पता नहीं हमारे आदर्णीय मन्नू भैया (डॉ. मनमोहन सिंह) ने अपना दूसरा कार्यभार किस घड़ी में संभाला था कि चार दिन भी चैन की बंसी नहीं बजा सके। समझ में नहीं आ रहा कि पांच साल किस तरह पूरे होंगे। जिसे देखो, वही बेचारे मन्नू भैया के पीछे हाथ धोकर पड़ा है। जैसे वह प्रधानमंत्री न हुए किसी कमजोर की जोरू हो गये, जिसे कोई भी ऐरा-गैरा ''भाभी'' कहकर पतली गली से निकल लेता है।
अब देखो ना, ''किशन बापट बाबूराव हजारे'' यानी ''अन्ना हजारे'' महाराष्ट्र के ''रालेगांव सिद्धी'' से अचानक आ निकले और बेचारे मन्नू भैया को मुश्किल में डाल दिया। टीम अन्ना इस कदर कांग्रेस व मन्नू भैया के दिलो-दिमाग पर हावी हो गई है कि बेचारे मन्नू भैया की टीम और कांग्रेस का लाव-लश्कर सब पगला से गये हैं। पहले ये स्थिति केवल दिग्गी राजा की थी। वह मतिभ्रम के शिकार हो गये थे। ऐसा लगता था जैसे उनके दिमाग व जुबान के बीच कोई तारतम्य नहीं रहा इसलिए बेचारे सोचते कुछ थे लेकिन जुबान से निकल कुछ जाता था। इन दिनों किस हाल में हैं, पता नहीं। वैसे संभावना इस बात की ज्यादा लगती है कि मर्ज बढ़ गया होगा। शायद इसीलिए आजकल उन्हें जुबान को लगाम में रखने की हिदायत दे रखी है और उनका किरदार ढोने की जिम्मेदारी मनीष तिवारी तथा दूसरे अन्य लोगों पर लाद दी गई है। ईश्वर उनका भला करे और उन्हें दिग्गी राजा जैसी दयनीय स्थिति को प्राप्त होने से महफूज रखे।
कल तक टीम अन्ना के साथ बैठकर जनलोकपाल बिल पर गुफ्तगू करने वाले केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल व पी चिदम्बरम हों या 10 जनपथ की परिक्रमार्थी व केन्द्रीय मंत्री अंबिका सोनी, कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी हों या राशिद अल्वी, जनार्दन द्विवेदी हों या खुद मन्नू भैया, सब के सब अब टीम अन्ना को गुण्डों की फौज साबित करने में जुट गये हैं।
अब इन बेचारों से कोई ये तो पूछे कि जब टीम अन्ना गुण्डों की फौज है और फिरौती वसूलने, ब्लैकमेलिंग करने, जमीनें कब्जाने, टैक्स चोरी करने तथा तमाम ऐसे ही गैर कानूनी काम करने में मशगूल है तो चंद रोज पहले तक आप गुण्डों की इस फौज की जी हुजूरी क्यों कर रहे थे। क्यों इसके साथ बैठकर बिल के मसौदे पर सलाह मशविरा करते थे। चोरों की चिरौरी क्यों ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार ने पहले उन्हें बगल में बैठाकर ''चोर-चोर मौसेरे भाई'' की कहावत को चरितार्थ कराने की संभावनाएं तलाशी हों लेकिन जब सफलता हाथ नहीं लगी तो चोर-चोर का शोर मचाना शुरू कर दिया जिससे जनता कनफ्यूज़ हो जाए।
इससे पहले जब टीम अन्ना ने माननीय मंत्री कपिल सिब्बल जी के चुनाव क्षेत्र में जनलोकपाल बिल को लेकर जनमत संग्रह कराया तो कांग्रेस ने कहा कि दम हो तो अन्ना चुनाव लड़कर देखें।
