उसके नेता विश्व में अपना मुंह दिखाने लायक तक नहीं हैं, ठीक इसी तरह एक दिन हमारे देश को भ्रष्टाचार पर हमारे शासकों द्वारा अपनायी जा रही दोमुंही नीति बर्बाद कर देगी और हम भ्रष्टाचार की लिस्ट के टॉप-10 में नहीं, टॉप पर होंगे।
केवल इतना ही नहीं, भ्रष्टाचार के कारण हमारा मुल्क भी उसी तरह अराजकता का शिकार होगा, जिस तरह आज दुनिया के तमाम दूसरे मुल्क विभिन्न कारणों से हो चुके हैं।
चंद वर्षों में देश को विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ित बनाने का सपना दिखाने वाले हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री का नाम इतिहास के उन पन्नों में दर्ज होगा, जिन्हें हमारी आने वाली पीढ़ियां कभी पलटकर देखना भी गवारा नहीं करेंगी।
इस पूरे घटनाक्रम से भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने वाले बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे जैसे लोगों को भी एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि केवल जनसमर्थन से सरकार की कुटिल चालों को मात दे पाना संभव नहीं है, उसके लिए चाणक्य नीति से सबक लेना होगा। उसे आत्मसात करना होगा कि किस तरह चाणक्य ने सत्ता के ही अंगों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर तब के आतातायी, भ्रष्ट व अय्याश घनानंद के शासन का अंत किया था।
भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ी हुई आम जनता को भी यह बात समझनी होगी कि वर्षों से देश तथा देश के ख्ाजाने पर कुण्डली मारे बैठे फिरंगियों के ही उत्राधिकारी आसानी से हार मानने वाले नहीं हैं।
उन्हें इस बात पर भी गौर करना होगा कि मात्र सत्ता परिवर्तन से इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता क्योंकि पिछले 63 सालों से सत्ता पर काबिज होने वाली सूरतें बेशक बदलती रही हो लेकिन सीरतें नहीं बदलीं। आज जो लोग उनके साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं, कल यदि वह सत्ता पर काबिज होते हैं तो वह भी पुलिस का दुरुपयोग करने से नहीं चूकेंगे। भ्रष्टाचार से मुक्ित की कल्पना भी तभी की जा सकती है जब समूची व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन का शंखनाद किया जाए न कि सिर्फ सत्ता परिवर्तन का।
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