अपने यूपी में पुलिस विभाग के अंदर एक पद है ''स्पेशल डीजी'' का। अब जिस पद के साथ ही ''स्पेशल'' जुड़ा हो, उसे सुशोभित करने वाला व्यक्ति ''सामान्य'' बात तो कर नहीं सकता। करनी भी नहीं चाहिए वरना ''विशिष्टता'' कायम न रहने का खतरा पैदा हो जाता हो। पद की गरिमा बनाये रखना हर अधिकारी का ''नैतिक'' कर्तव्य है।
ताज नगरी आगरा के एक प्राइवेट हॉस्पीटल में बम धमाका हुआ। इधर धमाका हुआ और उधर ''स्पेशल डीजी'' ने ऐलान कर दिया कि यह आतंकी घटना नहीं है। प्रारंभिक पड़ताल से ऐसा लगता है कि कुछ शरारती लोगों ने दहशत फैलाने के लिए यह वारदात की है।
इतने बड़े अधिकारी ने इतनी बड़ी बात कही तो भरोसा सबको करना पड़ेगा, चाहे उसका कोई अर्थ हो या ना हो।
आम लोगों की तरह मैंने भी भरोसा किया और सो गया लेकिन पत्रकारिता का कीड़ा रातभर काटता रहा। पेशेगत शंकाएं मजबूर करने लगीं कि दिमाग पर कुछ तो जोर डाल भाई। देश व समाज के प्रति तेरी भी कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं।
आखिर जब दिमाग पर जोर डाला तो स्पेशल डीजी साहब की बात गले उतरने को तैयार नहीं हुई। समझ में नहीं आ रहा था कि अगर यह आतंकी घटना नहीं थी तो क्या थी ?
स्पेशल डीजी साहब का बयान कुछ ''कनफ्यूज'' कर रहा था क्योंकि उन्होंने ''द्विअर्थी संवाद'' का इस्तेमाल किया था। एक ओर कहा कि यह आतंकी घटना नहीं थी लेकिन दूसरी ओर कहा कि कुछ शरारती लोगों ने दहशत फैलाने के लिए यह वारदात की है।
आप ही बताइये कि आतंकी घटना कहते किसे हैं और आतंकवाद का मतलब क्या होता है ?
जहां तक मुझे मालूम है, आतंकवादियों का मकसद ही ''आतंक'' अथवा ''दहशत'' पैदा करना होता है और इसीलिए उन्हें ''दहशतगर्द'' या ''आतंकवादी'' कहते हैं। आतंकवाद की इस परिभाषा पर शायद अब तक किसी ने संदेह व्यक्त नहीं किया है लेकिन अब ऐसी प्रबल संभावना है क्योंकि स्पेशल डीजी साहब ने दहशतगर्दी और आतंकवाद को अलग-अलग माना है।
वैसे मुझे इस बात पर भी आश्चर्य हुआ कि आखिर लखनऊ में बैठे-बैठे ही स्पेशल डीजी साहब को चंद घण्टों के अंदर यह कैसे पता लग गया कि आगरा का विस्फोट आतंकवादी घटना नहीं है। उनके पास ऐसे कौन से सूत्र हैं जो इतनी जल्दी उन्हें निष्कर्ष पर पहुंचने की प्रेरणा दे देते हैं। यह जांच का विषय है।
यदि यह माना जाए कि आगरा के डीआईजी/एसएसपी असीम अरुण साहब ने कुछ बताया होगा तो उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था। उन्होंने तो केवल इतना कहा कि धमाका बहुत शक्ितशाली है, जांच जारी है। चुनौती दी गई है। पुलिस ने अपना काम शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों की जांच के बाद ही साफ होगा कि किस तरह का विस्फोट था।
असीम अरुण साहब हालांकि न तो स्पेशल डीआईजी हैं और ना उन्होंने कोई स्पेशल बात कही लेकिन जो कहा वह नपा-तुला व सामान्य कहा जिससे किसी प्रकार का ''मुगालता'' पैदा न हो।