कितने आश्चर्य की बात है कि एक ऐसी पार्टी के लोग अन्ना को चुनाव लड़ने की चुनौती दे रहे हैं जिनका अपना प्रधानमंत्री कभी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं कर पाया।
हो सकता है कि कांग्रेस की लुटिया उसी में मौजूद जयचंद पूरी सोची-समझी नीति के तहत ड़ुबो रहे हों ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे वरना कांग्रेस के अंदर इंटेलीजेंट लोगों की कमी नहीं है पर उन्हें हाशिये पर डाल रखा है। कांग्रेस के नाम पर फिलहाल केवल आधा दर्जन लोग ही दिखाई देते हैं।
एक हैं भुने हुए चने सरीखे बेचारे प्रणव दा जिन्हें बाबा रामदेव के सामने साष्टांग दण्डवत करने तथा महंगाई पर अनाप-शनाप बयान देने को आगे कर दिया जाता है।
दूसरे हैं कपिल सिब्बल जिन्हें ''2G'' तक में कोई ''घोटाला'' दिखाई नहीं दिया था और उन्होंने CBI तथा न्यायपालिका से भी पहले देश की जनता को इस निजी जांच के नतीजे से अवगत कराना अपना सरकारी दायित्व समझा। यह बात अलग है कि एक नामी वकील और कल तक बुद्धिजीवी माने जाने वाले कपिल सिब्बल साहब की इस मामले में जनता ने खिल्ली उड़ाई।
वर्तमान कांग्रेस के प्रतीक तीसरे भद्र पुरुष हैं केन्द्रीय गृहमंत्री परम् आदर्णीय, वंदनीय व चिंतनीय माननीय पी. चिदम्बरम् जी। चिदम्बरम् जी की योग्यता का डंका देश की सीमाओं को लांघ चुका है। कभी पाकिस्तान को सौंपी गई वांछित आतंकियों की सूची में गड़बड़ी के कारण तो कभी आतंकवादी हमले के बाद दिये गये बे सिर-पैर के बयानों के कारण। ऐसा प्रतीत होता है कि चिदम्बरम् साहब पर सरकार ने जरूरत से ज्यादा जिम्मेदारी लाद दी है और वो उन जिम्मेदारियों के बोझ से दबे जा रहे हैं। ऐसे में उनका झुंझला जाना समझ में आता है। जिस कारण वह लाठी चलवाने में अधिक यकीन करते दिखाई देते हैं।
कुछ अन्य माननीय सुबोधकांत सहाय, पवन बंसल आदि और हुआ करते थे लेकिन इन दिनों उनके बोलने पर अघोषित सेंसर मालूम पड़ रहा है तथा उनकी जगह गुजरे जमाने की दिलकश कांग्रेसी अदाकारा अंबिका सोनी को सामने लाया गया है।
सरकार की नुमाइंदगी कर रहे इन बेचारे कांग्रेसियों की प्रॉब्लम यह है कि इन्हें जो कुछ बोलना पड़ रहा है, उसकी स्क्रिप्ट तक देने वाला कोई नहीं। सोनिया भाभी इन दिनों देश में उपलब्ध नहीं हैं। वह बेड रेस्ट पर हैं लिहाजा उन्हें स्क्रिप्ट लिखना तो दूर, उसे चेक करने की भी इजाजत नहीं है। ऐसा मान सकते हैं कि कांग्रेस व सरकार दोनों नेतृत्व विहीन हैं लेकिन टीम अन्ना उनकी ''दयनीय दशा'' पर भी ''दया'' करने को तैयार नहीं है।
पता नहीं स्वस्थ्य होकर लौटने के बाद सोनिया भाभी अपनी टीम पर किस तरह रिएक्ट करेंगी। शाबासी देंगी या कड़क आवाज में पूछेंगी- ''कितने आदमी थे ?
