सोमवार, 22 अगस्त 2011

हठयोग के बीच योगीराज का जन्‍मोत्‍सव

अधिकारों का अतिक्रमण करने वाला चाहे कोई व्‍यक्‍ित विशेष हो या फिर समूची सत्‍ता, उसे इतिहास की हथेलियों के बीच पिसना ही पड़ता है। उसके प्रति समय भी क्रूर हो जाता है क्‍योंकि प्रकृति का नियम यही है।
दरअसल सत्‍ता पर प्रतिष्‍ठापित जन यह भूल जाते हैं कि उनके हाथों में किसी राष्‍ट्र की कमान इसलिए नहीं सौंपी गई कि वह उसके स्‍वामी बन बैठें। उन्‍हें यह जिम्‍मेदारी इसलिए दी जाती है ताकि वह जनमानस के वाहक बनकर सेवक धर्म का पालन करें।
सत्‍ता पर काबिज लोग अपने कार्यों, व्‍यवस्‍था और सामाजिक न्‍याय के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के द्वारा ही देवता या दानव की संज्ञा प्राप्‍त करते हैं। समय व परिस्‍थितियों के अनुरूप शासन व्‍यवस्‍था में परिवर्तन करना उनकी महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी होती है लेकिन यदि वह सत्‍तामद के कारण अपनी जिम्‍मेदारी का अहसास नहीं करते और सेवक की जगह स्‍वामी जैसा व्‍यवहार करने लगते हैं तो प्रकृत्‍ति भी उनकी ओर से आंखें फेर लेती है।
यही कारण है कि प्रकृत्‍ति के कालचक्र ने एक ओर अनेक मानवों को इतिहास में महामानव का स्‍थान दिलवाया है तो दूसरी ओर ऐसे अंधकार में भी धकेला है जहां से वह कभी निकल नहीं पाये।
सत्‍ता में मद है, यह एक कटु सत्‍य है लेकिन जब सत्‍ताधारी मदमस्‍त हो जाते हैं तो कालचक्र उन्‍हें पीसने लगता है। बेशक उनके पिसने में समय लगता है और यही समय व्यतिक्रम (Abnormality) होता है। इसी कालखण्‍ड में वह प्रक्रिया शुरू होती है जो सत्‍ताधारियों की सोच से कहीं अधिक भयावह हश्र का कारण बनती है।
आज जहां एक वयोवृद्ध गांधीवादी समाजसेवक वर्तमान व्‍यवस्‍था के खिलाफ पिछले सात दिनों से अनशन पर बैठा है वहीं पूरा देश यशोदानंदन योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव मना रहा है। उन्‍हीं श्रीकृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव जिन्‍होंने महाभारत के युद्ध से पूर्व दिव्‍य रूप धारण कर मुनि उत्‍तंक को बताया था कि '' संसार की रक्षा एवं धर्म संस्‍थापन के लिए मैं तरह-तरह के जन्‍म लेता रहता हूं। जिस समय जिस योनि में जन्‍म लेता हूं, उस समय उसी के अनुरूप धर्म का पालन करता हूं। देवताओं में जन्‍म लेते वक्‍त देवताओं सा आचरण करता हूं और यक्ष बना तो यक्षों सा व राक्षस बना तो राक्षसों सा व्‍यवहार करता हूं।
इसी प्रकार मनुष्‍य या पशु का जन्‍म लेने पर मनुष्‍य व पशु का सा आचरण करता हूं। जिस ढंग से भी धर्म स्‍थापना का उद्देश्‍य पूरा होता हो, उस समय मैं उसी रीति से काम किया करता हूं परन्‍तु उद्देश्‍य सिद्ध करके रहता हूं।
पूर्व सैनिक से अचानक देश का नायक बना महाराष्‍ट्र के छोटे से गांव रालेगण सिद्धी का निवासी 74 वर्षीय अन्‍ना हजारे यूं तो एक अति सामान्‍य इंसान दिखाई देता है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उसका जन्‍म किसी खास मकसद से हुआ। यदि ऐसा नहीं होता तो इस सामान्‍य इंसान के पीछे आज यूं सारा देश नहीं चल देता।