उधर लखनऊ से स्पेशल डीजी साहब ने एक बात और कही कि यह धमाका आपसी रंजिश या व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा का नतीजा भी हो सकता है। वह अपनी बात पर आगरा आकर भी अड़े रहे जिसकी पुष्टि हॉस्पीटल के पीड़ित संचालक/डॉक्टर ने की।
डॉक्टर ने पत्रकारों को बताया कि स्पेशल डीजी साहब मुझसे पूछ रहे हैं कि आपकी किसी से कोई रंजिश तो नहीं है, हॉस्पीटल का कोई विवाद तो नहीं चल रहा। डॉक्टर के मुताबिक उनकी प्रथम तो किसी से कोई रंजिश नहीं है, हॉस्पीटल का कोई विवाद नहीं है और होता भी तो रंजिशन कोई मरीजों या तीमारदारों को क्यों चोट पहुंचायेगा। उसके लिए मुझे टारगेट बनाना चाहिए था।
डॉक्टर साहब जो कह रहे हैं, वह सामान्य लोगों की सोच वाली बात है। डॉक्टर भी सामान्यजनों की श्रेणी में आते हैं, हालांकि कुछ समय पहले तक उन्हें भगवान सा दर्जा दिया जाता था।
बहरहाल, डॉक्टर चाहे जो भी हों परन्तु स्पेशल डीजी नहीं हैं और इसलिए वह बातें उनकी समझ से परे हैं जो ''स्पेशल पद'' पर रहकर ''स्पेशल दिमाग'' से सोची व समझी जा सकती हैं।
एक दृष्टि से देखा जाए तो स्पेशल डीजी साहब का कहना सही है। वह ऐसे कैसे मान लें कि आगरा में धमाका आतंकवादियों की सोची-समझी चाल है। इतनी कम क्षमता का बम कोई आतंकवादी फोड़ते होंगे ?
यूपी इस मामले में स्पेशल है और इसीलिए यहां स्पेशल डीजी का पद है। यहां ऐसे टुच्चे धमाके तो कोई भी ऐरा-गैरा नौसिखिया बदमाश कर डालता है। दो संप्रदायों के बीच आगरा में ही आयेदिन जो पाक मोहब्बत का इजहार किया जाता है उसमें ऐसे धमाके सुनने को मिलते रहते हैं। हो सकता है छतों पर से फेंके जाने के कारण उनके बमों की आवाज उतनी ना गूंजती हो जितनी हॉस्पीटल में गूंज गई क्योंकि वहां ईको कुछ ज्यादा रही होगी।
यूं भी यूपी के स्पेशल डीजी का रुतबा अपने केन्द्रीय गृहमंत्री से किसी मायने में कम नहीं है। जब वह बम ब्लास्ट होने की किसी घटना को आसानी से आतंकवादी घटना नहीं मानते तो हमारे स्पेशल डीजी साहब क्यों मान लें।
जब वह आये दिन आतंकवादी घटना होने के बावजूद अपनी खुफिया एजेंसियों की नाकामी नहीं मानते तो हमारे स्पेशल डीजी कैसे मान लें। आखिर फेअर कंपटीशन भी तो कोई चीज है। फिर वह केन्द्र सरकार से हो या केन्द्रीय गृहमंत्री से। यूपी किसी से पिछड़ा हुआ थोड़े ही ना है।
अभी तो आगरा में पटाखा सा फूटा है। वहां सिर्फ ताजमहल है। बगल में मथुरा रिफाइनरी है, उससे कुछ आगे कृष्ण जन्मभूमि है, उससे आगे इस्कॉन टेम्पिल है, बांके बिहारी मंदिर है। वहां कभी कुछ होता है, तब देखा जायेगा। जरूरी हुआ तो तब मान लेंगे कि आतंकवादी इधर भी सक्रिय हो चुके हैं।
पुलिस की अभिसूचना इकाई (LIU) वैसे भी कभी किसी बात की संभावना से इंकार नहीं करती। वह अपनी हर रिपोर्ट में यह लिखना नहीं भूलती कि'' संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता''। यह सब तो चलता रहेगा लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि स्पेशल डीजी साहब, कुछ महीनों में ''डीजीपी'' बन जायेंगे और तब उन्हें ऐसे स्पेशल बयान देने का मौका शायद न मिले पर उनकी विशिष्टता बनी रहेगी, ऐसी अपेक्षा की जा सकती है।