अन्ना, अरविंद, अग्निवेश, शांतिभूषण, प्रशांतभूषण, किरन बेदी, मयंक गांधी व मनोज सिसौदिया जैसे दर्जनभर से कम लोगों के सामने बुद्धि को खूंटी पर टांग देने के लिए अपनी सजा खुद मुकर्रर कर लो। मेरे रिमोट के ''सेल'' अभी ''सील'' नहीं गये, बेहतर होगा उसे इस्तेमाल करने का मौका मुझे ना दिया जाए।''
फिलहाल दरअसल एक दिक्कत यह भी है कि सोनिया भाभी का रिमोट अमेरिका से काम नहीं करता। वहां अमेरिका का रिमोट उनके रिमोट पर भारी पड़ जाता है। यूं भी मन्नू भैया का सर्किट अमेरिकी रिमोट के मामले में सोनिया भाभी के रिमोट से कहीं अधिक सेंसटिव हो जाता है। वह अमेरिकी रिमोट से मिले संदेशों को पहले पकड़ लेता है।
इसकी ताजा बानगी तब सामने आई जब अन्ना की चिठ्ठी के जवाब में उन्होंने यह लिखवा दिया कि टीम अन्ना को दिल्ली पुलिस के पास जाना चाहिए। मुझे चिठ्ठी लिखने से कुछ नहीं होने वाला। जैसे मन्नू भैया PM न होकर CM हों। वो जो भी हैं, वो हमारे मन्नू भैया तो हैं हीं। ये बात अलग है कि वो खुद नहीं जान पा रहे कि आखिर वो हैं क्या और क्यों उन्हें PM बना रखा है। उनकी सारी ''इज्जत'' को ''टीम इण्डिया'' बना डाला लेकिन जिद पर अड़े हैं कि PM फिर भी आप ही रहेंगे।
आज जब बेचारे स्वतंत्रता दिवस पर झण्डा फहराने लाल किला पहुंचे तो चेहरे पर कहीं दूर-दूर तक लाली नहीं थी वरना अपना देश का ''प्रधानमंत्रित्व'' तो वह जिम्मेदारी है जिसने अटलजी जैसे व्यक्ित के चेहरे को हिमाचल के सेब जैसा सुर्ख बना दिया था। पता नहीं मन्नू भैया किस चिंता में घुले जा रहे हैं। धवल चांदनी की मानिंद हो चुके दाढ़ी के बाल तक चेहरे के अंदर की कालिख को छिपाने में हाथ खड़े कर रहे थे।
जो भी हो, मैं अपने बुजुर्ग प्रधानमंत्री के साथ तन व मन दोनों से हूं। बाकी रहा धन, तो वह मेरे पास कभी नहीं रहा। उसी के लिए मैं कांग्रेस के साथ हूं। मुझे मालूम है कि मुश्किल का ये दौर अगर और निकल गया तो कांग्रेस के साथ मेरी भी बल्ले-बल्ले होने वाली है। ईनाम ना सही, बख्शीस तो मिल ही जायेगी क्योंकि मीडिया में मेरे जैसे उंगलियों पर गिने जा सकने लायक लोग ही मन्नू भैया से सहानुभूति रखे हुए हैं वरना ऐसे तत्वों की संख्या अफरात में है जो बेचारे मन्नू भैया को इन दुर्दिनों का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कह रहे हैं उनमें नेतृत्व क्ष्ामता का अभाव है जबकि उनकी नेतृत्व क्षमता का कायल होना चाहिए। उन्हीं की नेतृत्व क्षमता का कमाल है कि ए. राजा तिहाड़ जेल जाकर भी उन्हें अपना मुखिया मान रहे हैं। कह रहे हैं कि उन्होंने जो कुछ किया, अपने माननीय प्रधानमंत्री के संज्ञान में किया। उनकी इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं किया। अदालत तक में वह यह कहना नहीं भूले।
मैं ए. राजा पर मन्नू भैया के इस प्रभाव का कायल हूं और तहेदिल से अपने PM की नेतृत्व क्ष्ामता को स्वीकार करता हूं। मेरे हमपेशा भाई चाहें तो मुझे इसके लिए पेशे के प्रति गद्दारी के खिताब से नवाज सकते हैं, मुझे कोई अफसोस नहीं होगा क्योंकि मुझे अपना भविष्य कांग्रेस पार्टी तथा उसके नेतृत्व वाली मन्नू भैया की सरकार के प्रति वफादारी में ही दिखाई दे रहा है। टीम अन्ना न समझ पा रही हो तो ना समझे।
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास ने यूं ही नहीं लिखा कि '' जाकौं प्रभु दारुण दु:ख देहीं, ताकि मति पहले हर लेहीं। ईश्वर, टीम अन्ना को कांग्रेस के अनुरूप सदबुद्धि दे। इसी आशा और विश्वास के साथ मेरे साथ जोर से बोलिये-
जय हिंद, जय भारत।
क्यों, मेरी तरह आपएकी भी आवाज नहीं निकल रही क्या?
