भ्रष्टाचार के खिलाफ ''अन्ना'' की ''अगस्त क्रांति'' के बीच मैं केन्द्र सरकार से कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूं। हो सकता है कि मेरे प्रश्न आम जनता को मूर्खतापूर्ण लगें लेकिन मुझे यकीन है कि सरकार उन पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के लिए सहमत हो सकती है क्योंकि यह सभी प्रश्न उसके अपने माननीयों से ताल्लुक रखते हैं।
प्रश्न कुछ इस तरह हैं- क्या सरकार के पास ''भारत रत्न'' सीमित संख्या में हैं ?
क्या एकसाथ और प्रति वर्ष ''भारत रत्न'' दिये जाने की कोई संख्या पूर्व निर्धारित है ?
क्या किसी क्षेत्र विशेष के लोगों को बहुतायत में ''भारत रत्न'' दिये जाने पर पाबंदी है ?
इन प्रश्नों के संभावित जवाबों को देखते हुए मैं सरकार से यह गुजारिश करता हूं कि यदि सरकार के पास पर्याप्त ''भारत रत्न'' नहीं हैं तो वह ''बल्क'' में उनका निर्माण करा ले। यदि एकसाथ तथा प्रतिवर्ष ''भारत रत्न'' दिये जाने के लिए कोई संख्या पहले से निर्धारित है तो कृपया तत्काल प्रभाव से ऐसी सभी शर्तों को निरस्त कर दे और यदि किसी क्षेत्र विशेष के लोगों को बहुतायत में ''भारत रत्न'' दिये जाने पर पाबंदी हो तो ऐसी पाबंदी खत्म कर दी जाए।
अब आपके मन में इस आशय का प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, मैं सरकार से ऐसी गुजारिश किसलिए कर रहा हूं ?
दरअसल मेरे द्वारा ऐसा कहने तथा सरकार से गुजारिश करने की खास वजह है, और वह वजह यह है कि अन्ना की अगस्त क्रांति के शंखनाद ने बेशक अभी सरकार को जागृत न किया हो परन्तु ऐसे माननीयों को सामने लाने का कार्य अवश्य कर दिया है जो नि:संदेह ''भारत रत्न'' पाने के हकदार हैं लिहाजा उन सभी को तत्काल प्रभाव से ''भारत रत्न'' मुहैया कराया जाना अति आवश्यक है। तीन दिनों के अंदर यह पुनीत कार्य न किये जाने की स्थिति में भारत के लोकतंत्र को खतरा पैदा हो सकता है।
यही नहीं, ऐसा न किये जाने पर विदेशों में भारत की साख को भारी बट्टा लगने की आशंका है।
मैं जिन माननीयों को ''भारत रत्न'' दिये जाने की संस्तुति कर रहा हूं उनमें सबसे पहला नाम परम् पूज्यनीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का आता है क्योंकि उन्होंने अपनी प्रतिभा व योग्यता के बल पर इस कार्यकाल को इतिहास के पन्नों में स्थाई स्थान मुकर्रर कराया है। किसी अदृश्य शक्ित के हाथों संचालित और उसके द्वारा लिखित बयान को धवल हो चुकी दाढ़ी के बीच से फुसफुसाकर उस पर सरकार का मुलम्मा चढ़ाने में जो महारत माननीय प्रधानमंत्री ने हासिल की है उसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाये कम है। उधार की सोच तथा उधार के शब्दों से दो-दो बार सर्वोच्च सत्ता पाने में सफल हमारे ''अर्थशास्त्री'' प्रधानमंत्री को एक पल गंवाये बिना ''भारत रत्न'' दिया जाना समय की सबसे बड़ी मांग है क्यों कि कल का क्या भरोसा। कल तक यह पद उनके पास रहे या ना रहे।