खुदा हाफिज़। जय हिंद। जय भारत।
ताज नगरी आगरा के एक प्राइवेट हॉस्पीटल में बम धमाका हुआ। इधर धमाका हुआ और उधर ''स्पेशल डीजी'' ने ऐलान कर दिया कि यह आतंकी घटना नहीं है। प्रारंभिक पड़ताल से ऐसा लगता है कि कुछ शरारती लोगों ने दहशत फैलाने के लिए यह वारदात की है।
इतने बड़े अधिकारी ने इतनी बड़ी बात कही तो भरोसा सबको करना पड़ेगा, चाहे उसका कोई अर्थ हो या ना हो।
आम लोगों की तरह मैंने भी भरोसा किया और सो गया लेकिन पत्रकारिता का कीड़ा रातभर काटता रहा। पेशेगत शंकाएं मजबूर करने लगीं कि दिमाग पर कुछ तो जोर डाल भाई। देश व समाज के प्रति तेरी भी कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं।
आखिर जब दिमाग पर जोर डाला तो स्पेशल डीजी साहब की बात गले उतरने को तैयार नहीं हुई। समझ में नहीं आ रहा था कि अगर यह आतंकी घटना नहीं थी तो क्या थी ?
स्पेशल डीजी साहब का बयान कुछ ''कनफ्यूज'' कर रहा था क्योंकि उन्होंने ''द्विअर्थी संवाद'' का इस्तेमाल किया था। एक ओर कहा कि यह आतंकी घटना नहीं थी लेकिन दूसरी ओर कहा कि कुछ शरारती लोगों ने दहशत फैलाने के लिए यह वारदात की है।
आप ही बताइये कि आतंकी घटना कहते किसे हैं और आतंकवाद का मतलब क्या होता है ?
जहां तक मुझे मालूम है, आतंकवादियों का मकसद ही ''आतंक'' अथवा ''दहशत'' पैदा करना होता है और इसीलिए उन्हें ''दहशतगर्द'' या ''आतंकवादी'' कहते हैं। आतंकवाद की इस परिभाषा पर शायद अब तक किसी ने संदेह व्यक्त नहीं किया है लेकिन अब ऐसी प्रबल संभावना है क्योंकि स्पेशल डीजी साहब ने दहशतगर्दी और आतंकवाद को अलग-अलग माना है।
वैसे मुझे इस बात पर भी आश्चर्य हुआ कि आखिर लखनऊ में बैठे-बैठे ही स्पेशल डीजी साहब को चंद घण्टों के अंदर यह कैसे पता लग गया कि आगरा का विस्फोट आतंकवादी घटना नहीं है। उनके पास ऐसे कौन से सूत्र हैं जो इतनी जल्दी उन्हें निष्कर्ष पर पहुंचने की प्रेरणा दे देते हैं। यह जांच का विषय है।
यदि यह माना जाए कि आगरा के डीआईजी/एसएसपी असीम अरुण साहब ने कुछ बताया होगा तो उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था। उन्होंने तो केवल इतना कहा कि धमाका बहुत शक्ितशाली है, जांच जारी है। चुनौती दी गई है। पुलिस ने अपना काम शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों की जांच के बाद ही साफ होगा कि किस तरह का विस्फोट था।
असीम अरुण साहब हालांकि न तो स्पेशल डीआईजी हैं और ना उन्होंने कोई स्पेशल बात कही लेकिन जो कहा वह नपा-तुला व सामान्य कहा जिससे किसी प्रकार का ''मुगालता'' पैदा न हो।
उधर लखनऊ से स्पेशल डीजी साहब ने एक बात और कही कि यह धमाका आपसी रंजिश या व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा का नतीजा भी हो सकता है। वह अपनी बात पर आगरा आकर भी अड़े रहे जिसकी पुष्टि हॉस्पीटल के पीड़ित संचालक/डॉक्टर ने की।