मैं तो सोच ही रहा हूं, हो सके तो आप भी सोचिये।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
अब देखो ना, ''किशन बापट बाबूराव हजारे'' यानी ''अन्ना हजारे'' महाराष्ट्र के ''रालेगांव सिद्धी'' से अचानक आ निकले और बेचारे मन्नू भैया को मुश्किल में डाल दिया। टीम अन्ना इस कदर कांग्रेस व मन्नू भैया के दिलो-दिमाग पर हावी हो गई है कि बेचारे मन्नू भैया की टीम और कांग्रेस का लाव-लश्कर सब पगला से गये हैं। पहले ये स्थिति केवल दिग्गी राजा की थी। वह मतिभ्रम के शिकार हो गये थे। ऐसा लगता था जैसे उनके दिमाग व जुबान के बीच कोई तारतम्य नहीं रहा इसलिए बेचारे सोचते कुछ थे लेकिन जुबान से निकल कुछ जाता था। इन दिनों किस हाल में हैं, पता नहीं। वैसे संभावना इस बात की ज्यादा लगती है कि मर्ज बढ़ गया होगा। शायद इसीलिए आजकल उन्हें जुबान को लगाम में रखने की हिदायत दे रखी है और उनका किरदार ढोने की जिम्मेदारी मनीष तिवारी तथा दूसरे अन्य लोगों पर लाद दी गई है। ईश्वर उनका भला करे और उन्हें दिग्गी राजा जैसी दयनीय स्थिति को प्राप्त होने से महफूज रखे।
कल तक टीम अन्ना के साथ बैठकर जनलोकपाल बिल पर गुफ्तगू करने वाले केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल व पी चिदम्बरम हों या 10 जनपथ की परिक्रमार्थी व केन्द्रीय मंत्री अंबिका सोनी, कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी हों या राशिद अल्वी, जनार्दन द्विवेदी हों या खुद मन्नू भैया, सब के सब अब टीम अन्ना को गुण्डों की फौज साबित करने में जुट गये हैं।
अब इन बेचारों से कोई ये तो पूछे कि जब टीम अन्ना गुण्डों की फौज है और फिरौती वसूलने, ब्लैकमेलिंग करने, जमीनें कब्जाने, टैक्स चोरी करने तथा तमाम ऐसे ही गैर कानूनी काम करने में मशगूल है तो चंद रोज पहले तक आप गुण्डों की इस फौज की जी हुजूरी क्यों कर रहे थे। क्यों इसके साथ बैठकर बिल के मसौदे पर सलाह मशविरा करते थे। चोरों की चिरौरी क्यों ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार ने पहले उन्हें बगल में बैठाकर ''चोर-चोर मौसेरे भाई'' की कहावत को चरितार्थ कराने की संभावनाएं तलाशी हों लेकिन जब सफलता हाथ नहीं लगी तो चोर-चोर का शोर मचाना शुरू कर दिया जिससे जनता कनफ्यूज़ हो जाए।
इससे पहले जब टीम अन्ना ने माननीय मंत्री कपिल सिब्बल जी के चुनाव क्षेत्र में जनलोकपाल बिल को लेकर जनमत संग्रह कराया तो कांग्रेस ने कहा कि दम हो तो अन्ना चुनाव लड़कर देखें।
कितने आश्चर्य की बात है कि एक ऐसी पार्टी के लोग अन्ना को चुनाव लड़ने की चुनौती दे रहे हैं जिनका अपना प्रधानमंत्री कभी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं कर पाया।