उन्हीं के साथ उसी मंच से दूसरा ''भारत रत्न'' मैं श्री प्रणव मुखर्जी को दिये जाने का पक्षधर हूं। प्रणव मुखर्जी ने जिस तरह संकट की इस घड़ी में प्रधानमंत्री का साथ दिया है, वह सिर्फ प्रशंसा के योग्य नहीं है, ईनाम के योग्य है। एक आंख प्रधानमंत्री की कुर्सी पर लगी होने के बावजूद दूसरी आंख को उन्होंने जिस तरह सोनिया जी के चरणों तक सीमित रखने का अभूतपूर्व कौशल दिखाया है, ना चाहते हुए हर नाजुक मौके पर मनमोहन सिंह के लिए संकटमोचक बने हैं, भविष्य में ऐसा उदाहरण कोई दूसरा नेता प्रस्तुत नहीं कर पायेगा इसलिए दूसरा भारत रत्न उन्हें नजर किया जाना लाजिमी है।
इसके बाद तीसरा नम्बर आता है उस महान शख्स का जिसने हाल ही में अपनी ''जीनियसनेस'' का लोहा मनवाया है। यह तीसरी विभूति हैं देश के गृहमंत्री श्री पी. चिदम्बरम साहब। चिदम्बरम साहब ने समय-समय पर अपने बयानों से यह साबित कर दिया है कि वह ग्रेट ही नहीं ग्रेटेस्ट हैं। उनकी अक्ल का नायाब नमूना अन्ना हजारे को गिरफ्तार कराने से लेकर उनके बारे में मीडिया से यह कहने तक कि मुझे नहीं पता अन्ना को कहां रखा है, देश कई बार देख चुका है। इससे पहले मुम्बई में हुए बम विस्फोटों के बावत उनके बयान तथा पाकिस्तान को भेजी गई वांछित अपराधियों की लिस्ट के समय भी देश की जनता उनकी जीनियसनेस का अहसास कर चुकी है। माना कि 'हिंदी' जाने बिना 'हिंदुस्तान' के केन्द्रीय गृहमंत्री का पद हासिल करने वाले पी. चिदम्बरम साहब ऐसी उपलब्िध प्राप्त कोई पहले व्यक्ित नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री तक का ताज हिंदी बोल पाने में अक्षम लोगों के सिर रखा जा चुका है लेकिन चिदम्बरम फिर भी विशेष हैं।
अंग्रेजी का उनका उच्चारण उनकी योग्यता पर सबसे बड़ा आवरण है और आवरण है उस कानून-व्यवस्था की बदहाली पर जिसे बहाल रखने का जिम्मा उनके नाजुक कांधों पर है।
ऐसे विशिष्ट गृहमंत्री को तुरंत ''भारत रत्न'' देकर हम ''भारत रत्न'' का ही सम्मान करेंगे। इन तीन हस्तियों के अतिरिक्त माननीयों में शुमार सुश्री अंबिका सोनी जी, सुबोध कांत सहाय जी तथा आदर्णीय कहलाने वाले दिग्विजय सिंह जी, राशिद अल्वी जी और मनीष तिवारी जी को भी ''भारत रत्न'' दिया जाना देशहित में जरूरी है।
कांग्रेस के प्रवक्ता की हैसियत से मनीष तिवारी तथा राशिद अल्वी और महासचिव की हैसियत से एकमात्र दिग्गी राजा को भारत रत्न दिया जाना परम् आवश्यक है।
इन महानुभावों को कल तक ही ''भारत रत्न'' ना दिया जाना ''भारत रत्न'' की तौहीन करना है।
ये देश के वो नगीने हैं जिन्हें ''भारत रत्न'' देकर हम ''भारत रत्न'' को गौरवान्वित करेंगे।
