शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

सफेदपोश अपराधियों का फार्मूला ?

क्‍या कोई व्‍यक्‍ित अपने किसी आपराधिक कृत्‍य से यह कहकर बच सकता है कि दूसरे तमाम लोग मुझसे पहले इस अपराध को अंजाम दे चुके थे इसलिए मैंने ऐसा किया।
जाहिर है कि नहीं बच सकता, क्‍योंकि कोई व्‍यक्‍ित इस बिना पर अपराध करने के लिए अधिकृत नहीं हो सकता क्‍योंकि उससे पहले भी लोगों ने वैसा अपराध किया है।
लेकिन देश के भाग्‍य विधाता बनकर बैठे हमारे नेतागण और उनकी जगह पर हर पल गिद्ध दृष्‍टि जमाये हुए उनके विपक्षीगण जब कभी कोई आपराधिक कृत्‍य करते हैं तो उनके पास अपने पक्ष में कहने को कुछ नहीं होता अलबत्‍ता वह इस आशय की दलील जरूर देते हैं कि मुझसे पहले फलां पार्टी के नेता ने ऐसा किया था तो मैंने कौन सा पाप कर दिया।
ताजा उदाहरण देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के उस कृत्‍य का है जिसके माध्‍यम से उन्‍होंने अपनी बेगम की खातिर निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्‍था को ही खुली चुनौती दे डाली।
बेशक यह मामला अब कानून मंत्री द्वारा माफीनामा देने के बाद रफा-दफा कर दिया गया है लेकिन इससे नेताओं की फितरत नहीं बदल सकती इसे फिर साबित कर दिया है केन्‍द्रीय मंत्री बेनी बाबू ने।
जब सलमान खुर्शीद ने निर्वाचन आयोग को खुली चुनौती दी थी और जब तमाम टीवी चैनलों पर उसे लेकर बहस-मुबाहिसों का दौर जारी था तब एक टीवी चैनल पर कांग्रेसी नेताओं ने कहा कि भाजपा नेता व गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी भी पहले निर्वाचन आयोग को चेतावनी दे चुके हैं तथा जिस तरह के बयानों पर सलमान खुर्शीद को घेरा जा रहा है उस तरह के बयान तो माया व मुलायम भी दे रहे हैं।
टीवी चैनलों का भी अपना एक गणित होता है जो पूरी तरह व्‍यावसायिक और लाभ के लिए है लिहाजा नेताओं से वह तो ऐसा कोई प्रश्‍न करेंगे क्‍यों पर मैं यह जरूर जानना चाहता हूं कि यदि कभी नरेन्‍द्र मोदी अथवा किसी दूसरी पार्टी के तीसरे नेता ने ऐसा असभ्‍य कृत्‍य किया था तो क्‍या कानून मंत्री अथवा इस्‍पात मंत्री को वही असभ्‍य व गैरकानूनी आचरण करने का लाइसेंस मिल जाता है ?
अगर ये मामले कोर्ट की दहलीज तक जाते हैं तो क्‍या हमारे ये माननीय मंत्रीगण इस दलील से खुद को बेकसूर साबित कर सकते हैं कि उनसे पहले भी किसी ने ऐसे कृत्‍य किये हैं इसलिए उनका अपना कोई अपराध नहीं है।
फिर तो कल को कोई हत्‍यारा, बलात्‍कारी, चोर-उचक्‍का और पॉकेटमार भी अदालत में यही कहकर बच सकता है कि तमाम दूसरे लोग ऐसा करते हैं, मैंने किया है तो क्‍या गलत कर दिया।
वह इस आशय की दलील भी दे सकते हैं कि जिन्‍हें देश सौंपा है शासन चलाने के लिए वह आज देश को बेचकर स्‍िवस बैंकों में अपनी तिजोरियां भर रहे हैं, मैंने तो सिर्फ पॉकेट मारकर कौन सा अपराध कर दिया।
जिस प्रकार ये दलीलें नि:संदेह बेहूदी हैं, उसी तरह हमारे नेताओं का अपने कुकृत्‍यों को छिपाने का तरीका भी बेहूदा व लज्‍जाजनक है पर सामर्थ्‍यवान को दोष कौन दे ?

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