हो सकता है कि कांग्रेस की लुटिया उसी में मौजूद जयचंद पूरी सोची-समझी नीति के तहत ड़ुबो रहे हों ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे वरना कांग्रेस के अंदर इंटेलीजेंट लोगों की कमी नहीं है पर उन्हें हाशिये पर डाल रखा है। कांग्रेस के नाम पर फिलहाल केवल आधा दर्जन लोग ही दिखाई देते हैं।
एक हैं भुने हुए चने सरीखे बेचारे प्रणव दा जिन्हें बाबा रामदेव के सामने साष्टांग दण्डवत करने तथा महंगाई पर अनाप-शनाप बयान देने को आगे कर दिया जाता है।
दूसरे हैं कपिल सिब्बल जिन्हें ''2G'' तक में कोई ''घोटाला'' दिखाई नहीं दिया था और उन्होंने CBI तथा न्यायपालिका से भी पहले देश की जनता को इस निजी जांच के नतीजे से अवगत कराना अपना सरकारी दायित्व समझा। यह बात अलग है कि एक नामी वकील और कल तक बुद्धिजीवी माने जाने वाले कपिल सिब्बल साहब की इस मामले में जनता ने खिल्ली उड़ाई।
वर्तमान कांग्रेस के प्रतीक तीसरे भद्र पुरुष हैं केन्द्रीय गृहमंत्री परम् आदर्णीय, वंदनीय व चिंतनीय माननीय पी. चिदम्बरम् जी। चिदम्बरम् जी की योग्यता का डंका देश की सीमाओं को लांघ चुका है। कभी पाकिस्तान को सौंपी गई वांछित आतंकियों की सूची में गड़बड़ी के कारण तो कभी आतंकवादी हमले के बाद दिये गये बे सिर-पैर के बयानों के कारण। ऐसा प्रतीत होता है कि चिदम्बरम् साहब पर सरकार ने जरूरत से ज्यादा जिम्मेदारी लाद दी है और वो उन जिम्मेदारियों के बोझ से दबे जा रहे हैं। ऐसे में उनका झुंझला जाना समझ में आता है। जिस कारण वह लाठी चलवाने में अधिक यकीन करते दिखाई देते हैं।
कुछ अन्य माननीय सुबोधकांत सहाय, पवन बंसल आदि और हुआ करते थे लेकिन इन दिनों उनके बोलने पर अघोषित सेंसर मालूम पड़ रहा है तथा उनकी जगह गुजरे जमाने की दिलकश कांग्रेसी अदाकारा अंबिका सोनी को सामने लाया गया है।
सरकार की नुमाइंदगी कर रहे इन बेचारे कांग्रेसियों की प्रॉब्लम यह है कि इन्हें जो कुछ बोलना पड़ रहा है, उसकी स्क्रिप्ट तक देने वाला कोई नहीं। सोनिया भाभी इन दिनों देश में उपलब्ध नहीं हैं। वह बेड रेस्ट पर हैं लिहाजा उन्हें स्क्रिप्ट लिखना तो दूर, उसे चेक करने की भी इजाजत नहीं है। ऐसा मान सकते हैं कि कांग्रेस व सरकार दोनों नेतृत्व विहीन हैं लेकिन टीम अन्ना उनकी ''दयनीय दशा'' पर भी ''दया'' करने को तैयार नहीं है।
पता नहीं स्वस्थ्य होकर लौटने के बाद सोनिया भाभी अपनी टीम पर किस तरह रिएक्ट करेंगी। शाबासी देंगी या कड़क आवाज में पूछेंगी- ''कितने आदमी थे ?