अगर सरकार ने समय रहते मेरी सलाह नहीं मानी तो मुझे डर है कि और भारत रत्नों का इंतजाम करना पड़ सकता है क्योंकि अन्ना के आंदोलन ने कांग्रेस तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के पदाधिकारियों का ज्ञान अचानक सातवें आसमान तक ला पटका है। वह ऐसी-ऐसी बातें करने लगे हैं कि बुद्धि के देवता को भी अपनी बुद्धि पर तरस आने लगा है।
चूंकि नहीं पता कि अन्ना का आंदोलन अभी कितने दिन तक चलेगा इसलिए उनके आंदोलन की समाप्ति का इंतजार किये बिना जितने नाम मैंने निस्वार्थ भाव से सुझाये हैं, उन्हें अगले 24 घण्टों के अंदर ''भारत रत्न'' देकर ''भारत रत्न'' का मान बढ़ा देना चाहिए।
आज जब से मैंने संसद में कुछ मंत्रियों के वक्तत्व सुने हैं तब से सरकार को बिन मांगी यह सलाह देने के लिए उतावला हो रहा था। इन ''भारत रत्नों'' को ''भारत रत्न'' देने में किया जाने वाला एक-एक क्षण का विलम्ब लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
दरअसल इतने बेशकीमती रत्नों से भरी यह आखिरी सरकार है और अगर यह किसी षड्यंत्र का शिकार हो गई तो हम अमेरिका को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
आखिर अमेरिका ने कहा है कि भारत अपने यहां की स्थितियां संभालने में सक्षम है।
खैर, अमेरिका को हम मुंह दिखा पायें या ना दिखा पायें लेकिन हमें खुद अपनी नजरों में नहीं गिरना है। हमें अपनी सरकार के उन महान नुमाइंदों को कल दोपहर 12 बजे तक ''भारत रत्न'' दिलवा देना है जो देश की खातिर, लोकतंत्र की खातिर, संविधान की खातिर और भ्रष्टाचार की खातिर 74 वर्षीय वृद्ध से टक्कर लेने का जोखिम उठा रहे हैं।
धन्य हैं वो मंत्री, कांग्रेस के वो पदाधिकारी और धन्य हैं उनके नेता तथा हमारे प्रधानमंत्री। धन्य है उनकी सरकार और उनके हिमायती।
एक बार आप भी मेरे साथ जोर से बोलिये- जय हिंद!
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
प्रश्न कुछ इस तरह हैं- क्या सरकार के पास ''भारत रत्न'' सीमित संख्या में हैं ?
क्या एकसाथ और प्रति वर्ष ''भारत रत्न'' दिये जाने की कोई संख्या पूर्व निर्धारित है ?
क्या किसी क्षेत्र विशेष के लोगों को बहुतायत में ''भारत रत्न'' दिये जाने पर पाबंदी है ?
इन प्रश्नों के संभावित जवाबों को देखते हुए मैं सरकार से यह गुजारिश करता हूं कि यदि सरकार के पास पर्याप्त ''भारत रत्न'' नहीं हैं तो वह ''बल्क'' में उनका निर्माण करा ले। यदि एकसाथ तथा प्रतिवर्ष ''भारत रत्न'' दिये जाने के लिए कोई संख्या पहले से निर्धारित है तो कृपया तत्काल प्रभाव से ऐसी सभी शर्तों को निरस्त कर दे और यदि किसी क्षेत्र विशेष के लोगों को बहुतायत में ''भारत रत्न'' दिये जाने पर पाबंदी हो तो ऐसी पाबंदी खत्म कर दी जाए।
अब आपके मन में इस आशय का प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, मैं सरकार से ऐसी गुजारिश किसलिए कर रहा हूं ?