सत्‍ता के शिखर पर काबिज लोग उसकी हुंकार से अपनी चूलें हिलती महसूस नहीं करते। इसे इत्‍तिफाक मान सकते हैं लेकिन फिर भी सच यही है कि अन्‍ना हजारे का भी असल नाम श्रीकृष्‍ण के सहस्‍त्र नामों में से एक ''किशन'' बाबूराव हजारे ही है।
अन्‍ना हजारे देश में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार तथा अव्‍यवस्‍था के खिलाफ अनशन कर रहे हैं और उनके साथ दूसरे तमाम लोग भी अनशन पर हैं। अन्‍ना ने स्‍पष्‍ट कर दिया है कि चाहे प्रधानमंत्री क्‍यों न आ जाएं, वह जनहित में लिया गया अपना संकल्‍प पूरा करके रहेंगे। उद्देश्‍य पूरा न होने तक वह अनशन नहीं त्‍यागेंगे।
अन्‍ना के हठयोग को बहुत से लोग उनकी जिद करार दे रहे हैं और बहुत से ऐसा प्रचार कर रहे हैं जैसे अन्‍ना खुद प्रधानमंत्री का पद हथियाना चाहते हों लेकिन जनसामान्‍य समझ चुका है कि इस दुष्‍प्रचार के पीछे सत्‍ता के भूखे वो लोग ही हैं जिन्‍होंने 64 सालों से सिर्फ अपनी तिजोरियां भरी हैं। जिन्‍होंने देश की दौलत को लूटकर विदेशों में जमा किया है।
आश्‍चर्य होता है कि जनता के स्‍वयंभू रहनुमा किस तरह आज दिग्‍भ्रमित हैं और अपने बचाव में ऐसी-ऐसी दलीलें दे रहे हैं जिनका दूर-दूर तक जनहित से कोई सरोकार नहीं है।
कोई अन्‍ना की मांग को संविधान के खिलाफ बता रहा है तो कोई उन पर संसद की अवमानना का आरोप लगाकर हद में रहने की चेतावनी दे रहा है।
सत्‍तामद में चूर मतिभ्रम के शिकार इन कथित रहनुमाओं के पास क्‍या इस बात का कोई जवाब है कि संविधान और संसद आखिर किसके लिए हैं ? जिस लोकतंत्र की दुहाई वह 64 सालों से देते आये हैं और उसकी आड़ में मनमानी करते रहे हैं, उस लोकतंत्र का अर्थ क्‍या है ? सांसदों के जिन विशेषाधिकारों की बात वह कह रहे हैं, वह विशेषाधिकार उन्‍हें दिया किसने ?
अगर लोक ही उनके साथ नहीं है तो तंत्र का मतलब क्‍या है ? बिना लोक के ''लोकतंत्र'' संभव हो सकता है क्‍या ?
अन्‍ना के अहिंसक आंदोलन ने सरकार ही नहीं सरकारी चापलूसों की सोचने-समझने की शक्‍ित को भी प्रभावित किया है। एक पूर्व डीजीपी का यह कथन कितना हास्‍यास्‍पद है कि यदि जनलोकपाल बिल पास हो जाता है तो पूरे देश से लोकपाल के पास इतनी शिकायतें आयेंगी कि उन्‍हें पानी में बहाना पड़ेगा। वो पानी पर तैरती मिलेंगी।
उनके कथन से कुछ ऐसा निष्‍कर्ष निकलता है जैसे कोई इसलिए गंदगी साफ न करना चाहे क्‍योंकि उसे चारों ओर गंदगी के ढेर दिखाई देने लगे हों। वह सफाई के उपकरणों पर उनके इस्‍तेमाल से पहले ही संदेह व्‍यक्‍त करके गंदगी के बीच जीते रहने की नसीहत दे रहा हो।
कोई अन्‍ना के सामने चुनाव लड़ने की चुनौती पेश कर रहा है तो कोई उन्‍हें मदारी बता रहा है जो डमरू बजा-बजाकर भीड़ इकठ्ठी कर लेता है।
सरकार के नुमाइंदे कभी उन पर सेना का भगोड़ा होने जैसा घृणित इल्‍जाम लगाते हैं तो कभी उन्‍हें घोटालेबाज बताते हैं लेकिन दूसरे ही पल सरकार कहलाने वाले उनके आका अन्‍ना को मनाने की जुगत तलाशते प्रतीत होते हैं।
कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली सरकार में शामिल नेताओं में भी इतना आत्‍मबल शेष नहीं है कि वह अपने इन साथियों से पूछ सकें कि यदि अन्‍ना सेना के भगोड़े थे, वह घोटालेबाज थे तो उन्‍हें दो-दो पद्म पुरस्‍कार किसने और कैसे दे दिये ?