अन्ना, अरविंद, अग्निवेश, शांतिभूषण, प्रशांतभूषण, किरन बेदी, मयंक गांधी व मनोज सिसौदिया जैसे दर्जनभर से कम लोगों के सामने बुद्धि को खूंटी पर टांग देने के लिए अपनी सजा खुद मुकर्रर कर लो। मेरे रिमोट के ''सेल'' अभी ''सील'' नहीं गये, बेहतर होगा उसे इस्तेमाल करने का मौका मुझे ना दिया जाए।''
फिलहाल दरअसल एक दिक्कत यह भी है कि सोनिया भाभी का रिमोट अमेरिका से काम नहीं करता। वहां अमेरिका का रिमोट उनके रिमोट पर भारी पड़ जाता है। यूं भी मन्नू भैया का सर्किट अमेरिकी रिमोट के मामले में सोनिया भाभी के रिमोट से कहीं अधिक सेंसटिव हो जाता है। वह अमेरिकी रिमोट से मिले संदेशों को पहले पकड़ लेता है।
इसकी ताजा बानगी तब सामने आई जब अन्ना की चिठ्ठी के जवाब में उन्होंने यह लिखवा दिया कि टीम अन्ना को दिल्ली पुलिस के पास जाना चाहिए। मुझे चिठ्ठी लिखने से कुछ नहीं होने वाला। जैसे मन्नू भैया PM न होकर CM हों। वो जो भी हैं, वो हमारे मन्नू भैया तो हैं हीं। ये बात अलग है कि वो खुद नहीं जान पा रहे कि आखिर वो हैं क्या और क्यों उन्हें PM बना रखा है। उनकी सारी ''इज्जत'' को ''टीम इण्डिया'' बना डाला लेकिन जिद पर अड़े हैं कि PM फिर भी आप ही रहेंगे।
आज जब बेचारे स्वतंत्रता दिवस पर झण्डा फहराने लाल किला पहुंचे तो चेहरे पर कहीं दूर-दूर तक लाली नहीं थी वरना अपना देश का ''प्रधानमंत्रित्व'' तो वह जिम्मेदारी है जिसने अटलजी जैसे व्यक्ित के चेहरे को हिमाचल के सेब जैसा सुर्ख बना दिया था। पता नहीं मन्नू भैया किस चिंता में घुले जा रहे हैं। धवल चांदनी की मानिंद हो चुके दाढ़ी के बाल तक चेहरे के अंदर की कालिख को छिपाने में हाथ खड़े कर रहे थे।
जो भी हो, मैं अपने बुजुर्ग प्रधानमंत्री के साथ तन व मन दोनों से हूं। बाकी रहा धन, तो वह मेरे पास कभी नहीं रहा। उसी के लिए मैं कांग्रेस के साथ हूं। मुझे मालूम है कि मुश्किल का ये दौर अगर और निकल गया तो कांग्रेस के साथ मेरी भी बल्ले-बल्ले होने वाली है। ईनाम ना सही, बख्शीस तो मिल ही जायेगी क्योंकि मीडिया में मेरे जैसे उंगलियों पर गिने जा सकने लायक लोग ही मन्नू भैया से सहानुभूति रखे हुए हैं वरना ऐसे तत्वों की संख्या अफरात में है जो बेचारे मन्नू भैया को इन दुर्दिनों का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कह रहे हैं उनमें नेतृत्व क्ष्ामता का अभाव है जबकि उनकी नेतृत्व क्षमता का कायल होना चाहिए। उन्हीं की नेतृत्व क्षमता का कमाल है कि ए. राजा तिहाड़ जेल जाकर भी उन्हें अपना मुखिया मान रहे हैं। कह रहे हैं कि उन्होंने जो कुछ किया, अपने माननीय प्रधानमंत्री के संज्ञान में किया। उनकी इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं किया। अदालत तक में वह यह कहना नहीं भूले।
मैं ए. राजा पर मन्नू भैया के इस प्रभाव का कायल हूं और तहेदिल से अपने PM की नेतृत्व क्ष्ामता को स्वीकार करता हूं। मेरे हमपेशा भाई चाहें तो मुझे इसके लिए पेशे के प्रति गद्दारी के खिताब से नवाज सकते हैं, मुझे कोई अफसोस नहीं होगा क्योंकि मुझे अपना भविष्य कांग्रेस पार्टी तथा उसके नेतृत्व वाली मन्नू भैया की सरकार के प्रति वफादारी में ही दिखाई दे रहा है। टीम अन्ना न समझ पा रही हो तो ना समझे।
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास ने यूं ही नहीं लिखा कि '' जाकौं प्रभु दारुण दु:ख देहीं, ताकि मति पहले हर लेहीं। ईश्वर, टीम अन्ना को कांग्रेस के अनुरूप सदबुद्धि दे। इसी आशा और विश्वास के साथ मेरे साथ जोर से बोलिये-
जय हिंद, जय भारत।
क्यों, मेरी तरह आपएकी भी आवाज नहीं निकल रही क्या?
मैं तो सोच ही रहा हूं, हो सके तो आप भी सोचिये।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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