दरअसल मेरे द्वारा ऐसा कहने तथा सरकार से गुजारिश करने की खास वजह है, और वह वजह यह है कि अन्ना की अगस्त क्रांति के शंखनाद ने बेशक अभी सरकार को जागृत न किया हो परन्तु ऐसे माननीयों को सामने लाने का कार्य अवश्य कर दिया है जो नि:संदेह ''भारत रत्न'' पाने के हकदार हैं लिहाजा उन सभी को तत्काल प्रभाव से ''भारत रत्न'' मुहैया कराया जाना अति आवश्यक है। तीन दिनों के अंदर यह पुनीत कार्य न किये जाने की स्थिति में भारत के लोकतंत्र को खतरा पैदा हो सकता है।
यही नहीं, ऐसा न किये जाने पर विदेशों में भारत की साख को भारी बट्टा लगने की आशंका है।
मैं जिन माननीयों को ''भारत रत्न'' दिये जाने की संस्तुति कर रहा हूं उनमें सबसे पहला नाम परम् पूज्यनीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का आता है क्योंकि उन्होंने अपनी प्रतिभा व योग्यता के बल पर इस कार्यकाल को इतिहास के पन्नों में स्थाई स्थान मुकर्रर कराया है। किसी अदृश्य शक्ित के हाथों संचालित और उसके द्वारा लिखित बयान को धवल हो चुकी दाढ़ी के बीच से फुसफुसाकर उस पर सरकार का मुलम्मा चढ़ाने में जो महारत माननीय प्रधानमंत्री ने हासिल की है उसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाये कम है। उधार की सोच तथा उधार के शब्दों से दो-दो बार सर्वोच्च सत्ता पाने में सफल हमारे ''अर्थशास्त्री'' प्रधानमंत्री को एक पल गंवाये बिना ''भारत रत्न'' दिया जाना समय की सबसे बड़ी मांग है क्यों कि कल का क्या भरोसा। कल तक यह पद उनके पास रहे या ना रहे।
उन्हीं के साथ उसी मंच से दूसरा ''भारत रत्न'' मैं श्री प्रणव मुखर्जी को दिये जाने का पक्षधर हूं। प्रणव मुखर्जी ने जिस तरह संकट की इस घड़ी में प्रधानमंत्री का साथ दिया है, वह सिर्फ प्रशंसा के योग्य नहीं है, ईनाम के योग्य है। एक आंख प्रधानमंत्री की कुर्सी पर लगी होने के बावजूद दूसरी आंख को उन्होंने जिस तरह सोनिया जी के चरणों तक सीमित रखने का अभूतपूर्व कौशल दिखाया है, ना चाहते हुए हर नाजुक मौके पर मनमोहन सिंह के लिए संकटमोचक बने हैं, भविष्य में ऐसा उदाहरण कोई दूसरा नेता प्रस्तुत नहीं कर पायेगा इसलिए दूसरा भारत रत्न उन्हें नजर किया जाना लाजिमी है।
इसके बाद तीसरा नम्बर आता है उस महान शख्स का जिसने हाल ही में अपनी ''जीनियसनेस'' का लोहा मनवाया है। यह तीसरी विभूति हैं देश के गृहमंत्री श्री पी. चिदम्बरम साहब। चिदम्बरम साहब ने समय-समय पर अपने बयानों से यह साबित कर दिया है कि वह ग्रेट ही नहीं ग्रेटेस्ट हैं। उनकी अक्ल का नायाब नमूना अन्ना हजारे को गिरफ्तार कराने से लेकर उनके बारे में मीडिया से यह कहने तक कि मुझे नहीं पता अन्ना को कहां रखा है, देश कई बार देख चुका है। इससे पहले मुम्बई में हुए बम विस्फोटों के बावत उनके बयान तथा पाकिस्तान को भेजी गई वांछित अपराधियों की लिस्ट के समय भी देश की जनता उनकी जीनियसनेस का अहसास कर चुकी है। माना कि 'हिंदी' जाने बिना 'हिंदुस्तान' के केन्द्रीय गृहमंत्री का पद हासिल करने वाले पी. चिदम्बरम साहब ऐसी उपलब्िध प्राप्त कोई पहले व्यक्ित नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री तक का ताज हिंदी बोल पाने में अक्षम लोगों के सिर रखा जा चुका है लेकिन चिदम्बरम फिर भी विशेष हैं।