अगर अन्‍ना के बावत इन बातों का पता कांग्रेस सरकार को अब आकर लगा तो उनसे पद्म पुरस्‍कार छीने जाने की कार्यवाही क्‍यों शुरू नहीं की गई ?
यहां महत्‍वपूर्ण यह नहीं है कि टीम अन्‍ना की मांगें कितनी जायज हैं और उनमें से किन-किन को माना जा सकता है, महत्‍वपूर्ण यह है कि सरकार आरोप-प्रत्‍यारोप का खेल किसलिए खेल रही है ? ऐसा करके वह क्‍या साबित करना चाहती है ?
सरकार के तरीके को अगर सही मान लिया जाए तो अदालत के कठघरे में खड़ा होने वाला हर व्‍यक्‍ित न्‍यायाधीश से पहले यह मांग करेगा कि मेरे ऊपर आरोप लगाने वाले व्‍यक्‍ित का चरित्र देखकर मेरे खिलाफ आरोप पत्र पर संज्ञान लिया जाए न कि मेरे अपराध पर।
फिर तो एक हत्‍यारा भी यह दलील दे सकता है कि इस देश में सैकड़ों हत्‍यारे हैं। उनमें से ऐसे भी हैं जिनके खिलाफ आजतक कोई सामने नहीं आया। या तो उनके भी खिलाफ कार्यवाही की जाए अन्‍यथा मुझे कठघरे में खड़ा करने का किसी को कोई अधिकार नहीं बनता।
दुर्भाग्‍य से हालांकि अन्‍ना हजारे के मामले में तो सरकार की यह बेहूदा कारगुजारी तक काम नहीं आई क्‍योंकि उन पर लगाये गये आरोप दो दिनों के अंदर झूठे साबित हो गये लेकिन अगर यह मान लिया जाए कि अन्‍ना पर लगाये गये आरोपों में से किसी में रत्‍तीभर सच्‍चाई होती तो भी क्‍या इससे उनका अनशन करने का संवैधानिक अधिकार छीना जा सकता है ? 
क्‍या इस तरह की दलील दी जा सकती है कि अन्‍ना या उनकी टीम के सदस्‍य पर किसी तरह का कोई आरोप है इसलिए सरकार चला रहे लोगों को कैसा भी अपराध करने का अधिकार स्‍वत: प्राप्‍त हो जाता है ?
अन्‍ना हजारे के आंदोलन को कुछ समय पहले तक गंभीरता से न लेने तथा बाबा रामदेव के आंदोलन की तरह कुचल देने की कोशिश करने वाली कांग्रेस एण्‍ड पार्टी अब ऐसा लगता है कि बौखलाहट में अनर्गल प्रलाप कर रही है। पार्टी के पदाधिकारी ही नहीं, मंत्री पदों को सुशोभित करने वाले लोग भी ऐसी बे-सिरपैर की दलीलें दे रहे हैं जिन्‍हें सुनकर हंसी आती है।
कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का यह पर्व यूं तो हर बार जैसा ही है लेकिन अन्‍ना हजारे के आंदोलन ने इसे कुछ विशेष जरूर बना दिया है। लोग इस कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी पर उनकी उस मुहिम का हिस्‍सा हैं जिसका समर्थन भगवत गीता जैसा ग्रंथ करता है। यानि-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥

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