डॉक्टर ने पत्रकारों को बताया कि स्पेशल डीजी साहब मुझसे पूछ रहे हैं कि आपकी किसी से कोई रंजिश तो नहीं है, हॉस्पीटल का कोई विवाद तो नहीं चल रहा। डॉक्टर के मुताबिक उनकी प्रथम तो किसी से कोई रंजिश नहीं है, हॉस्पीटल का कोई विवाद नहीं है और होता भी तो रंजिशन कोई मरीजों या तीमारदारों को क्यों चोट पहुंचायेगा। उसके लिए मुझे टारगेट बनाना चाहिए था।
डॉक्टर साहब जो कह रहे हैं, वह सामान्य लोगों की सोच वाली बात है। डॉक्टर भी सामान्यजनों की श्रेणी में आते हैं, हालांकि कुछ समय पहले तक उन्हें भगवान सा दर्जा दिया जाता था।
बहरहाल, डॉक्टर चाहे जो भी हों परन्तु स्पेशल डीजी नहीं हैं और इसलिए वह बातें उनकी समझ से परे हैं जो ''स्पेशल पद'' पर रहकर ''स्पेशल दिमाग'' से सोची व समझी जा सकती हैं।
एक दृष्टि से देखा जाए तो स्पेशल डीजी साहब का कहना सही है। वह ऐसे कैसे मान लें कि आगरा में धमाका आतंकवादियों की सोची-समझी चाल है। इतनी कम क्षमता का बम कोई आतंकवादी फोड़ते होंगे ?
यूपी इस मामले में स्पेशल है और इसीलिए यहां स्पेशल डीजी का पद है। यहां ऐसे टुच्चे धमाके तो कोई भी ऐरा-गैरा नौसिखिया बदमाश कर डालता है। दो संप्रदायों के बीच आगरा में ही आयेदिन जो पाक मोहब्बत का इजहार किया जाता है उसमें ऐसे धमाके सुनने को मिलते रहते हैं। हो सकता है छतों पर से फेंके जाने के कारण उनके बमों की आवाज उतनी ना गूंजती हो जितनी हॉस्पीटल में गूंज गई क्योंकि वहां ईको कुछ ज्यादा रही होगी।
यूं भी यूपी के स्पेशल डीजी का रुतबा अपने केन्द्रीय गृहमंत्री से किसी मायने में कम नहीं है। जब वह बम ब्लास्ट होने की किसी घटना को आसानी से आतंकवादी घटना नहीं मानते तो हमारे स्पेशल डीजी साहब क्यों मान लें।
जब वह आये दिन आतंकवादी घटना होने के बावजूद अपनी खुफिया एजेंसियों की नाकामी नहीं मानते तो हमारे स्पेशल डीजी कैसे मान लें। आखिर फेअर कंपटीशन भी तो कोई चीज है। फिर वह केन्द्र सरकार से हो या केन्द्रीय गृहमंत्री से। यूपी किसी से पिछड़ा हुआ थोड़े ही ना है।
अभी तो आगरा में पटाखा सा फूटा है। वहां सिर्फ ताजमहल है। बगल में मथुरा रिफाइनरी है, उससे कुछ आगे कृष्ण जन्मभूमि है, उससे आगे इस्कॉन टेम्पिल है, बांके बिहारी मंदिर है। वहां कभी कुछ होता है, तब देखा जायेगा। जरूरी हुआ तो तब मान लेंगे कि आतंकवादी इधर भी सक्रिय हो चुके हैं।
पुलिस की अभिसूचना इकाई (LIU) वैसे भी कभी किसी बात की संभावना से इंकार नहीं करती। वह अपनी हर रिपोर्ट में यह लिखना नहीं भूलती कि'' संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता''। यह सब तो चलता रहेगा लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि स्पेशल डीजी साहब, कुछ महीनों में ''डीजीपी'' बन जायेंगे और तब उन्हें ऐसे स्पेशल बयान देने का मौका शायद न मिले पर उनकी विशिष्टता बनी रहेगी, ऐसी अपेक्षा की जा सकती है।
खुदा हाफिज़। जय हिंद। जय भारत।
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