अंग्रेजी का उनका उच्चारण उनकी योग्यता पर सबसे बड़ा आवरण है और आवरण है उस कानून-व्यवस्था की बदहाली पर जिसे बहाल रखने का जिम्मा उनके नाजुक कांधों पर है।
ऐसे विशिष्ट गृहमंत्री को तुरंत ''भारत रत्न'' देकर हम ''भारत रत्न'' का ही सम्मान करेंगे। इन तीन हस्तियों के अतिरिक्त माननीयों में शुमार सुश्री अंबिका सोनी जी, सुबोध कांत सहाय जी तथा आदर्णीय कहलाने वाले दिग्विजय सिंह जी, राशिद अल्वी जी और मनीष तिवारी जी को भी ''भारत रत्न'' दिया जाना देशहित में जरूरी है।
कांग्रेस के प्रवक्ता की हैसियत से मनीष तिवारी तथा राशिद अल्वी और महासचिव की हैसियत से एकमात्र दिग्गी राजा को भारत रत्न दिया जाना परम् आवश्यक है।
इन महानुभावों को कल तक ही ''भारत रत्न'' ना दिया जाना ''भारत रत्न'' की तौहीन करना है।
ये देश के वो नगीने हैं जिन्हें ''भारत रत्न'' देकर हम ''भारत रत्न'' को गौरवान्वित करेंगे।
अगर सरकार ने समय रहते मेरी सलाह नहीं मानी तो मुझे डर है कि और भारत रत्नों का इंतजाम करना पड़ सकता है क्योंकि अन्ना के आंदोलन ने कांग्रेस तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के पदाधिकारियों का ज्ञान अचानक सातवें आसमान तक ला पटका है। वह ऐसी-ऐसी बातें करने लगे हैं कि बुद्धि के देवता को भी अपनी बुद्धि पर तरस आने लगा है।
चूंकि नहीं पता कि अन्ना का आंदोलन अभी कितने दिन तक चलेगा इसलिए उनके आंदोलन की समाप्ति का इंतजार किये बिना जितने नाम मैंने निस्वार्थ भाव से सुझाये हैं, उन्हें अगले 24 घण्टों के अंदर ''भारत रत्न'' देकर ''भारत रत्न'' का मान बढ़ा देना चाहिए।
आज जब से मैंने संसद में कुछ मंत्रियों के वक्तत्व सुने हैं तब से सरकार को बिन मांगी यह सलाह देने के लिए उतावला हो रहा था। इन ''भारत रत्नों'' को ''भारत रत्न'' देने में किया जाने वाला एक-एक क्षण का विलम्ब लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
दरअसल इतने बेशकीमती रत्नों से भरी यह आखिरी सरकार है और अगर यह किसी षड्यंत्र का शिकार हो गई तो हम अमेरिका को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
आखिर अमेरिका ने कहा है कि भारत अपने यहां की स्थितियां संभालने में सक्षम है।
खैर, अमेरिका को हम मुंह दिखा पायें या ना दिखा पायें लेकिन हमें खुद अपनी नजरों में नहीं गिरना है। हमें अपनी सरकार के उन महान नुमाइंदों को कल दोपहर 12 बजे तक ''भारत रत्न'' दिलवा देना है जो देश की खातिर, लोकतंत्र की खातिर, संविधान की खातिर और भ्रष्टाचार की खातिर 74 वर्षीय वृद्ध से टक्कर लेने का जोखिम उठा रहे हैं।
धन्य हैं वो मंत्री, कांग्रेस के वो पदाधिकारी और धन्य हैं उनके नेता तथा हमारे प्रधानमंत्री। धन्य है उनकी सरकार और उनके हिमायती।
एक बार आप भी मेरे साथ जोर से बोलिये- जय हिंद!
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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